बैंकों ने जितना लोन दिया, उस लोन का जितना हिस्सा बहुत देर तक नहीं लौटता है तो वह नॉन परफार्मिंग असेट हो जाता है. जिसे एनपीए कहते हैं. एनपीए को लेकर यूपीए बनाम एनडीए हो रहा है. लेकिन जिसने इन दोनों सरकारों में लोन लिया या नहीं चुकाया, उसका तो नाम ही कहीं नहीं आ रहा है. 2015 में जब आरटीआई कार्यकर्ता सुभाष अग्रवाल ने भारतीय रिज़र्व बैंक से पूछा था कि लोन नहीं देने वालों के नाम बता दीजिए तो रिजर्व बैंक ने इंकार कर दिया था. जबकि सुप्रीम कोर्ट ने नाम बताने के लिए कहा था. क्या यह अजीब नहीं है कि जिन लोगों ने लोन नहीं चुकाया उनका नाम राजनीतिक दल के नेता नहीं लेते हैं. न प्रधानमंत्री लेते हैं न राहुल गांधी लेते हैं न अमित शाह नाम लेते हैं. क्या यह मैच फिक्सिंग नहीं है. असली खिलाड़ी बहस से गायब है और दोनों तरफ के कोच भिड़े हुए हैं. इस साल 6 अप्रैल को लोकसभा में वित्त राज्य मंत्री शिव प्रताप शुक्ला ने बताया कि 31 मार्च 2015 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 2 लाख 67 हज़ार करोड़ था. 30 जून 2017 तक सरकारी बैंकों का एनपीए 6 लाख 89 हज़ार करोड़ हो गया. 21 में से 11 सरकारी बैंक भारतीय रिज़र्व बैंक की स्क्रूटनी में हैं. इनका एनपीए 15 प्रतिशत से ज़्यादा है.
2015 से 2017 के बीच चार लाख करोड़ एनपीए बढ़ गया. कितना हिस्सा यूपीए के समय का है, एनडीए के समय का है, यह नहीं मालूम. न कोई बोल रहा है न कोई पूछ रहा है. मई 2018 में इंडिया स्पेंड ने एक आर्टिकल छापा था कि भारतीय कंपनियों और व्यक्तियों पर 4 लाख करोड़ से कुछ अधिक लोन एनपीए है. इसमें निजी लोन है, कार लोन है, हाउस लोन है, कोरपोरेट लोन भी है. अगर यह पैसा चुका दिया जाए तो इससे आठ राज्यों के किसानों का कर्ज़ा माफ हो सकता है फिर भी 32 प्रतिशत पैसा बच सकता है.
इस साल जून में भारतीय रिज़र्व बैंक ने अपनी वित्तीय स्थिरता रिपोर्ट में कहा कि एनपीए की स्थिति और बिगड़ सकती है. मार्च 2018 में सभी अनुसूचित कर्मशियल बैंकों ने जो लोन दिए थे उसका 11.6 प्रतिशत एन पी ए हो गया था. जो 12.2 प्रतिशत हो सकता है या फिर 13.3 प्रतिशत भी जा सकता है. सार्वजनिक क्षेत्र के बैंको का एन पी ए मार्च 2018 में 15.6 प्रतिशत था जो मार्च 2019 में 17.3 प्रतिशत तक हो सकता है. आर्थिक सर्वे के अनुसार मार्च 2017 में एनपीए 9.7 प्रतिशत था जो सितंबर 2017 में 10.2 प्रतिशत हो गया.
2015 में जो एनपीए ढाई लाख करोड़ था वो 9 लाख करोड़ से ज्यादा कैसे हो गया. क्या इसके लिए सिर्फ यूपीए सरकार ज़िम्मेदार है या मौजूदा सरकार की भी कोई जवाबदेही है. भाजपा सांसद मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्षता वाली आंकलन समिति इसकी जांच कर रही है कि क्या कारण रहे हैं और क्या किया जा सकता है. इसी समिति के सामने पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने 17 पन्नों का जवाब दिया है जो उनके ब्लॉग पर भी है. आप पढ़ सकते हैं. इसमें रघुराम राजन ने एक बात कही है. बुरे लोन का बड़ा हिस्सा 2006-08 से बढ़ना शुरू होता है. उस समय अर्थव्यवस्था में तेज़ी थी. पावर प्रोजेक्ट बजट के भीतर और तय समय से पूरे हो रहे थे. ऐसे समय में बैंक ग़लती करते हैं. ग्रोथ का ज़्यादा अनुमान लगाते हैं और बिना एहतियात के लोन बांटना शुरू कर देते हैं. बैंकों ने प्रोजेक्ट रिपोर्ट के आधार पर ही लोन दे दिया. अपनी तरफ से छानबीन नहीं की. एक प्रमोटर ने बताया कि उसे बैंक ही दबाव दे रहे थे कि जितना पैसा चाहिए ले लो. बिना सोचे समझे पैसे लुटाने का यह दौर दुनिया के कई देशों में चला था. क्या लोन देने में भ्रष्टाचार हुआ या नहीं हुआ इस बारे में रघुराम राजन ने ठोस रूप से नहीं कहा. उन्होंने ज़रूर कहा कि निंसदेह कुछ भ्रष्टाचार हुआ था. लेकिन आप बैंकर की अक्षमता और भ्रष्टाचार में इतनी आसानी से फर्क नही कर सकते हैं. साफ है कि बैंक अतिविश्वास के शिकार थे. बहुतों ने अपना विश्लेषण नहीं किया. यह सिस्टम की कमज़ोरी थी जिसके कारण बाहर से दखल देने की संभावना बढ़ जाती है.
राजन अपने जवाब में बैंकों की लापरवाही को ज़िम्मेदार बताते हैं. वे कहते भी हैं कि सीईओ की संपत्ति की जांच होनी चाहिए. उन्होंने कुछ राशि के फ्राड किए जाने की बात कही है. फिर वो संसद की आंकलन समिति को लिखते हैं कि
जब मैं गवर्नर था तब रिज़र्व बैंक ने बैंक फ्राड पर नज़र रखने के लिए एक सेल भी बनाया था ताकि हम फ्रॉड को पहले पकड़ कर जांच एजेंसियों को दे सकें. मैंने कुछ हाईप्रोफाइल फ्रॉड केस की सूची प्रधानमंत्री कार्यालय को भी भेजी थी और कहा था कि हम एक दो लोगों को पकड़ने के लिए कदम उठाने होंगे. क्या प्रगति हुई, मुझे नहीं पता. इस मामले को अर्जेंट रूप में देखा जाना चाहिए. राजन ने अपने जवाब में नहीं लिखा है कि पीएमओ को कब पत्र भेजा था और उस लिस्ट में कौन कौन लोग थे. दि वायर में स्वाति चतुर्वेदी ने अप्रैल 2015 के हिन्दुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट का हवाला देते हुए राजन के इस बात को आगे बढ़ाया है.
अखबार के अनुसार राजन ने 17,500 करोड़ के फ्रॉड के बारे में सूचना दी थी. इसमें विनसम डायमंड एंड ज्वेलरी, ज़ूम डेवलपर्स, तिवारी ग्रुप, सूर्य विनायक इडस्ट्री सहित कुछ कंपनियों के नाम दिए थे. अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा था. क्या रिज़र्व बैंक को अब यह नहीं बताना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय को 17,500 करोड़ के फ्रॉड की जो लिस्ट दी गई उसमें किस किस के नाम हैं. किस-किस के खिलाफ क्या कार्रवाई हुई है. क्या प्रधानमंत्री कार्यालय को नहीं बताना चाहिए कि जब लिस्ट सौंपी गई तो क्या कार्रवाई हुई.
अभी यह जवाब नहीं आया है कि राजन ने पीएमओ को जो सूची थी उस पर क्या एक्शन हुआ. स्वाति चतुर्वेदी ने वायर में लिखा है कि इस सूची की जानकारी वित्त मंत्रालय को भी थी. तो वित्त मंत्रालय ने क्या किया. इस पर कोई जवाब नहीं आया है. इस बीच 12 सितंबर को करीब 9000 करोड़ के लोन डिफाल्ट के मामले में फरार विजय माल्या ने लंदन की अदालत में कहा है कि भारत छोड़ने से पहले मामले को सेटल करने के लिए वित्त मंत्री से मिला था. उस समय वित्त मंत्री अरुण जेटली थे. लंदन की अदालत में मुंबई के आर्थर रोड जेल के बैरक नंबर 12 का वीडियो देखा गया क्योंकि माल्या को इंडिया का जेल पसंद नहीं आया है. वहां इंसान नहीं रह सकता है. जज को तय करना है कि मालया को मुकदमे का सामना करने के लिए भारत भेजा जाए या नहीं. कोर्ट से बाहर आकर कहा कि उन्होंने भारत छोड़ने से पहले वित्त मंत्री से मुलाकात की थी. विजय माल्या 2 मार्च 2016 को भारत छोड़ दिया था.
इसके तुरंत बाद वित्त मंत्री अरुण जेटली का बयान आया. उन्होंने कहा कि माल्या के बयान में कोई सच्चाई नहीं है. माल्या ने ये नहीं कहा कि जेटली ने उनसे क्या कहा. जेटली ने बता दिया कि उन्होंने माल्या को क्या कहा. बीजेपी दावा करती है कि माल्या ने 2011 में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से मुलाकात की थी. की होगी. यहां सवाल है कि क्या माल्या ने भागने के दो दिन पहले किसी से मुलाकात की थी. यह सवाल तो भागने के बाद से उठ रहा है तब वित्त मंत्री ने जवाब क्यों नहीं दिया. कांग्रेस कहती है कि माल्या आखिरी बार बीजेपी के समर्थन से राज्य सभा सांसद बने थे. वैसे इसके पहले कांग्रेस ने माल्या को राज्य सभा के लिए सपोर्ट किया था.
यही नहीं 25 अगस्त को लंदन में भारतीय पत्रकारों से बात करते हुए राहुल गांधी ने कहा था कि उन्हें पता है कि माल्या ने देश छोड़ने से पहले बीजेपी के शीर्ष नेताओं से मुलाकात की थी. राहुल ने कहा था कि वे नाम नहीं लेंगे. राहुल से पहले कांग्रेस ने भी माल्या के भागने के बाद के अपने पहले प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था कि माल्या ने भागने से पहले किसी वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री से मुलाकात की है. राहुल गांधी का यह बयान उस दिन एनडीटीवी पर चला था. न्यू इंडियन एक्सप्रेस, एशियन एज, हिन्दू, आउटलुक, फर्स्टपोस्ट पर छपा था. और भी कई जगह पर छपा होगा या दिखाया गया होगा. तब बीजेपी के चोटी के नेताओं में से उस नेता ने क्यों नहीं कहा था कि माल्या ने मुझसे मुलाकात करने का प्रयास किया था मगर मैंने भाव नहीं दिया. क्या अच्छा नहीं होता कि अरुण जेटली तभी ये बयान जारी कर देते जब राहुल गांधी लंदन में बोले या उसी समय बोल देते जब 2016 में कांग्रेस ने यह आरोप लगाया था.
वित्त मंत्री तुरंत सीबीआई को बता सकते थे क्योंकि उसके पहले तो इस मामले में केस दर्ज हो चुका था. एक सवाल और है. यह बात सांसद बता सकते हैं. राज्य सभा के सभापति और उपसभापति बता सकते हैं. क्या सांसद के तौर पर संसद के गलियारे में चलते फिरते किसी मंत्री से मिलना विशेषाधिकार का गलत इस्तमाल होता है. क्या गलियारे में जब मंत्री गुज़रते हैं तो सांसद लोग किनारे हो जाते हैं, बात नहीं करते हैं. अगर कोई मिल ले, बात कर ले तो क्या उस नेता के खिलाफ विशेषाधिकार के हनन का मामला दर्ज होता है. 10 मार्च 2016 की एक खबर है टाइम्स आफ इंडिआ की. इस अखबार ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने माल्या के खिलाफ मामला दर्ज करने में देरी कर दी. 28 फरवरी 2016 को स्टेट बैंक ऑफ इंडिया और कुछ और बैंकों के अधिकारियों ने वकील दुष्यंत दवे के लॉ फर्म से मुलाकात की. वकील ने सलाह दी कि तुरंत मामला दर्ज करें. 1 मार्च को सोमवार रहा होगा. 2 मार्च को माल्या भाग गया. 5 मार्च को बैंको ने मामला दर्ज किया. जाने के बाद.
This Article is From Sep 13, 2018
बैंकों का एनपीए बढ़ने के लिए कौन है ज़िम्मेदार?
Ravish Kumar
- ब्लॉग,
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Updated:सितंबर 13, 2018 00:18 am IST
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Published On सितंबर 13, 2018 00:13 am IST
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Last Updated On सितंबर 13, 2018 00:18 am IST
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