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This Article is From Aug 13, 2015

अब ऑस्ट्रेलिया में निशाने पर पत्नियां और गर्लफ्रेंड्स, भड़क गए हैं खिलाड़ी और एक्सपर्ट्स

अब ऑस्ट्रेलिया में निशाने पर पत्नियां और गर्लफ्रेंड्स, भड़क गए हैं खिलाड़ी और एक्सपर्ट्स
विराट और अनुष्का (फाइल फोटो)
नई दिल्ली: किसी क्रिकेट सीरीज़ में हार हो जाए तो भारत में पत्नियों और गर्लफ्रेंड्स को निशाना बनाना मीडिया के एक वर्ग के लिए फ़ैशन सा बन गया है। इस ट्रैप में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड भी फंसता रहा है। ये बहस इन दिनों ऑस्ट्रेलिया में तेज़ है।

ऐशेज़ सीरीज़ का पांचवां टेस्ट बाक़ी है। ऑस्ट्रेलिया सीरीज़ में 1-3 से पीछे है। कप्तान माइकल क्लार्क और दूसरे कई खिलाड़ियों के अलावा अब वैग्स यानी खिलाड़ियों की वाइफ़ और गर्ल्फ़्रेंड निशाने पर आ गई हैं। आलम ये है कि 96 टेस्ट और 92 वनडे मैच खेल चुके 67 साल के पूर्व ऑस्ट्रेलियाई विकेटकीपर रॉडनी मार्श ने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया को नसीहत दी है कि अगर वैग्स को खिलाड़ियों के साथ क्रिकेट दौरों पर इजाज़त नहीं दी गई तो इससे तलाक के हालात पैदा हो सकते हैं।

ऐशेज़ सीरीज़ से ठीक पहले रिटायर हुए क्रिकेटर राएन हैरिस कहते हैं कि जब उन्होंने ये ख़बर सुनी तो उनकी पहली प्रतिक्रिया गुस्से की थी। उनका कहना है कि सब इसकी वजह जानना चाहते हैं कि ऑस्ट्रेलियाई टीम ने ऐशेज़ क्यों नहीं जीती। उनके मुताबिक टीम ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया क्योंकि, वो उस दिन अच्छे नहीं थे। वो कहते हैं कि वो इस बात से हैरान हैं कि साल 2015 में लड़कों के प्रदर्शन नहीं कर पाने की वजह लड़कियों को माना जा रहा है।

हैरिस ये भी दलील देते हैं कि जब इसी टीम के साथ वैग्स ने पूरे वर्ल्ड कप में टीम के साथ सफ़र किया और ऑस्ट्रेलियाई टीम वर्ल्ड चैंपियन बनी तब ये आलोचक कहां थे? वो ये भी कहते हैं कि टीम के कई खिलाड़ी क़रीब 250 दिन घर से बाहर दौरे पर होते हैं। ऐसे में वैग्स को दौरों पर जाने से रोकना क्या ज़्यादती नहीं है?

अबतक इस पर भारतीय कप्तान विराट कोहली की प्रतिक्रिया नहीं आई है। हाल तक टीम इंडिया और विराट कोहली के आलोचक विराट और उनकी गर्लफ्रेंड और बॉलीवुड अभिनेत्री अनुष्का शर्मा के पीछे हाथ धोकर पड़े रहे। यही नहीं इन सब पर विराट ऑस्ट्रेलिया में भारतीय पत्रकारों पर भड़क भी उठे। लेकिन शायद भारतीय आलोचक अब चीज़ों को बेहतर देखने की हालत में हैं।

ग़लती जिसकी और जितनी हो, उसे उसी संदर्भ में देखें तो खेल का मज़ा बना रह सकता है और आलोचना संरचनात्मक हो सकती है। ऑस्ट्रेलियाई मीडिया और क्रिकेट सर्किट में ये बहस लगातार तेज़ हो रही है। आलोचक और अधिकारियों के लिए शायद चर्चा और सबक लेने का सही वक्त है।

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