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This Article is From Jun 23, 2020

'क्यों पहले से ही तय लग रहे हैं बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे?'

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 23, 2020 09:22 am IST
    • Published On जून 23, 2020 09:19 am IST
    • Last Updated On जून 23, 2020 09:22 am IST

बिहार में कोरोना का क़हर जारी है कोई नहीं जानता कि आने वाले दिनो में , हफ़्ते में या कुछ महीने में इस बीमारी का क्या स्वरूप होगा. लेकिन चुनाव की तैयारी में एनडीए सुनियोजित तरीक़े से लग गया है.  क्योंकि इस बात का भरोसा है कि चुनाव आयोग सही समय पर चुनाव कराएगा. वहीं विपक्ष में भी सरगर्मी तो दिख रही हैं लेकिन सब कुछ फीका फीका है. अगर आप बारीकी से देखेंगे तो चुनाव के नतीजे साफ़ दिख रहे है कि जो जहां हैं वो वहीं रहेगा. मतलब मुख्यमंत्री का ताज नीतीश कुमार के सर पर तो विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव को और इंतज़ार करना होगा. 

लेकिन सवाल है कि कोरोना काल में ऐसा क्या हो गया जिससे परिणाम इतने साफ़ नज़र आ रहे हैं. इसके लिए आपको पिछले तीन दिन की बिहार की राजनीति में जो कुछ घटनाक्रम हुआ उसको बारीकी से देखना होगा. पहला रविवार को विश्व योग दिवस था और इस साल लोगों को लग रहा था कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपना योग करते हुए फ़ोटो या विडियो जारी करेंगे. उनका मानना है कि ये घर में नियमित करने की चीज है. जिसका सार्वजनिक प्रदर्शन करने में वो सहज नही हैं. 

इसलिए रविवार को सुशील मोदी से रविशंकर प्रसाद से लेकर रामविलास पासवान तक ने अपने विडियो जारी किए लेकिन न तो नीतीश और न  उनके नज़दीकी नेताओं जैसे सांसद आरसीपी सिंह , ललन सिंह , मंत्री संजय झा या अशोक चौधरी ने अपना कोई विडियो सार्वजनिक किया. 

इसका संदेश साफ़ था कि नीतीश फ़िलहाल चुनावी वर्ष में भी योग के ऊपर अपने पुराने रुख पर कायम हैं. बीजेपी के नेता मानते हैं कि नीतीश ज़िद्दी हैं और हर दिन वो स्टैंड बदलने से रहे. इस आधार पर आप कह सकते हैं  कि सीटों के समझौते में भी नीतीश अपने मनमुताबिक सीट और उसकी संख्या लेने में फिर कामयाब होंगे. 

लेकिन रविवार को ही नीतीश कुमार के सारे दावों की पोल भी उस समय खुल गई जब कोरोना के टेस्टिंग के मामले में उन्होंने ख़ासकर उनके स्वास्थ्य मंत्री  मंत्री मंगल पांडे ने दावा किया था कि बीस जून तक 10, हज़ार तक टेस्टिंग क्षमता बिहार में हो जाएगी. वैसा नहीं हुआ. 

कोरोना संक्रमण के बाद राष्ट्रीय स्तर पर नीतीश कुमार की तीन कारणों से बड़ी फ़ज़ीहत हुई यह पहला कोटा से छात्रों को लाने में जो आनाकानी की,  इसके बाद जब श्रमिक विशेष ट्रेनें चलनी शुरू हुई तो बिहार आने वाले ट्रेनों का किराया देने से मुकर गए. जिससे
नीतीश कुमार की राष्ट्रीय स्तर पर बनी 'सुशासन बाबू' की छवि धूमिल हुई. 

लेकिन अब ये सब कोई ख़ास मायने इसलिए नहीं रखता क्योंकि उन्होंने अपने जीवन का एक बड़ी महत्वाकांक्षा प्रधानमंत्री बनने का तीन वर्ष पूर्व ही  त्याग दिया था जिसके बाद उन्होंने BJP से हाथ मिलाया . 


लेकिन नीतीश कुमार ने इस बात में हमेशा एक सुखद अनुभूति इसके विकल्प के रूप में कर ली कि 15 बरस बाद आज भी बिहार में एनडीए उन्हीं को चेहरा मानता है. मतलब उनका बिहार एनडीए में कोई विकल्प नहीं. 

बिहार की राजनीति में श्री कृष्णा सिंह के बाद नीतीश कुमार शायद दूसरे मुख्यमंत्री हैं जो अपने तीन टर्म पूरा करने के बाद चौथी बार भी जनता से अपने नाम और चेहरे पर जनादेश मांगने जाएंगे. 

वर्तमान में जो सामाजिक समीकरण हैं उसमें नीतीश आश्वस्त हैं कि फ़िलहाल तो तेजस्वी यादव उनके सामने नहीं टिक रहे. क्योंकि वो ना अब तक महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद का सर्वमान्य  ने चेहरा ही बन पाए हैं और न ही जो भी इधर-उधर बिखरे हुए सहयोगी है उनके साथ उनका तालमेल है. इसके साथ ही सामंजस्य बैठाने की कोई जल्दबाज़ी भी नहीं दिखती है. इन सबका प्रमाण हर दिन मीडिया में परस्पर विरोधी बयानों में दिखता है. 

नीतीश की आगामी चुनाव में एक बड़ा सरदर्द वो दूसरे राज्यों से आये श्रमिकों के बीच असंतोष या रोज़गार कैसे मिले वो भी शनिवार को कम और एक हद तक उसका निराकरण हो गया जब शनिवार को प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने जो अपना गरीब कल्याण रोज़गार अभियान कि शुरुआत की है. उसमें बिहार के 31  ज़िलों को शामिल किया गया है. देश में जिन छह राज्यों को इस कार्यक्रम के लिए चुना गया हैं उसमें सर्वाधिक जिले बिहार से हैं.

ये बात अलग है कि कितने श्रमिकों को इसका लाभ मिलेगा. लेकिन इस योजना के बारे में दावा है कि इसमें काम 'मिशन मोड' में होना है. इस स्कीम के तहत श्रमिकों के खाते में पैसा सीधे उनके बैंक अकाउंट में जायेगा. जिससे एक बात सुनिश्चत है कि श्रमिकों के बीच एनडीए अपनी तमाम विफलताओं जैसे उनके लौटने के समय ट्रेन का किराया देने से इनकार करना या विशेष ट्रेन के आने पर नीतीश कुमार की रोक, की बहुत हद तक भरपायी करने की कोशिश हो गयी है. 

कोरोना काल में नीतीश की विफलताओं का भी विपक्ष भुनाने मे विफ़ल रहा. जहां एक और नीतीश 90 दिन तक सार्वजनिक जगहों पर जाने से परहेज़ किया और घर से सरकार चलाई तो तेजस्वी यादव भी पचास दिन तक बाहर रहे और जब लौटे तो मीडिया से रूबरू हुए लेकिन श्रमिकों के सुध बुध लेने के बजाय बजाय उन्होंने गोपालगंज मार्च करने का ऐलान किया. 

इस बीच आरजेडी समर्थकों की हत्या हुई जिसमें जनता दल यूनाइटेड के एक विधायक अमरेन्द्र पांडेय  पर आरोप लग रहा है. लेकिन यहां भी आरजेडी के नेताओं का कहना है कि उनकी आक्रामकता इसलिए नहीं थी कि पांडेय वहां एक समांतर सरकार चलाते हैं बल्कि यादव जाति के लोगों के हत्या हुई इसलिए वो ज़्यादा उद्वेलित थे. 

अगर उन्होंने गोपालगंज ज़िले में सत्तारूढ़ विधायक के समानांतर सरकार को मुद्दा बनाया होता तो उन्हें सभी वर्गों का समर्थन मिल सकता था लेकिन तेजस्वी और ना उनके सलाहकार फ़िलहाल नीतीश कुमार को घेरने में उतनी गंभीरता दिखते हैं जो नीतीश कुमार के वापसी क्यों होगी उसका एक प्रमाण देता हैं. 

जल जमाव का निरीक्षण करने नीतीश कुमार अपने अधिकारियों के साथ निकले तो उसी दिन तेजस्वी भी पटना के कुछ जल जमाव वाले इलाक़े में थे.  लेकिन दोनो तस्वीर की तुलना करने से लगा कि तेजस्वी को अभी फ़िलहाल इंतज़ार करना होगा.  

हालांकि नीतीश कुमार के शासन के पंद्रह साल में जैसे उन्होंने बाढ़ से निबटने को राहत बांटने तक सीमित कर दिया हैं वैसे ही नगरों का विकास हो या खेल कूद या नये उद्योग धंधे उनके अपने विचार और रवैए से बिहार पिछड़ता ही चला गया.

लेकिन बिहार के लोगों की त्रासदी यह है है कि उनके पास फ़िलहाल कोई राजनीतिक विकल्प नहीं है.  तेजस्वी यादव के माता-पिता का 15 सालों का शासन एक बड़े तबके को अब भी याद है.  ये ही शायद नीतीश कुमार के लिए सबसे बड़ा कवच भी है. 

एनडीए में जहां नीतीश कुमार के सम्बंध अब राम विलास पासवान और उनकी पार्टी के अध्यक्ष और राजनीतिक उत्तराधिकारी चिराग़ पासवान से सहज नहीं है. इसलिए उनके राजनीतिक विकल्प के रूप में जीतन राम मांझी को फिर से घर वापसी की प्रक्रिया शुरू कर दी है.  ये बात अलग है कि पासवान कहीं जाने वाले नहीं क्योंकि उन्हें भी एक राजनीतिक सच मालूम है कि लालू यादव के साथ जो 2009 का लोकसभा चुनाव और 2010 का विधानसभा चुनाव उन्होंने लड़ा था उसमें खाता तक नहीं खोल पाए थे. इसलिए वो भी एनडीए में ही बने रहेंगे है.

लेकिन अब उनका पूरा परिवार लोकसभा में प्रवेश कर चुका है इसलिए हमेशा बयानों से परेशान करते रहेंगे. ये सच भी नीतीश जानते हैं इसलिए वो आप अपनी राजनीतिक बैठकों में राम विलास पासवान का नाम भी नहीं लेते हैं. 

हालांकि नीतीश कुमार की अपनी सरकार में सब कुछ ठीक नही है. उनकी सरकार में एक दफ़्तर नहीं है  जहां बिना घूस दिए कोई काम करा सके. राजधानी पटना में नीतीश कुमार के एक पुराने मित्र पत्रकार को अपने एक सम्बन्धी के तबादले के लिए स्वास्थ्यमंत्री की पैरवी के बावजूद घूस देना पड़ा. 

जब पत्रकारों ने इसे प्रतिष्ठा का प्रश्न तो बनाया तो मंत्री ने झेंप कर पैसे तो लौटवा दिये लेकिन उस दफ़्तर के किसी भी कर्मचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई और आप कह सकते हैं कि नीतीश ने भ्रष्टाचार के सामने घुटने टेक दिए हैं. क्योंकि उसी विभाग के ईमानदार प्रधान सचिव का तबादला मंत्री के ज़िद पर उन्होंने पिछले महीने किया था. 

मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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