शीला दीक्षित
नई दिल्ली:
दिल्ली पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित मानती हैं कि बीआरटी कॉरिडोर बनाने में कमियां रह गई जिसको वह दूर नहीं कर पाईं, लेकिन तोड़ना समस्या का समाधान नहीं था।
उनका कहना है कि कमियों और खामियों को सुधारना चाहिए था। साथ ही उनका जोर इस बात पर भी था कि बिना किसी ट्रायल के तोड़ना पैसे की बरबादी होगी। लगातार गाड़ियों की बढ़ती तादाद और जाम से जूझती दिल्ली का भविष्य इनोवेशन पर है। और इसी मकसद से बीआरटी की नींव रखी गई, निर्माण किया गया।
शीला दीक्षित मानती हैं कि बीआरटी को लेकर खूब विरोध हुआ, लेकिन लोगों ने इसको सराहा भी। तर्क के तौर पर बताती हैं कि ये लोगों के समर्थन का ही नतीजा था कि इसके बनने के बाद भी बीआरटी के आसपास की सभी सीटें कांग्रेस की झोली में गई थी।
पुराने दिनों को याद करते हुए शीला दीक्षित कहती हैं कि जबतक हम सरकार में थे तबतक खामियों के बावजूद भी ये चला। हमारी सरकार जाने के बाद इसके इम्प्लीमेंटेशन में कमी रह गई। अगर डिसीप्लिन में ट्रैफिक चलता तो इस तरह के चार और जगहों पर हमने ऐसा मॉडल सोच रखा था। सेंट्रल बस स्टैंड को भी साइड में करके देखा, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। सरकार को यही कहना चाहूंगी, 'आपका फैसला है। मैं उम्मीद करती हूं कि ये फैसला कुछ बेहतर बात सामने लाएगा।'
उनका कहना है कि कमियों और खामियों को सुधारना चाहिए था। साथ ही उनका जोर इस बात पर भी था कि बिना किसी ट्रायल के तोड़ना पैसे की बरबादी होगी। लगातार गाड़ियों की बढ़ती तादाद और जाम से जूझती दिल्ली का भविष्य इनोवेशन पर है। और इसी मकसद से बीआरटी की नींव रखी गई, निर्माण किया गया।
शीला दीक्षित मानती हैं कि बीआरटी को लेकर खूब विरोध हुआ, लेकिन लोगों ने इसको सराहा भी। तर्क के तौर पर बताती हैं कि ये लोगों के समर्थन का ही नतीजा था कि इसके बनने के बाद भी बीआरटी के आसपास की सभी सीटें कांग्रेस की झोली में गई थी।
पुराने दिनों को याद करते हुए शीला दीक्षित कहती हैं कि जबतक हम सरकार में थे तबतक खामियों के बावजूद भी ये चला। हमारी सरकार जाने के बाद इसके इम्प्लीमेंटेशन में कमी रह गई। अगर डिसीप्लिन में ट्रैफिक चलता तो इस तरह के चार और जगहों पर हमने ऐसा मॉडल सोच रखा था। सेंट्रल बस स्टैंड को भी साइड में करके देखा, लेकिन कामयाब नहीं हो पाए। सरकार को यही कहना चाहूंगी, 'आपका फैसला है। मैं उम्मीद करती हूं कि ये फैसला कुछ बेहतर बात सामने लाएगा।'
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