प्रतीकात्मक तस्वीर.
नई दिल्ली:
भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने आईपीएल मीडिया अधिकार के संदर्भ में प्रतिस्पर्धा रोधी गतिविधियों के लिए भारतीय क्रिकेट बोर्ड (बीसीसीआई) पर 52 करोड़ 24 लाख रुपये का जुर्माना लगाया है. इससे पहले फरवरी 2013 में भी सीसीआई ने बीसीसीआई पर इतना ही जुर्माना लगाया था लेकिन बीसीसीआई के अपील करने पर अपील पंचाट ने इसे खारिज कर दिया था.
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सीसीआई ने 44 पन्ने के अपने आदेश में कहा है कि 52 करोड़ 24 लाख रुपये का जुर्माना पिछले तीन वित्त वर्ष में बीसीसीआई के संबंधित टर्नओवर का लगभग 4.48 प्रतिशत है. बीसीसीआई की तीन वित्त वर्षों 2013-14, 2014-15 और 2015-16 में औसत कमाई 1164.7 करोड़ रुपये रही है. सीसीआई ने कहा, 'आयोग के आकलन में स्पष्ट तौर पर पता चला है कि बीसीसीआई ने प्रसारण अधिकारों की बोली लगाने वालों के व्यावसायिक हित के अलावा बीसीसीआई के आर्थिक हितों को बचाने के लिए जानबूझकर मीडिया अधिकार करार में से एक नियम हटाया.'
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मौजदूा समय में औसत कमाई कुछ ज्यादा थी, लेकिन नियामक ने कहा कि वह जुर्माने की राशि को बरकरार रखने को प्राथमिकता देता है. बीसीसीआई ने सीसीआई के फरवरी 2013 के आदेश के खिलाफ जब अपील की थी तो तत्कालीन प्रतिस्पर्धा अपील पंचाट ने इस आदेश को खारिज करते हुए नियामक को इस मुद्दे को नए सिरे से देखने को कहा था. पंचाट ने फरवरी 2015 में आदेश को रद्द कर दिया था. इसके बाद नियामक ने अपनी जांच इकाई के महानिदेशक को आगे की जांच करने को कहा था. महानिदेशक ने अपनी पूरक जांच रिपोर्ट मार्च 2016 में दायर की थी.
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सीसीआई ने 44 पन्ने के अपने आदेश में कहा है कि 52 करोड़ 24 लाख रुपये का जुर्माना पिछले तीन वित्त वर्ष में बीसीसीआई के संबंधित टर्नओवर का लगभग 4.48 प्रतिशत है. बीसीसीआई की तीन वित्त वर्षों 2013-14, 2014-15 और 2015-16 में औसत कमाई 1164.7 करोड़ रुपये रही है. सीसीआई ने कहा, 'आयोग के आकलन में स्पष्ट तौर पर पता चला है कि बीसीसीआई ने प्रसारण अधिकारों की बोली लगाने वालों के व्यावसायिक हित के अलावा बीसीसीआई के आर्थिक हितों को बचाने के लिए जानबूझकर मीडिया अधिकार करार में से एक नियम हटाया.'
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मौजदूा समय में औसत कमाई कुछ ज्यादा थी, लेकिन नियामक ने कहा कि वह जुर्माने की राशि को बरकरार रखने को प्राथमिकता देता है. बीसीसीआई ने सीसीआई के फरवरी 2013 के आदेश के खिलाफ जब अपील की थी तो तत्कालीन प्रतिस्पर्धा अपील पंचाट ने इस आदेश को खारिज करते हुए नियामक को इस मुद्दे को नए सिरे से देखने को कहा था. पंचाट ने फरवरी 2015 में आदेश को रद्द कर दिया था. इसके बाद नियामक ने अपनी जांच इकाई के महानिदेशक को आगे की जांच करने को कहा था. महानिदेशक ने अपनी पूरक जांच रिपोर्ट मार्च 2016 में दायर की थी.