कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की ख्वाहिश क्यों है अब भी अधूरी

कप्तान महेंद्र सिंह धोनी की ख्वाहिश क्यों है अब भी अधूरी

एमएस धोनी (फाइल फोटो)

इंदौर में 92 रन की शानदार पारी से पहले कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को आलोचकों ने खत्म मान लिया था। सीमित ओवर क्रिकेट में किसी बल्लेबाज की कामयाबी बहुत हद तक बल्लेबाजी क्रम पर भी निर्भर करती है। टॉप ऑर्डर बल्लेबाजों को अक्सर ज्यादा मौके मिलते हैं। टेस्ट से संन्यास लेने के बाद महेंद्र सिंह धोनी की भी ख्वाहिश थी कि वे नंबर-4 पर बल्लेबाजी करें।

टॉप ऑर्डर में बल्लेबाजी करना चाहते थे
इंदौर वनडे के बाद धोनी ने कहा भी था, "जब मैंने टेस्ट क्रिकेट छोड़ा, तो मैंने सोचा कि अब वनडे का लुत्फ़ उठाऊंगा। मैं बल्लेबाजी क्रम में ऊपर आना चाहता था, लेकिन जब मैंने टीम को देखा, तो मुझे लगा कि यह मुश्किल है। नंबर-5, 6 और 7 पर किसे भेजना है, यह मुश्किल हो जाता।"

आपको साल 2005 में विशाखापटनम में खेली गई महेंद्र सिंह धोनी की धमाकेदार पारी याद होगी। पाकिस्तान के खिलाफ 148 रनों की उस पारी ने उनके करियर को उड़ान दी। उन्होंने यह पारी नंबर-3 पर बल्लेबाजी करते हुए खेली थी। आपको यह जानकर भी शायद हैरानी हो कि नंबर-3 पर ही धोनी का औसत सबसे अच्छा रहा है।

'माफ कीजिए क्रिकेट ऐसे नहीं खेला जाता'
धोनी का कहना है, "जब जल्दी विकेट गिर जाते हैं या मध्यक्रम के बल्लेबाज जल्दी-जल्दी आउट हो जाते हैं, तो बाद के बल्लेबाजों पर दबाव बढ़ जाता है। अगर आप छक्का मारना चाहते हैं, तो आपको 110 प्रतिशत यकीन के साथ शॉट्स खेलना होता है कि गेंद बाउंड्री के बाहर ही गिरेगी। दबाव बहुत ज्यादा होता है। यहां कोई आसान तरीका नहीं होता। कागज पर यह आसान होता है कि फलां कॉम्बिनेशन के साथ खेलना चाहिए। माफ कीजिए क्रिकेट ऐसे नहीं खेला जाता। आपके पास खिलाड़ी होने चाहिए, जो रन बना सकें।"

नंबर-3 पर बल्लेबाजी करते हुए उनका औसत 82.75 और स्ट्राइक रेट 99.69 है, जबकि नंबर-4 पर 68.40, नंबर-5 पर 56.20 और नंबर-6 पर बल्लेबाजी औसत 45.78 रहा है।
 

टीम हित सबसे ऊपर
नंबर-3 पर शानदार औसत के बावजूद टीम के हित में धोनी बल्लेबाजी क्रम में नीचे आते रहे। यहां तक कि वे नंबर-7 पर भी 28 पारियां खेल चुके हैं। निचले क्रम के बल्लेबाज को तभी मौका मिलता है, जब टॉप ऑर्डर नाकाम हो जाता है। जाहिर है दबाव की स्थिति में बल्लेबाजी करना आसान नहीं होता।
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बावजूद इन सबके महेंद्र सिंह धोनी दुनिया के बेहतरीन फिनिशर बने। भले ही उनमें अब पहले जैसी बात नहीं हो, लेकिन सुनील गावस्कर जैसे क्रिकेट विशेषज्ञ मानते हैं कि उनमें अब भी 3-4 साल का क्रिकेट बचा हुआ है।