प्रतीकात्मक फोटो
नई दिल्ली:
दुल्लन महतो बिहार के नवादा जिले का रहने वाला है और दिल्ली में मजदूरी करता है. उसकी रोज की दिहाड़ी 300 रुपये है. वह अपनी आधी कमाई खाने पर खर्च करता है. पांच दिन पहले जब से बड़े नोटों का चलन बंद हुआ है, वह लगभग भुखमरी का सामना कर रहा है.
59 वर्षीय दुल्लन के हाथ खाली हैं. वह पूर्वी दिल्ली के डॉ. हेडगेवार अस्पताल के पास सड़क किनारे सोता है. लोगों के पास पैसे नहीं हैं और ग्राहकी के अभाव में बाजार बीमार है. इसलिए दुल्लन के पास फिलहाल कोई काम नहीं है. जब काम नहीं तो पैसे नहीं. वह खाएगा क्या? दुल्लन महतो ने कहा, "हम लोग रोज करीब 300 रुपये कमाते हैं, लेकिन पिछले तीन दिनों से हमें कोई काम नहीं मिला है. हम लोग भूखे रहने के लिए मजबूर हैं."
महतो का कहना है कि उसके पास पैसा बिल्कुल नहीं है. सिर्फ उसका नहीं, यही हाल राष्ट्रीय राजधानी के हजारों मजदूरों का है. नोटबंदी से दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में अन्य राज्यों से आए बहुत सारे मजदूर और निम्न मध्यवर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.
कुछ का तो कहना है कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है. या तो भूखे रहें या अपने गांव लौट जाएं. उन्हें जो काम देते हैं उनका कहना है कि पैसा नहीं है, इसलिए उन्हें काम नहीं दे सकते. ठेकेदार पुराने बड़े नोटों को लेकर बैठे हुए हैं. उनके पास 100 रुपये के नोट पर्याप्त नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश के इटावा के मजदूर रामभगतजी ने कहा, "मैं पिछले दो दिनों से भूखा हूं, क्योंकि हमें कोई काम नहीं मिल रहा है." उसने कहा, "पहले दिन में एक या दो बार कुछ लोग आकर हमें खाना दे देते थे, लेकिन अब यह बंद हो गया है."
सुरेंद्र थापा झारखंड के गोड्डा जिले का है. वह भी गुरु तेग बहादुर अस्पताल के पास फुटपाथ पर रहता है. वह भी यही बात कहता है. वह कहता है, "कभी-कभी सोचता हूं कि घर लौट जाऊं, लेकिन ऐसा भी नहीं कर सकता, क्योंकि टिकट खरीदने के लिए भी मेरे पास पैसा नहीं है."
दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में भीख मांगने वाले 70 वर्षीय रामदीन का कहना है कि इन दिनों कोई भीख भी नहीं दे रहा है. दिल्ली में एक लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते हैं. वे रात सड़क के किनारे गुजारते हैं. नोटबंदी से उनका जीना दुश्वार हो गया है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
59 वर्षीय दुल्लन के हाथ खाली हैं. वह पूर्वी दिल्ली के डॉ. हेडगेवार अस्पताल के पास सड़क किनारे सोता है. लोगों के पास पैसे नहीं हैं और ग्राहकी के अभाव में बाजार बीमार है. इसलिए दुल्लन के पास फिलहाल कोई काम नहीं है. जब काम नहीं तो पैसे नहीं. वह खाएगा क्या? दुल्लन महतो ने कहा, "हम लोग रोज करीब 300 रुपये कमाते हैं, लेकिन पिछले तीन दिनों से हमें कोई काम नहीं मिला है. हम लोग भूखे रहने के लिए मजबूर हैं."
महतो का कहना है कि उसके पास पैसा बिल्कुल नहीं है. सिर्फ उसका नहीं, यही हाल राष्ट्रीय राजधानी के हजारों मजदूरों का है. नोटबंदी से दिल्ली के विभिन्न हिस्सों में अन्य राज्यों से आए बहुत सारे मजदूर और निम्न मध्यवर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हुआ है.
कुछ का तो कहना है कि उनके पास और कोई विकल्प नहीं है. या तो भूखे रहें या अपने गांव लौट जाएं. उन्हें जो काम देते हैं उनका कहना है कि पैसा नहीं है, इसलिए उन्हें काम नहीं दे सकते. ठेकेदार पुराने बड़े नोटों को लेकर बैठे हुए हैं. उनके पास 100 रुपये के नोट पर्याप्त नहीं हैं.
उत्तर प्रदेश के इटावा के मजदूर रामभगतजी ने कहा, "मैं पिछले दो दिनों से भूखा हूं, क्योंकि हमें कोई काम नहीं मिल रहा है." उसने कहा, "पहले दिन में एक या दो बार कुछ लोग आकर हमें खाना दे देते थे, लेकिन अब यह बंद हो गया है."
सुरेंद्र थापा झारखंड के गोड्डा जिले का है. वह भी गुरु तेग बहादुर अस्पताल के पास फुटपाथ पर रहता है. वह भी यही बात कहता है. वह कहता है, "कभी-कभी सोचता हूं कि घर लौट जाऊं, लेकिन ऐसा भी नहीं कर सकता, क्योंकि टिकट खरीदने के लिए भी मेरे पास पैसा नहीं है."
दिल्ली के दिल कहे जाने वाले कनाट प्लेस में भीख मांगने वाले 70 वर्षीय रामदीन का कहना है कि इन दिनों कोई भीख भी नहीं दे रहा है. दिल्ली में एक लाख से ज्यादा प्रवासी मजदूर रहते हैं. वे रात सड़क के किनारे गुजारते हैं. नोटबंदी से उनका जीना दुश्वार हो गया है.
(हेडलाइन के अलावा, इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है, यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं