क्या अध‍िकतर सरकारी योजनाएं पेट्रोल-डीजल के दम पर चलेंगी?

हमने सोचा कि धर्मेंद्र प्रधान के कई बयानों से प्रधान कारणों का पता लगाया जाए ताकि आप गर्व कर सकें कि आप 100 रुपये लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं

क्या अध‍िकतर सरकारी योजनाएं पेट्रोल-डीजल के दम पर चलेंगी?

भारत के पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान हैं. जब भी पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं, हाहाकार मचता है. उसके बहुत दिनों के बाद प्रधान का बयान आता है. उनके बयान का पैटर्न ऐसा होता है कि दाम बढ़ने के प्रधान कारण का पता नहीं चलता. सिर्फ इतना पता चलता है कि ये प्रधान का बयान है. कौन सा कारण प्रधान है, ये पता नहीं चल पाता है. हमने सोचा कि उनके कई बयानों से प्रधान कारणों का पता लगाया जाए ताकि आप गर्व कर सकें कि आप 100 रुपये लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं. प्रधान के बयानों की क्रोनोलोजी देखेंगे तो कारणों की प्रधानता समझने में आसानी होगी.

कभी अंतर्राष्ट्रीय कारण प्रधान होता है तो कभी कम उत्पादन प्रधान होता है. कभी यह भी प्रधान कारण हो जाता है कि उनके हाथ में नहीं है. कभी सर्दी प्रधान हो जाती है तो कभी चक्रवाती तूफान प्रधान हो जाता है. कभी गरीब कल्याण योजना और किसान सम्मान योजना प्रधान हो जाती है तो कभी प्राइमरी हेल्थ केयर और एजुकेशन प्रधान हो जाता है. कभी टीका योजना प्रधान कारण हो जाती है तो कभी हाईवे प्रधान कारण हो जाता है. कभी राज्य प्रधान हो जाते हैं तो कभी केंद्र प्रधान हो जाता है. इस प्रकार अलग-अलग समय पर पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ने के अलग-अलग कारण प्रधान हो जाते हैं. कौन सा कारण कब प्रधान होगा यह प्रधान ही जानते हैं. विकास भी उनके प्रधान कारणों में से एक है जिसके कारण पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं.

इतने प्रधान कारण हैं पेट्रोल के दाम बढ़ने के. हर बयान अपने आप में प्रधान है. जब आप पुराने बयानों के सिलसिले को देखेंगे तो पता चलेगा कि 14 जून 2021 का उनका बयान 2017 के बयान से हू ब हू मिलता है, बस योजनाओं के नाम बदल गए हैं. पहले हालिया बयान पढ़ते हैं. 

धर्मेन्द्र प्रधान ने कहा, राहुल गांधी पहले जवाब दें महाराष्ट्र राजस्थान पंजाब में तेल क्यों महंगा है. ऐसे ग़ैर-ज़िम्मेदाराना बयान राहुल गांधी ही दे सकते हैं. आज मैं शुक्र करता हूं, ये नागरिकों को, consumer को दिक्कत दे रहा है, इसमें कोई दो राय नहीं है. लेकिन भारत या राज्य सरकार हो, कोरोना में लगभग एक साल में 35000 करोड़ से ज़्यादा टीका में ख़र्च हो रहा है. अभी-अभी एक लाख करोड़ ख़र्चा करके PM ने 8 महीने में मुफ़्त में खाद्यान्न देने के लिए PM ग़रीब कल्याण योजना शुरू की है. PM किसान में हज़ारों करोड़ किसानों के बैंक में सीधा पहुंचाया गया है. मैं इसी साल की बात कर रहा हूं. अभी-अभी किसानों के हित को ध्यान में रखते हुए  चावल और गेंहू की MSP की घोषणा हुई है. ये सारे ख़र्चे अभी. उसके अलावा देश में रोज़गार सृजन के लिए, डेवेलपमेंट के लिए, इन्वेस्टमेंट की आवश्यकता हो रही है. इस कष्ट के समय में हम पैसा बचा के लोक कल्याण काम में लगाएं. मगर राहुल गांधी को जितनी ग़रीबों की चिंता है, वो उद्धव ठाकरे को आदेश दें. आज मुंबई में सबसे महंगा इसलिए है क्योंकि वहां सबसे ज़्यादा टैक्स है, राजस्थान में पेट्रोल पर सबसे ज़्यादा टैक्स है. वहां पहले घटाएं. 

प्रधान का यह बयान क्लासिक है. प्रधान के इस बयान को वही छात्र समझ सकता हैं जो सवाल का जवाब न आने पर जवाब लिखने के नाम पर पन्ना भरने की तरकीब जानता है और रसायन शास्त्र के प्रश्न के जवाब में हिन्दी साहित्य के रीतिकाल की विवेचना कर आता है. क्या आपको पता है कि 2017 में भी धर्मेंद्र प्रधान ने इसी तरह का बयान दिया था तब योजनाओं के नाम कुछ अलग थे. सवाल पूछा गया है पेट्रोल के दाम क्यों बढ़ रहे हैं, जवाब में पूरा बजट सुना दिया.  इस साल ग़रीब कल्याण योजना और किसान सम्मान योजना जैसे कारणों से पेट्रोल के दाम बढ़ रहे हैं तो 2017 में पेयजल, प्रायमरी हेल्थकेयर और शिक्षा के कारण पेट्रोल महंगा हो रहा था. 2017 मई में दिल्ली में पेट्रोल करीब 68 रुपये लीटर था और मुंबई में 77 रुपये लीटर. तब भी विकास के लिए पेट्रोल के दाम बढ़ रहे थे. अब जब 100 रुपया हुआ है तब भी कारण विकास है. बस 2017 में इतना विकास होने लगा कि 2021 में आकर अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देना पड़ रहा है. जबकि 29 जून 2020 को प्रधान का बयान है कि प्रधानमंत्री जी ने तीन महीने में 42 करोड़ लोगों के खाते में 65000 करोड़ ट्रांसफर किए हैं.

प्रधान कह रहे हैं कि टीका पर सरकार 35,000 करोड़ खर्च कर रही है. लेकिन फरवरी में जब बजट पेश किया गया था तब तो कहा गया था कि और ज़रूरत होगी तो और पैसे दिए जाएंगे. उस वक्त तो यह नहीं कहा गया कि हम 35000 करोड़ इसलिए बता रहे हैं कि सारा पैसा पेट्रोल और डीज़ल के दाम से वसूलने वाले हैं. क्या वित्र मंत्री ने यह नहीं सोचा था कि पैसे कहां से आएंगे. बहुत दिनों तक तो सरकार भी इस 35000 करोड़ का नाम नहीं ले रही थी. इस बजट के होते हुए भी राज्यों से कहा गया था कि वे अपने पैसे से टीका खरीदें. 

35000 करोड़ के बजट की घोषणा दूसरी लहर से पहले हो चुकी थी. तब तो पता होगा कि पैसा कहां से आएगा. अब क्यों पेट्रोल से इसकी भरपाई हो रही है. और 35000 करोड़ तो सरकार एक-डेढ़ महीने में पेट्रोल डीज़ल से टैक्स लगाकर कमा लेती होगी. तो इतने लंबे समय से यह टैक्स क्यों चल रहा है. ग़ज़ब तर्क है कि टीका के लिए पेट्रोल महंगा हो रहा है. पता चला कि आप टीके का 1200 रुपया बचाने के चक्कर में पेट्रोल और डीज़ल के बहाने 12,000 सरकार को दे रहे हैं. 2017 से प्रधान का यही प्रधान तर्क है कि विकास की योजनाओं के लिए टैक्स चाहिए और दाम बढ़ेंगे. अगला बयान भी इसी साल फरवरी का है. "35000 करोड़ वैक्सीन पर ख़र्च होगा. रोड, रेलवे, पोर्ट बनाएंगे. इससे रोज़गार बढ़ेगा. ज़्यादा ख़र्चे से. भारत सरकार ने अपने निवेश बढ़ाया है. इसलिए टैक्स चाहिए. संतुलन चाहिए. वित्त मंत्री रास्ता निकालें.”

वैसे तेल के मामलों के जानकार कीरित पारिख का जवाब भी मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को सुनना चाहिए. 
उनका कहना है कि अगर सरकार टीका के लिए पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ा रही है तो उसकी सारी जानकारी सार्वजनिक करे. सरकार को फंड्स की ज़रूरत है. लेकिन Vaccination के लिए जो 35000 करोड़ खर्च करना है वो कहां जा रहा है, कितना खर्च हो रहा है इसकी जानकारी सरकार को सार्वजनिक करनी चाहिए. अभी सरकार का Vaccination प्रोग्राम doldrums में है. सरकार ने जानकारी सार्वजनिक नहीं की है कि Vaccination के लिए तय 35000 करोड़ कहां खर्च हो रहा है. उम्मीद करनी चाहिए कि सरकार जल्दी कीमतें घटाएगी. पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर सरकार का नियंत्रण नहीं होना चाहिए.

तो यह साफ हो गया कि पेट्रोल का दाम अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों के कारण कम आंतरिक विकास के चलते ज्यादा बढ़ रहा है. इस विकास से रोज़गार कितना बढ़ा, इसका हिसाब मंत्री जी को पता नहीं होगा, देंगे भी नहीं. पिछले एक साल में बेरोज़गारी बेतहाशा बढ़ी है, जो नौकरी में हैं उनकी कमाई कम हो गई है. आपको गर्व होना चाहिए कि आप बेकार में पेट्रोल के सौ रुपये नहीं दे रहे हैं.

प्रधान का एक और बयान है जो इस साल मार्च का है. प्रधान कभी भी पेट्रोल डीज़ल पर लगने वाले उत्पाद शुल्क में कटौती की बात नहीं करते हैं. केंद्र का हिस्सा कम करने की बात नहीं करते लेकिन विपक्षी सरकारों को ललकारते रहते हैं. मार्च में ही उनका एक और बयान है कि पेट्रोल और डीज़ल के दाम अस्थायी रूप से बढ़ रहे हैं, धीरे धीरे कम हो जाएंगे. सौ रुपया हो गया है. कहीं से कम होता हुआ नहीं लग रहा है. प्रधान ने कह दिया कि राहुल गांधी उद्धव ठाकरे को निर्देश दें कि टैक्स कम करें. क्या प्रधान प्रधानमंत्री से आग्रह कर सकते हैं कि वे पेट्रोल डीज़ल पर टैक्स कम कर दें. प्रधान अनेक प्रधान कारण बताते हैं लेकिन इस प्रधान कारण पर नहीं आते कि सात साल में केंद्र ने पेट्रोल पर एक्साइज डयूटी कितनी बढ़ा दी है. 9 मार्च 2021 को धर्मेंद्र प्रधान ने लोकसभा में बताया है कि 5 अक्तूबर 2018 से लेकर 5 सितंबर 2019 के बीच पेट्रोल पर उत्पाद शुल्क 17.98 प्रति लीटर था. डीज़ल पर उत्पाद शुल्क 13.83 रुपये प्रति लीटर था. 2 फरवरी 2021 को इसे बढ़ाकर 32.90 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया. 83 प्रतिशत की वृद्धि. इसी दिन डीज़ल पर उत्पाद शुल्क बढ़ाकर 31.80 रुपये प्रति लीटर कर दिया गया. 130 प्रतिशत की वृद्धि. 

प्रधान यह नहीं बताते कि इस वृद्धि के पीछे प्रधान कारण यह है कि अर्थव्यवस्था की हालत ख़स्ता है. हेडलाइन मैनेज करने के बाद भी इकॉनामी मैनेज नहीं हो रही है.महाराष्ट्र के वित्त मंत्री अजित पवार का बयान है कि दिसंबर 2019 में जब से उनकी सरकार आई है तब से महाराष्ट्र में पेट्रोल पर वैट नहीं बढ़ा है. बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा का कहना है कि बंगाल में प्रति लीटर जो टैक्स लगता है उसका 31-32 रुपया केंद्र लेता है जबकि राज्य का टैक्स 18 रुपया है. दिल्ली में भी पिछले साल जून से वैट नहीं बढ़ा है. जबकि मोदी सरकार ने केंद्र का टैक्स कितना ज़्यादा बढ़ा दिया है. 

पिछले साल दिसंबर में हिन्दू ने दिल्ली के टैक्स की तुलना की थी. तब दिल्ली में 83 रुपये 71 पैसे लीटर पेट्रोल था. इसके अनुसार मई 2014 में दिल्ली में पेट्रोल पर 17 प्रतिशत वैट लगता था जो दिसंबर 2020 में बढ़कर 23 फीसदी हो गया, लेकिन इसी दौरान केंद्र का टैक्स 14 प्रतिशत से बढ़कर 40 प्रतिशत हो गया. राज्य से ज्यादा केंद्र ने टैक्स बढ़ाया. आज दिल्ली में पेट्रोल का भाव 96 रुपये 41 पैसे लीटर है. जबकि 1 जनवरी 2021 को पेट्रोल 83 रुपये 71 पैसे लीटर था. छह महीने में 13 रुपया महंगा हुआ है. 

प्रधान को अब केंद्र के टैक्स की बात करनी चाहिए और बताना चाहिए कि उनकी पार्टी की सरकार जिन राज्यों में हैं वहां पर पेट्रोल पर टैक्स कम क्यों नहीं हो रहा है, क्या मध्य प्रदेश और गुजरात के लोगों को पेट्रोल की महंगाई से कोई दिक्कत नहीं है. बिहार में उनकी सहयोगी जदयू ने भी पेट्रोल के दाम कम करने की बात की है. जनता दल यूनाइटेड की यह मांग कहां तक पहुंची पता नहीं. कहने के लिए बयान दर्ज हुआ, मगर हुआ कुछ नहीं. 

इसी साल 8 मार्च को धर्मेंद्र प्रधान ने एक प्रश्न के जवाब में बताया कि 2013 में 52,537 करोड़ टैक्स वसूला जाता था जो 2019-20 में 2.13 लाख करोड़ हो गया. वित्त वर्ष 2020- 2021 के 11 महीनों में 2 लाख 94 हज़ार करोड़ का कर संग्रह हो गया है पेट्रोल डीजल से.

आप देख रहे हैं कि मोदी सरकार ने पेट्रोल और डीज़ल से कितना टैक्स वसूला है. कई गुना वृद्धि हो गई. दिसंबर 2020 में सब्सिडी वाले गैस सिलेंडर का दाम 594 रुपये था जो इन दिनों 813 हो गया है. सब्सिडी तो केंद्र ने कम की है. वो क्यों नहीं सरकार वापस उसी तरह से दे रही है. प्रधान और प्रधानमंत्री में से कौन बताएगा? केवल प्रधान कारणों को लेकर टारगेट शिफ्ट करना प्रधान मकसद लगता है. सितंबर 2017 में प्रधान ने कहा था कि पेट्रोल को जीएसटी के तहत लाना चाहिए. उन्हें बताना चाहिए कि इस बयान के बाद इस पर आगे बढ़ने के लिए उन्होंने क्या ठोस कदम उठाए? जबकि इसी 24 मार्च को भाजपा सांसद सुशील मोदी ने राज्य सभा में कहा था कि आठ दस सालों तक यह संभव ही नहीं है. 

सुशील मोदी कहते हैं कि राज्यों को दो लाख करोड़ का घाटा होगा जिसकी भरपाई कौन करेगा.वैसे जीएसटी का संकट भी दूसरी तरह से सामने आने लगा है. राज्यों के पास पैसे नहीं हैं. जीसटी का हिस्सा न मिलने और देरी से मिलने की शिकायतें आम हो गई हैं. पिछली बार जब राज्यों ने मांगा तो केंद्र ने कहा कि रिज़र्व बैंक से लोन ले लें. राज्यों ने मना कर दिया कि हमारा हिस्सा है, हम लोन क्यों लें. तब पिछले साल अक्टूबर में वित्त मंत्री ने कहा कि बाज़ार से लोन लेकर जीएसटी का हिस्सा दिया जाएगा. रिज़र्व बैंक ने अपने लाभांश से 99,000 करोड़ दिया था. हम समझने का प्रयास कर रहे हैं कि पेट्रोलियम मंत्री प्रधान के हिसाब से पेट्रोल के दाम बढ़ने के प्रधान कारण क्या हैं? we are asking this big question tonight which may be asked tomorrow morning also...अपने कार्यक्रम में अंग्रेज़ी के एंकर लोग ऐसे ही भौकाल बनाते हैं. उनका question हमेशा ही BIG होता है लेकिन सरकार का जवाब SMALL में भी नहीं आता है. 

21 फरवरी 2021 को प्रधान ने तेल के दाम बढ़ने के कुछ अलग कारण बताए कि कच्चा तेल का उत्पादन कम हो गया है और तेल बनाने वाली कंपनियां कम उत्पादन कर रही हैं ताकि ज्यादा मुनाफा कमा सकें .

भारत ने कच्चे तेल का उत्पादन करने वाले देशों के समूह ओपेक से कहा था कि तेल का उत्पादन बढ़ाया जाए. तब इसके जवाब में सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री अब्दलअज़ीज़ बिन सलमान ने कहा था कि नई दिल्ली के पास तेल का जो रिज़र्व है उसका इस्तेमाल करना चाहिए. सलमान ने बताया था कि दिल्ली ने 2020 में सस्ती दरों पर कच्चा तेल ख़रीदकर भंडारण किया है. सितंबर 2020 में दिवंगत सांसद राजीव सातव के पूछे एक सवाल पर धर्मेंद्र प्रधान ने लिखित रूप से कहा था कि भारत ने अप्रैल-मई 2020 में 19 डॉलर प्रति बैरल के भाव से 16.71 मिलियन बैरल कच्चा तेल ख़रीदा है और उसे रिज़र्व में रखा है. इससे भारत ने 5000 करोड़ की बचत की है. दिवंगत सांसद राजीव सातव ने अपने सवाल में यह नहीं लिखा था कि अप्रैल-मई महीने का ही रिकार्ड बताए सरकार, उन्होंने पूछा कि जब कच्चे तेल के दाम में गिरावट आई थी तब क्या सरकार ने पर्याप्त मात्रा में कच्चे तेल का रिज़र्व रखा था, कितना पैसा बचाया था. इसके जवाब में मंत्री जी सितंबर में कहते हैं कि पांच हज़ार करोड़ बचाया.
लेकिन सेम प्रधान 27 मई 2020 को ET now न्यूज़ चैनल से कहते हैं कि कच्चे तेल के दाम कम होने से भारत को 25000 करोड़ की बचत हुई है. जब 25,000 करोड़ बचाया तो फिर राज्य सभा में क्यों कहा कि 5000 करोड़ की बचत हुई.

बचत की प्रधान राशि क्या है? 5000 करोड़ है या 25,000 करोड़ है, यह तो प्रधान ही बता सकते हैं. 25,000 की बचत का लाभ जनता को क्यों नहीं मिला?  तब उपभोक्ताओं को राहत क्यों नहीं दी गई? पिछले साल तेल कंपनियों ने 82 दिनों तक तेल के दाम नहीं बढ़ाए थे. तालाबंदी भी हुई थी. जैसे ही 7 जून से तेल के दाम बढ़ने शुरू हुए 13 दिनों तक बढ़ते ही रहे और 19 जून को दिल्ली में पेट्रोल 78 रुपये 37 पैसे लीटर हो गया था. अप्रैल की तुलना में 9 रुपया महंगा हो चुका था. डीज़ल तो अप्रैल से जून के बीच 14.77 रुपये महंगा हो गया था. 

सरकार जब 25,000 करोड़ बचा रही थी तब भी आपको राहत नहीं मिली. इसी 4 जून को रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति कमेटी ने कहा है कि केंद्र और राज्य को एक्साइज़ ड्यूटी और अधिभार को ठीक से समायोजित करना चाहिए ताकि पेट्रोल और डीज़ल के दाम न बढ़ें. रिजर्व बैंक केंद्र से कह रहा है, केंद्र राज्य से कह रहा है. टैक्स कोई कम नहीं कर रहा है. बोलकर सब गोल हो जा रहे हैं और आपकी जेब से पैसा गोल हुआ जाता है. बात यह है कि प्रधान के बयानों से क्या आप पेट्रोल के दाम बढ़ने के प्रधान कारण समझ पाए?  

2017 से प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि पिछली सरकारों के आयात पर निर्भर होने के कारण तेल के दाम बढ़ रहे हैं. पांचवा साल चल रहा है लेकिन मोदी सरकार ने आयात पर निर्भरता को लेकर क्या किया है. उल्टा आयात बढ़ा ही है. ONGC जैसी तेल कंपनियों ने इन सात सालों में तेल के नए ज़रिया खोजने के लिए क्या किया. अमेरिका की क्रय शक्ति भारत के लोगों से 25 गुना ज़्यादा है फिर भी वहां पेट्रोल भारत से आधे दाम पर बिक रहा है. हम पेट्रोल के दाम बढ़ने के प्रधान कारणों का पता लगा ही रहे थे तभी कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर का एक बयान आ गया जिससे पता चला कि सरसों तेल इसलिए महंगा हुआ है क्योंकि सरकार ने मिलावट कम कर दी. यानी अब आप शुद्ध सरसों तेल खा रहे हैं. 

नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि “सरसों के तेल में हल्की सी, थोड़ी सी महंगाई है क्योंकि सरकार ने मिलावट को बंद किया है. ये भारत सरकार का बहुत महत्वपूर्ण फैसला है. इस फैसले का फायदा देश भर के किसानों को होने वाला है जो तिलहन में काम करते हैं, सरसों में काम करते हैं. और जो भी भाव बढ़ेंगे, उन पर सरकार की  निश्चित तौर पर नजर है. 

अजीब तर्क है. तो क्या आप सात सालों से मिलावटी तेल खा रहे थे? अब जाकर मिलावट कम हुई है? ऐसे ऐसे तर्कों से ही सीना फूल जाता है कि पेट्रोल सौ रुपये इसलिए हुआ है क्योंकि हमारी सरकार को विकास करना है, सरसों तेल 200 से अधिक का हो गया है क्योंकि सरकार आपको मिलावट वाला तेल नहीं खिलाना चाहती है. कुछ भी बोल देने की होड़ अच्छी नहीं है. खाने के तेल के दाम पचास प्रतिशत से लेकर 77 प्रतिशत तक बढ़ गए हैं. नरेंद्र सिंह तोमर और धर्मेंद्र प्रधान दोनों केंद्रीय मंत्रियों को मनोरमा सिंह के पास जाना चाहिए और पूछना चाहिए कि वे उनके विकास से कितनी खुश हैं. कैसे घर चला रही हैं.

लोगों की कमाई कम हो गई है और बंद हो गई है. सरकार ने अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का ऐलान किया है लेकिन खाना केवल चावल और गेहूं से नहीं बनता है. गैस का सिलेंडर भी महंगा हो चुका है. ज़ाहिर है लोग खाने पीने के बजट में कटौती कर रहे हैं जिसके कारण उनका स्वास्थ्य भी कमज़ोर हो रहा होगा. 

अलीगढ़ के मलखान सिंह ज़िला अस्पताल से आई एक तस्वीर बता रही है कि मुफ्त राशन की योजना को एक एक व्यक्ति तक पहुंचाने की ज़रूरत है. कमाई बंद होने से लोग कम खा रहे हैं. अदनान ने बताया कि यहां भर्ती एक परिवार के सदस्यों का शरीर कम खाने और कभी-कभी नहीं खाने की वजह से कमज़ोर हो गया है. गुड्डी और उनके पांच बच्चे भर्ती किए गए हैं. अजय, विजय, अनुराधा, टीटू और सुंदरम के पिता की पिछले साल मौत हो गई थी. तब से यह परिवार आर्थिक संकट का सामना कर रहा है. गुड्डी ने चार हज़ार रुपये पर एक फैक्ट्री में काम करना शुरू किया लेकिन तालाबंदी के कारण फैक्ट्री बंद हो गई. फिर काम नहीं मिला. बेटे ने मज़दूरी शुरू की लेकिन कभी पूरी तरह काम नहीं मिला. काम मिला तो घर में खाना बना. पर्याप्त और पौष्टिक भोजन न करने का असर बच्चों पर पड़ने लगा और बीमारियों ने घेर लिया. डॉ अमित का कहना है कि महिला और पांचों बच्चों का शरीर कमजोर हो चुका है. तीन बच्चों की हालत गंभीर है लेकिन इलाज सही होने से जल्दी ही ठीक होने की उम्मीद है. डॉ अमित कहते हैं कि 2 महीने से इन लोगों ने ढंग से खाना नहीं खाया है. अस्पताल में अच्छा खाना दिया जा रहा है. बच्चे इतने कमज़ोर हो चुके हैं कि बोल नहीं पा रहे हैं और चल नहीं पा रहे हैं. इस खबर के सामने आते ही अस्पताल के डाक्टरों के अलावा कई लोग मदद के लिए आगे आए हैं.

सरकार को समझना होगा कि उसकी योजनाओं के बाद भी कई लोग छूट जाते हैं. लोगों को पता नहीं होता है. मोहल्लों में पार्षदों और गांवों में पंचों के माध्यम से मुनादी करवानी चाहिए जिससे योजनाओं का पता लगे और कोई कम खाए न कोई भूखा रहे. इस बार की महंगाई कोई सामान्य महंगाई नहीं है. यह कमाई बंद हो जाने के ऊपर से आई है. इसकी मार कहीं ज़्यादा घातक होगी. 

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जिस विकास के लिए पेट्रोल 100 रुपया महंगा हो गया है उसकी हालत आप देख रहे हैं. दरअसल आप देख नहीं रहे हैं. देख रहे होते तो कोई आंखों में धूल झोंककर नहीं चला जाता. कुछ भी बोलकर नहीं चला जाता.