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दिल्ली में फर्जी GST रिफंड घोटाले का खुलासा, एक अधिकारी समेत 7 गिरफ्तार

जांच में सामने आया है कि जीएसटीओ ने 96 फर्जी फर्मों के मालिकों के साथ आपराधिक साजिश रचते हुए  2021-22 में 404 रिफंड को मंजूरी दी. 35.51 करोड़ रुपये का भुगतान सरकारी फंड से किया गया.

दिल्ली में फर्जी GST रिफंड घोटाले का खुलासा, एक अधिकारी समेत 7 गिरफ्तार
नई दिल्ली:

दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (Anti Corruption Branch) ने व्यापार एवं कर विभाग में फर्जी जीएसटी रिफंड के एक बड़े घोटाले का खुलासा किया है. इस घोटाले में 1 जीएसटीओ, 3 फर्जी फर्म चलाने वाले वकील, 2 ट्रांसपोर्टर और 1 फर्जी फर्म के मालिक को गिरफ्तार किया गया है. धोखाधड़ी कर 54 करोड़ रुपए फर्जी फर्मों को जीएसटी रिफंड किए गए हैं. 718 करोड़ के नकली और जाली चालान दिखाए गए थे.  लगभग 500 ऐसी कंपनियां काम का खुलासा हुआ है.

जीएसटीओ ने 96 फर्जी फर्मों के मालिकों के साथ आपराधिक साजिश रचते हुए  2021-22 में 404 रिफंड को मंजूरी देकर 35.51 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया. जबकि उसके पहले साल में इन फर्मों में केवल 7 लाख रुपए रिफंड आया. इस तरह से धोखाधड़ी कर अब तक 54 करोड़ रुपये जीएसटी रिफंड लिया गया था. 

2-3 दिनों के भीतर ही मिल जाता था रिफंड
इन रिफंडों को जीएसटीओ द्वारा रिफंड आवेदन दाखिल करने के 2-3 दिनों के भीतर मंजूरी दे दी गई थी, जिससे साफ होता है कि वो इस घोटाले में शामिल था. एसीबी के ज्वाइंट कमिश्नर मधुर वर्मा के मुताबिक जीएसटीओ जुलाई 2021 तक वार्ड नंबर 6 में काम कर रहा था. एसीबी के ज्वाइंट कमिश्नर मधुर वर्मा के मुताबिक जीएसटीओ जुलाई 2021 तक वार्ड नंबर 6 में काम कर रहा था. 26 जुलाई 2021 को वार्ड नंबर 22 में उसका ट्रांसफर हुआ और अचानक 53 लोगों ने वार्ड नंबर 6 से वार्ड नंबर 22 में माइग्रेशन के लिए आवेदन किया और जीएसटीओ द्वारा बहुत ही कम समय में इसकी मंजूरी दे दी गई. 

जांच के दौरान पता चला कि इनपुट टैक्स क्रेडिट के सत्यापन के बिना जीएसटीओ द्वारा फर्जी जीएसटी रिफंड को मंजूरी दे दी गई. फर्जी इनवॉयस के एवज में 718 करोड़ रुपए रुपये का इनपुट टैक्स क्रेडिट लिया गया है. यानी फर्जी फर्मों ने इस रकम की फर्जी खरीदारी की.इससे ये पता चलता है कि कारोबार का सिर्फ दस्तावेजों पर ही दिखाया गया है. 41 फर्मों या डीलरों के मामले में प्रथम और द्वितीय चरण के सप्लाई करने वाले डीलर गायब पाए गए. 

15 फर्मों या डीलरों के मामले में, पंजीकरण के समय न तो आधार प्रमाणीकरण था और न ही फर्म का भौतिक सत्यापन था. वार्ड नंबर 22 में माइग्रेशन के लिए मंजूरी दी गई 48 फर्मों या डीलरों को 12.31 करोड़ रुपये के जीएसटी रिफंड मंजूर किए गए थे. इन 48 फर्मों या डीलरों के संबंध में संपत्ति मालिकों से अपेक्षित एनओसी भी 26 और 27 जुलाई 2021 को तैयार की गई पाई गई.

5 फर्में एक ही पैन या ई-मेल आईडी से बनी थी
5 फर्में एक ही पैन या ई-मेल आईडी और मोबाइल नंबर के तहत पंजीकृत पाई गईं और इसका उपयोग कई जीएसटीआईएन पंजीकरण के लिए किया गया था. सामान ले जाने के लिए जाली और फर्जी ई-वे बिल और माल रसीदों का इस्तेमाल रिफंड आवेदनों में किया गया था. ट्रांसपोर्टरों को इन दस्तावेज़ों को देने के लिए बिना किसी सर्विस के पैसा मिल रहा था.

बैंक खाते की जांच से पता चला कि जीएसटी रिफंड को अलग-अलग खातों के जरिए आरोपी वकीलों और उनके परिवार के सदस्यों को दिया गया. 96 फर्जी फर्मों में से 23 फर्मों को एक ही ग्रुप यानी आरोपी वकीलों द्वारा सामान्य ईमेल आईडी और मोबाइल नंबरों का उपयोग करके चलाया जा रहा था. इन 23 फर्जी फर्मों ने  176.67 करोड़ रुपए के फर्जी चालान किए. इन 23 फर्मों में से 7 फर्में 30 करोड़ की दवाओं और इलाज करने वाले समान के निर्यात के कारोबार में भी शामिल पाई गई.

इस दौरान फर्जी बिल लगाए गए बैंक खातों की जांच के दौरान लगभग 1,000 बैंक खाते सामने आए, जो सीधे तौर पर फर्जी फर्मों, उनके परिवार के सदस्यों और कर्मचारियों से संबंधित थे. मनी ट्रेल से पता चला कि धोखाधड़ी का सीधा फायदा आरोपी वकीलों को हुआ.

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