शरद पवार और शशांक मनोहर (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
न शरद पवार, न अनुराग ठाकुर और न ही राजीव शुक्ला! इन सबको पीछे छोड़ नागपुर के शशांक मनोहर बीसीसीआई के अगले अध्यक्ष बनने की कगार पर हैं। कुछ दिन पहले एन श्रीनिवासन और शरद पवार की मीटिंग के बाद बीसीसीआई के तमाम खेमों में हडकंप मच गई और माना जा रहा है कि नया फॉर्मूला इसी मीटिंग के बाद सामने आया।
कैसे आया मनोहर का नाम सामने
- शरद पवार खेमे के कई लोगों ने श्रीनिवासन के साथ मीटिंग का सख्त विरोध किया
- पवार ग्रुप के शशांक मनोहर, अजय शिरके और निरंजन शाह एन श्रनिवासन से हाथ मिलाने के पक्ष में नहीं थे
- अरुण जेटली का बीजेपी ग्रुप भी राजीव शुक्ला के नाम को वापस लेने के लिए राज़ी हो गया
दरअसल पिछले कई दिनों से तीन-तीन खेमे अपने-अपने कैंडिडेट के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे थे। एक तरफ शरद पवार थे, जो खुद अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। एक तरफ अरुण जेटली का खेमा था, जो राजीव शुक्ला के नाम पर अड़ा था
और तीसरी ओर एन श्रीनिवासन जो बोर्ड में फिर से वापसी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बाज़ी मारी शशांक मनोहर ने।
क्या रहा मनोहर के पक्ष में?
- शशांक मनोहर साल 2008 से लेकर 2011 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे थे इसलिए अनुभव की कोई कमी नहीं।
- मिस्टर क्लीन की छवि होने का फायदा मिला
- पवार और अरुण जेटली के गुट ने शशांक मनोहर पर सहमति जताई, जिसे सभी ने मान लिया
कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और बोर्ड की मौजूदा राजनीति को देखते हुए ये जुमला सही भी नज़र आ रहा है,
लेकिन इतना तो तय है कि इस पूरे जोड़तोड़ में फायदा शशांक मनोहर को और नुकसान एन श्रीनिवासन को हुआ है।
कैसे आया मनोहर का नाम सामने
- शरद पवार खेमे के कई लोगों ने श्रीनिवासन के साथ मीटिंग का सख्त विरोध किया
- पवार ग्रुप के शशांक मनोहर, अजय शिरके और निरंजन शाह एन श्रनिवासन से हाथ मिलाने के पक्ष में नहीं थे
- अरुण जेटली का बीजेपी ग्रुप भी राजीव शुक्ला के नाम को वापस लेने के लिए राज़ी हो गया
दरअसल पिछले कई दिनों से तीन-तीन खेमे अपने-अपने कैंडिडेट के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा रहे थे। एक तरफ शरद पवार थे, जो खुद अध्यक्ष बनना चाह रहे थे। एक तरफ अरुण जेटली का खेमा था, जो राजीव शुक्ला के नाम पर अड़ा था
और तीसरी ओर एन श्रीनिवासन जो बोर्ड में फिर से वापसी करने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन बाज़ी मारी शशांक मनोहर ने।
क्या रहा मनोहर के पक्ष में?
- शशांक मनोहर साल 2008 से लेकर 2011 तक बीसीसीआई के अध्यक्ष रहे थे इसलिए अनुभव की कोई कमी नहीं।
- मिस्टर क्लीन की छवि होने का फायदा मिला
- पवार और अरुण जेटली के गुट ने शशांक मनोहर पर सहमति जताई, जिसे सभी ने मान लिया
कहते हैं दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है और बोर्ड की मौजूदा राजनीति को देखते हुए ये जुमला सही भी नज़र आ रहा है,
लेकिन इतना तो तय है कि इस पूरे जोड़तोड़ में फायदा शशांक मनोहर को और नुकसान एन श्रीनिवासन को हुआ है।
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