पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने जूनियर क्रिकेट पर ध्यान देने की मांग की है। (फाइल फोटो)
नई दिल्ली:
दिल्ली में मंसूर अली पटौदी मेमोरियल पर बोलते हुए पूर्व कप्तान राहुल द्रविड़ ने क्रिकेट के प्रति भारतीय अधिकारियों और सिस्टम को लेकर फिक्र जताई। इस मौके पर द्रविड़ ने चेताया कि जूनियर स्तर पर काफी कुछ किए जाने की जरूरत है वरना क्रिकेट का भविष्य खतरे में पड़ सकता है।
युवा खिलाड़ियों के पास क्रिकेट का विकल्प
उन्होंने बताया कि उनकी पीढ़ी 1983 वर्ल्ड कप की जीत का जश्न मनाते हुए बड़ी हुई थी, जब बच्चों के पास मनोरंजन के मुख्य रूप से सिर्फ दो साधन होते थे- क्रिकेट और सिनेमा। द्रविड़ कहते हैं कि आज हालात बदल चुके हैं। बच्चों के पास एक से ज्यादा खेल और एक से ज्यादा साधन मौजूद हैं। बच्चों के पास मेसी, रोनाल्डो या फेडरर जैसे एक से ज्यादा रोल मॉडल मौजूद हैं। ऐसे में युवा खिलाड़ियों के पास बल्ला थामने के अलावा भी कई विकल्प हैं।
द्रविड़ कहते हैं कि वो जमाना गया जब कह सकते थे कि हर बच्चा बल्ला लेकर ही पैदा होता है। वो कहते हैं, "अब शहरों में मैं कई बच्चों को दूसरे खेल के प्रति रुचि जाहिर करते हुअ देखता हूं।"
दूसरे खेलों का बढ़ता आकर्षण
उन्होंने कहा कि उन्हें खेलों का सामान बेचने वाली कंपनियों के लोग बताते हैं कि अब क्रिकेट के सामानों की बिक्री पहले से कहीं कम हो गई है, जबकि फुटबॉल, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, तैराकी जैसे खेलों के सामानों की बिक्री कहीं ज्यादा बढ़ी है। द्रविड़ मानते हैं कि ओलिंपिक और पैरालिंपिक खेलों के लिहाज से ये बढ़ोतरी अच्छी बात है, लेकिन क्रिकेट के लिए ये फिक्र की बात है कि इस खेल को चलाने वाले कोई ऐसी कोशिश नहीं कर रहे कि इसके प्रति बच्चे और युवा खिलाड़ियों का आकर्षण बढ़ सके।
युवा क्रिकेट को बचाने के उपाय
द्रविड़ कहते हैं कि क्रिकेट के लिए जगने का वक्त है। वो ये भी कहते हैं कि इसके लिए एक लंबी योजना और एक ब्लू प्रिंट की जरूरत है। द्रविड़ इन सबके लिए कई उपायों पर गौर फरमाने की जरूरत समझते हैं। वो मानते हैं कि जूनियर स्तर पर उम्दा कोच की बहुत ज्यादा जरूरत है ताकि बच्चे खेल की बुनियादी बातों को समझने में गलती न करें। क्योंकि इसे आगे जाकर सुधारना बेहद मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बीसीसीआई से भी अपील की कि वो क्रिकेट अकादमी के लिए मिनिमम स्टैंडर्ड गाइडलाइन जारी करे, ताकि ये अकादमी सिर्फ पैसा बनाने का जरिया न बन जाएं। वो ये भी कहते हैं कि अगर 5 से 7 साल के बच्चों (लड़के या लड़कियों) पर पूरा ध्यान दिया जाए, तो इससे खेल का टैलेंट बर्बाद नहीं होगा।
द्रविड़ ने स्कूल क्रिकेट या युवा क्रिकेट में गलत जन्म प्रमाणपत्र जैसी बीमारियों को दूर किए जाने के उपाय सुझाए। साथ ही ये भी कहा कि युवा क्रिकेट में रोलिंग सब्स्टीट्यूट जैसे नियमों को लागू किया जा सकता है ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को खेलने का मौका मिल सके। इससे ना सिर्फ खिलाड़ियों की बल्कि उनके माता-पिता की भी क्रिकेट में रुचि बरकरार रह सकती है जो इस खेल को बचाने के लिए बेहद जरूरी है।
द्रविड़ के मुताबिक युवा क्रिकेट में वैसे ही ऊर्जा और वक्त दिए जाने की जरूरत है जैसे कि एलीट क्रिकेट को तवज्जो दी जाती है। वो मानते हैं कि ऐसा करने से ही क्रिकेट कामयाबी के रास्ते पर अडिग रह सकता है।
युवा खिलाड़ियों के पास क्रिकेट का विकल्प
उन्होंने बताया कि उनकी पीढ़ी 1983 वर्ल्ड कप की जीत का जश्न मनाते हुए बड़ी हुई थी, जब बच्चों के पास मनोरंजन के मुख्य रूप से सिर्फ दो साधन होते थे- क्रिकेट और सिनेमा। द्रविड़ कहते हैं कि आज हालात बदल चुके हैं। बच्चों के पास एक से ज्यादा खेल और एक से ज्यादा साधन मौजूद हैं। बच्चों के पास मेसी, रोनाल्डो या फेडरर जैसे एक से ज्यादा रोल मॉडल मौजूद हैं। ऐसे में युवा खिलाड़ियों के पास बल्ला थामने के अलावा भी कई विकल्प हैं।
द्रविड़ कहते हैं कि वो जमाना गया जब कह सकते थे कि हर बच्चा बल्ला लेकर ही पैदा होता है। वो कहते हैं, "अब शहरों में मैं कई बच्चों को दूसरे खेल के प्रति रुचि जाहिर करते हुअ देखता हूं।"
दूसरे खेलों का बढ़ता आकर्षण
उन्होंने कहा कि उन्हें खेलों का सामान बेचने वाली कंपनियों के लोग बताते हैं कि अब क्रिकेट के सामानों की बिक्री पहले से कहीं कम हो गई है, जबकि फुटबॉल, टेबल टेनिस, बैडमिंटन, तैराकी जैसे खेलों के सामानों की बिक्री कहीं ज्यादा बढ़ी है। द्रविड़ मानते हैं कि ओलिंपिक और पैरालिंपिक खेलों के लिहाज से ये बढ़ोतरी अच्छी बात है, लेकिन क्रिकेट के लिए ये फिक्र की बात है कि इस खेल को चलाने वाले कोई ऐसी कोशिश नहीं कर रहे कि इसके प्रति बच्चे और युवा खिलाड़ियों का आकर्षण बढ़ सके।
युवा क्रिकेट को बचाने के उपाय
द्रविड़ कहते हैं कि क्रिकेट के लिए जगने का वक्त है। वो ये भी कहते हैं कि इसके लिए एक लंबी योजना और एक ब्लू प्रिंट की जरूरत है। द्रविड़ इन सबके लिए कई उपायों पर गौर फरमाने की जरूरत समझते हैं। वो मानते हैं कि जूनियर स्तर पर उम्दा कोच की बहुत ज्यादा जरूरत है ताकि बच्चे खेल की बुनियादी बातों को समझने में गलती न करें। क्योंकि इसे आगे जाकर सुधारना बेहद मुश्किल हो जाता है। उन्होंने बीसीसीआई से भी अपील की कि वो क्रिकेट अकादमी के लिए मिनिमम स्टैंडर्ड गाइडलाइन जारी करे, ताकि ये अकादमी सिर्फ पैसा बनाने का जरिया न बन जाएं। वो ये भी कहते हैं कि अगर 5 से 7 साल के बच्चों (लड़के या लड़कियों) पर पूरा ध्यान दिया जाए, तो इससे खेल का टैलेंट बर्बाद नहीं होगा।
द्रविड़ ने स्कूल क्रिकेट या युवा क्रिकेट में गलत जन्म प्रमाणपत्र जैसी बीमारियों को दूर किए जाने के उपाय सुझाए। साथ ही ये भी कहा कि युवा क्रिकेट में रोलिंग सब्स्टीट्यूट जैसे नियमों को लागू किया जा सकता है ताकि ज्यादा से ज्यादा बच्चों को खेलने का मौका मिल सके। इससे ना सिर्फ खिलाड़ियों की बल्कि उनके माता-पिता की भी क्रिकेट में रुचि बरकरार रह सकती है जो इस खेल को बचाने के लिए बेहद जरूरी है।
द्रविड़ के मुताबिक युवा क्रिकेट में वैसे ही ऊर्जा और वक्त दिए जाने की जरूरत है जैसे कि एलीट क्रिकेट को तवज्जो दी जाती है। वो मानते हैं कि ऐसा करने से ही क्रिकेट कामयाबी के रास्ते पर अडिग रह सकता है।
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राहुल द्र्विड़, जूनियर क्रिकेट, अंडर-19 क्रिकेट, अंडर-19 कोच, Rahul Dravid, Junior Cricket, Under-19 Cricket, Under-19 Coach, Save Cricket