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This Article is From Dec 21, 2016

'चीका' का बैटिंग का नियम सीधा था, हर गेंद मारने के लिए है, उसे बाउंड्री के बाहर पहुंचाओ..

'चीका' का बैटिंग का नियम सीधा था, हर गेंद मारने के लिए है, उसे बाउंड्री के बाहर पहुंचाओ..
टीम इंडिया के दो नामी क्रिकेटरों सचिन तेंदुलकर और मो. अजहरुद्दीन के साथ श्रीकांत
80 का वह दशक मुख्‍यत: टेस्‍ट क्रिकेट का ही दौर था. वनडे क्रिकेट उस समय स्‍थापना के दौर में ही था. टीम इंडिया के लिहाज से बात करें तो वनडे में वह 'नवजात शिशु' की तरह थी. इस दौर में एक क्रिकेटर में अपनी धुआंधार बल्‍लेबाजी से लोगों का ध्‍यान आकर्षित किया. वनडे क्रिकेट हो या टेस्‍ट क्रिकेट, के. श्रीकांत का खेलने का स्‍टाइल हमेशा एक जैसा रहा. क्रिकेट में उनका सीधा-सरल नियम था-गेंद यदि मारने के लिए है तो उसे मारो और बाउंड्री के पार पहुंचा दो. हालांकि अपनी इस शैली के बल्‍लेबाजी के दौरान श्रीकांत कई बार बेवकूफी भरा शॉट खेलकर (टीम की मुश्किल परिस्थतियों में) अपना विकेट फेंककर भी आए लेकिन उन्‍होंने अपनी बल्‍लेबाजी शैली में कभी बदलाव नहीं किया. उन्‍होंने क्रिकेट में अपने अंदाज में ही बल्‍लेबाजी की.

अपनी इसी बल्‍लेबाजी के कारण श्रीकांत, भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के बीच लोकप्रिय भी रहे. साथी खिलाड़ि‍यों में 'चीका' के नाम से लोकप्रिय श्रीकांत की बल्‍लेबाजी देखने के लिए टीवी और मैदान पर भीड़ भी उमड़ती थी. वर्ष 1983 में कपिलदेव के नेतृत्‍व में वर्ल्‍डकप चैंपियन बनी भारतीय टीम के श्रीकांत न सिर्फ अहम सदस्‍य थे बल्कि भारत के लिए उन्‍होंने फाइनल में सर्वाधिक रन भी बनाए थे. वेस्‍टइंडीज के खिलाफ फाइनल में उन्‍होंने 38 रन बनाए थे जो लो स्‍कोरिंग फाइनल में दोनों टीमों की ओर से सर्वाधिक स्‍कोर रहा था. अपनी इस पारी में उन्‍होंने ओपनर के रूप में सात चौके और एक छक्‍का लगाया था यानी 38 में से 34 रन उन्‍होंने चौके-छक्‍के के रूप में ही बना डाले थे. यह भी ध्‍यान रखना जरूरी है कि उन्‍होंने ये रन भारतीय टीम के ओपनर के रूप में माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्ट्स, मैल्‍कम मार्शल और जोएल गॉर्नर जैसे एक्‍सप्रेस तेज गेंदबाजों के खिलाफ बनाए थे. वर्ल्‍डकप-1983 के फाइनल में टीम इंडिया की 43 रन की जीत देश में क्रिकेट की दशा बदलने वाली साबित हुई और श्रीकांत का इस जीत में अहम योगदान रहा था.

43 टेस्‍ट और 146 वनडे खेले
21 दिसंबर 1959
को मद्रास (अब चेन्‍नई) में जन्‍मे श्रीकांत ने 43 टेस्‍ट और 146 वनडे मैचों में देश का प्रतिनिधित्‍व किया. टेस्‍ट क्रिकेट में उन्‍होंने 29.88 के औसत से 2062 रन (दो शतक) बनाए. वहीं वनडे में उनके खाते में 29.01 के औसत से 4091 रन (चार शतक) दर्ज हैं. श्रीकांत की बल्‍लेबाजी टेस्‍ट की तुलना में वनडे के ज्‍यादा माकूल थी. अपने खास दिन वे किसी भी मैच का रुख बदलने में सक्षम थे. पाकिस्‍तान के पूर्व कप्‍तान इमरान खान ने एक बार श्रीकांत की प्रशंसा में कहा था 'श्रीकांत ऐसे बल्‍लेबाज हैं जो किसी भी गेंद को छक्के के लिए मार सकते हैं. कई बार ऐसी गेंद जो अच्‍छी लेंथ-लाइन की और विकेट दिलाने वाली हो, उसे भी श्रीकांत दर्शक दीर्घा में भेज देते हैं.' उस समय भारतीय टीम की फील्डिंग और फिटनेस का स्‍तर आज के जैसा नहीं था, लेकिन श्रीकांत टीम के सर्वश्रेष्‍ठ क्षेत्ररक्षकों में शुमार किए जाते थे.

श्रीकांत ने तब सारे कयास गलत साबित किए थे
टेस्‍ट में श्रीकांत बहुत ज्‍यादा सफल नहीं रहे लेकिन कप्‍तान के रूप में उनके नाम पर ऐसी उपलब्धि है जो नायाब मानी जा सकती है. वर्ष 1988-89 में उनकी कप्‍तानी में भारतीय टीम, पाकिस्‍तान के दौरे में गई और टेस्‍ट सीरीज को कामयाबी के साथ ड्रॉ कराकर  लौटी. उस समय की भारतीय टीम, पाकिस्‍तान की तुलना में काफी कमजोर मानी जा रही थी और ऐसे कयास लगाए जा रहे थे कि इमरान खान की कप्‍तानी वाली पाकिस्‍तानी टीम, भारतीय टीम को बुरी तरह रौंदकर रख देगी.

चयन समिति के प्रमुख भी रह चुके हैं श्रीकांत
पाकिस्‍तान की उस टीम में बल्‍लेबाजी में जावेद मियांदाद, सलीम मलिक  रमीज राजा, शोएब मोहम्‍मद जैसे बल्‍लेबाज और तेज गेंदबाजी में इमरान खान, वसीम अकरम, वकार यूनुस जैसी सर्वश्रेष्‍ठ तिकड़ी थी. स्पिन गेंदबाजी में महान अब्‍दुल कादिर भी इस टीम में थे, लेकिन श्रीकांत की अगुवाई में भारतीय टीम ने इस सीरीज में जबर्दस्‍त लड़ाकू क्षमता दिखाई (ऐसी क्षमता उस समय भारतीय टीम में कभी-कभी ही दिखती थी) और सीरीज को बराबर रखने में कामयाब रही. उस समय भारतीय टीम के लिए यह उपलब्धि सीरीज जीतने के बराबर ही मानी गई थी. श्रीकांत ने अपना आखिरी टेस्‍ट वर्ष 1992 में ऑस्‍ट्रेलिया के खिलाफ और आखिरी वनडे भी इसी वर्ष दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ खेला. वे तीन वर्ल्‍डकप में भारतीय टीम के सदस्‍य रहे. क्रिकेट से संन्‍यास लेने के बाद वे चयन समिति के प्रमुख भी रहे..

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