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This Article is From Nov 06, 2018

राम मंदिर का मुद्दा फिर क्यों गर्माने लगा है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 06, 2018 22:54 pm IST
    • Published On नवंबर 06, 2018 22:54 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 06, 2018 22:54 pm IST
2019 से पहले 1992 आ रहा है बल्कि आ चुका है. इंतज़ार अब इस बात का है कि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी कब 1992 के इस सियासी खेल में उतरते हैं. 2014 में प्रधानमंत्री की उम्मीदवार के तौर पर नरेंद मोदी के भाषणों को याद कीजिए, क्या आपको कोई भाषण याद आता है जो मुख्य रूप से राम मंदिर पर केंद्रित हो. उस चुनाव में मां गंगा ज़रूर आ गई थीं मगर राम मंदिर का सवाल मेनिफिस्टो में किसी किनारे दर्ज था. 2014 के मेनिफेस्टों में राम मंदिर का ज़िक्र पेज नंबर 37 पर था. 38 पेज के मेनिफेस्टों में 37वें पेज पर वो भी तीन लाइन. मगर कुछ दिनों से राम मंदिर बीजेपी और संघ के नेताओं के भाषण में पहले पन्ने पर आ गया है. सवाल है प्रधानमंत्री मोदी कब राम मंदिर पर भाषण देंगे.

2014 के बाद के विधानसभा चुनावों में प्रधानमंत्री मोदी कहा करते थे कि राज्य और दिल्ली में एक सरकार होगी तो टीम की तरह काम करेगी. फिर जब मुख्यमत्री योगी आदित्यनाथ ने फैज़ाबाद ज़िले को अयोध्या किया तब प्रधानमंत्री का कोई ट्वीट क्यों नहीं आया. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह का कोई ट्वीट नहीं आया. जबकि योगी जी की घोषणा के बाद तक प्रधानंमत्री अपने ट्विटर हैंडल पर सक्रिय थे, लोगों के ट्वीट का जवाब दे रहे थे. क्या आज के दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के इस बड़े फैसले पर बधाई नहीं देनी चाहिए थी? या दोनों अलग अलग रास्तों पर चलते हुए किसी अघोषित मंज़िल तक पहुंचना चाहते हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ अयोध्या को लेकर शुरू से स्पष्ट हैं. पिछली दिवाली के पहले भी वहीं थे. इस दिवाली के पहले भी वहीं हैं. बीजेपी ने विरोधी दलों से तो पूछा है मगर प्रधानमंत्री ने अभी तक अपनी राय नहीं बताई है. इंतज़ार कीजिए कि वे कब विकास छोड़कर या विकास के साथ साथ राम मंदिर के मामले में खुलकर आते हैं. इधर दिल्ली किसी और चीज़ में व्यस्त है. सीबीआई का झगड़ा सड़क पर है, कोर्ट में है. आरबीआई का झगड़ा रोज़ सड़क पर आ रहा है. आज उस झगड़े का मूल कारण सामने आ गया.

इंडियन एक्सप्रेस की पहली खबर ही यही है कि रिज़र्व बैंक ने सरकार को 3 लाख 60,000 करोड़ देने से मना कर दिया है. पिछले बुधवार को ही सरकार ने कहा था कि वह आरबीआई की स्वायत्तता का सम्मान करती है लेकिन दोनों को भारतीय अर्थव्यवस्था की ज़रूरतों के हिसाब से जनहित में काम करना होगा. एक्सप्रेस के सन्नी वर्मा के इस रिपोर्ट ने झगड़े की वजह बता दी है. भारतीय रिज़र्व बैंक के पास 9.59 लाख करोड़ का रिज़र्व है. इसमें से 3.6 लाख करोड़ सरप्लस है. सरकार यही हिस्सा अपने लिए चाहती है. मंत्रालय का सुझाव है कि इस सरप्लस का कैसे इस्तमाल करना है, सरकार और रिज़र्व बैंक दोनों मिलकर तय कर सकते हैं. मौजूदा जो नियम हैं वो बेहद रूढ़ीवादी सोच के आधार पर बनाए गए हैं. आरबीआई के सूत्रों ने रिज़र्व बैंक को बताया है कि सरकार रिज़र्व बैंक के रिज़र्व खज़ाने में हाथ लगाना चाहती है. ऐसा होगा तो व्यापक अर्थव्यवस्था की स्थिरता पर असर पड़ेगा. आरबीआई ने इस प्रस्ताव को खारिज कर दिया. ऐसा नहीं है कि रिज़र्व बैंक सरप्ल्स नहीं देता है, नोटबंदी के साल को छोड़ दें तो आम तौर पर यह 50,000 करोड़ के पास होता ही है. लेकिन सरकार की नज़र 3 लाख 60 हज़ार करोड़ पर है. ताकि इस पैसे को उन बैंकों के हवाले किया जा सके जिनके पास पूंजी नहीं है और वे आगे फिर से सबको लोन बांटने लगें.

आपको याद होगा कि पिछले हफ्ते विवाद इसी बात को लेकर शुरू हुआ था जब डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने अर्जेंटीना का उदाहरण दे दिया था कि वहां की सरकार भी रिज़र्व बैंक के खज़ाने को हथियाना चाहती थी, विरोध में गवर्नर ने इस्तीफा दिया और वहां तबाही आ गई. लेकिन एक्सप्रेस की इस खबर से इसकी पुष्टि होती है कि विरल आचार्य अर्जेंटीना के बहाने सरकार के इरादे को ही पब्लिक कर रहे थे. जनता को बता रहे थे. अखबार ने लिखा है कि अपने रिज़र्व से पैसा देने की शर्त रिज़र्व बैंक ने तब कर लिया जब सरकार का कोई नुमाइंदा उसके बोर्ड में मौजूद नहीं था. आरबीआई और सरकार के बीच इस खींचातानी का नतीजा क्या होगा, क्या रिज़र्व बैंक सरकार को अपना रिजर्व सौंप देगा, उसका अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा, कई जानकार कहते हैं कि अच्छा असर नहीं पड़ेगा. हमारे सहयोगी हिमांशु ने विपिन मलिक से बात की है जो रिज़र्व बैंक के बोर्ड के सदस्य रहे हैं. विपिन मलिक कहते हैं, 'सरकार का ये कहना कि आरबीआई उसे अपने रिजर्व में से 2 लाख या 3 लाख करोड़ दे दे. ये नहीं हो सकता है. सरकार के बजटीय अनुमानों में मार्केट बॉरोइंग का प्रोग्राम था वो पूरा नहीं हो पा रहा है. 11 सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक पीसीए में चले गए हैं. बाकी बैंकों में नकदी की किल्‍लत है.'

चीन के साथ युद्ध के समय एक बार रिज़र्व बैंक के रिज़र्व से पैसा लिया गया है. तब तो युद्ध चल रहा था लेकिन लंबे समय के इतिहास में इसके अलावा दूसरा उदाहरण नहीं है. अभी क्या ऐसे हालात हैं जब सरकार की नज़र आरबीआई के रिज़र्व सरप्लस पर है. इस बीच पूर्व गवर्नर रघुराम राजन का इंटरव्यू आया है. राजन ने सीएनबीसी चैनल की एंकर लता वेंकटेश जी से बात की है. राजन ने भी डिप्टी गवर्नर विरल आचार्या की बात का एक तरह से समर्थन किया है कि सरकार को रिज़र्व बैंक पर हाथ डालने का प्रयास नहीं करना चाहिए, यह अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा नहीं है. एक बार आपने किसी को गवर्नर और डिप्टी गवर्नर नियुक्त कर दिया तो आपको उनकी बात सुननी चाहिए. सरकार और आरबीआई एक दूसरी की सोच का सम्मान करें. आरबीआई को राहुल दविड़ की तरह खेलना होगा, नवजोत सिंह सिद्धू की तरह नहीं. स्वतंत्र और मज़बूत आरबीआई से देश को फायदा होगा. सरकार और आरबीआई के बीच चल रहा यह टकराव अब और नहीं बढ़ना चाहिए. राष्ट्रीय संस्था के रूप में रिजर्व बैंक को बचाना ज़रूरी है. अगर सरकार बहुत ज़्यादा दबाव देती है तो रिज़र्व बैंक को अधिकार है वो ना कह दे. सरकार रिज़र्व बैंक के पास अपना पक्ष रखे लेकिन फैसला आरबीआई करे. रिज़र्व बैंक के बोर्ड का काम दूसरे हितों का बचाव करना नहीं है बल्कि अपने संस्थान के हितों की रक्षा करना है.'

हम आपको फिर से बता दें कि रघुराम राजन ने यह इंटरव्यू सीएनबीसी न्यूज़ चैनल की एंकर लता वेंकटेश को दिया है. लेकिन सरकार क्यों रिज़र्व बैंक से यह पैसा लेना चाहती है. चीन युद्ध के समय एक बार ऐसा हुआ था मगर वह युद्ध का समय था, उसके बाद कभी किसी दौर में सरकार ने रिज़र्व बैंक के रिज़र्व पर हाथ नहीं डाला. सरकार जब दावा कर रही हो कि जीएसटी और इनकम टैक्स से कर संग्रह बढ़ गया है तब क्यों सरकार को इस पैसे की ज़रूरत है.

19 नवंबर को रिज़र्व बैंक के गवर्निंग बॉडी की बैठक है. उस बैठक में काफी कुछ तय होना है. गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं संकट से गुज़र रही हैं. आपको पता ही होगा कि आईएलएफएस संकट में है. इसकी कई कंपनियों ने जो लोन लिए हैं वो चुकाए नहीं गए हैं. यह संस्थाएं भी लोन लेकर आगे लोन देती हैं लिहाज़ा जब यह अपना लोन नहीं चुका पाएंगी तो बाज़ार में पैसे की कमी हो जाएगी. एक तरह से हाहाकार मच सकता है. जब पहली बार यह खबर आई थी कि आईएलएफएस भी डिफॉल्ट करने लगी है तब बाज़ार गिरने लगा था. एसोचैम के सेक्रेट्री जनरल उदय वर्मा भी एक तरह से सरकार के साथ खड़े नज़र आ रहे हैं. राजन ने भी वर्मा की तरह बयान दिया है कि रिज़र्व बैंक को एनबीएफसी के संकट को दूर करने के लिए पैसा डालना चाहिए.

अंग्रेजी के अखबारों में खूब लेख छप रहे हैं कि रिजर्व बैंक स्वायत्त तो है मगर उसका बॉस सरकार है इसलिए जनहित में सरकार की बात माननी चाहिए. क्यों अचानक इस पैसे के लिए रिजर्व बैंक पर जनहित का दबाव डाला जा रहा है. यह भी एक सवाल है. अंतिम राय बनाने से पहले सुरजीत भल्ला, प्रभात पटनायक के लेख को पढ़िए. कई और लोगों ने भी लिखे हैं.

अब बात अयोध्‍या की. इलाहाबाद का नाम बदलने के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने फैज़ाबाद ज़िले का नाम बदल दिया है. पहले अयोध्या फैज़ाबाद ज़िले में आता था, अब अयोध्या के नाम का जिला हो गया. राम की नगरी अयोध्या को ज़िला की पदवी मिली है, इसे मीडिया ने बड़ी खबर के रूप में दिखाया है. अयोध्या के नाम से विधानसभा सीट पहले से है. लोकसभा का नाम फैज़ाबाद है. क्या इसी के साथ लोकसभा क्षेत्र का नाम भी बदल जाएगा या संसदीय क्षेत्र फैज़ाबाद ही कहलाएगा. बीजेपी के ही लल्लू सिंह फैज़ाबाद से सांसद हैं. फैज़ाबाद से हमारे सहयोगी प्रमोद श्रीवास्तव ने बताया कि प्रधानमंत्री मोदी 2014 के लोकसभा चुनाव में फैज़ाबाद गए थे, अयोध्या नहीं गए थे. 2017 के विधानसभा चुनाव में फैज़ाबाद भी नहीं गए, अयोध्या भी नहीं गए. अयोध्या विधानसभा सीट से बीजेपी के ही विधायक हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 7 बार अयोध्या और 3 बार फैज़ाबाद जा चुके हैं. सवाल है प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या कब जाएंगे, बाबरी मस्जिद ध्वंस और राम मंदिर के मसले पर कब बोलेंगे. जो भी है इतनी बड़ी घोषणा हो गई है और शाम छह बजे से लेकर रात के नौ बजे तक यानी जब प्राइम टाइम शुरू हुआ तब तक प्रधानमंत्री और अमित शाह का कोई ट्वीट नहीं आया. इस बड़े एलान के साथ दोनों ने योगी आदित्यनाथ को बधाई नहीं दी. ऐसा नहीं है कि प्रधानमंत्री मोदी ने अयोध्या पर ट्वीट नहीं किया है, 6 बजकर 40 मिनट पर उनका ट्वीट आया है जिसमें दक्षिण कोरिया की फर्स्ट लेडी की तस्वीर है. उन्होंने दक्षिण कोरिया और अयोध्या के प्राचीन संपर्क का ज़िक्र है, अयोध्या के कार्यक्रम का ज़िक्र है, तस्वीर है मगर योगी की घोषणाओं पर कोई ट्वीट नहीं आया है. 2019 के नाम पर 1992 आ रहा है, सबकी राय आ चुकी है, प्रधानमंत्री की राय नहीं आई है. क्या प्रधानमंत्री मोदी अयोध्या जाएंगे?

योगी आदित्यनाथ पहले ही एलान कर चुके हैं कि अयोध्या में राम की प्रतिमा कायम करेंगे. यह राम मंदिर से अलग होगा. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ ने कहा कि अयोध्या में एक मेडिकल कालेज बनेगा जिसका नाम राजर्षि दशरथ पर होगा और एयरपोर्ट का नाम पुरुषोत्तम राम के नाम पर होगा. हमने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का ट्विटर हैंडल भी चेक किया. फैज़ाबाद का नाम बदला गया है उस पर वे क्या कहते हैं. तो उनके ट्विटर हैंडल पर इस बारे में कुछ नहीं मिला. उन्होंने केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह को जन्मदिन पर बधाई दी है मगर योगी आदित्यनाथ के इतने बड़े फैसले पर बीजेपी के अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी ने कोई ट्वीट तक नहीं किया. राजनीति के अलावा आज के दिन आपको न्यूज़ चैनलों के कवरेज को अलग से नोटिस करना चाहिए. स्क्रीन का रंग तक बदल गया था. फैज़ाबाद का रंग अलग था, अयोध्या के लिए रंग अलग था. स्क्रीन पर जिन प्रतीकों का इस्तमाल हो रहा था, उसे समझने और सतर्क होने की ज़रूरत है. चार साल से न्यूज़ चैनलों पर जो हिन्दू मुस्लिम टॉपिक का नेशनल सिलेबस चल रहा था, वो अब अपने पूरे शबाब पर है. टीवी चैनलों के पर्दे पर जो पट्टियां लिखी हुई आ रही हैं, उन पर धार्मिकता का रंग है. भयानक तरीके से एकतरफा है. उनका टोन कुछ और है. थोड़ा सतर्क होकर चैनलों को देखने की ज़रूरत है इससे पहले कि कुछ भी देखने लायक ही न बचे. बाकी आप समझदार हैं. ये सब नए बदलाव नहीं हैं मगर बहुत दिनों बाद पुराना दौर लौट रहा है तो इन्हें समझने की ज़रूरत है.

सिर्फ टीवी देखने से आप दर्शक नहीं हो जाते हैं, दर्शक बने रहने के लिए अलग से पढ़ना भी चाहिए. बिना पढ़े आप न तो अपने दर्शक होने को समझ पाएंगे और न ही टीवी को. यह किताब है अरविंद राजगोपाल की किताब politics after television पढ़ सकते हैं. किताब बहुत महंगी है. फिर भी आप लाइब्रेरी से लेकर पढ़ सकते हैं. इंटरनेट पर पीडीएफ फार्म में मौजूद है. इस किताब की विषय सूची से ही आप बहुत कुछ समझ सकते हैं और आज के न्यूज़ चैनलों को देख सकते हैं.

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