क्या महापंचायतें किसान आंदोलन को थाम पाएंगी?

विकास भी अजीब है. या तो यह भूतकाल में नहीं आया होता है या फिर भविष्यकाल में आने वाला होता है. एक और मज़ेदार बात है. विकास अपने से नहीं आता है. हमेशा इसे कोई लाने वाला होता है.

किसान आंदोलन ने इतना तो कर दिया कि नवंबर से लेकर अभी तक देश में खेती पर बात हो रही है. इस बीतचाती के कई मंच हैं. एक मंच है संसद. दूसरा मंच है राजनीतिक रैलियां. तीसरा मंच है किसान आंदोलन और उनकी महापंचायतें हैं. चौथा मंच है अखबारों के संपादकीय पन्ने हैं. किसान आंदोलन के कारण कांग्रेस और बीजेपी की आर्थिक नीतियां भी एक्सपोज़ होती रहीं. विपक्ष में रहते हुए कुछ और सत्ता में आकर कुछ. ऐसा इसलिए होता है कि दोनों की आर्थिक नीतियां एक ही किताब और स्कूल से आती हैं. इस पूरे खेल को एक बेहद तार्किक भाषा के ज़रिए खेला जाता है जिसे कभी सुधार तो कभी विकास कहा जाता है. विकास भी अजीब है. या तो यह भूतकाल में नहीं आया होता है या फिर भविष्यकाल में आने वाला होता है. एक और मज़ेदार बात है. विकास अपने से नहीं आता है. हमेशा इसे कोई लाने वाला होता है. वही लाता रहता है. इसलिए उन लेखों और बहसों को ग़ौर से सुनिए पढ़िए और समझने का प्रयास कीजिए कि खेती का संकट है क्या, चालीस पचास करोड़ लोग खेती पर निर्भर हैं. आंदोलन के कारण खेती पर बात करने का अवसर मिल रहा है. आंदोलन में अवसर.

आंदोलन ने ही अवसर दिया कि खेती पर नियमित रूप से अच्छी रिपोर्ट करने वाली पत्रिका डाउन टू अर्थ ने किसानों की हालत पर एक पूरा अंक निकाला है. न सिर्फ नीतियों की नज़र से बल्कि जलवायु संकट के कारण किसानों की कम होती आमदनी के सवाल को भी देखा गया है. रिचर्ड महापात्रा ने लिखा है कि नेशनल सैंपल सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 और 2017-18 के बीच 3 करोड़ कृषि मज़दूरों सहित 3-4 करोड़ अनौपचारिक मज़दूरों ने ग्रामीण इलाकों में नौकरियां खो दीं. कृषि कार्यबल में 40 फीसदी की गिरावट है. रिचर्ड यह भी बताते हैं कि 2001-2011 के बीच सेंसस टाउन की संख्या 1362 से बढ़ कर 3894 हो गई. दरअसल सारी नीतियों का मॉडल यही है कि खेती से लोगों को निकाला जाए. खेती से कमाई कम हो रही है. सवाल है कि कृषि कार्यबल से 40 फीसदी लोगों को निकालने के बाद भी खेती से जुड़े लोगों की आमदनी क्यों नहीं बढ़ पा रही है? क्या खेती में आय दुगनी करने का तरीका यही बचा है कि लोगों को कम कर दो. कम लोग होंगे तो आय दुगनी हो जाएगी लेकिन यहां तो वह भी होता नहीं दिख रहा है.

खेती से आमदनी नहीं बढ़ रही है. किसानों को दाम नहीं मिल रहा है. चाहे दूध हो या सब्ज़ी या अनाज. किसान इतने दिनों से इसी की राह देख रहा है कि दाम मिले इसके लिए कुछ होगा. किसानों की महापंचायत में अब तरह तरह के मुद्दे शामिल होने लगे हैं. दिल्ली आकर यह आंदोलन तीन कृषि कानूनों तक सीमित हो गया था लेकिन अब अलग अलग कारणों से भी किसान आने लगे हैं. आज टिकरी बॉर्डर के पास बहादुरगढ़ में किसानों की महापंचायत हुई.

हरियाणा के किसान नेता गुरनाम सिंह चढ़ूनी ने कहा है कि अगर सरकार MSP पर कानून बनाती है तो संशोधनों पर चर्चा शुरू हो सकती है. क्या ये अलग कोई स्टैंड है, क्योंकि अभी तक किसान नेता यही कहते रहे कि संशोधनों पर कोई चर्चा नहीं होगी. कानून वापस लेने होंगे. सौरव ने महापंचायत में आए किसानों से बात की और जानना चाहा कि जब चुनाव आता है तो धर्म के नाम पर किसान बंट जाते हैं. महापंचायतों में आए किसानों की यह एकजुटता कितनी टिकाऊ है, सरकार बार बार कह रही है कि वह कृषि कानूनों को खत्म नहीं करेगी. किसान नेताओं की तरफ से कानून को लेकर ठोस आपत्ति नहीं बताई जा रही है. इन सब सवालों पर किसान क्या सोचते हैं.

किसान आंदोलन वहीं टिका है. 26 जनवरी भी बीत गई. संसद का सत्र भी गुज़र ही रहा है. वहां जो बातें होनी थी हो चुकी है. किसान आंदोलन में आए किसान खेतों की तरफ जा रहे हैं और लौट भी आ रहे हैं. उन्हें लगने लगा है कि आंदोलन कहीं स्थायी न बन जाए.
इसलिए किसान जहां टिके हैं उसे ही अब घर और खेत की तरह देखने लगे हैं. राहुल ने टिकरी बोर्डर से तस्वीरें भेजी हैं. उन्हें किसानों ने बताया कि आस-पास टहलने की जगह नहीं थी और कापी गंदी थी. इसलिए किसानों ने सफाई कर एक छोटा सा पार्क बना दिया है. गमले लाकर फूल लगा दिए हैं. ताकि बैठने और बात करने के लिए साफ सुथरी जगह मिल सके. और इस जगह पर तरीके से तंबू लगा जा सकें. सुबह सुबह उठकर सड़क के किनारे की सफाई भी की जाने लगती है. पहले यहां काफी गंदगी फैली थी जो हटा दी गई है. मलबे भी हटा दिए गए हैं. यही नहीं यहां धूल बहुत उड़ती है तो सुबह शाम टैंकर से पानी का छिड़काव भी किया जाने लगा है. कहीं ऐसा न हो कि जाते जाते किसान दिल्ली की सीमाओं पर अपने आंदोलन की स्थायी निशानी छोड़ जाएं.

पलवल में ऐसा ही कुछ देखने को मिला. राष्ट्रीय राजमार्ग पर एलोवेरा की रोपाई की जाने लगी. इससे पहले यहां किसानों ने सब्ज़ियां लगा दी थी. दिसंबर के महीने में बीजेपी ने तय किया था कि जगह जगह पर किसान सम्मेलन किया जाएगा. कई जगहों पर किया भी गया लेकिन अब लगता है कि बीजेपी ने किसान सम्मेलन का इरादा छोड़ दिया है. वही दूसरी तरफ कांग्रेस खुल कर किसानों को लेकर सभाए करने लगी हैं.

राजस्थान कांग्रेस की तरफ से शुक्रवार को हरियाणा से सटे पीलीबंगा और पंजाब से सटे पदमपुरा में राहुल की सभा हुई. दिल्ली की सीमा पर किसान आंदोलन में कई दलों के सांसद जा चुके हैं लेकिन राहुल और प्रियंका ने दूरी बना कर रखी. अब प्रियंका गांधी के बाद राहुल गांधी भी किसान पंचायतों में हिस्सा लेने लगे हैं. पीलाबंगा के मंच पर कुर्सी की जगह खाट रखी गई थी. यहां भी राहुल गांधी ने कहा कि खेती भारत का सबसे बड़ा बिज़नेस है. कृषि कानूनों का लक्ष्य है कि इस बिज़नेस से 40 करोड़ लोगों को निकाल दिया जाए ताकि चंद उद्योगपतियों का कब्ज़ा हो सके. इस कानून के बाद कोई एक व्यक्ति या कंपनी जितना चाहे अनाज या फल खरीद सकेगी और उसका भंडारण कर सकेगी.

राहुल गांधी ने हम दो हमारे दो का नारा दिया तो आज बीजेपी दामाद का नारा ले आई. राज्यसभा में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि सरकार की नीतियों का फायदा गरीबों और मिडिल क्लास को मिल रहा है. क्रोनी यानी चंद उद्योगपतियों को नहीं मिल रहा है. 

24 साल की नौदीप को अभी तक रिहाई नहीं मिली है. एक मामले में ज़मानत तो मिली है लेकिन अभी दो मामलों में ज़मानत मिलनी बाकी है. 11 फरवरी को नौदीप का जन्मदिन था लेकिन परिवार और दोस्तों को नौदीप से मिलने नहीं दिया गया. शुक्रवार को उनकी बहन नौदीप से मिल कर आई हैं.

किसान आंदोलन की चर्चा दुनिया भर में हो रही है. दूसरे देशों के कई मशहूर टीवी कार्यक्रमों में किसान आंदोलन को लेकर चर्चा होने लगी है. ट्रेवर नोआ ने "The Daily Show" का छोटा सा हिस्सा ट्वीट कर दिया है, उसे अब तक 12 लाख व्यूज़ मिल चुके हैं. यूट्यूब पर भी 8 लाख व्यूज़ हैं. ऐसा नहीं है कि अमरीका के किसान खुशहाल हैं. वहां भी किसानों की हालत खराब है. दुनिया भर के किसानों के लिए अच्छा होगा कि हर देश में खेती किसानी की बात होने लग जाए. एक अमरीकी पॉप स्टार रिहाना के ट्वीट को लेकर सरकार आक्रामक हो गई थी.

किसान आंदोलन को लेकर भारत को कई देशों को समझाना पड़ रहा है. कनाडा के साथ भारत ने कड़ी प्रतिक्रिया जताई थी. भारत की संसद में हर दिन किसान आंदोलन को लेकर तकरार होती रहती है. वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर कहते हैं कि मंडी खत्म नहीं होगी. कानून में कहां लिखा है कोई दिखा दे. आम आदमी पार्टी के संजय सिंह कहते हैं कि 170 किसान मर गए लेकिन उनकी बात नहीं की गई. दीपेंद्र हुड्डा कहते हैं कि इस बार का कृषि बजट ही घटा दिया गया है. आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह ने राज्यसभा में कहा, 'प्रधानमंत्री ने किसानों का मजाक उड़ाया है. उन्हें आंदोलनजीवी भी कहा गया है जो पिछले 75 दिन से आंदोलन कर रहे हैं. 170 लोग अपने खेत के लिए मर गए. यहां तो चौधरी चरण सिंह की बात कही गई लेकिन चौधरी चरण सिंह के अनुयाई आंदोलन पर बैठे हैं.
यह बजट देश को नीलाम करने वाला बजट है देश की संपत्तियों को बेचने वाला बजट है.'

कांग्रेस सांसद दीपेंद्र हुड्डा ने राज्यसभा में कहा, 'सबसे ज्यादा पेट्रोल और डीजल महंगे हुए आप की सरकार में. सबसे ज्यादा पेट्रोल डीजल पर टैक्स लगाया गया आप की सरकार में. यह पेट्रोलजीवी सरकार है. सबसे ज्यादा बेरोजगारी दर हुई आपकी सरकार के कार्यकाल में. उम्मीद थी कि किसानों के लिए बजट में कुछ होगा लेकिन आपने कृष‍ि बजट घटा दिया. कृषि कानूनों में काफी कुछ काला है. जिस वर्ग के लिए यह नए कानून लाए गए हैं वह सीमा पर प्रदर्शन कर रहे हैं. 

वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर ने बजट पर चर्चा पर बोलते हुए राज्यसभा में कहा, 'मैं कांग्रेस के नेताओं को खुली चुनौती देता हूं, कहां नए कानून में लिखा है कि मंडी खत्म होगा, एमएसपी बंद होगा. आप किसानों को भ्रमित मत कीजिए.'

सरकार कहती है कि मंडी ख़त्म नहीं होगी. इसका मतलब यह नहीं कि बिहार में जहां मंडी नहीं है वहां शुरू हो जाएगी. इसका मतलब है जहां है वहां खत्म नहीं होगी. किसानों का कहना है कि विकल्प के नाम पर जो प्राइवेट मंडी दी जा रही है उनका विरोध इस बात से है. सरकारी मंडी में टैक्स लगेगा और प्राइवेट मंडी में टैक्स नहीं लगेगा तो ज़ाहिर है सरकारी मंडी धीरे धीरे खत्म होने लगेगी. अनुराग द्वारी ने दिसंबर के महीने में मध्य प्रदेश से एक रिपोर्ट की थी कि कैसे मध्यप्रदेश की छोटी मंडियों में कारोबार नहीं के बराबर हुआ है, कई बड़ी मंडियों में भी आवक कम रही है. 

इन्हीं सब कारणों से किसानों की आशंका बढ़ जाती है कि मंडी बंद होने वाली है. जनवरी में भी मध्यप्रदेश की मंडियों में पिछले साल की तुलना में 66 फीसद कमाई कम हो गई है. इसी पैसे से मंडी बोर्ड के कर्मचारियों की तनख्वाह-पेंशन सब मिलता है. ऐसे में राज्य मंडी बोर्ड के लगभग 9000 कर्मचारी और पेंशनर्स भी आशंकित हैं. मंडी के भविष्य को लेकर अब इस सिस्टम में काम करने वाले कर्मचारी भी अपनी विदाई के दिन गिनने लगे हैं.

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इस बीच खबर आई है कि घरेलु उड़ानों का किराया 10 से 30 प्रतिशत बढ़ा दिया गया. पेट्रोल और डीज़ल के दाम भी लगातार बढ़ते जा रहे हैं. दिल्ली में पेट्रोल 88 रुपये 14 पैसे प्रति लीटर हो गया है. मुंबई में पेट्रोल 94 रुपये 64 पैसे प्रति लीटर पेट्रोल मिल रहा है. वैसे सबसे महंगा पेट्रोल राजस्थान के गंगानगर में मिल रहा है. गंगानगर में एक लीटर पेट्रोल की कीमत 98.60 पैसे हो गई है.