कोरोना के टीकाकरण में क्यों भटक गई मोदी सरकार?

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने टीके के इस्तमाल को लेकर एक नया मॉडल पेश किया है. इस मॉडल से पता चलता है कि दिल्ली ही नहीं हरियाणा के पास भी टीके की कमी है. लेकिन हरियाणा ने बोलने की जगह कम कम टीका देने का रास्ता अपनाया है.

हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने टीके के इस्तमाल को लेकर एक नया मॉडल पेश किया है. इस मॉडल से पता चलता है कि दिल्ली ही नहीं हरियाणा के पास भी टीके की कमी है. लेकिन हरियाणा ने बोलने की जगह कम कम टीका देने का रास्ता अपनाया है. खट्टर मॉडल के हिसाब से दिल्ली के मुख्यमंत्री ने यह बोलकर ग़लती की है कि टीका नहीं है तो टीका केंद्र बंद हों जाएंगे. खट्टर ने कहा है कि अगर टीका दो लाख ही है तो कोई बात नहीं. एक ही दिन में न देकर पचास साठ हज़ार ही दिए जाएं तो समस्या नहीं होगी. अब यह साफ नहीं हो सकता है कि यह उनका अपना मॉडल है या भारत सरकार भी इसी मॉडल पर चल रही है.

“ड्रामा करने के लिए क्या किया. कल से सेंटर बंद. क्यों बंद क्योंकि टीके नहीं मिल रहे. हम कहते हैं टीके तो बाकी प्रदेश से ज्यादा मिल रहे हैं. आप जैसे बाकी प्रदेश कर रहे हैं, आज हम भी दो लाख स्टाक एक ही दिन में खत्म कर सकते हैं. हमको पता है कि कितना स्टाक मिल रहा है. हमको पता है कितना मिल रहा है. अगर हम पचास साठ हज़ार रोज़ करेंगे तो काम आगे चलता रहेगा.” 

आपदा में आइडिया. इसी को कहते हैं. आपदा में केवल अवसर नहीं होता, आइडिया भी होता है. खट्टर साहब यह आइडिया लगाना भूल गए होंगे कि कम टीके होंगे तो टीका केंद्र जल्दी बंद हो जाएंगे. उसका क्या उपाय हो. क्या एक घंटे में एक टीका दिया जाए? वैसे खट्टर साहब को यही बात प्रधानमंत्री से पूछना था कि जब टीका ही कम है तो 18 साल तक के लिए टीका की अनुमति क्यों दी गई? लेकिन हिन्दी की कक्षा में गणित का सवाल पूछने से कौन रोक सकता है. इसलिए यह सवाल केजरीवाल से पूछ लिया. खट्टर की राह पर चलते हुए केजरीवाल एक दिन में एक ही टीका लगाएं तो दिल्ली का स्टाक अगले कई साल तक खत्म ही नहीं होगा. टीका भी कम नहीं होगा और दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चलता ही रहेगा. केजरीवाल ने ट्वीट किया ह कि, 'खट्टर साहिब, वैक्सीन से ही लोगों की जान बचेगी. जितनी जल्दी वैक्सीन लगेंगी, उतने लोग सुरक्षित होंगे. मेरा मक़सद वैक्सीन बचाना नहीं, लोगों की जान बचाना है.'

खट्टर साहब टीका बचाने का मंत्र दे रहे हैं, केजरीवाल जान बचाने की बात कर रहे हैं. जान बचाने की प्राथमिकता होती तो मार्च अप्रैल के महीने में इतने लोग न मरे होते. खट्टर इस वक्त टीका बचाने का आइडिया दे रहे हैं. बीजेपी के राज्यों सुनना चाहिए.

समय न मिल सका हो तो मनोहर लाल खट्टर अब देख लें कि कैसे बीजेपी के कई राज्यों में भी टीके की कमी की ख़बरें आई हैं. कई जगहों पर टीका केंद्र बंद हुए हैं. लोगों को कई दिनों के इंतज़ार के बाद भी टीके नहीं मिले हैं. कर्नाटक, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश, बिहार, और पूर्वोत्तर के कई राज्यों में टीका केंद्र बंद हुए हैं. खट्टर साहब को पूछना यह था कि जब बीजेपी के राज्य इस पर चुप हैं तो केजरीवाल क्यों बोल रहे हैं. जान बचाने की ज़रूरत ही क्या है.

क्या इस तरह से भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है? पांच महीने से सरकार और सरकार के मंत्री इस लाइन को दोहरा रहे हैं और आज भी यही हेडलाइन छपती है कि भारत में दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है.

16 जनवरी को जब भारत में टीका अभियान लांच हुआ तब से यह बात कही जा रही है. दुनिया में आबादी के हिसाब से भारत का स्थान दूसरा है. इस लिहाज़ से भारत का कोई भी अभियाान दुनिया का पहला, दूसरा, तीसरा बड़ा अभियान हो ही जाएगा. वहीं आबादी के कारण प्रतिशत के हिसाब से भी भारत पीछे नज़र आएगा. हमें देखना चाहिए कि हम अधिक से अधिक लोगों को टीका अभी तक क्यों नहीं दे सके हैं? आप भी देखिए इस अभियान को बड़ा बताने के लिए कितनी मेहनत की गई है. 3 करोड़ से कम आबादी वाले 100 देशों का पता लगाया गया, फिर उन देशों से तुलना कर दावा किया गया कि कि भारत का टीका अभियान दुनिया का सबसे बड़ा है. वैसे तो इसकी हेडलाइन आज भी छप रही है लेकिन टीका न होने पर टीका केंद्र बंद होने की हेडलाइन भी छपने लगी है.

तीन करोड़ से कम की आबादी वाले 100 देशों के सामने भारत का टीका अभियान बड़ा दिखता है. लेकिन भारत तो अपनी गिनती दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में करता है. उनकी तुलना में भारत कहां है, उन देशों ने अपनी आबादी के कितने हिस्से को टीका दिया है और भारत ने कितने हिस्से को टीका दिया है. चीन के आंकड़े पर संदेह किया जाता है लेकिन अमरीका, फ्रांस, जर्मनी इन देशों ने भारत से कहीं ज्यादा अपनी आबादी के बड़े हिस्से को टीका दे दिया है. अमरीका की आबादी तीस करोड़ है. कहा गया कि हम तीस करोड़ लोगों को टीका देंगे. अमरीका में टीका अभियान दिसंबर में ही शुरू हो चुका था, आज वहां आबादी के 40 प्रतिशत हिस्से को टीका दिया जा चुका है. भारत काफी पीछे है. हम दुनिया का सबसे बड़ा अभियान चलाते हुए भी मंगोलिया और चिली से पीछे हैं. Our world in data के अनुसार चिली अपनी आबादी के 54.77 प्रतिशत को पहला डोज़ दे चुका है. मंगोलिया अपनी आबादी के 56.51 प्रतिशत को पहला डोज़ दे चुका है. हंगरी और बहरीन अपनी आबादी के 53 प्रतिशत को पहला डोज़ दे चुके हैं. भारत ने अपनी आबादी के मात्र 11.90 प्रतिशत को पहला डोज़ दिया है.

कम आबादी वाले 100 देशों को जोड़ कर भारत अपने टीका अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा बता रहा है लेकिन Our world in data के अनुसार टीका देने के मामले में भारत 100 देशों से पीछे है. क्या मंत्री इसका ज़िक्र तक करेंगे? पूरी दुनिया में खबर छप रही है कि भारत में टीके की कमी के कारण टीका केंद्र बंद हो रहे हैं, लेकिन मंत्री से लेकर गोदी मीडिया इस लाइन को दोहराए जा रहा है कि दुनिया का सबसे बड़ा टीका अभियान चल रहा है. पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर कहते हैं कि भारत में 20-21 करोड़ लोगों को टीका दिया गया है. इसमें पहले डोज़ और दूसरे डोज़ की संख्या दोनों ही शामिल है.

वैक्सीन के बारे में PC में स्वास्थ्य विभाग ने दिसम्बर तक 216 करोड़ डोज़ यानी 108 करोड़ लोगों का टीकाकरण कैसे होगा इसका पूरा ख़ाका दिया है. ये समझ लेना कि भारत का वैक्सिनेशन 2021 में ही दिसंबर से पहले पूरा होगा. भारत 20 करोड़ टीके देकर आज दूसरे नम्बर पर है. तो सबसे तेज़ और सबसे ज़्यादा टीके लगाने वाला दूसरा देश है.

प्रकाश जावड़ेकर कुल 20 करोड़ डोज़ की बात करते हैं. यह संख्या आपको यही बताती है कि भारत दूसरा देश है. सच्चाई तो यही है कि आबादी के बहुत छोटे से हिस्से को टीका दिया गया है जिसका कोई फायदा नहीं क्योंकि आबादी के जितने बड़े हिस्से को टीका नहीं लगेगा तो वायरस उतना ही बदलता जाएगा. पूरी दुनिया में इसे लेकर चिन्ता है. इस लिए 20 करोड़ के हिसाब से नहीं, इस हिसाब से देखिए कि दूसरा डोज़ मात्र 3.3 प्रतिशत की आबादी को ही दिया जा सका है. पहला डोज़ 11.90 प्रतिशत को दिया गया है. 100 से अधिक देशों ने इससे अधिक टीका लगाए हैं. सरकार अपनी सुविधा से आबादी की बात करती है लेकिन जब पूछा जाता है कि आबादी के कितने प्रतिशत को टीका दिया गया तब टीके की संख्या की बात करने लगती है. जब टीका कम होता है तब आबादी जोड़ कर अपने अभियान को दुनिया का सबसे बड़ा बताने लगती है. इस तरह सवाल का जवाब नहीं मिलता, समस्या का समाधान नहीं होता मगर हेडलाइन नई छप जाती है. पर्यावरण मंत्री ने कहा कि दिसंबर तक 108 करोड़ लोगों को टीका दे दिया जाएगा. क्या वाकई भारत दिसंबर तक यह लक्ष्य हासिल कर लेगा या इस तरह के दावे का भी काम केवल हेडलाइन बनवाना ही था.

समस्या सिर्फ टीका ही नहीं है. टीका की नीति, कीमतों का निर्धारण और को-विन वेबसाइट भी अपने आप में एक बड़ी समस्या है. अदालत ने को-विन को लेकर भी कई ज़रूरी सवाल पूछे कि इसके कारण एक डिजिटल विभाजन रेखा बन रही है. बहुतों के पास डिजिटल सुविधा नहीं है. सरकार कहती है कि पंजीकरण अनिवार्य है लेकिन लोगों को इससे बहुत दिक्कतें हो रही हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने जब नीतियों को लेकर पूछना शुरू किया तब सॉलिसिटर जनरल का यही जवाब था कि अदालत नीतियों के नज़दीक न आए. इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम केवल केंद्र की भूमिका की बात कर रहे हैं. हम समझना चाहते हैं कि ऐसी दोहरी नीति क्यों है. जस्टिस भट ने कहा कि हमने वो पॉलिसी डाक्यूमेंट नहीं देखी है कि क्यों केंद्र और राज्य के लिए अलग-अलग दाम है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि हम जानना चाहते हैं कि केंद्र 45 साल से ऊपर को मुफ्त में टीका दे रहा है और बाकियों से पैसे ले रहा है जबकि सरकार ने ही कोर्ट को बताया है कि दूसरी लहर में 45 साल से नीचे की उम्र के लोगों को ज्यादा खतरा है. जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि क्या केंद्र इसकी जवाबदेही लेगा कि सभी राज्यों को टीका उपलब्ध कराएगा तो सॉलिसिटर जनरल ने कहा है कि मैं प्रशासनिक एक्सपर्ट नहीं हूं.

27 फरवरी से 2 अप्रैल के बीच हर दिन औसतन करीब 16 लाख टीका लगा है. 3 अप्रैल से 30 अप्रैल के बीच हर दिन औसतन करीब 28 लाख टीका लगता है. 1 मई से 27 मई के बीच हर दिन औसतन 17 लाख टीका लगता है. मई के महीने में अप्रैल से साढ़े तीन करोड़ टीका कम लगा है.

मई के महीने में अप्रैल से कम टीके लगे. क्या मई में कम उत्पादन हुआ. इतनी जगहों पर आंकड़े हैं और इतने मंत्रियों के बयान हैं कि आप किसी एक संख्या का पीछा नहीं कर सकते हैं. रविवार को स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कांफ्रेंस में कहा गया कि जून के महीने में केद्र सरकार छह करोड़ डोज़ राज्यों को देगी.

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने ही बताया है कि राज्यों को टीका खरीदने की छूट दी गई है लेकिन कोई राज्य भारतीय कंपनियों से कितना टीका खरीदेगा, इसका कोटा केंद्र तय करेगा. राज्य को केवल केंद्र से ज़्यादा पैसा देना होगा. दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने रविवार को ट्विट किया कि 'केंद्र ने दिल्ली के युवाओं के लिये अप्रैल के महीने में केवल 4.5 लाख और मई में केवल 3.67 लाख वैक्सीन दी और जून के लिए भी केवल 5.5 लाख डोज़. केंद्र सरकार वैक्सीन पर कुंडली मारकर बैठी है. राज्य सरकार के लिए कहती है वैक्सीन नहीं है, प्राइवेट अस्पतालों को वैक्सीन दिलवा देती है.'

हर देश फ्री में टीका खरीद कर अपने नागरिकों को दे रहा है. भारत में ही राज्यों को कहा जा रहा है कि आप ग्लोबल टेंडर निकाल लें. राज्यों के साथ साथ प्राइवेट सेक्टर को खरीदने की छूट दी गई है. एक तरफ लोगों को टीका नहीं मिल रहा लेकिन दूसरी तरफ 900-1200 रुपये देकर टीका मिल रहा है. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस चंद्रचूड़ ने आज सरकार से कहा कि संविधान के हिसाब से भारत राज्यों का संघ है इसलिए हम संघीय कानूनों का नियमों का पालन करते हैं. तब सरकार को टीका खरीद कर बांटना चाहिए. राज्यों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया गया है.

आज कल आप इस तरह के स्लोगन सुनने लगे होंगे कि हमने कोरोना को हराया है और फिर से हराएंगे. लेकिन दूसरी लहर में हम हार गए इसका ज़िक्र नहीं सुनेंगे. क्यों हार गए इसका तो ज़िक्र ही नहीं सुनेंगे. तब आप आबादी को कारण बताएंगे, जब दुनिया का सबसे बड़ा अभियान बताना होगा तब आबादी को खूब बताने लगेंगे.

हम हरा चुके हैं. फिर से हरा देंगे. आप कोरोना को नहीं हरा रहे हैं. हर स्तर पर इससे हार रहे हैं. अर्थव्यवस्था का हाल देख लीजिए. अपने लोगों का हाल देख लीजिए. जो कोरोना से संक्रमित नहीं है वह चरमराती अर्थव्यवस्था से हार कर बैठा है.
 
अस्पताल के बाहर और भीतर के दृश्यों को याद करते हुए आप सभी सरकारी बयानों को सामने रखें. अपने आप से पूछें कि यह दृश्य जो आपने देखा, सुना, क्या वाकई हम कोरोना को हरा रहे थे? जब आप अस्पताल और आक्सीजन के लिए मारे मारे फिर रहे थे तब किसी कमांडर को देखा था जो आप कोरोना को हराने का एलान कर रहे हैं. क्या वो मौत रोक पाए, क्या वो इलाज दे पाए. तो अब ऐसा क्या इंतज़ाम कर लिया गया है जिसके दम पर कोरोना को हरा देने और फिर से हरा देने की भाषा बोली जा रही है. यह जानते हुए कि लोग अभी भी अपनों को खो कर शोक से नहीं उबरे हैं, विजय का एलान करने वाले कमांडर किस आधार पर एलान कर रहे हैं. क्या किसी सरकार ने कहा कि ढाई महीनों के दौरान इतने लाख आक्सीजन बेड की कमी हो गई थी, हमारे पास बेड कम थे लेकिन अब स्थायी रूप से आक्सीजन बेड के इस्तमाल कर लिए गए हैं. टेंट और तंबू में आक्सीजन बेड लगाने से भी लोगों को आक्सीजन बेड नहीं मिला था. अगर ऐसा है तो प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बताएं कि किस किस अस्पताल में आक्सीजन बेड और वेंटिलेटर की क्षमता बढ़ा दी गई है. उनकी संख्या कितनी है. उन अस्पतालों में डॉक्टर कितने हैं. क्या आपको पता है, क्या प्रधानमंत्री ने ऐसी कोई बात कही है? क्या प्रधानमंत्री ने यह रिपोर्ट देखी है कि दो घंटे तक डाक्टर ही नहीं था तो एक बच्चे की मौत हो गई.

यह तो वही बात हो गई कि दुश्मन की सेना खुद से लौट गई और उसके जाने के बाद ख़ाली मैदान में हार रही सेना अकेले उछल कूद कर रही है कि हमने दुश्मन को हरा दिया. कोरोना को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी में बीजेपी उसके हरा देने का प्रस्ताव पास कर रही है और प्रधानमंत्री का धन्यवाद कर रही है. क्या दूसरी लहर के लिए बीजेपी ऐसा प्रस्ताव पास करेगी कि प्रधानमंत्री ने कोरोना को हरा दिया. विजय पताका लहराने वाले इन कमांडरों से पूछा जा सकता है कि कोरोना को आपने हराया या उसने खुद अपनी रफ्तार बदल ली?

मिल जुल कर मुकाबला करने की बातें भाषण में अच्छी लगती हैं. जिन लोगों की मौत अस्पताल में आक्सजीन की सप्लाई न होने के कारण हुई है, क्या सरकार ने उनके लिए कुछ सोचा है. दिल्ली से लेकर गोवा तक में ऐसे लोगों के परिजनों को क्या कहा जाए कि उनकी सरकार ने कोरोना को हरा दिया है. क्या सरकार उन्हें फोन कर कह सकती है कि हमने कोरोना को हरा दिया है.

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(Except for the headline, this story has not been edited by NDTV staff and is published from a press release)