बीजेपी के इस विज्ञापन के हिसाब से बसपा अपने दानकर्ताओं के बारे में नहीं बताती है. उसे चंदे में मिलने वाली सारी रकम 20,000 रुपये से कम की होती है जिससे वह दानकर्ता के नाम बताने के कानूनी दायित्व से मुक्त हो जाती है. आयकर कानून में ही यह प्रावधान है कि 20,000 रुपये से कम की राशि होगी तो आय का ज़रिया बताने की ज़रूरत नहीं है. इस हिसाब से राजनीतिक दल कोई कानून नहीं तोड़ते बल्कि इस कानून का लाभ उठाकर दानकर्ताओं या आमदनी का ज़रिया बताने से बच जाते हैं. यह काम सिर्फ बसपा ही नहीं करती बल्कि हाल फिलहाल वजूद में आई आम आदमी पार्टी भी करती है. कांग्रेस और बीजेपी तो इस खेल के कप्तान हैं. हमने एडीआर की रिपोर्ट पर मीडिया रिपोर्टिंग देखी. ज़्यादतर रिपोर्ट में बसपा के इस 100 फीसदी को बड़ा करके छापा गया है. एक या दो अख़बार में ही इस बात का ज़िक्र मिला कि 100 फीसदी अज्ञात सोर्स से आमदनी करने वाली बसपा की कुल आमदनी कितनी है. बीजेपी के इस भ्रामक विज्ञापन की असलीयत समझने के लिए यह जानना ज़रूरी है.
एडीआर के अनुसार 2004-05 से 2014-15 के बीच बसपा की ज्ञात सोर्स से आमदनी 5.19 करोड़ से बढ़कर 111.96 करोड़ हो जाती है. बसपा ने एक रुपये की राशि का हिसाब ज्ञात सोर्स से नहीं दिया है यानी उसकी सौ फीसदी आमदनी अज्ञात सोर्स से होती है. अज्ञात सोर्स से सबसे अधिक कमाई किसकी होती है. पहले नंबर पर कांग्रेस है और दूसरे पर बीजेपी. कांग्रेस की आमदनी का 83 फीसदी हिस्सा अज्ञात सोर्स से आता है यानी 3,329 करोड़ रुपये. बीजेपी की आमदनी का 65 फीसदी हिस्सा अज्ञात सोर्स से आता है यानी 2,126 करोड़ रुपया. समाजवादी पार्टी की 94 फीसदी आमदनी अज्ञात सोर्स से होती है यानी 766 करोड़.
बीजेपी के अनुसार अगर अज्ञात सोर्स से 112 करोड़ कमाने वाली बसपा भ्रष्ट है तो अज्ञात सोर्स से 2126 करोड़ कमाने वाली बीजेपी क्या है. 100 करोड़ और 2000 करोड़ में फर्क होता है या नहीं होता है. क्या 2126 करोड़ की आमदनी अज्ञात सोर्स से हासिल करने वाली बीजेपी ईमानदार कही जाएगी? क्या बीजेपी अज्ञात सोर्स से 3,329 करोड़ की आमदनी करने वाली कांग्रेस को महाईमानदार मानती है? बीजेपी ने ही एडीआर की रिपोर्ट के आधार पर पैमाना बनाया है इसलिए जवाब भी उसी को देना चाहिए. बीजेपी ने किस हिसाब से ख़ुद को और कांग्रेस को इस पोस्टर से ग़ायब कर दिया है और बसपा-सपा को भ्रष्ट घोषित कर दिया है.
इस भ्रामक विज्ञापन के पीछे क्या यह मंशा रही होगी कि बसपा के न तो प्रवक्ता हैं न उनका कोई मीडिया सेल है इसलिए वे तो जवाब नहीं दे पाएंगे. कांग्रेस का नाम लेंगे तो प्रेस कांफ्रेंस भी हो जाएगी और वह छपेगी भी. इसके अलावा तो कोई कारण समझ नहीं आता है. यूपी बीजेपी का यह राजनीतिक विज्ञापन नोटबंदी के दौरान प्रधानमंत्री के उन आश्वासनों का भी अनादर करता है जब उन्होंने कहा था कि वे राजनीतिक दलों की फंडिंग पर खुली चर्चा चाहते हैं. हालांकि राजनीतिक दलों की फंडिंग पर कई साल से खुली चर्चा हो रही है, तमाम तरह की रिपोर्ट है फिर भी चर्चा की यह भावना कहीं से ठीक नहीं है कि एडीआर की रिपोर्ट का एक हिस्सा लेकर दूसरे दलों को भ्रष्ट ठहराया जाए और उसी रिपोर्ट में ख़ुद के ज़िक्र पर चुप रहा जाए. जाने-अजनाने में बीजेपी ने इस विज्ञापन के ज़रिये एक अच्छा काम भी कर दिया है. यह स्वीकार किया है कि अज्ञात सोर्स से आमदनी राजनीतिक भ्रष्टाचार का ज़रिया है. एडीआर की रिपोर्ट का यह राजनीतिक इस्तमाल एडीआर के काम की विश्वसनीयता का प्रमाण बन गया है, भले ही राजनीतिक दल साल दर साल एडीआर की रिपोर्ट को अनदेखा करते रहे हों.
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