रुपया, पेट्रोल और डीज़ल ने भारत बंद का विरोध किया है. विपक्ष का भारत बंद होने के बाद भी रुपए का गिरना बंद नहीं हुआ और पेट्रोल डीज़ल के दाम का चढ़ना बंद नहीं हुआ. भारत का रुपया इस साल के 9 महीने में 12 प्रतिशत गिर चुका है और गिरता ही जा रहा है. क्या रुपया गिरते गिरते 80 के पार चला जाएगा. अभी तक रुपये के गिरने की जितनी भविष्यवाणियां हुई हैं वो कमोबेश सही साबित होती जा रही हैं. सिर्फ उस बाबा की भविष्यवाणी गलत हो गई है जिन्होंने 2014 में कहा था कि एक डॉलर 40 रुपये का हो जाएगा. उस बाबा के फॉलोअर भी अब नहीं पूछ रहे हैं कि प्रभु किंचित इस प्रश्न का समाधान नहीं हो पा रहा है कि रुपया क्यों गिरा जा रहा है. क्या कोई भभूत वभूत है जिसके छिड़कने से रुपये का गिरना बंद हो जाए. बाढ़ सुखाड़ के वक्त यज्ञ करने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता भी नज़र नहीं आ रहे हैं जो हवन करने लगते हैं और उनका दृश्य टीवी पर चलने लगता है. नौटंकी इतनी एकतरफा हो जाएगी यह मौजूदा राजनीतिक नाट्य कला के लिए अच्छा नहीं है. यह भी अच्छा संकेत है कि बरगलाने वाले बाबा अर्थव्यवस्था की राजनीति से दूर हो गए हैं. उन्हें आर्थिक वैराग्य हो गया है. वे अब धर्म करम के काम में लगे हैं. जब राजनीति धर्म का सहारा लेगी तब फिर से मैदान में आ जाएंगे.
आज बाज़ार बंद होने पर एक डॉलर 72 रुपये 67 पैसे का हो गया. 6 सितंबर को 71 रुपये 11 पैसे का हो गया था. भारत के इतिहास में कभी रुपया इतना नहीं गिरा. फाइनेंशियल एक्सप्रेस में ट्रेडबुल्स सेक्यूरिटीज़ के भाविक पटेल ने कहा है कि इस हफ्ते एक डॉलर 73 रुपये 50 पैसे का हो जाएगा। यानी और गिरेगा. पीटर ब्रांड्ट ने कहा है कि रुपये का बुरा दौर अभी आया नहीं है. इससे भी बुरा दौर आ सकता है. अगर रुपया 71 पार कर जाएगा तो चार से छह हफ्तों में 80 तक जाएगा. 14 अगस्त के इकोनोमिक टाइम्स में पीटर ब्रांड्ट का यह बयान छपा था. पीटर को चार्टिस्ट बताया गया है जो ग्राफिक्स चार्ट के ज़रिए शेयर या करेंसी के गिरने चढ़ने के रिकार्ड से आगे की बात करते हैं.
इला पटनायक ने लिखा है कि भारतीय रिज़र्व बैंक को रुपये की गिरावट रोकने का प्रयास नहीं करना चाहिए. 2013 में आरबीआई ने डॉलर की सप्लाई बढ़ा दी थी मगर उससे रुपये में मज़बूती नहीं आई थी. इस वक्त भारतीय रिज़र्व बैंक के पास 400 अरब डॉलर हैं. वो चाहे तो डॉलर की सप्लाई बढ़ा सकता है मगर इसका कोई परिणाम नहीं निकलेगा इसलिए सरकार को परेशान नहीं होना चाहिए और रुपये के गिरने के रास्ते में नहीं आना चाहिए. इला पटनायक का यह लेख ब्लूमबर्ग वेबसाइट पर छपा है. डॉलर क्यों मज़बूत हो रहा है?
कारण यह है कि कई देशों की अर्थव्यवस्था लड़खड़ा रही है. इसलिए निवेशक अपना पैसा निकालकर डॉलर खरीद रहे हैं. इस कारण डॉलर महंगा होता जा रहा है क्योंकि सब खरीद रहे हैं. भारत की तेल कंपनियां भी कच्चे तेल के दाम बढ़ने की आशंका में डॉलर खरीद रही हैं. पीटीआई के हवाले से खबर छपी है कि अभी का डॉलर तब तेल ख़रीदने के काम आएगा.
अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों की बात की जा रही है. हमने कई वेबसाइट से कुछ जानकारी आपके लिए जमा की है. कई ऐसे मुल्क हैं जिनकी अर्थव्यवस्था चरमरा रही है उनमें से एक तो टर्की है जहां मज़बूत नेता का जूनून छाया हुआ था. राष्ट्रपति एर्दोगेन के चुनाव जीतने के बाद भी टर्की संभल नहीं पा रहा है. अब वे कह रहे हैं कि दुश्मन देश टर्की की अर्थव्यवस्था पर हमला कर रहे हैं. जल्दी ही भारत में भी व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी से ऐसा ही कहा जाने वाला है.
टर्की का लीरा एक साल में डॉलर के सामने 50 फीसदी टूट चुका है. यहां से निवेशक भाग रहे हैं और डॉलर ख़रीदने लगे हैं. ट्रंप ने टर्की के स्टील निर्यात पर भारी टैक्स लगा दिया है. इंडोनेशिया का रुपया भी 20 साल के न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है. अर्जेंटीना में आर्थिक आपात की स्थिति हो गई है. अर्जेंटीना का करेंसी पेसो भी डॉलर के सामने नतमस्तक हो गया है. बजट घाटे को संभालने के लिए ब्याज़ दर 60 प्रतिशत हो गया है.
भारत का रुपया भी इन्हीं सब कारणों की चपेट में होगा लेकिन 2014 के पहले की राजनीति ने उन कारणों को रिजेक्ट कर दिया था अब जब सवाल पूछा जा रहा है तो कहा जा रहा है कि अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियां ज़िम्मेदार हैं. अगर रुपया 80 तक चला गया तो आयात करने वालों की क्या हालत होगी, पेट्रोल डीज़ल के दाम कहां तक जाएंगे, विदेशों में पढ़ने वाले छात्रों पर कितना आर्थिक बोझ बढ़ेगा, यह सब सवाल सामने हैं. भारत बंद पेट्रोल डीज़ल के दाम बढ़ने के खिलाफ था मगर इन दोनों ने भी भारत बंद का विरोध किया है और अपना दाम उन बाबाओं को याद करते हुए बढ़ा लिया जो कभी पेट्रोल को 35 रुपये पर बिकवाने वाले थे.
महाराष्ट्र के परभणी में 89.97 रुपया लीटर हो गया है. बिहार के सहरसा ज़िले में 88 रुपये 12 पैसे पेट्रोल है. मुंबई वाले 88 रुपये 12 पैसे लीटर पेट्रोल ख़रीद रहे हैं. दिल्ली में अब पेट्रोल 80 रुपये 73 पैसे का हो गया है.
10 सितंबर को विपक्ष का भारत बंद था. सुबह के अख़बारों में प्रधानमंत्री का बयान छपा था कि कांग्रेस सरकार में भी फेल थी, विपक्ष में भी फेल है. कांग्रेस का बंद था कि मोदी सरकार फेल है लेकिन उनके नेताओं ने जब अख़बार हाथ में उठाया होगा तो यही पढ़ा होगा कि वही फेल हैं. फेल बनाम फेल की इस राजनीति में आप अपनी गाड़ी की टंकी पर नज़र रखिए.
कांग्रेस के भारत बंद को 20 से ज्यादा विपक्षी दलों का साथ मिला है. राहुल गांधी अलग-अलग दल के नेताओं के साथ राजघाट गए. मानसरोवर से जो जल लाए थे उसे बापू की समाधि पर चढ़ाया और फिर विपक्षी दलों के साथ मार्च करते हुए राजघाट से रामलीला मैदान पहुंचे. तीन किलो मीटर तक सबने पदयात्रा की. इस मार्च में एनसीपी, जेडएस, आरजेडी, आरएलडी, सपा, बसपा, टीएमसी और आम आदमी पार्टी के नेताओं ने हिस्सा लिया और रामलीला मैदान के मंच पर साथ नज़र आए. शिवसेना और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना ने भी इस बंद में हिस्सा लिया है.
अमित शाह ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में कहा है कि 2019 में आने के बाद अगले 50 साल तक भाजपा को कोई नहीं हरा सकेगा. उन्होंने यह भी साफ किया कि वे यह बात अहंकार में नहीं कर रहे बल्कि अपने काम की वजह से भाजपा को कोई नहीं हरा पाएगा. इस लिहाज़ से 2069 तक भाजपा की ही सरकार रहेगी. अमित शाह की इस विनम्र भविष्यवाणी के आगे भारत बंद की कहानी फीकी हो गई है.
फिर भी आप नोट करें कि इलाहाबाद में कांग्रेसी कार्यकर्ता दो गधों को मजबूर कर रहे हैं कि वो कार खींचें. पेट्रोल के दाम बढ़ने में इन गधों का क्या कसूर था. गधों ने मुझे एक्सक्लूसिव बातचीत में कहा है कि उन्हें नहीं पता कि पेट्रोल महंगा हो गया है क्योंकि जब सस्ता होता है तब भी इंसान उनकी पीठ पर बोझ कम नहीं करता है. भैंस पर चढ़कर यह कांग्रेसी कार्यकर्ता बीन बजा रहे हैं. आम तौर पर भैंस के आगे बीन बजाने का मुहावरा चलता है मगर यहां भैंस पर बैठकर बीन बजा रहे हैं. यह तस्वीर बिजनौर की है. बलिया में कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने बैलगाड़ी पर स्कूटर की अर्थी निकाली. मगर जलाई नहीं. पडरौना में कांग्रेस के पूर्व सांसद आरपीएन सिंह रिक्शावाला बनकर आए. मुरेठा बांध कर रिक्शा चला रहे थे. हाथ जोड़ कर अभिवादन कर रहे थे. रिक्शा के पीछे ठेले पर स्कूटी चली आ रही थी और स्कूटी के पीछे गैस का सिलेंडर चला आ रहा था. हमने फ्राइडे फ्लैशबैक में दिखाया था कि कैसे भारत बंद के वक्त बीजेपी ने तरह तरह का आइडिया निकाला था ताकि न्यूज़ चैनलों और अखबारों में उन तस्वीरों को जगह मिले और विपक्ष के बंद की खबर पहले पन्ने पर प्रमुखता से आ सके. आप 11 सितंबर का अखबार देख लीजिएगा. देश के कई हिस्सों में विपक्ष के कार्यकर्ताओ ने झंडे बैनकर के साथ मार्च किया. कहीं बाज़ार बंद रहे तो कहीं हाईवे पर जाम हो गया.
हमने यह सब अपनी लाइब्रेरी के आर्काइव में रखने के लिए दिखाया है. जिस तरह से आज लोग 2014 के पहले के अरुण जेटली, सुषमा स्वराज, रविशंकर प्रसाद, शाहनवाज़ हुसैन के बयानों का लिंक वायरल कर रहे हैं, उसी तरह 2069 के बाद मेरे प्राइम टाइम का लिंक शेयर करेंगे क्योंकि अमित शाह ने कहा है कि 2019 में जीतने के बाद भाजपा को 50 साल तक कोई नहीं हरा सकेगा.
बीजेपी नेता और केंदीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बंद को लोकतांत्रिक अधिकार बताते हुए कहा कि जो हिंसा हुई है उसके लिए कौन ज़िम्मेदार है. उन्होंने कहा कि कांग्रेस और विपक्ष के लोग गुस्से में ख़ौफ़ पैदा कर रहे हैं. इन सब बातों की आलोचना करते हुए रविशंकर प्रसाद ने कहा कि पेट्रोल डीज़ल का दाम बढ़ना हमारे हाथ के बाहर है.
तो आपने सुना. डीजल और पेट्रोल का बढ़ना हमारे हाथ के बाहर है. क्या यही अंतरराष्ट्रीय कारण बीजेपी के भारत बंद के समय नहीं रहे होंगे. फिर तब विपक्ष ने भारत बंद क्यों किया. तब क्यों रविशंकर प्रसाद ने बंद में हिस्सा लेते हुए साइकिल चलाई थी.
एक वीडियो में रविशंकर प्रसाद साइकिल चलाते हुए पेट्रोल डीज़ल के दाम का विरोध करते दिखते हैं. उस समय भी तो अंतरराष्ट्रीय कारण थे. कच्चे तेल का दाम 109 डालर प्रति बैरल तक हो गया था. तब अरुण जेटली ने कहा था कि 90 डॉलर प्रति बैरल होने पर पेट्रोल 50 रुपये लीटर होना चाहिए. इस वक्त 78 डॉलर प्रति बैरल है, जेटली जी 50 रुपये लीटर पेट्रोल क्यों नहीं कर देते हैं.
23 मई 2012 को हमारे सहयोगी चैनल से बात करते हुए रविशंकर प्रसाद किस जानकारी के आधार पर अंतरराष्ट्रीय कारणों के तर्क को रिजेक्ट कर रहे थे. तब हमारी सहयोगी एंकर ने प्रसाद से पूछा था कि आप सत्ता में होते तो क्या करते तो उन्होंने कहा था हम जब सत्ता में आएंगो तो अर्थव्यवस्था को इस तरह से मैनेज करेंगे कि ऐसे झटके को बर्दाश्त कर ले. अब सवाल उन्हीं से है कि आपने क्या मैनेज किया है कि झटका बर्दाश्त नहीं हो पा रहा है और पेट्रोल 89 रुपया लीटर हो गया. ये तो यूपीए के समय भी नहीं हुआ था.
इस जवाब में रविशंकर प्रसाद यह भी कह रहे हैं कि वे कच्चे तेल के दाम बढ़ने की बात समझते हैं लेकिन जब कच्चे तेल की कीमत कम होती है तब भी सरकार पेट्रोल डीज़ल के दाम कम नहीं करती है. 2014 में मोदी सरकार के आने के बाद तो इंटरनेशनल मार्केट में कच्चे तेल की कीमत गिरते गिरते 2016 तक करीब 41 डालर प्रति बैरल हो गई थी. क्या उस अनुपात में दाम कम हुए थे जिस अनुपात में कच्चे तेल की कीमत घटी थी.
2012 में कच्चे तेल की औसत कीमत 109 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गई. तब दिल्ली में मई 2012 में पेट्रोल 73.18 रुपये लीटर पहुंच गया था. 2017 में जब कच्चे तेल की औसत कीमत 52.51 डॉलर प्रति बैरल हो गई. तब दिल्ली में 3 सिबंतर 2017 को 69 रुपये 55 पैसे प्रति लीटर था.
आप देख सकेंगे कि एनडीएके समय कच्चे तेल की कीमत करीब 51 डॉलर प्रति बैरल होने पर भी पेट्रोल 69 रुपये लीटर मिला और यूपीए के समय 2012 में 107 डॉलर प्रति बैरल होने पर करीब 69 रुपये प्रति लीटर आपने दिया. यह खेल है. आज कांग्रेस और बीजेपी के बीच ट्विटर पर ग्राफिक्स के ज़रिए भी जंग हुई. बीजेपी ने अपने ग्राफिक्स में कच्चे तेल की कीमतों का अनुपात नहीं बताया है.
बीजेपी के ग्राफिक्स चार्ट के अनुसार 16 मई 2004 को पेट्रोल 33.71 पैसे लीटर था जो 16 मई 2009 को 40 रुपये 62 पैसे हुआ. यानी पांच साल में 20 प्रतिशत ज्यादा बढ़ा. फिर 16 मई 2014 को 71 रुपये 41 पैसे प्रति लीटर हुआ यानी 75.8 प्रतिशत बढ़ गया. अब 10 सितंबर 2018 को 80 रुपये 73 पैसे प्रति लीटर हुआ है जो 13 प्रतिशत घटा है. क्या वाकई दाम घटे हैं.
इसके जवाब में कांग्रेस का ट्वीट है. कांग्रेस ने कच्चे तेल के दाम के अनुसार बताया है. इस चार्ट के अनुसार अगस्त 2009 और सितंबर 2018 में दोनों टाइम कच्चे तेल की कीमत 71.9 डालर प्रति बैरल थी. उसके मुकाबले में 10 अगस्त 2009 को यूपीए की सरकार में पेट्रोल 44 रुपये 63 पैसे लीटर था. मोदी सरकार में 10 सितंबर 2018 को 80 रुपये 73 पैसे प्रति लीटर हो गया है. दाम बढ़ा कि घटा.
जनता कांग्रेस बीजेपी का इज़ इक्लवल टू गेम देख रही है. बीजेपी के ग्राफिक्स में दाम घटे हैं जबकि आपकी जेब के हिसाब से बढ़े हैं. क्या कमाई बढ़ी. आनिन्द्यों चक्रवर्ती ने अपने सिम्पल समाचार में बताया है कि जीडीपी के 8.2 प्रतिशत होने के बाद भी लोगों की असली आमदनी में काफी गिरावट आई है. आनिद्यों का सिंपल समाचार आप एनडीटीवी की वेबसाइट पर देख सकते हैं. उनका कहना है कि आमदनी से मुद्रास्फीति को एडजस्ट कर देने पर किसानों की असली आमदनी न देखने लायक है न दिखाने लायक है. अप्रैल-जून 2017 से अप्रैल-जून 2018 के बीच प्रति किसान आमदनी 100 रुपये से बढ़कर 101.60 पैसे बढ़ी है. यानी 1 रुपये 60 पैसे. यही रफ्तार रही तो 100 से 200 होने में 44 साल लगेंगे. किसानों की आमदनी तब जाकर दोगुनी होगी.
अच्छी बात है कि तब तक भाजपा की ही सरकार रहेगी क्योंकि बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा है कि भाजपा की 50 साल तक यानी 2069 तक सरकार रहेगी. हो सकता है कि पेट्रोल डीज़ल महंगा होने और नौकरियां नहीं मिलने के बाद भी भाजपा को जनता का अपार समर्थन मिलता रहे लेकिन इसकी वजह से जनता को तकलीफ नहीं है यह बात भी सही नहीं. आज ही हिन्दुस्तान टाइमस के राहुल सिंह की ख़बर है कि भारतीय सेना अगले 4-5 सालों में डेढ़ लाख नौकरियां कम करने जा रही है. इसके लिए जून के महीने में काडर की क्षमता की समीक्षा करने के आदेश दिए गए हैं. 11 सदस्यों का एक पैनल बनाया गया है जो संख्या बल घटाने पर भी विचार करेगा. बाकी रिपोर्ट आप हिन्दुस्तान टाइम्स में पढ़ें. गांव देहात में सेना में भर्ती के लिए दिन रात दौड़ने वाले युवकों तक यह सूचना समय से पहुंच जानी चाहिए. आंध्र प्रदेश और राजस्थान ने टैक्स में कमी की है मगर दाम पर कोई खास असर नहीं है. राजस्थान में 2 रुपये 21 पैसा टैक्स घटा है फिर भी पेट्रोल 81 रुपये 21 पैसे है. डिज़ल 75 रुपये 12 पैसे लीटर है. 2012 में भारत बंद के दौरान विपक्ष में रहते हुए अरुण जेटली ने एक सटीक भविष्यवाणी की थी. यही कि अगर सरकारों ने टैक्स को सही नहीं किया तो इस तरह के प्रदर्शन होते रहेंगे.
पेट्रोल और डीज़ल की राजनीति में जनता सुखी है. अब उसके पास दोष देने के लिए कोई नहीं बचा है. अब तो वह 50 साल तक किसी को दोष ही नहीं दे सकेगी क्योंकि अमित शाह ने कहा है कि भाजपा अपने काम के दम पर 50 साल तक सत्ता में रहेगी. क्या उस काम में पेट्रोल और डीज़ल के दाम कम करने का भी काम शामिल है. यह प्रश्न है या यह प्रश्न ही नहीं है.
This Article is From Sep 10, 2018
डॉलर के मुक़ाबले रुपया क्यों गिरता जा रहा है?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 10, 2018 23:45 pm IST
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Published On सितंबर 10, 2018 22:46 pm IST
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Last Updated On सितंबर 10, 2018 23:45 pm IST
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