ग्रेग चैपल की आलोचना में सचिन तेंदुलकर का पूरा समर्थन करते हुए पूर्व भारतीय क्रिकेटर वीवीएस लक्ष्मण ने मंगलवार को कहा कि ऑस्ट्रेलिया के इस पूर्व खिलाड़ी के राष्ट्रीय टीम के कोच के दो साल के कार्यकाल के दौरान ड्रेसिंग रूम का माहौल 'बदतर' था।
सचिन तेंदुलकर के अपनी जल्द ही विमोचित होने वाली आत्मकथा 'प्लेइंग इट माइ वे' में किए कई खुलासों पर प्रतिक्रिया देते हुए लक्ष्मण ने कहा कि इस महान बल्लेबाज ने अपनी किताब में जो लिखा है उस पर उन्हें पूरा विश्वास है।
लक्ष्मण ने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि 2006 भारतीय क्रिकेट के लिए काफी मुश्किल दौर था। ड्रेसिंग रूम का माहौल संभवत: सबसे खराब था। मुझे याद है कि 2006 में जब मुझे दक्षिण अफ्रीका में अंतिम वनडे और फिर टेस्ट शृंखला के लिए टीम में शामिल किया गया। मुझे याद है कि जब मैं दक्षिण अफ्रीका गया तो यह संभवत: सबसे नकारात्मक ड्रेसिंग रूम था जिसका मैं हिस्सा रहा। ड्रेसिंग रूम में काफी तनाव था और यह गैरजरूरी था।’’
उन्होंने कहा, ‘‘सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों के बीच खाई पैदा की जा रही थी। मैंने हमेशा माना कि क्रिकेट टीम परिवार की तरह है। जब आप देश का प्रतिनिधित्व कर रहे हो, जब आप मैदान पर हो तो आप एक व्यक्ति के रूप में काम नहीं कर सकते। आपको एक टीम, एक इकाई के रूप में काम करना होता है।’’
लक्ष्मण ने कहा, ‘‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप सीनियर हो या जूनियर। आप हमेशा एक दूसरे की मदद करते हो और एक दूसरे की तारीफ करते हो।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ग्रेग चैपल से पहले जान राइट और ग्रेग चैपल के बाद गैरी कर्स्टन को टीम का माहौल सुधारने का श्रेय जाता है जिसमें हम हमेशा खुले दिमाग के साथ खेल पाए और हमने हमेशा अच्छा प्रदर्शन किया। यह दुर्भाग्यशाली है कि ऐसा माहौल तैयार किया गया जो गैरजरूरी था।’’
तेंदुलकर ने जिक्र किया है कि चैपल ने लक्ष्मण को धमकी दी थी कि अगर उसने भारत में टेस्ट मैच में पारी की शुरुआत करने से इनकार किया तो उसका करियर समाप्त हो जाएगा।
लक्ष्मण ने इस संदर्भ में कहा कि तेंदुलकर को अपना नजरिया स्वतंत्र रूप से रखने का अधिकार है।
उन्होंने कहा, ‘‘वह भारतीय क्रिकेट का स्तंभ रहे और असल में खेल के महान दूत हैं। जब वह एक किताब लिख रहे हों, अपनी आत्मकथा जिसमें वह अपने पूरे जीवन के बारे में बात करने वाले हैं, भारतीय क्रिकेट के रूप में उनकी यात्रा, वे विभिन्न स्थितियां जिनका उन्होंने सामना किया, मुझे लगता है कि यह उनके लिए उचित है कि वह सब कुछ खुलकर कहें। बिना ईमानदारी के किताब लिखने का कोई मतलब नहीं है।’’
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