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This Article is From Jun 06, 2024

नहीं बढ़ेगी EMI, रेपो रेट में बदलाव की संभावना नहीं

रेपो रेट वह दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पावधि उधार देता है, ताकि वे तरलता की अपनी तात्कालिक जरूरतें पूरी कर सकें. इसका असर बैंकों द्वारा कॉरपोरेट तथा आम ग्राहकों को दिए जाने वाले ऋण की ब्याज दरों पर पड़ता है.

नहीं बढ़ेगी EMI, रेपो रेट में बदलाव की संभावना नहीं
RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक बुधवार को शुरू हुई थी और शुक्रवार को समाप्त होगी...
मुंबई:

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) की शुक्रवार को समाप्त हो रही तीन-दिवसीय मौद्रिक नीति समीक्षा बैठक में रेपो रेट तथा अन्य नीतिगत दरों में बदलाव की संभावना नहीं है, क्योंकि केंद्रीय बैंक आर्थिक विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाए रखने का प्रयास कर रहा है.

RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक बुधवार को शुरू हुई थी और शुक्रवार को समाप्त होगी. इसमें देश की आर्थिक स्थिति, मुद्रास्फीति, मानसून की स्थिति, वैश्विक कारकों आदि के आधार पर नीतिगत दरों पर फैसले लिए जाएंगे. संभावना है कि समिति रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखने का फैसला कर सकती है.

रेपो रेट वह दर है, जिस पर केंद्रीय बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पावधि उधार देता है, ताकि वे तरलता की अपनी तात्कालिक जरूरतें पूरी कर सकें. इसका असर बैंकों द्वारा कॉरपोरेट तथा आम ग्राहकों को दिए जाने वाले ऋण की ब्याज दरों पर पड़ता है.

ब्याज दर घटने से निवेश तथा उपभोग लागत में कमी आती है, हालांकि उपभोग बढ़ने से मुद्रास्फीति (महंगाई दर) बढ़ने का खतरा रहता है.

RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा है कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति कम करने की नीति जारी रखेगा, ताकि आर्थिक विकास में स्थिरता बनी रहे. उन्होंने कहा कि खाने-पीने के सामान की महंगाई दर ज्यादा होने से मुद्रास्फीति का दबाव बना हुआ है.

RBI ने पिछली बार फरवरी, 2023 में नीतिगत दरों में बदलाव किया था. उसने मई, 2022 से फरवरी, 2023 के बीच रेपो रेट में कुल 2.5 प्रतिशत की वृद्धि की थी. फरवरी, 2023 के बाद से रेपो रेट को 6.5 प्रतिशत पर स्थिर रखा गया है.

खुदरा महंगाई की दर इस साल अप्रैल में घटकर 4.83 प्रतिशत पर आ गई थी, हालांकि यह अब भी RBI के चार प्रतिशत के मध्यावधि लक्ष्य से ऊपर है. वित्तवर्ष 2023-24 में देश की आर्थिक विकास दर बढ़कर 8.2 प्रतिशत पर पहुंच गई, जिससे RBI के पास अभी ब्याज दरों में कटौती को टालने के विकल्प हैं.

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