नई दिल्ली:
शेयर बाज़ार जनवरी माह में लिवाली के समर्थन के चलते वापस उसी स्तर पर आ गया है जिस स्तर पर वह नोटबंदी के पहले था. तेजी के पीछे एक बड़ी वजह यह रही है कि निवेशकों को उम्मीद है कि वित्त मंत्री अरुण जेटली बजट (Union Budget 2017) में व्यक्तिगत और कॉर्पोरेट स्तर पर छूट देंगे. बाजार को इस बात की भी उम्मीद है कि जेटली नोटबंदी के बुरी तरह तबाह हुए इंफ्रास्ट्रक्चर और ग्रामीण अर्थव्यवस्था को फिर से पटरी पर लाने के लिए कुछ बड़े कदम उठाएंगे.
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यदि बजट निराशाजनक रहा तो निफ्टी 8000 के स्तर पर आ सकता है या इससे भी नीचे जा सकता है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस वर्ष का बजट पेश करना अरुण जेटली के लिए मुश्किल चुनौती होगी.
राजकोषीय घाटा : अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि जेटली राजकोषीय घाटे को वर्ष 2017-18 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3-3.4 प्रतिशत पर लाने का प्रयास करेंगे जो कि 3 प्रतिशत से अधिक है लेकिन राहत की बात यह है कि यह 3.5 से कम है. वैश्विक वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनी मॉर्गन स्टेनली का भी यही मानना है.
रेटिंग सुधारने की चुनौती : रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने वित्त मंत्री अरुण जेटले से बजट 2017 में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के तय रास्ते पर डटे रहने की अपील की है. ऐसा नहीं होने पर रेटिंग और गिरने की संभावना बढ़ेगी. गौरतलब है कि सरकार के कई प्रयासों के बावजूद एसएंडपी ने भारत की रेटिंग में कोई सुधार नहीं किया था. एजेंसी ने राजकोषीय स्थिति की कमजोरी का हवाला देते देश की साख के मौजूदा स्तर से उंचे स्तर पर पहुंचने की संभावना से इनकार किया था. एजेंसी ने देश की वित्तीय साख को ‘बीबीबी-ऋणात्मक’ के स्तर पर बरकरार रखा था.
अर्थव्यस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए : मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि नोटबंदी के बाद नकदी संकट बहुत हद तक अब सामान्य हो गया है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम 2-3 में नजर आने की संभावना है. इससे घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार होने में समय लगेगा. जानकारों का मानना है कि इससे राजस्व आय का अनुमान लगाना कठिन होगा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक़, इस साल भारत की विकास दर 6.6 फ़ीसदी रहने का अनुमान है. यह पिछले साल की विकास दर 7.6 फ़ीसदी से 1 फ़ीसदी कम है. विकास दर के अनुमान पर नोटबंदी का असर बताया जा रहा है. इससे पहले विश्व बैंक भी भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 7.6 से घटाकर 7 फीसदी कर चुका है.
जीएसटी की उलझन : वेदा इन्वेस्टमेंट मैंनेजर्स के सीईओ ज्योतिवर्धवान जयपुरिया का कहना है कि यदि जीएसटी को जुलाई 2017 से लागू किया जाता है तो कॉर्पोरेट जगत के सामने एक और अनिश्चितता सामने आएगी. उन्होंने आगे कहा, "मुझे नहीं लगता कि कॉर्पोरेट जीएसटी के लिए पूरी तरह से तैयार है. विमुद्रीकरण और जीएसटी वित्तीय वर्ष की पहली छमाही की आय को प्रभावित कर सकते हैं."
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें : वैश्विक स्तर पर तेल की कम कीमतों के कारण सरकार को उत्पाद शुल्क से होने वाले राजस्व का संग्रह बजट लक्ष्य से आगे निकल सकता है. एसबीआई के आर्थिक अनुसंधान विभाग के मुताबिक, इस वित्तीय वर्ष में शुल्क संग्रह बजट अनुमान 3.18 लाख करोड़ के मुकाबले 3.59 लाख करोड़ रुपये हो सकता है. लेकिन विश्व स्तर पर अब तेल की कीमतें कुछ माह से बढ़ रही हैं. ऐसे में आने वाले वर्ष 2017-18 में जेटली के लिए मुश्किलें ला सकता है. एचएसबीसी सिक्योरिटीज के प्राजुंल भंडारी का कहना है कि वित्त वर्ष 17 में तो अप्रत्यक्ष कर संग्रह बहुत बढ़िया रहा लेकिन आने वाले वित्त वर्ष में यह लाभ मिलना मुश्किल है.
आरबीआई पर दर कम करने का दबाव : एचएसबीसी सिक्योरिटीज के प्राजुंल भंडारी के मुताबिक, एचएसबीसी बढ़ती तेल की कीमतों, 7वें वेतन आयोग और जीएसटी के शुरुआती प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 17-18 में मुद्रा स्फीति बढ़ने के संभावना है. 7वें वेतन आयोग की लगभग 70 फीसदी सिफारिशें (वेतन एवं पेंशन) वित्त वर्ष 16-17 में पहले ही शामिल की जा चुकी हैं. हाउसिंग अलाउंस सहित अन्य चीजों को वित्त वर्ष 17-18 में क्रियान्वित किए जाने की संभावना है. ऐसे में रिजर्व बैंक को अगले वर्ष ब्याज दरों में कटौती करने में मुश्किल होगी.
सामाजिक क्षेत्र का खर्चा : आगामी पांच राज्यों के चुनाव और नोटबंदी के असर को देखते हुए, कुछ विश्लेषकों ने इस बात की चिंता जाहिर की है कि सरकार सब्सिडी जैसे अन्य सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती कर सकती है. वहीं, मार्गन स्टेनली ने उम्मीद जताई है कि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी नीति पर अडिग रहेगी और उत्पादक व्यय को बढ़ावा देगी.
विश्लेषकों ने चेतावनी दी है कि यदि बजट निराशाजनक रहा तो निफ्टी 8000 के स्तर पर आ सकता है या इससे भी नीचे जा सकता है. कुछ विश्लेषकों का मानना है कि इस वर्ष का बजट पेश करना अरुण जेटली के लिए मुश्किल चुनौती होगी.
राजकोषीय घाटा : अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि जेटली राजकोषीय घाटे को वर्ष 2017-18 में सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 3.3-3.4 प्रतिशत पर लाने का प्रयास करेंगे जो कि 3 प्रतिशत से अधिक है लेकिन राहत की बात यह है कि यह 3.5 से कम है. वैश्विक वित्तीय सेवाएं देने वाली कंपनी मॉर्गन स्टेनली का भी यही मानना है.
रेटिंग सुधारने की चुनौती : रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड एंड पुअर्स ने वित्त मंत्री अरुण जेटले से बजट 2017 में राजकोषीय सुदृढ़ीकरण के तय रास्ते पर डटे रहने की अपील की है. ऐसा नहीं होने पर रेटिंग और गिरने की संभावना बढ़ेगी. गौरतलब है कि सरकार के कई प्रयासों के बावजूद एसएंडपी ने भारत की रेटिंग में कोई सुधार नहीं किया था. एजेंसी ने राजकोषीय स्थिति की कमजोरी का हवाला देते देश की साख के मौजूदा स्तर से उंचे स्तर पर पहुंचने की संभावना से इनकार किया था. एजेंसी ने देश की वित्तीय साख को ‘बीबीबी-ऋणात्मक’ के स्तर पर बरकरार रखा था.
अर्थव्यस्था को पटरी पर कैसे लाया जाए : मॉर्गन स्टेनली का कहना है कि नोटबंदी के बाद नकदी संकट बहुत हद तक अब सामान्य हो गया है लेकिन इसके दूरगामी परिणाम 2-3 में नजर आने की संभावना है. इससे घरेलू अर्थव्यवस्था में सुधार होने में समय लगेगा. जानकारों का मानना है कि इससे राजस्व आय का अनुमान लगाना कठिन होगा. अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष के मुताबिक़, इस साल भारत की विकास दर 6.6 फ़ीसदी रहने का अनुमान है. यह पिछले साल की विकास दर 7.6 फ़ीसदी से 1 फ़ीसदी कम है. विकास दर के अनुमान पर नोटबंदी का असर बताया जा रहा है. इससे पहले विश्व बैंक भी भारत की वृद्धि दर के अनुमान को 7.6 से घटाकर 7 फीसदी कर चुका है.
जीएसटी की उलझन : वेदा इन्वेस्टमेंट मैंनेजर्स के सीईओ ज्योतिवर्धवान जयपुरिया का कहना है कि यदि जीएसटी को जुलाई 2017 से लागू किया जाता है तो कॉर्पोरेट जगत के सामने एक और अनिश्चितता सामने आएगी. उन्होंने आगे कहा, "मुझे नहीं लगता कि कॉर्पोरेट जीएसटी के लिए पूरी तरह से तैयार है. विमुद्रीकरण और जीएसटी वित्तीय वर्ष की पहली छमाही की आय को प्रभावित कर सकते हैं."
कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें : वैश्विक स्तर पर तेल की कम कीमतों के कारण सरकार को उत्पाद शुल्क से होने वाले राजस्व का संग्रह बजट लक्ष्य से आगे निकल सकता है. एसबीआई के आर्थिक अनुसंधान विभाग के मुताबिक, इस वित्तीय वर्ष में शुल्क संग्रह बजट अनुमान 3.18 लाख करोड़ के मुकाबले 3.59 लाख करोड़ रुपये हो सकता है. लेकिन विश्व स्तर पर अब तेल की कीमतें कुछ माह से बढ़ रही हैं. ऐसे में आने वाले वर्ष 2017-18 में जेटली के लिए मुश्किलें ला सकता है. एचएसबीसी सिक्योरिटीज के प्राजुंल भंडारी का कहना है कि वित्त वर्ष 17 में तो अप्रत्यक्ष कर संग्रह बहुत बढ़िया रहा लेकिन आने वाले वित्त वर्ष में यह लाभ मिलना मुश्किल है.
आरबीआई पर दर कम करने का दबाव : एचएसबीसी सिक्योरिटीज के प्राजुंल भंडारी के मुताबिक, एचएसबीसी बढ़ती तेल की कीमतों, 7वें वेतन आयोग और जीएसटी के शुरुआती प्रभाव के कारण वित्त वर्ष 17-18 में मुद्रा स्फीति बढ़ने के संभावना है. 7वें वेतन आयोग की लगभग 70 फीसदी सिफारिशें (वेतन एवं पेंशन) वित्त वर्ष 16-17 में पहले ही शामिल की जा चुकी हैं. हाउसिंग अलाउंस सहित अन्य चीजों को वित्त वर्ष 17-18 में क्रियान्वित किए जाने की संभावना है. ऐसे में रिजर्व बैंक को अगले वर्ष ब्याज दरों में कटौती करने में मुश्किल होगी.
सामाजिक क्षेत्र का खर्चा : आगामी पांच राज्यों के चुनाव और नोटबंदी के असर को देखते हुए, कुछ विश्लेषकों ने इस बात की चिंता जाहिर की है कि सरकार सब्सिडी जैसे अन्य सामाजिक क्षेत्र के खर्च में कटौती कर सकती है. वहीं, मार्गन स्टेनली ने उम्मीद जताई है कि सरकार राजकोषीय घाटा कम करने की अपनी नीति पर अडिग रहेगी और उत्पादक व्यय को बढ़ावा देगी.
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