मुंबई के टोरेस पोंजी स्कैम मामले में कई सवाल उठ रहे हैं. पुलिस की भूमिका पर भी कई सवाल हैं. इस मामले में यदि समय पर जांच हुई होती तो लोगों को ठगी का शिकार होने से बचाया जा सकता था. मुंबई के टोरेस ज्वैलरी शोरूम में कई लोगों ने अपनी जमा पूंजी गवां दी. इस मामले की जांच अब मुंबई पुलिस की इकानॉमिक ऑफिस विंग को सौंप दी गई है.
इस मामले में टोरेस कंपनी के तीन वरिष्ठ अधिकारियों को गिरफ्तार किया गया है. इनमें से एक उज़्बेक नागरिक और एक रूसी नागरिक शामिल है. अन्य आरोपी फरार हैं.
डीसीपी संग्राम सिंह निशानदार ने बताया कि, ''अभी तक की जांच में सामने आया है कि यह कंपनी पोंजी और एमएलएम को मिक्स करके एक स्कीम बनाती थी. इस में कुछ स्टोंस दिए गए थे. लोगों को स्टोन लेने के बाद हर सप्ताह तीन परसेंट से लेकर सात परसेंट स्लैब्स देने का वादा किया गया था. लोगों को प्रॉफिट दिया जाना था. जिन लोगों को स्टोन्स दिए गए थे उन लोगों को एक कार्ड दिया गया था (स्टोन का सर्टिफिकेट). इस पर स्टोन के बारे में कुछ नहीं लिख हुआ है, यह स्टैण्डर्ड कार्ड है.''
पुलिस अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू
एक हजार करोड़ का यह पोंजी स्कैम कई सवाल खड़े कर रहा है. इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं. मुंबई पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी ने शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन के संबंधित अधिकारियों पर जांच भी शुरू कराई है. यह जांच एसीपी (ACP) दर्जे के अधिकारी को दी गई है. वे यह जांच करेंगे कि आखिर महीनों पहले संभावित टोरेस स्कैम की जानकारी होने के बावजूद कोई ठोस कदम क्यों नही उठाए गए.
टोरेस कंपनी से जुड़ी संदिग्ध गतिविधियों के बारे में सबसे पहले पिछले साल जून में शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन को और बाद में अक्टूबर में नवी मुंबई पुलिस की आर्थिक अपराध शाखा (EOW) को जानकारी मिली थी. शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन के अधिकारियों द्वारा जानकारी के आधार पर कार्रवाई की होती तो टोरेस घोटाले को छह महीने पहले रोका जा सकता था. लेकिन ऐसा ना होने की वजह से छह महीनों में और हजारों लोग ठगे गए.
पुलिस ने नोटिस देकर चुप्पी साध ली
शिवाजी पार्क पुलिस स्टेशन के पुलिस सब इंस्पेक्टर (PSI) ने 29 जून को कंपनी के निदेशकों को एक नोटिस जारी किया, जिसमें उन्हें उपस्थित होने और फर्म के ऑपरेशन व बिजनेस एक्टिविटी के बारे में जानकारी देने को कहा था. सूत्रों के मुताबिक पुलिस अधिकारी को इलाके में पेट्रोलिंग करते समय संदिग्ध गतिविधियां दिखाई दी थीं, जिसकी जानकारी उन्होंने अपने वरिष्ठों को दी थी. इसके बाद वरिष्ठ अधिकारी के निर्देश पर उन्होंने कंपनी के डिटेल मांगने के लिए एक नोटिस जारी किया था, लेकिन उसके आगे कुछ नही हुआ. नवी मुंबई पुलिस ने भी 24 अक्टूबर को कंपनी को नोटिस जारी किया था. उसके बाद 14 नवंबर को आयकर विभाग ने भी नोटिस जारी किया था.
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