(पीटीआई के लिए लिखे इस विशेष कॉलम में रवि शास्त्री ने नए टेस्ट कप्तान विराट कोहली और वनडे कप्तान धोनी के बारे में लिखा है)
अधिकांश लोगों को लगा था कि भारत जीत सकता है। यह टीम 300 से अधिक का स्कोर बना सकती थी। गेंदबाजों ने कोई कसर नहीं छोड़ रखी थी। फील्डर भी दस रन आउट करने में सक्षम थे।
रुकिए। क्या यह वही टीम नहीं है जो टेस्ट और त्रिकोणीय शृंखला में हार गई थी। जो पिछले छह महीने से दौरे पर थी। जो अपने टेस्ट कप्तान के बिना थी। इसमें कोई भी खिलाड़ी ऐसा नहीं था जो 50 टेस्ट से ज्यादा खेला हो। इस पर इंग्लैंड दौरे के जख्म थे। खैर छोड़ो।
ये दो टीमें नहीं थी। एक जो सब कुछ हार चुकी थी और दूसरी जिसने सब कुछ जीता था।
इनके मानदंड दूसरे थे। ये ऑस्ट्रेलिया को ईंट का जवाब पत्थर से देना चाहते थे। यह टीम पीछे की ओर कदम नहीं उठाना चाहती थी। कौशल में बेहतर थी और मानसिक रूप से भी। दर रोज आपसी तालमेल बेहतर हो रहा था। यही वजह है कि सिडनी में उतरी टीम को आपका समर्थन हासिल था। आपको लगा कि ये खिताब फिर जीतेगी। टीम को भी खुद पर भरोसा था। मेरी नजर में ऑस्ट्रेलिया का यह दौरा निस्संदेह सफल रहा। मैं निष्पक्ष होकर बोल रहा हूं। माइक्रोफोन के पीछे भी मैं ऐसा ही कहता।
यदि भारतीय टीम खराब थी तो वह चारों टेस्ट में 400 से अधिक का स्कोर नहीं बना पाती। एडीलेड में 360 से अधिक के लक्ष्य का पीछा करने की बजाय हार मान लेती। भीषण गर्मी में बेरहम टीम के सामने घंटों पसीना बहाने की बजाय घुटने टेक देती। एक महीने के भीतर लगातार चार टेस्ट में। अंटाकर्टिका में पूरी श्वेत पेंगुइन ज्यादा संख्या में होंगी लेकिन ऑस्ट्रेलिया दौरे पर जीतने वाली टीमें कम हैं। यह क्रिकेट का स्टार ट्रैक है जिसमें आपको वहां जाना है जहां कोई पहले नहीं गया। द होली ग्रेल। कोहली को आप उसके चार शतकों के लिये, रहाणे को कलात्मक बल्लेबाजी के लिये, विजय को संयम के लिये और राहुल को मजबूती के लिये याद रखेंगे। आंकड़े इनकी प्रतिभा की सही बानगी नहीं देते। ये कोंपलें कल बरगद का पेड़ बनेंगी। उन्होंने सीनियर खिलाड़ियों को जाते देखा है।
इस टीम ने 2014 में चार विदेशी दौरे किए। इसके बावजूद वे फिट हैं और अगले एक दशक तक खेल सकते हैं।
आप अपने परिवार में से अपने फेवरिट नहीं चुन सकते। मैं भी इन बच्चों में से किसी को फेवरिट नहीं बता सकता। हम इंग्लैंड दौरे के बाद हालात बदलना चाहते थे। आपकी हौसलाअफजाई करने के लिए करोड़ों लोग हैं और यह हमने सिडनी में देखा।
मैं दो दशक बाद ड्रेसिंग रूम में था। खेल बदल चुका है, लेकिन अभी भी इसमें हाड़ मांस के इंसान ही खेलते हैं। खिलाड़ी अभी भी अपने प्रदर्शन को लेकर चिंतित रहते हैं। अभी भी यात्रा की थकान उन्हें होती है। नेट पर पसीना बहाते हैं। प्रशंसकों की प्रतिक्रिया को लेकर चिंतित रहते हैं।
मैंने इन युवा खिलाड़ियों में महत्वाकांक्षा देखी है। उनके पास पर्याप्त पैसा है। वे सम्मान चाहते हैं। उनमें सुधार की गुंजाइश है। हम सभी में है। किसी को ऑफ स्टम्प से बाहर जाती गेंदों पर दिक्कत है तो किसी को पूल शाट पर। कुछ हवा में ज्यादा शाट्स खेलते हैं। गेंदबाजों को हमेशा अनुशासन, फिटनेस और विविधता चाहिए। इन लड़कों का मानना है कि वे सुधार कर सकते हैं और करेंगे। भारत इनके मजबूत कंधों पर भरोसा कर सकता है। इसके अलावा नेतृत्व में स्पष्टता है जो जरूरी है। कोहली नया टेस्ट कप्तान है और लोमड़ी की तरह चतुर धोनी वनडे टीम की कमान संभाल रहे हैं। एक उतना नया नहीं है और दूसरा उतना पुराना नहीं है। काम का भार आपस में बांट सकते हैं। दोनों के बीच आपसी सम्मान है। किसी की नजर दूसरे के फल पर नहीं है। एक दूसरे के दायरे का सम्मान करते हैं। आने वाला समय सामंजस्य से परिपूर्ण है।
ये समझदार खिलाड़ी हैं। बल्लेबाजी क्रम में उपर नीचे करने पर शिकायतें नहीं करते। कोई ड्रामा नहीं। हर एक दूसरे के लिए खड़ा है। एक दूसरे की सफलता का जश्न मनाते हैं। मैंने लंबे समय से यह देखा है। इससे मेरी उम्मीदें जगी है। आने वाला समय उज्ज्वल है।
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