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This Article is From Jun 16, 2015

क्या कहती है ये फ़िल्म : 'डेथ ऑफ़ ए जेन्टलमैन'?

क्या कहती है ये फ़िल्म : 'डेथ ऑफ़ ए जेन्टलमैन'?
फिल्म 'डेथ ऑफ ए जेन्टलमैन' का पोस्टर
नई दिल्ली: मैच फ़िक्सिंग, खेल के लगातार बदलते नियम, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट की ताक़त के लिए होड़, क्रिकेट और उससे जुड़े ग्लैमर ने डॉक्यूमेन्ट्री फ़िल्म निर्माता सैम कॉलिंस और जैरॉर्ड किम्बर को प्रेरित किया एक ऐसी फ़िल्म बनाने के लिए जिसका क़रीब डेढ़ सौ साल या उससे पुराना गौरवशाली इतिहास रहा है।

फ़िल्म निर्माताओं ने 'डेथ ऑफ़ ए जेन्टलमैन' नाम की फ़िल्म बनाकर इस खेल के भविष्य को लेकर सवाल खड़े कर दिए हैं।

इस फ़िल्म की वेबसाइट पर लिखा है, 'ये कहानी है लालच, ताक़त और बहुत ज़्यादा हासिल करने की और इस क्रम में जो कीमती चीज़ें खो गईं, उन सब के बारे में यह फिल्म एक संदेश देती है।'

फ़िल्म निर्माताओं ने बाज़ार से प्रभावित टी-20 क्रिकेट को आड़े हाथों लेते हुए इस खेल के भविष्य को लेकर सवाल उठाए हैं। इस फ़िल्म में ख़त्म होते टेस्ट क्रिकेट की अहमियत पर भी फ़ोकस किया गया है। क्रिकेट प्रशासन के दलदल से माहौल, प्रशासन की होड़ में खींचतान, क्रिकेट का पावर स्ट्रक्चर जैसे अहम पहलुओं को लेकर भी सवाल उठाए गए हैं।

चार साल से बन रही इस फ़िल्म को शेफ़ील्ड इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल में लंदन में दिखाया गया। इस फ़िल्म में आईसीसी चेयरमैन एन. श्रीनिवासन, ईसीबी के अध्यक्ष एश्ले जाइल्स, केविन पीटरसन और रवि शास्त्री जैसी शख़्सियतों के इंटरव्यू लिए गए हैं।

इस फ़िल्म में यह भी दिखाया गया है कि कैसे क्रिकेट की सत्ता अब बिग-3 यानी भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया के हाथों में सिमट गई है। ये और बात है कि फ़िल्म में एन श्रीनिवासन कहते हैं, 'जब हम आईसीसी के टेबल पर बैठते हैं, तो हम सब बराबर हैं।'

फ़िल्म में इस बात पर भी काफ़ी ज़ोर दिया गया है कि भारत के टी-20 के बाज़ार के अलावा दूसरे फॉर्मेट ख़ासकर टेस्ट क्रिकेट (यानी जेन्टलमैन्स गेम) का लंबे समय से नुकसान में होता दिख रहा है।

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