दिल्ली की सीएम रेखा गुप्ता का खास इंटरव्यू.
दिल्ली की मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने NDTV को दिए खास इंटरव्यू (Delhi CM Rekha Gupta) में अपनी उपलब्धियों का जिक्र किया. उन्होंने बताया कि अभी क्या अचीव करना बाकी है. दिल्ली की सीएम ने DUSU के पहले चुनाव से लेकर पिता के सपने और परिवार की उम्मीदों से लेकर दिल्ली की मुख्यमंत्री के तौर पर अपने सपने और विपक्ष के मुद्दों तक पर खुलकर बात की. उन्होंने बताया कि वह कैसी दिल्ली बनाने का सपना देखती हैं. दिल्ली की तरक्की के लिए उनका ब्लू प्रिंट क्या है. उन्होंने क्या कुछ कहा, जानिए.
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सवाल- ABVP से अपने राजनीतिक करियर की शुरुआत की, 30 साल का करियर और आज दिल्ली की मुख्यमंत्री.. क्या आपको लगता है कि आपने कुछ अचीव कर लिया?
जवाब- दो तरह की उपलब्धियां होती हैं. पहली उस मकाम पर पहुंचना, जहां आप कुछ कर सकें और दूसरा उस मकाम पर पहुंचकर असल में कुछ करने की स्थिति में आना. जिसमें एक उपलब्धि मैंने हासिल कर ली है. आज मैं एक ऐसी जिम्मेदारी निभा रही हूं, जहां कुछ कर सकती हैं. लेकिन करके दिखाने वाली उपलब्धि अभी बाकी है.
सवाल- आप कैसी दिल्ली सोचती हैं. एक दिल्ली जो आपने देखी और एक शीला दीक्षित की दिल्ली, जिसे लोग याद करते हैं. आपके सपनों की दिल्ली कैसी है, क्या आप इसमें बड़ा बदलवा करेंगी, जिसे लोग याद रख सकें?
जवाब- पहले की सरकारों ने जो भी किया हो लेकिन दिल्ली आज भी छोटी-छोटी चीजों के लिए तरस रही है. किसी भी दिल्ली वाले से बात करने पर वो यही कहता है कि उसके घर में पानी की दिक्कत है. साफ पानी नहीं आ रहा. सीवर लाइन भरा है. सड़क के आगे गड्ढे हैं. नाली ओवर फ्लो है. दिल्ली के लोगों को छोटी-छोटी परेशानियां तंग करती हैं. वे पार्क, आसपास के माहौल, और पॉल्युशन लेवल, ट्रेफिक कंजेशन से दुखी हैं. बारिश में पानी भरने की परेशानी से जूझते हैं पूरी दिल्ली जाम हो जाती है और घंटों तक ट्रैफिक जाम रहता है. दिल्ली के सिस्टम में बहुत ज्यादा कमी है. जबकि राजधानी दिल्ली का इंफ्रास्ट्रक्टर वर्ल्डक्लास होना चाहिए.
मेरे सपनों की दिल्ली या पीएम मोदी के विजन की दिल्ली को ऐसा होना चाहिए, जहां शिक्षा के लिए बेशुमार अवसर हों. स्वास्थ्य को लेकर कोई भी बिल्कुल परेशान नहीं हो. देश की राजधानी होने के बाद भी अगर बुनियादी सुविधाओं के लिए दिल्ली परेशान है. झुग्गी में रहने वाले लोग खुले में शौच के लिए जाने को मजबूर हों, महिलाओं के लिए नहाने की जगह नहीं है, ऐसी दिल्ली का सपना तो किसी भी दिल्ली वाले ने नहीं देखा होगा. दिल्ली ऐसी होनी चाहिए, जो हरी भरी हो, साफ सुधरी हो, अप टू डेट हो, जहां हर चीज ट्रांसपेरेंट हो, भ्रष्टाचार न हो, सारा सिस्टम ऑनलाइन हो. एक फोन कॉल पर सर्विस हाजिर हो.
सवाल- पहले भी कई नेता दिल्ली की तुलना दूसरे देशों से करते हुए कहते रहे हैं कि इसे शांघाई बना देंगे, सिंगापुर बना देंग, दुबई बना देंगे. आपका लक्ष्य किस तरह की दिल्ली बनाने का है?
जवाब- मैं दिल्ली को दिल्ली बनाना चाहती हूं. एक राजधानी के लिए जो हमारी अपेक्षाएं हैं कि राजधानी ऐसी होनी चाहिए, जहां कोई आए तो उसे गर्व महसूस हो कि वह दिल्ली आया है. यहां से वह जो इमेज लेकर जाए वो पूरे देश में प्रचारित और प्रसारित हो. वो ये कह सके कि मैं दिल्ली गया था. दिल्ली जैसा ट्रांसपोर्ट, इंफ्रास्ट्रक्च, सैनिटाइजेशन सिस्टम कहीं नहीं दिखे, दिल्ली ऐसी होनी चाहिए.
सवाल- हरियाणा की एक कंजर्वेटिव सोसायटी से एक परिवार दिल्ली आया. उनकी बेटी राजनीति में आ गई. सुना है DUSU के चुनाव लड़ने के समय आपके माता-पिता इसके खिलाफ थे.
जवाब- पिता नहीं मेरी मां चुनाव लड़ने के खिलाफ थीं. वह कहती थीं कि राजनीति बनियों के बच्चों का काम नहीं है. बनिया सीधा साधा जीवन जीते हैं. लड़की है तो शादी करो और अपने घर जाओ. उनको लगता था कि राजनीति हमारे परिवार के बच्चों के ठीक नहीं है. इससे परिवार, समाज और शाही-व्याह में दिक्कतें आ सकती हैं. लेकिन पिताजी बहुत ही सपोर्टिव रहे. आज मैं अपने पिता को मिस करती हूं कि देखिए पापा मैं कहां खड़ी हूं. जब भी मैं कुछ करती थी तो वह बहुत खुश होते थे. आज वह नहीं है, मैं उनको नहीं बता सकती कि मैं क्या कर रही हूं.
सवाल- क्या आपके पिता भी आपके मुख्यमंत्री बनने का सपना देखते थे?
जवाब- नहीं मुख्यमंत्री का सपना तो नहीं लेकिन जो भी कदम मैंने जीवन में एक-एक कर बढ़ाया, वो उससे खुश रहते थे. मैं निगम पार्षद रही ये उनको बहुत अच्छा लगता था कि देखो मेरी बेटी का आज नाम है. मैंने विधायक की चुनाव लड़ा तो उनको बहुत गर्व महसूस हुआ.समाज में बेटी का मान,सम्मान और इज्जत देखकर वह बहुत खुश होते थे. मुझे मुख्यमंत्री बनता देख तो वह न जाने कितना खुश होते.
सवाल- क्या पिता का सपना पूरा करने के लिए कभी आपको अपना मन मारना पड़ा, बिना मन के प्रदर्शनों में जाना या राजनीति छोड़कर घर संभालने का मन या कुछ और?
जवाब- पिताजी कभी नहीं कहते थे कि ये काम करो और ये मत करो. उनको बस इतना था कि बच्चों को इतनी फ्रीजम हो कि वह कर सकें.घर-परिवार, पति, बच्चों के साथ जब आप रहते हैं तो कई बार ऐसा होता है जब आपको चुनना पड़ता है कि आपकी प्रायोरिटी क्या है. एक बार मेरे पति का बड़ा एक्सीडेंट हो गया था. वह डेढ़ महीने अस्पताल में रहे. तब मैं सब छोड़कर उनके साथ ही रही. क्यों कि उस वक्त वही मेरी प्रायोरिटी थी. आज मेरा पूरा परिवार मुझे सपोर्ट करता है.
सवाल- जब आप डूसू का चुनाव लड़ने गईं तो माता-पिता को तैयार करने के लिए आपने कोई RSS वाला रूट लिया. घर के पास रहने वाले किसी प्रचारक को अपने अपनी मां को राजी करने के लिए भेजा था क्या?
जवाब- हर बच्चा ये जानता है कि उसके मम्मी-पापा को कैसे मनाया जाए. मुझे भी पता था कि अपनी मां को मनाने के लिए मुझे क्या करना है. उस दिन डूसू प्रेसिडेंट का डिक्लेरेशन होना था. नॉमिनेशन भरना था और मां की तरफ से घर में माहौल बहुत गर्म था कि किसी भी हाल में चुनाव नहीं लड़ने देना है. जबकि पार्टी चाहती थी कि मैं चुनाव लड़ूं.11 बजे नॉमिनेशन का समय खत्म होने वाला था. पूरी पार्टी मेरे घर पर बैठी थी कि कैसे घर वालों को चुनाव लड़ने के लिए राजी किया जाए.तब मैने उनको इशारा किया कि मेरी मम्मी को पड़ोस के ये लोग मना सकते हैं.
सवाल- पहले आप पार्षद बनीं, फिर विधायक और फिर मुख्यमंत्री... जब एक सामान्य कार्यकर्ता पद पर आता है, तो ये आम कार्यकर्ता के लिए एक संदेश होता है या जो सीनियर लोग पद पर नहीं पहुंच पाते हैं उनके मन खटास से भर जाते हैं
जवाब- भारतीय जनता पार्टी के संगठन में एक भाव बहुत क्लियर है कि जो संगठन ने तय कर दिया सबको उसकी अनुपालना करनी है. ये संगठन परिवार की पद्दति का हिस्सा भी है और हम सब उस समझ के अनुशासन में रहते भी हैं. निश्चित रूप से जब कार्यकर्ता को कोई पद मिलता है तो उसकी खुशी अपार होती है. वो दिखती भी है. मैंने खुद भी ये बहुत महसूस किया है. देस की महिलाएं, हमारा पूरा महिला मोर्चा, महिला कार्यकर्ता सब बहुत खुश हैं. एक सामान्य महिला भी खुद को कनेक्टेड मूहसूस करती है. उसे ऐसा लगता है कि वही सीएम बन गई है.
सवाल- आप अब भी अपनी विधानसभा के उसी छोटे से घर में रह रही हैं, क्या सरकारी घर नहीं लिया.
जवाब- मेरा घर छोटा नहीं अच्छा खासा है. लेकिन हां मुख्यमंत्री के हिसाब से उतना उपयोगी नहीं है क्यों कि रोजाना सैकड़ों लोग वहां आते हैं. जब भी मुझे सरकारी घर अलॉट होगा, मैं जाऊंगी.
सवाल- शीशमहल का क्या हुआ. क्या सरकार ने कुछ विचार किया?
जवाब- शीशमहल के लिए बहुत से सुझाव आ रहे हैं. हम कुछ ऐसा सोच रहे हैं, जिससे उसकी अधिकमत उपयोगिता हो सके. वह बिल्डिंग जनता की लागत से बनी करोड़ों रुपए की बिल्डिंग है. तो उसकी भरपाई हो पाए, कुछ ऐसा सोच रहे हैं.
सवाल- आपकी सरकार बन गई है, आपके मंत्री काम कर रहे हैं. आप लगातार काम कर रहे हैं. विपक्ष की शिकायत है कि आपकी पार्टी और सरकार अभी भी अरविंद केजरीवाल को कोसती रहती है.जनता ने चुन लिया, अब आप काम करिए.
जवाब- क्या करें, जब हम रोज सामने देखते हैं कि ये लोग कितनी गंदगी मचाकर गए हैं. जब हम कुछ हटाते हैं तो उसके नीचे फंगस निकलकर आती है. उन्होंने जिस तरह से पूरे सिस्टम को बर्बाद किया है. लम्हों ने खता की और सदियां सजा पा रही हैं.
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