नई दिल्ली:
दिल्ली हाई कोर्ट ने दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर (75) पर 16 साल पहले दो शोधार्थियों द्वारा लगाए गए यौन उत्पीड़न के आरोप को खत्म कर दिया है. अदालत ने साल 2002 में दिल्ली विश्वविद्यालय की कार्यकारी परिषद द्वारा प्रोफेसर को सेवा मुक्त करने के फैसले को भी रद्द कर दिया है. प्रोफेसर की आर्थिक स्थिति के संकट को खत्म करने का कदम उठाते हुए न्यायमूर्ति वी कामेश्वर राव ने विश्वविद्यालय प्रशासन से संस्कृत विभाग के पूर्व प्रमुख को सभी बकाया राशि और सेवानिवृत लाभों को तीन महीने के भीतर देने को कहा है. प्रोफेसर उस समय 60 साल के थे जब उन पर कार्रवाई की गई थी, उस समय वह दो साल तक और अपनी सेवाएं दे सकते थे.
हालांकि अदालत ने यह साफ कर दिया है कि वह इस दो साल की अवधि के लिए किसी बकाया राशि के हकदार नहीं होंगे. फैसले में दिल्ली विश्वविद्यालय की उस मांग को स्वीकार नहीं किया गया है, जिसमें यह कहा गया था कि ताजा निर्णय के लिए इस मामले को दोबारा जांच समिति के समक्ष भेजा जाए.
अदालत ने यह पाया है कि प्रोफेसर अपने ऊपर लगे इस कलंक को सिर्फ हटवाने के लिए अदालत तक आए और उन्होंने अपनी सेवा के दो साल गंवाने के लिए कोई वित्तीय राहत नहीं मांगी है. अदालत ने कहा, “अदालत याचिकाकर्ता की उम्र (75) और शोधार्थियों की उम्र को देखते हुए फिर से पूरे मामले की जांच कराना उम्र के इस पड़ाव पर पक्षों के लिए शर्मनाक हो सकता है.”
(इस खबर को एनडीटीवी टीम ने संपादित नहीं किया है. यह सिंडीकेट फीड से सीधे प्रकाशित की गई है।)
हालांकि अदालत ने यह साफ कर दिया है कि वह इस दो साल की अवधि के लिए किसी बकाया राशि के हकदार नहीं होंगे. फैसले में दिल्ली विश्वविद्यालय की उस मांग को स्वीकार नहीं किया गया है, जिसमें यह कहा गया था कि ताजा निर्णय के लिए इस मामले को दोबारा जांच समिति के समक्ष भेजा जाए.
अदालत ने यह पाया है कि प्रोफेसर अपने ऊपर लगे इस कलंक को सिर्फ हटवाने के लिए अदालत तक आए और उन्होंने अपनी सेवा के दो साल गंवाने के लिए कोई वित्तीय राहत नहीं मांगी है. अदालत ने कहा, “अदालत याचिकाकर्ता की उम्र (75) और शोधार्थियों की उम्र को देखते हुए फिर से पूरे मामले की जांच कराना उम्र के इस पड़ाव पर पक्षों के लिए शर्मनाक हो सकता है.”
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