महज 25 साल की उम्र में कप्तानी, माइकल क्लार्क जैसे बल्लेबाज की गैर-मौजूदगी, टीम के मिडिल ऑर्डर का लय में नहीं होना और एडिलेड में जोरदार प्रदर्शन के बाद टीम इंडिया के बुलंद हौसले... ये सब वे पहलू थे, जिसने स्टीवन स्मिथ पर असर जरूर डाला होगा, लेकिन वह बिल्कुल डगमगाए नहीं।
अपनी कप्तानी पर किसी तरह की शंका को खारिज करने के लिए उन्होंने ज्यादा वक्त नहीं लिया। अपनी पहली ही पारी में उन्होंने दिखाया कि वह उस उम्र में ऑस्ट्रेलियाई टीम की कमान संभाल सकते हैं, जिस उम्र में खिलाड़ियों की ऑस्ट्रेलियाई टीम में जगह भी नहीं बनती।
एडिलेड टेस्ट में टीम की जीत में स्टीवन स्मिथ की बल्लेबाजी का अहम योगदान रहा था। पहली पारी में नॉट आउट 162 और दूसरी पारी में भी आउट हुए बिना 52 रन बनाने वाले स्मिथ ने सीरीज की अपनी तीसरी पारी में बेहद मुश्किल परिस्थितियों में टीम के लिए बेहद अहम शतक बनाया।
ब्रिस्बेन टेस्ट में भारतीय पारी के जवाब में एक समय ऑस्ट्रेलियाई टीम की स्थिति नाजुक हो गई थी, लेकिन स्मिथ ने टीम को न केवल संकट से निकाला, बल्कि उसे मुकाबले में भी ला दिया। इस दौरान उन्होंने मिचेल जॉनसन के साथ सातवें विकेट के लिए शतकीय साझेदारी निभाकर भारत की बढ़त लेने की किसी संभावना को खत्म कर दिया।
दोनों ने सातवें विकेट के लिए 148 रन जोड़े। जॉनसन ने 93 गेंदों पर 88 रनों का योगदान दिया, जबकि स्टीवन स्मिथ 133 रन बनाकर आउट हुए। बीते 13 टेस्ट मैचों में स्मिथ ने छठी बार शतक बनाया है। स्मिथ की बल्लेबाजी की एक बड़ी खासियत यह है कि वह तेज और स्पिन गेंदबाजी की समान सहजता के साथ सामना करते हैं।
स्टीवन स्मिथ को जब पहली बार ऑस्ट्रेलियाई टेस्ट टीम में 2010 में चुना गया था, तो उन्हें स्पिन गेंदबाज नेथन हारित्ज की जगह बुलाया गया था। तब स्मिथ की पहचान एक स्पिन गेंदबाज के रूप में ज्यादा थी, जो रन भी बना सकता था। लेकिन जल्द ही स्मिथ ने खुद को बल्लेबाज के तौर पर विकसित कर लिया। बीते एक साल का उनका प्रदर्शन यह बता रहा है कि आने वाले दिनों में उनकी धमक ऑस्ट्रेलियाई ही नहीं, विश्व क्रिकेट में लंबे समय तक कायम रहेगी।
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