
क्रिकेट का जुनून देखने की इच्छा करे, तो आप एक बार हिंदुस्तान की गलियों का चक्कर जरूर लगाएं. यहां आपको हर गली में बच्चे क्रिकेट खेलते हुए दिख जाएंगे. इस खेल के प्रति कुछ दीवानगी ही ऐसी है कि तपती धूप में 40 से ऊपर के तापमान में भी उत्साही युवा अपने कदम पीछे नहीं खींचते हैं और यहीं से शुरुआत होती है एक ऐसे अविश्वसनीय सफर की, जो रोमांच, संघर्ष और सुख-दुःख जैसे इमोशंस से भरा हुआ है. यह खुद से खुद की लड़ाई है, जो एक खिलाड़ी को सब कुछ भूलकर हर रोज कड़ी मेहनत करने के लिए प्रेरित करती है. दुनिया में जितने भी महान क्रिकेट प्लेयर्स हुए हैं, भले ही उनके खेलने की शैली अलग-अलग रही है. लेकिन आप सभी में एक सामान्य चीज आसानी से देख पाएंगे, वह है दुनिया की सभी परेशानियों और शौकों या कहें तो सामान्य शैली को नजरअंदाज कर नियमित मेहनत. कुछ ऐसी ही कहानी भारतीय क्रिकेट टीम के मौजूदा कप्तान रोहित शर्मा की भी है. दुनिया के सबसे सफल कप्तानों की फेहरिस्त में शामिल हो चुके रोहित शर्मा की कहानी भी संघर्ष, मेहनत, जिद्द और विश्वास का संयोजन है, जो न जानें कितने उभरते क्रिकेटर्स के लिए प्रेरणा का श्रोत बनी हुई है.
उधार पैसे लेकर पहुंचे क्रिकेट अकादमी
अपेक्षाओं का बोझ उठाना रोहित के लिए हमेशा से ही सामान्य रहा है. जब वह 12 साल के थे, तो उनके पिता और पांच भाई-बहनों ने दोस्तों से पैसे उधार लेकर उन्हें बोरीवली के एक क्रिकेट कैंप में भेजा. उस समय रोहित अपने दादा-दादी और चाचा रवि के साथ रहते थे. कैंप में रोहित पर नजर पड़ी दिनेश लाड की, जो वहां कोच की भूमिका निभा रहे थे. वह रोहित की ऑफ-स्पिन से प्रभावित हुए और उन्होंने रवि (रोहित के चाचा) को उन्हें स्वामी विवेकानंद इंटरनेशनल स्कूल में दाखिला लेने के लिए मना लिया. रोहित अपनी फीस माफ कराने में भी कामयाब रहे. इस बीच रोहित जल्द ही अपने दमदार खेल की बदौलत स्कूल मैनेजमेंट और स्थानीय क्रिकेट कम्युनिटी की नजरों में भी आ गए.
ऑफ-स्पिनर से लेकर बल्लेबाज बनने तक
एक दिन कोच लाड को नेट सेशन के लिए देर हो गई, तो उन्होंने रोहित को अपने बल्लेबाजी स्ट्रोक्स को शैडो प्रैक्टिस करते हुए देखा. तब लाड को पता चला कि रोहित भी बल्लेबाजी कर सकते हैं. रोहित की प्रतिभा से प्रभावित होने के बाद लाड ने उन्हें बेहतर बनने के लिए प्रेरित किया. इस बीच अंडर-16 चयन ट्रायल से बाहर किए जाने पर रोहित को शुरुआती असफलताओं का सामना करना पड़ा. लेकिन उनकी किस्मत ने उस समय करवट ली, जब बीसीसीआई ने आयु वर्ग को अंडर-15 और अंडर-17 में बदल दिया, जिससे उन्हें एक अतिरिक्त साल की अनुमति मिल गई. इस दौरान उनकी प्रतिभा निखर कर सामने आई. उन्हें मुंबई के चयन ट्रायल के दौरान प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट के खिताब से नवाजा गया था.
अंतर्राष्ट्रीय पदार्पण
रोहित शर्मा ने अपना अंतर्राष्ट्रीय पदार्पण इंग्लैंड के खिलाफ पहले टी-20 वर्ल्ड कप (2007) के दौरान किंग्समीड में किया था. यह वही मुकाबला था, जिसमें युवराज ने स्टुअर्ट ब्रॉड को 6 गेंदों पर 6 छक्के जड़े थे. हालांकि, रोहित शर्मा को इस मुकाबले में बल्लेबाजी करने का मौका नहीं मिला था. लेकिन इससे अगले मुकाबले में युवा रोहित शर्मा ने अपनी प्रतिभा का परिचय देते हुए 50 रनों की आकर्षक पारी खेली. इसके अलावा रोहित ने पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मुकाबले में 16 गेंदों पर 30 रनों की ताबड़तोड़ पारी खेलकर भारत को पहला टी-20 चैंपियन बनाने में अहम भूमिका निभाई थी.
बड़ा सेटबैक और नया 'रोहित शर्मा'
साल 2007 में भारतीय टीम में जगह बनाने वाले रोहित शर्मा को 2011 की वर्ल्ड कप टीम में जगह नहीं दी गई थी और यहीं से शुरू हुआ रोहित से हिटमैन बनने तक का सफर. इसके बाद मैदान पर एक नया रोहित शर्मा देखने को मिला. मिडिल-आर्डर बैटर को ओपनिंग में प्रमोट किया गया और मौजूदा समय में वह न सिर्फ गेंदबाजों की जमकर खबर ले रहे हैं बल्कि इस साल हर हाल भारत को वर्ल्ड चैंपियन बनाने की कोशिशों में जुटे हुए हैं.
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