लाखों करोड़ों रुपये फूंक कर की जा रही चुनावी रैलियों में जो भाषण हो रहे हैं उससे पता चलता है कि हमारी राजनीति स्तरहीन हो चुकी है. इस बात की होड़ लगी है कि कौन कितना फालतू और खराब बोल सकता है. इसके पीछे एक रणनीति भी है. चुनाव इन्हीं सब तू तू मैं मैं हो जाए और जनता के मुद्दे चुनावी मंच तक पहुंच ही न सकें.
प्राइम टाइम में नौकरी सीरीज़ में हमने आपको कई राज्यों से दिखाया था कि हर राज्य में सरकारी चयन आयोग किस तरह से खिलवाड़ कर रहे हैं. परीक्षा का विज्ञापन निकलता है, मोटी फीस ली जाती है लेकिन परीक्षा कभी अंजाम पर नहीं पहुंचती है. पहुंच भी जाती है तो तीन-तीन चार-चार महीने नौजवान नियुक्ति पत्र के इंतज़ार में गुज़ार देता है. गुजरात में रविवार को ऐसी ही एक घटना को लेकर राज्य भर में चिन्ता परेशानी का माहौल बना रहा. पौने नौ लाख छात्रों की महीनों की तैयारी बर्बाद हो गई, यह खबर कैसे बड़ी ख़बर नहीं होती. यही कारण है गुजरात के सभी अखबारों ने इसे प्रमुखता से छापा है और राजनीति इसे मुद्दा बनाने लगी है.
ख़बरों में कहा गया है कि गुजरात में रविवार को पुलिस कांस्टेबल के 9,713 पदों के पौने नौ लाख नौजवान इम्तहान देने के लिए अपने घर से निकले थे. बेरोज़गारी की हालत यहां तक पहुंच गई है कि 1 पद के लिए 1000 दावेदार हो जा रहे हैं. लाखों छात्र जब 2440 परीक्षा केंद्रों पर पहुंचे तो पता चला कि पर्चा तो लीक हो चुका है. इससे अफरा-तफरी मच गई. गुजरात पुलिस के पुलिस भरती बोर्ड को मेसेज मिला जिसमें किसी ने सवालों के जवाब ही मेसेज कर दिए थे. लिहाज़ा भरती बोर्ड के चेयरमैन ने परीक्षा रद्द कर दी. लाखों छात्रों को यकीन नहीं हुआ कि पुलिस की बहाली का पर्चा लीक हो जाएगा. पौने नौ लाख छात्रों को निराश होकर घर लौटना पड़ा. गुजराती अखबार संदेश ने पूरे पन्ने पर विस्तार से इस खबर को छापा है. यही नहीं परीक्षा केंद्रों से लौट रहे अलग-अलग दुर्घटनाओं में तीन छात्रों की मौत भी हो गई और 5 छात्र घायल भी हो गई. संदेश अखबार ने हिसाब लगाया है कि परीक्षा केंद्रों पर तैनात 9,200 सुपरवाइज़रों के भत्ते पर ही करीब 87 लाख का भुगतान किया गया है. अकेले प्रश्न पत्रों की छपाई पर साढ़े तीन करोड़ रुपये खर्च हो गए. अखबार ने यह भी हिसाब लगाया है कि छात्रों की जेब से कितना खर्च हुआ है. संदेश ने इसका भी हिसाब लगाकर बताया है कि हर छात्र का कम से कम 1000 रुपया का घाटा लग गया. इस हिसाब से छात्रों की जेब से 87 करोड़ 63 लाख छात्रों की जेब से उड़ गए.
आप कल्पना नहीं कर सकते हैं कि पर्चा लीक होने से या किसी भी तरीके से इम्तहान रद्द होने से छात्रों को कितनी मानसिक परेशानी होती है. महीनों के बाद सरकारी बहाली आती है. नौजवानों की उम्र निकल जाती है. पौने नौ लाख छात्रों की परेशानी को नज़रअंदाज़ करना आसान नहीं था. परीक्षा देने वाले ज्यादातर छात्र गरीब मध्यम वर्ग के और गांवों के हैं. गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी ने तुरंत जांच के आदेश दे दिए. लेकिन जब उनकी पुलिस ने चार आरोपियों को पकड़ा तो दो आरोपी बीजेपी के ही कार्यकर्ता निकल गए. उनकी पुलिस कांस्टेबल परीक्षा का पर्चा लीक होते ही गुजरात के पौने लाख छात्र परेशान हो उठे. यही कारण था कि मुख्यमंत्री विजय रुपाणी को जांच के आदेश देने पड़े. पुलिस ने 24 घंटे के भीतर 4 लोगों को गिरफ्तार कर लिया है. इनमें से दो बीजेपी के कार्यकर्ता बताए जा रहे हैं. हिन्दू अखबार के महेश लांगा ने लिखा है कि इन चारों में से मुकेश चौधरी बनासकांठा के तालुका पंचायत स्तर का बीजेपी कार्यकर्ता है. जबकि मनहर पटेल अरवेली ज़िला का वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता है. इन आरोपियों में गांधीनगर का एक पुलिस इंस्पेक्टर पी वी पटेल भी है. मुख्य अभियुक्त वडोदरा म्यूनिसिपल कारपोरेशन का सेनिटरी इंस्पेक्टर भी है जो खबर पढ़े जाने तक गिरफ्तार नहीं हुआ था. बीजेपी कार्यकर्ताओं के पकड़े जाने की खबर आते राज्य बीजेपी के अध्यक्ष ने मुकेश चौधरी और मनहर पटेल को पाटच् से निलंबित कर दिया.
इस मामले को लेकर राजनीति घूम गई है. एबीवीपी ने पुलिस की ही आलोचना कर दी है कि वह अपना इम्तहान ठीक से नहीं करा सकती है. एनएसयूआई ने भी राज्य सरकार की आलोचना की है. हार्दिक पटेल से लेकर जिग्नेश मेवाणी तक ने सवाल उठाए हैं. शंकर सिंह वाघेला ने तो कहा है कि हर छात्र को 10,000 रुपये का मुआवज़ा मिलना चाहिए. कांग्रेस ने एसआईटी की जांच की मांग की है. कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोषी ने मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग की है.
गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रुपाणी ने कहा है कि जब यह परीक्षा दोबारा से होगी तब छात्रों के सेंटर तक आने जाने का खर्चा सरकार उठाएगी. लेकिन इस बार जो उनकी जेब से करोड़ों रुपये डूबे हैं, उसका क्या होगा. इसकी जांच में एटीएस को भी लगाया गया जो आतंकवादी गतिविधियों की जांच के लिए बनी है. क्या पेपर लीक करने वालों का नेटवर्क आतंक के नेटवर्क से भी खतरनाक हो गया है. ऐसा नहीं है कि पहली बार पर्चा लीक हुआ है. 29 जुलाई को टीचर एप्टीट्यूड टेस्ट हुआ था. डेढ़ लाख नौजवान उस परीक्षा में शामिल हुए थे लेकिन उसमें भी पर्चा लीक हो गया. पुलिस ने अपनी जांच में इसे सही भी पाया. नतीजा अक्तूबर महीने में परीक्षा रद्द कर दी गई, अब यही परीक्षा जनवरी में होगी. हमने इस खबर को क्यों लिया. इसलिए क्योंकि राज्य दर राज्य आप घूम आइये, सरकारी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे नौजवानों का दिन रात इसी चिन्ता में कटता है. दिल्ली से आने वाले बड़े बयानों की खबरों के बीच ये लाखों नौजवान अपनी चिन्ता की खबरें ढूंढ रहे होते हैं. वे समझ गए हैं कि सरकारें उन्हें नौकरी देने के नाम पर क्या कर रही हैं. आज ही सुबह एक मेसेज आया कि 'हम RBI assistant recruitment के उम्मीदवार हैं. हमारी पहली परीक्षा नवंबर 2017 में हुई थी. 20 दिसंबर 2017 को मुख्य परीक्षा हुई लेकिन उसके बाद मुख्य परीक्षा का परिणाम आया 19 जनवरी 2018 को जिसमें वैकेंसी की संख्या से तीन गुना उम्मीदवारों का चयन किया गया. मार्च 2018 में भाषा की कुशलता का टेस्ट हुआ. लेकिन मार्च से नवंबर बीत गया उसका रिज़ल्ट नहीं आया है. 8 महीने से हम रिज़ल्ट का इंतज़ार कर रहे हैं. हम छात्रों की संख्या हज़ारों में है. हमारी मदद कीजिए.'
हमने नौकरी सीरीज़ के दौरान 50 से अधिक एपिसोड किए, इस उम्मीद में कि चयन आयोगों में कुछ सुधार आएगा. नौजवानों के साथ नौकरी और परीक्षा के नाम पर यह धोखाधड़ी बंद हो जाएगी. ऐसी परीक्षा व्यवस्था बनेगी जिस पर सबका भरोसा होगा लेकिन जब आप इन परीक्षाओं की नज़र से भारत को देखेंगे, इनमें शामिल नौजवानों की नज़र से भारत को देखेंगे तो काफी हताशा होगी. इन छात्रों से पूछिए कि उनकी नज़र में बड़ी ख़बर क्या है, वे यही बताएंगे कि हमारी परीक्षा का डेट कब आएगा, जो परीक्षा दी है उसका रिज़ल्ट कब आएगा. ज़रूर इन छात्रों में ऐसे भी बहुत हैं जो दिन रात हिन्दू मुस्लिम डिबेट में लगे रहते हैं मगर उनका भी सवाल है कि परीक्षा का रिज़ल्ट कब आएगा.
This Article is From Dec 04, 2018
सरकारी चयन आयोग इतने लचर क्यों?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:दिसंबर 04, 2018 00:35 am IST
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Published On दिसंबर 04, 2018 00:35 am IST
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Last Updated On दिसंबर 04, 2018 00:35 am IST
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