नई दिल्ली:
सरकार को नोटबंदी के बाद नकदी की समस्या लगभग समाप्त होने के साथ आर्थिक वृद्धि को गति देने के लिये बजट 2017 (Budget 2017) का उपयोग प्रोत्साहन उपलब्ध कराने तथा संरचनात्मक सुधारों को आगे बढ़ाने में करने की जरूरत है. यह बात कोलंबिया यूनिवर्सिटी के अर्थशास्त्र के प्रोफेसर प्रवीण कृष्ण ने कही.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में ‘राज सेंटर आन इंडियन इकनॉमिक पालिसीज’ के उप-निदेशक कृष्ण ने कहा, ‘भारत को लेकर मैं आशावादी हूं. नोटबंदी के कारण जो अस्थायी बाधा उत्पन्न हुई थी, वह पीछे रह गयी है. नोट की कमी की समस्या कम हो रही है. बजटीय प्रोत्साहन तथा मौजूदा संरचनात्मक सुधारों से उम्मीद है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस साल उंची वृद्धि हासिल करने की स्थिति में होगी.’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा सभी महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं है. प्रमुख चुनौती खर्च बेहतर तरीके से करने की है. और संभवत: बेहतर तरीके से प्रोत्साहित और नियमित निजी क्षेत्र को आपूर्ति के काबिल बनाने की है ताकि सूक्ष्म स्तर पर अधिकतम लाभ हो सके. जोन्स हापकिन्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कृष्ण ने कहा कि वह महसूस करते हैं कि मौजूदा कराधान प्रणाली (आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय व्यापार) युक्तिसंगत है और औसत कर की दरें नीचे जा सकती हैं. उन्होंने कहा, ‘जब कर नियम जटिल होते हैं, कर चोरी की आशंका अधिक होती है. कर चोरी रोकने के लिये कर व्यवस्था को उदार और युक्तिसंगत बनाना महत्वपूर्ण कदम है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या उच्च मूल्य की मुद्रा को चलन से बाहर करने के भारत सरकार के निर्णय से मकसद पूरा होता है, प्रख्यात अर्थशास्त्री ने प्रवीण कृष्ण कहा कि नोटबंदी किस हद तक सफल होती है, यह कालेधन के अर्थव्यवस्था से बाहर होने (जिसकी अभी घोषणा होनी बाकी है) तथा कालाधन जमा पर कर संग्रह पर निर्भर करेगा.
कृष्ण ने कहा, ‘भविष्य में कर चोरी तथा धन के अलावा अन्य रूप में रखे गये कालाधन के भंडार पर लगाम लगाने के लिये अतिरिक्त सुधारों की जरूरत होगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल भुगतान बढ़ रहा है जो काफी उत्साहजनक परिणाम है और इससे दीर्घकालीन लाभ होना चाहिए.
कोलंबिया यूनिवर्सिटी में ‘राज सेंटर आन इंडियन इकनॉमिक पालिसीज’ के उप-निदेशक कृष्ण ने कहा, ‘भारत को लेकर मैं आशावादी हूं. नोटबंदी के कारण जो अस्थायी बाधा उत्पन्न हुई थी, वह पीछे रह गयी है. नोट की कमी की समस्या कम हो रही है. बजटीय प्रोत्साहन तथा मौजूदा संरचनात्मक सुधारों से उम्मीद है कि भारतीय अर्थव्यवस्था इस साल उंची वृद्धि हासिल करने की स्थिति में होगी.’
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि बुनियादी ढांचा, स्वास्थ्य तथा शिक्षा सभी महत्वपूर्ण प्राथमिकताएं है. प्रमुख चुनौती खर्च बेहतर तरीके से करने की है. और संभवत: बेहतर तरीके से प्रोत्साहित और नियमित निजी क्षेत्र को आपूर्ति के काबिल बनाने की है ताकि सूक्ष्म स्तर पर अधिकतम लाभ हो सके. जोन्स हापकिन्स यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर कृष्ण ने कहा कि वह महसूस करते हैं कि मौजूदा कराधान प्रणाली (आंतरिक और अंतरराष्ट्रीय व्यापार) युक्तिसंगत है और औसत कर की दरें नीचे जा सकती हैं. उन्होंने कहा, ‘जब कर नियम जटिल होते हैं, कर चोरी की आशंका अधिक होती है. कर चोरी रोकने के लिये कर व्यवस्था को उदार और युक्तिसंगत बनाना महत्वपूर्ण कदम है.’
यह पूछे जाने पर कि क्या उच्च मूल्य की मुद्रा को चलन से बाहर करने के भारत सरकार के निर्णय से मकसद पूरा होता है, प्रख्यात अर्थशास्त्री ने प्रवीण कृष्ण कहा कि नोटबंदी किस हद तक सफल होती है, यह कालेधन के अर्थव्यवस्था से बाहर होने (जिसकी अभी घोषणा होनी बाकी है) तथा कालाधन जमा पर कर संग्रह पर निर्भर करेगा.
कृष्ण ने कहा, ‘भविष्य में कर चोरी तथा धन के अलावा अन्य रूप में रखे गये कालाधन के भंडार पर लगाम लगाने के लिये अतिरिक्त सुधारों की जरूरत होगी. हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि डिजिटल भुगतान बढ़ रहा है जो काफी उत्साहजनक परिणाम है और इससे दीर्घकालीन लाभ होना चाहिए.
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