एडिलेड:
सीनियर बल्लेबाज मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को एक-दिवसीय त्रिकोणीय शृंखला के रविवार को होने जा रहे अगले मैच में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आराम दिया जा सकता है, लेकिन अगर बीते रिकॉर्ड को देखा जाए तो यह कदम परेशानियों से जूझ रही टीम के लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है।
पिछले 22 वर्षों में भारत ने ऑस्ट्रेलिया में मेजबान टीम के खिलाफ पांच मैचों में जीत दर्ज की है और इन सभी में हमेशा तेंदुलकर खेले हैं और उन्होंने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने पहली बार वर्ष 1991-92 में ऑस्ट्रेलिया को पर्थ के वाका में 107 रन के अंतर से शिकस्त दी थी, और इस मैच में तेंदुलकर 65 गेंदों में 36 रन बनाकर दूसरे शीर्ष स्कोरर रहे थे, जबकि फिलहाल मुख्य चयनकर्ता की भूमिका निभा रहे के श्रीकांत ने 60 गेंदों में 60 रन बनाए थे।
इसके बाद भारत को दोबारा ऑस्ट्रेलिया को हराने में 12 साल लगे और इससे पहले उसे लगातार 11 मैचों में हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2003-04 में भारत ने गाबा में ऑस्ट्रेलिया को 19 रन से हराया था। इस मैच में सचिन ने 95 गेंदों में आठ चौकों की मदद से 86 रन बनाए थे और भारत ने 300 रन से ज्यादा का स्कोर बनाया था। भारत ने अगले तीन मैच 2007-08 की शृंखला में जीते थे, जिनकी शुरुआत मेलबर्न में हुई थी। भारत ने 159 रन के स्कोर का पीछा करते हुए पांच विकेट रहते जीत दर्ज की थी, जिसमें तेंदुलकर 54 गेंदों में तीन चौकों की मदद से 44 रन बनाकर शीर्ष स्कोरर रहे थे।
भारत ने इसके बाद लगातार दो फाइनल जीतकर ऑस्ट्रेलिया में अपनी पहली एक-दिवसीय शृंखला में जीत दर्ज की थी। सिडनी में पहले फाइनल में तेंदुलकर ने 120 गेंदों में 10 चौकों के साथ 117 रन की पारी खेली थी, जिससे भारतीय टीम ने छह विकेट और 25 गेंद शेष रहते 240 रन का लक्ष्य हासिल किया था। दो दिन बाद दोनों टीमें एडिलेड में फिर एक-दूसरे के सामने थीं। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 258 रन बनाए, जिनमें तेंदुलकर ने 121 गेंदों में सात चौके जमाकर 91 रनों का योगदान दिया।
इन आंकड़ों से दो बातें पता चलती हैं... एक, तेंदुलकर अब भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में भारत की जीत के लिए अहम हैं और दूसरी, भारतीय टीम सलामी बल्लेबाजों (किसी एक सलामी बल्लेबाज) के आक्रामक प्रदर्शन के बिना कभी ऑस्ट्रेलिया को नहीं हरा पाई है। इस वजह से दोनों सलामी बल्लेबाजों वीरेन्द्र सहवाग और गौतम गंभीर की भूमिका पर सभी की नजरें लगी होंगी।
सहवाग ने तीन दौरों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 10 मैच खेले हैं, और उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 37 रन से अधिक का नहीं रहा है। उन्होंने इन 10 मैचों में 18 के औसत से 180 रन बनाए हैं। इसके विपरीत गंभीर का औसत सहवाग से कहीं बेहतर है। उन्होंने मेजबान देश के खिलाफ सात मैचों में 32.86 के औसत से 320 रन बनाए हैं। उन्होंने 2007-08 के पिछले दौरे में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 113 रन की शतकीय पारी भी खेली थी।
विराट कोहली, रोहित शर्मा, सुरेश रैना और मनोज तिवारी के बीच अगर देखा जाए तो ऑस्ट्रेलिया में मेजबान टीम के खिलाफ इन सभी का अनुभव कुल मिलाकर 10 मैच से ज्यादा का नहीं है। रोहित ने वर्ष 2008 में पिछली त्रिकोणीय शृंखला के पहले फाइनल में अर्धशतक जमाया था। वैसे उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सात मैच खेले हैं। अन्य खिलाड़ियों ने केवल एक-एक मैच खेला है, जिसमें इन्होंने केवल 37 रन ही जोड़े हैं।
रोटेशन प्रणाली के साथ या इसके बिना भारतीय बल्लेबाजों के लिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बचे हुए लीग मैच काफी चुनौतीपूर्ण साबित होंगे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बचे हुए तीन लीग मैच 12 फरवरी को एडिलेड, 19 फरवरी को ब्रिस्बेन और 26 फरवरी को सिडनी में आयोजित होंगे। अगर रोटेशन प्रणाली कारगर रहती है, अभी तक टीम प्रबंधन की रणनीति के अनुसार, तो तेंदुलकर एडिलेड मैच से बाहर रह सकते हैं और फिर ब्रिस्बेन और सिडनी में खेलेंगे।
लेकिन अब समय आ गया है कि भारतीय टीम तेंदुलकर के बल्ले के बिना किसी अन्य खिलाड़ी की बल्लेबाजी से ऑस्ट्रेलिया में उसके खिलाफ जीत दर्ज करे। यह बात जगजाहिर है कि उनका स्थान भरना काफी मुश्किल होगा, लेकिन हर बल्लेबाज को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए कोशिश तो करनी ही होगी।
पिछले 22 वर्षों में भारत ने ऑस्ट्रेलिया में मेजबान टीम के खिलाफ पांच मैचों में जीत दर्ज की है और इन सभी में हमेशा तेंदुलकर खेले हैं और उन्होंने जीत में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत ने पहली बार वर्ष 1991-92 में ऑस्ट्रेलिया को पर्थ के वाका में 107 रन के अंतर से शिकस्त दी थी, और इस मैच में तेंदुलकर 65 गेंदों में 36 रन बनाकर दूसरे शीर्ष स्कोरर रहे थे, जबकि फिलहाल मुख्य चयनकर्ता की भूमिका निभा रहे के श्रीकांत ने 60 गेंदों में 60 रन बनाए थे।
इसके बाद भारत को दोबारा ऑस्ट्रेलिया को हराने में 12 साल लगे और इससे पहले उसे लगातार 11 मैचों में हार का मुंह देखना पड़ा। वर्ष 2003-04 में भारत ने गाबा में ऑस्ट्रेलिया को 19 रन से हराया था। इस मैच में सचिन ने 95 गेंदों में आठ चौकों की मदद से 86 रन बनाए थे और भारत ने 300 रन से ज्यादा का स्कोर बनाया था। भारत ने अगले तीन मैच 2007-08 की शृंखला में जीते थे, जिनकी शुरुआत मेलबर्न में हुई थी। भारत ने 159 रन के स्कोर का पीछा करते हुए पांच विकेट रहते जीत दर्ज की थी, जिसमें तेंदुलकर 54 गेंदों में तीन चौकों की मदद से 44 रन बनाकर शीर्ष स्कोरर रहे थे।
भारत ने इसके बाद लगातार दो फाइनल जीतकर ऑस्ट्रेलिया में अपनी पहली एक-दिवसीय शृंखला में जीत दर्ज की थी। सिडनी में पहले फाइनल में तेंदुलकर ने 120 गेंदों में 10 चौकों के साथ 117 रन की पारी खेली थी, जिससे भारतीय टीम ने छह विकेट और 25 गेंद शेष रहते 240 रन का लक्ष्य हासिल किया था। दो दिन बाद दोनों टीमें एडिलेड में फिर एक-दूसरे के सामने थीं। भारत ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 258 रन बनाए, जिनमें तेंदुलकर ने 121 गेंदों में सात चौके जमाकर 91 रनों का योगदान दिया।
इन आंकड़ों से दो बातें पता चलती हैं... एक, तेंदुलकर अब भी ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में भारत की जीत के लिए अहम हैं और दूसरी, भारतीय टीम सलामी बल्लेबाजों (किसी एक सलामी बल्लेबाज) के आक्रामक प्रदर्शन के बिना कभी ऑस्ट्रेलिया को नहीं हरा पाई है। इस वजह से दोनों सलामी बल्लेबाजों वीरेन्द्र सहवाग और गौतम गंभीर की भूमिका पर सभी की नजरें लगी होंगी।
सहवाग ने तीन दौरों में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 10 मैच खेले हैं, और उनका सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 37 रन से अधिक का नहीं रहा है। उन्होंने इन 10 मैचों में 18 के औसत से 180 रन बनाए हैं। इसके विपरीत गंभीर का औसत सहवाग से कहीं बेहतर है। उन्होंने मेजबान देश के खिलाफ सात मैचों में 32.86 के औसत से 320 रन बनाए हैं। उन्होंने 2007-08 के पिछले दौरे में सिडनी में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 113 रन की शतकीय पारी भी खेली थी।
विराट कोहली, रोहित शर्मा, सुरेश रैना और मनोज तिवारी के बीच अगर देखा जाए तो ऑस्ट्रेलिया में मेजबान टीम के खिलाफ इन सभी का अनुभव कुल मिलाकर 10 मैच से ज्यादा का नहीं है। रोहित ने वर्ष 2008 में पिछली त्रिकोणीय शृंखला के पहले फाइनल में अर्धशतक जमाया था। वैसे उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सात मैच खेले हैं। अन्य खिलाड़ियों ने केवल एक-एक मैच खेला है, जिसमें इन्होंने केवल 37 रन ही जोड़े हैं।
रोटेशन प्रणाली के साथ या इसके बिना भारतीय बल्लेबाजों के लिए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बचे हुए लीग मैच काफी चुनौतीपूर्ण साबित होंगे। ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ बचे हुए तीन लीग मैच 12 फरवरी को एडिलेड, 19 फरवरी को ब्रिस्बेन और 26 फरवरी को सिडनी में आयोजित होंगे। अगर रोटेशन प्रणाली कारगर रहती है, अभी तक टीम प्रबंधन की रणनीति के अनुसार, तो तेंदुलकर एडिलेड मैच से बाहर रह सकते हैं और फिर ब्रिस्बेन और सिडनी में खेलेंगे।
लेकिन अब समय आ गया है कि भारतीय टीम तेंदुलकर के बल्ले के बिना किसी अन्य खिलाड़ी की बल्लेबाजी से ऑस्ट्रेलिया में उसके खिलाफ जीत दर्ज करे। यह बात जगजाहिर है कि उनका स्थान भरना काफी मुश्किल होगा, लेकिन हर बल्लेबाज को अपनी काबिलियत साबित करने के लिए कोशिश तो करनी ही होगी।
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