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This Article is From Apr 28, 2016

अगस्ता डील में गलती किसकी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 02, 2016 12:32 pm IST
    • Published On अप्रैल 28, 2016 21:37 pm IST
    • Last Updated On मई 02, 2016 12:32 pm IST
सोनिया गांधी ने ठीक ही कहा कि दो साल से मोदी सरकार है, उसने अगस्ता वेस्टलैंड की जांच के बारे में क्या किया। बीजेपी के नेता इसे ठीक से सुन लेते तो पलटकर पूछते कि उनकी सरकार के रक्षा मंत्री ए के एंटनी ने फरवरी 2012 में जांच शुरू की, 2014 तक क्या गुल खिला पाए। इस पकड़ा-पकड़ी में आप एक दर्शक के रूप में समझ पाते कि जिन घोटालों पर खूब राजनीति होती है, उनमें दो-चार जेल क्यों नहीं जाते हैं। लेकिन इसे उठाकर बीजेपी पर जवाबदेही नहीं आ गई है कि वो इसे अंजाम तक पहुंचायेगी और जेल भी भेजेगी, चाहे कोई हो। इस मामले में एक रक्षा संवाददाता हैं, मनु पबी वो लगातार ख़बरें छापते हैं। उनकी ख़बरों पर डिबेट होती है, मगर उनका नाम ही ग़ायब हो जाता है। अक्सर अख़बारों की रिपोर्ट पर डिबेट करने वाले हम एंकरों का नाम हो जाता है।

24 फरवरी 2012 को इंडियन एक्सप्रेस के संवाददाता मनु पबी ख़बर छापते हैं कि इटली के अटार्नी जनरल ने एक जांच शुरू की। इटनी की कंपनी फिनमैकानिका ने भारत के साथ 3500 करोड़ की जो डील साइन की है उसमें दलाली के आरोप लग रहे हैं। आप जानते हैं कि मेन कंपनी फिनमैकानिका है और अगस्ता वेस्टलैंड सहायक कंपनी है। फिनमैकानिका इटली की सार्वजनिक उपक्रम टाइप की कंपनी है। फरवरी 2013 में इटालियन पुलिस ने फिनमैकानिका के चेयरमैन ओरसी को गिरफ्तार किया। चार्ज लगाया गया कि ओरसी ने दलालों को 360 करोड़ रुपये दिये हैं ताकि वे भारत के साथ हेलीकॉप्टर की बिक्री को सुनिश्चित करवा सकें। फरवरी 2012 में इटली में जांच की ख़बर आते ही तब के रक्षा मंत्री जांच के आदेश दे देते हैं। इटली में तो 2011 के साल से ही इस तरह की चर्चा होने लगी थी। 'हिन्दू' अख़बार के अनुसार 17 फरवरी 2013 को छपी कि भारत ने इटली से इस मामले से जुड़े दस्तावेज़ मांगे थे, लेकिन इटली की अदालत ने नई दिल्ली की मांग को खारिज कर दिया था। बाद में 2013 में इटली की अदालत ने 90 हज़ार से अधिक पन्नों के दस्तावेज़ भारतीय एजेंसियों को सौंप दिये। 2013 से 2016 के बीच कितने पन्नों का अनुवाद हुआ मालूम नहीं। मैं यह भी नहीं बता सकता कि हज़ारों पन्नों के अनुवाद में कितने लोग लगाये गए हैं और यह काम युद्ध स्तर पर हो रहा है या धीमी गति के समाचार की तरह चल रहा है। 2013 में सीबीआई की जांच भारत में शुरू हो जाती है।

फरवरी 2013 में राज्य सभा में यूपीए सरकार ने जे पी सी बनाने का प्रस्ताव भी पास कर लिया, मगर जे पी सी बनी नहीं, क्योंकि तमाम विरोधी दलों को एतराज़ था। जे डी यू का कहना था कि विपक्ष का नेता इस संयुक्त संसदीय समिति का अध्यक्ष होगा तो बीजेपी का कहना था कि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच होनी चाहिए। क्या अभी सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच हो रही है? हमें जानकारी नहीं है। कुल मिलाकर जे पी सी बनी नहीं। तब रक्षा मंत्री के रूप में ए के एंटनी ने बयान दिया था जो यहां जानना दिलचस्प होगा। विपक्ष का आरोप है कि हम कुछ नहीं कर रहे हैं लेकिन इटली की न्यायपालिका है, जो इटली की सरकार से स्वतंत्र है, वो पूरा केस देख रही है। हमारी जो जांच है, वो शुरूआती दौर में है, उनकी जांच है वो अंतिम अवस्था में हैं। इटली में चल रही जांच का जो भी परिणाम होगा वो आ जाएगा।

इस बीच सरकारों के दौर बदल गए मगर हमारी जांच एजेंसी को लगता है कि शुरुआती दौर से मोह हो गया है। इटली की हाईकोर्ट का फ़ैसला भी आ गया। बतौर ए के एंटनी इटली की न्यायपालिका तो वहां की सरकार से स्वतंत्र है तो फिर उस स्वतंत्र न्यापालिका के फ़ैसले से एतराज़ तो नहीं होना चाहिए। उन्हीं का बयान है। बीजेपी की सरकार आ गई है। बीजेपी के मंत्री भी उसी इटली की न्यायपालिका की कसम खा रहे हैं जिसकी कभी एंटनी जी खा रहे थे। अक्तूबर 2014 में इटली की एक निचली अदालत ने वायु सेना के पूर्व प्रमुख एस पी त्यागी को सभी आरोपों से बरी कर दिया था। इंडियन एक्सप्रेस ने लिखा है कि फिनमैकानिका के चेयरमैन ओरसी और प्रमुख ब्रनूसो स्पेगनोलिनी को अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार के आरोपों से मुक्त कर दिया गया, लेकिन फर्ज़ी बिल बनाने का आरोप लगाते हुए दो साल की सज़ा सुना दी।

मिलान के हाई कोर्ट ने इसी आदेश को पलटते हुए फैसला दिया है कि ओरसी और स्पेगलोनि ने भारतीय अधिकारियों को कांट्रैक्ट हासिल करने के लिए रिश्वत दी थी। क्या इटली की अदालत ने पूर्व वायुसेना प्रमुख एस के त्यागी के बारे में कोई टिप्पणी की है। 9 अप्रैल के 'इकनोमिक टाइम्स' की रिपोर्ट के अनुसार मिलान हाईकोर्ट में यह बात साबित हुई है कि 3565 करोड़ का अगस्ता वेस्टलैंड का कांट्रैक्ट था, जो 2010 में साइन हुआ था, उसमें भारतीय अधिकारियों को रिश्वत दी गई है। इसके अलावा फिनमैकानिका के दो बड़े अधिकारियों को अंतर्राष्ट्रीय भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग का दोषी पाया है। चार साल की सज़ा हुई है और दोनों पर जुर्माना भी लगाया गया है।

इस बीच अगस्ता वेस्टलैंड के मामले पर 2012 के साल से रिपोर्टिंग करने वाले मनु पबी 'इंडियन एक्सप्रेस' से 'इकोनोमिक टाइम्स' चले जाते हैं। मनु पबी 9 अप्रैल को 'इकोनोमिक टाइम्स' में ख़बर छापते हैं। हाईकोर्ट के फैसले में लिखा है कि इस डील के बदले 10 मिलियन यूरो त्यागी ब्रदर्स को दिया गया। इसका कुछ हिस्सा पूर्व वायुसेना प्रमुख एयर मार्शल एसपी त्यागी को भी मिला है। इस बात के पर्याप्त संकेत मिलते हैं। दो बिचौलिये हेस्के और गेरोसा की बातचीत की रिकार्डिंग से संकेत मिलता है कि त्यागी की भूमिका को छुपाने की भी कोशिश हुई। कौन त्यागी को बचाने का प्रयास कर रहा था। लेकिन क्या एस पी त्यागी ने हेलिकाप्टर की सीलिंग में बदलाव कर अगस्ता वेस्टलैंड को लाभ पहुंचाने का प्रयास किया। मैं जितना समझ सका हूं उसके आधार पर इटली की अदालत ने यही कहा है कि आरोपी पक्ष ने शुरू में एक महत्वपूर्ण आरोप लगाया था कि त्यागी ने फ्लाइट सीलिंग की शर्तों को कमज़ोर किया ताकि अगस्ता को लाभ मिले। अदालत मानती है कि इसके बारे में कोई सबूत नहीं है।

एस पी त्यागी पर यह आरोप भारत की मीडिया में भी लग रहा है। मगर इटली की अदालत ने साफ कहा है कि उन्होंने गलत किया, इसके सबूत नहीं मिलते, मगर इसके संकेत मिलते हैं कि पैसा मिला होगा। एक बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि सरकार की एजेंसियों के पास 225 पन्नों के फैसले की कॉपी का अनुवाद नहीं है। इटालियन में लिखे पन्ने के कुछ हिस्से का अनुवाद किसी ने किया है तो कुछ लोग गूगल ट्रांसलेशन की मदद ले रहे हैं। रक्षा मंत्री ने अनुवाद कराने की बात कही है। ज़ाहिर है इस मामले में जो भी कहा जा रहा है फैसले की कॉपी को बिना पूरा पढ़े ही कहा जा रहा है। हो सकता है कि कुछ भी ग़लत नहीं हो मगर हो सकता है कि जिसका नाम लिया जा रहा है उसकी छवि पर हमेशा को लिए धब्बा लग जाए। फरवरी 2013 में जब इंडियन एक्सप्रेस में रहते हुए मनु पबी ने अगस्ता की खबर लिखी जिसमें पूर्व एयर मार्शल एस पी त्यागी का नाम आया था। उस समय जब हमने उनसे बात की थी तो उन्होंने कहा था, '2007 में मैं रिटायर हुआ और यह कांट्रेक्ट साइन हुआ है 2010 में, इसलिए मुझे क्यों कोई रिश्वत देगा।' तब मैंने पूछा कि टेंडर फाइनल तो आपके वायु सेना प्रमुख रहते हुए था। तब त्यागी जी ने कहा कि 2006 में टेंडर जारी हुआ था तब मैं ही वायु सेना प्रमुख था, लेकिन इसकी प्रक्रिया शुरू हुई सन 2000 में। तब रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस सियाचिन जाया करते थे और ऐसे एक हेलिकाप्टर की ज़रूरत थी जो 18000 फीट के नीचे चला जाए जिसमें वी आई पी जा सकें। उस वक्त मैंने साफ-साफ पूछा था कि क्या आप पर किसी ने राजनीतिक दबाव डाला था। त्यागी ने साफ-साफ कहा था कि कोई दबाव नहीं डाला गया था। बल्कि यह कहा कि सरकार कोई प्रेशर नहीं डालती है। वो अपने जवाब में कहते रहे कि बदलाव रक्षा मंत्रालय से होता है। एयर फोर्स मुख्यालय सुझाव दे सकता है। बदल नहीं सकता।

2013 में त्यागी जी साफ-साफ कह रहे थे कि सरकार बिल्कुल सीधा और साफ काम कर रही थी। अब क्या कहना है सरकार के बारे में मालूम नहीं मगर पहले की तरह अब भी वे यही कह रहे हैं कि जो भी बदलाव हुआ वो रक्षा मंत्रालय के स्तर पर हुआ। इटली की कोर्ट ने भी अपने फैसले में कहा है कि इसके प्रमाण नहीं मिलते कि त्यागी ने फ्लाइट सीलिंग की शर्तों को बदलकर अगस्ता वेस्टलैंड को लाभ पहुंचाया। जब इटली की निचली अदालत ने उन्हें आरोप मुक्त किया था तब तब हमारे रक्षा संपादक नितिन गोखले से बात करते हुए वायुसेना के पूर्व प्रमुख एस के त्यागी ने कहा था कि डेढ़ साल से तनाव में था। मेरी जीत हुई है। लेकिन जब इसी महीने मिलान के हाईकोर्ट ने निचली अदालत का फैसला पलट कर यह कह दिया कि त्यागी को रिश्वत दी गई है तो हमारे सहयोगी राजीव रंजन उनके पास गए। एस के त्यागी ने कहा कि फैसले की कॉपी नहीं मिली है, इसलिए कुछ कहना ठीक नहीं रहेगा।

एयर चीफ मार्शल को रिश्वत की रकम दी गई है, यह आरोप उतनी ही शर्मनाक है जितनी भारतीय नेताओं की रिश्वत दिये जाने की बात। वायु सेना के मनोबल और छवि के लिए ज़रूरी है कि एस पी त्यागी के मामले में जांच का नतीजा जल्दी आए। खबर है कि प्रत्यर्पण निदेशालय उनसे पूछताछ करने वाला है। आप सोच रहे होंगे कि इस मामले को इटली के सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी जाएगी। हो सकता है दी जाए, मगर वहां का सुप्रीम कोर्ट केस के तथ्यों और सबूतों पर दोबारा से विचार नहीं करता है। सुप्रीम कोर्ट सिर्फ कानूनी समीक्षा करेगा।

2012 में जब यह मामला उठा था उसके दूसरे दिन ही रक्षा मंत्रालय ने इटली के दूतावास से तथ्यों का पता लगाने का आदेश दिया था। 12 फरवरी 2013 को रक्षा मंत्रालय यह मामला सीबीआई को सौंप देता है। जनवरी 2014 में भारत ने डील कैंसिल कर दी। अगस्ता के तीन हेलिकाप्टर ज़ब्त कर लिये गए। भारत ने गारंटी के रूप में अगस्ता को जो पैसे दिये थे उसे जब्त कर लिया। भारत मे भी सीबीआई और प्रत्यर्पण निदेशालय जांच कर रहा है। सीबीआई ने कहा है कि भारत की तरफ से जांच का काम पूरा हो चुका है। सभी गवाहों के बयान रिकार्ड हो चुके हैं। आठ देशों में लेटर आफ रोगेटरी भेजा गया है। यह पत्र दूसरे देशों की अदालतों को सहयोग के लिए लिखा जाता है। अभी तक इटली, ब्रिटिश वर्जिन आइलैंड, यूके, ट्यूनिशिया से जवाब आ गया है। अभी हम वहां से आई जानकारी को पढ़ रहे हैं देख रहे हैं। कथित बिचौलिया माइकल के खिलाफ रेड कार्नर नोटिस जारी कर दिया है।

सीबीआई भी कह रही है कि अनौपचारिक रूप से फैसले की कॉपी मिली है उसका अनुवाद करा रहे हैं। रक्षा मंत्रालय भी अनुवाद करा रहा है। रक्षा मंत्रालय ने कहा है कि सात से आठ दिन लग जायेंगे अनुवाद कराने में। सोचिये 225 पेज के अनुवाद में हफ्ता लगेगा तो 90 हज़ार पन्नों के अनुवाद में कितना वक्त लगा होगा, अगर अनुवाद हो गया होगा तो। जिसके बारे में मुझे जानकारी नहीं है। सीबीआई ने बीच में त्यागी ब्रदर्स से पूछताछ की है। सभी का 10-12 साल का बैंक रिकार्ड देख लिया है।

एयर मार्शल एस पी त्यागी से पहले भी पूछताछ हो चुकी है और प्रत्यर्पण निदेशालय ने कहा है कि फिर पूछताछ होगी। कहा जाता है कि सीबीआई को भी पुख्ता सबूत नहीं मिले हैं कि इनके पास पैसा आया है या नहीं। एसपी त्यागी के भाई राजीव त्यागी कहना है कि अगस्ता वेस्टलैंड के टेंडर से लेकर डील होने तक पांच एयर चीफ हुए, चार रक्षा सचिव आए और चले गए। दो राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार आए और चले गए। दो रक्षा मंत्री भी आए और चले गए। प्रणब मुखर्जी और ए के एंटनी। इतने लोगों के क्या सिर्फ एस पी त्यागी का ही नाम क्यों आया। राजीव त्यागी पूछ रहे हैं कि क्या तमाम प्रक्रिया में एयर मार्शल एस पी त्यागी ही थे। यही नहीं डील के दौरान दो प्रधानमंत्री हो गए। अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह। राजीव त्यागी का कहना है कि वाजपेयी काल में ही हेलिकाप्टर के उड़ान की ऊंचाई 6000 मीटर से घटाकर 4500 किया गया। अगस्ता से पहले एक और हेलिकाप्टर का चयन हुआ था ई सी 225 यह केवल 6000 मीटर तक ही उड़ सकता था। उस समय सोचा गया कि ऐसा हेलिकाप्टर एक ही कंपनी बनाती है, लिहाज़ा सवाल न खड़ा हो जाए कि एक ही कंपनी को जानबूझ कर टेंडर में बुलाया गया, इसलिए पीएमओ ने सुझाव दिया कि कम ऊंचाई पर उड़ने वाले हेलिकाप्टर पर विचार किया जा सकता है। रक्षा मंत्रालय की साइट पर अगस्ता वेस्टलैंड से संबंधित जो जानकारियां दी गई हैं उसी से बता रहा हूं। एंटनी के समय से ही वहां है और पर्रिकर के समय में यही जानकारी है। रक्षा मंत्रालय के अनुसार 19 नवंबर 2003 के दिन प्रधान सचिव ने प्रधानमंत्री के साथ बैठक की। वहीं फैसला हुआ कि उड़ान की ऊंचाई 4500 कर दी जाए। ऐसा इसलिए किया गया कि इन बदलावों से कई कंपनियों को टेंडर में भाग लेने का मौका मिलता। इसके बाद ही अगस्ता वेस्टलैंड डील की प्रक्रिया में प्रवेश करता है। उसके साथ तीन और कंपनियां होती हैं। दो कंपनियां प्रक्रिया की शुरूआत में ही बाहर हो जाती हैं और दो बच जाती हैं- अगस्ता और सीक्रोस्की।

इस डील में एक इंटेग्रिटी क्लाज़ था जिसके अनुसार कोई भी रिश्वत का मामला सामने आएगा तो न केवल सौदा रद्द होगा, बल्कि जो पैसा दिया जा चुका होगा उसे भी ज़ब्त कर लिया जाएगा। सीक्रोस्की कंपनी ने इस क्लाज़ पर साइन करने से मना कर दिया और वो इस प्रक्रिया से बाहर हो गई। अगस्ता वेस्टलैंड के साथ करार हुआ। दलाली की बात सामने आते ही भारत सरकार ने सौदा रद्द कर दिया और पैसा भी ज़ब्त कर लिया। 1567 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया था, लेकिन इससे ज्यादा की रकम कंपनी से भारत ने वसूल ली। मगर इन बातों से यह नहीं पता चलता कि किसने रिश्वत ली। इटली की अदालत ने रिश्वत देने की बात साबित की है। भारत सरकार ने भी रिश्वत दिये जाने की बात मानी है तभी तो सौदा रद्द किया गया और पैसा वसूला गया। सवाल है रिश्वत किसने ली। यह बात न वहां से पता चलती है न यहां से। क़त्ल हुआ है ये साबित हो गया है मगर क़त्ल किसका हुआ है यही पता नहीं चल रहा है। आदेश का रिकार्ड देखेंगे तो किसी भी सरकार का रिकार्ड ख़राब नहीं है। नतीजा पूछेंगे तो रिकार्ड ही नहीं मिलेगा।

जब से यह ख़बर 'इकोनोमिक टाइम्स' में छपी है तब से भारतीय जनता पार्टी आक्रामक है। बीजेपी का कहना है कि इटली की अदालत का फैसला है। मीडिया में यह ख़बर पहले छपी है इसलिए उस पर बदले की कार्रवाई का आरोप लगाना सही नहीं होगा। ये और बात है कि मोदी सरकार से पूछा जा रहा है कि भारत में हो रही जांच का अंजाम कब देखने को मिलेगा। 'इकोनोमिक टाइम्स' ने लिखा है कि फैसले में सिन्योरा गांधी का नाम चार बार आया है। बिचौलिया क्रिश्चियन मिशेल का एक पत्र जांचकर्ताओं को मिला है जिससे पता चलता है कि इस डील के पीछे सिन्योरा गांधी मुख्य शक्ति रही हैं। इटालियन में सिन्योरा का मतलब श्रीमति होता है। एक और बिचौलिये ने अदालत में कांग्रेस नेता सोनिया गांधी की तस्वीर की पहचान की है। कई सारे बिचौलियों से ज़ब्त नोट में कांग्रेस के कुछ सदस्यों की तरफ इशारा हो रहा है। नौकरशाहों और भारतीय वायु सेना के अधिकारों की भूमिका के भी संकेत मिलते हैं। सोनिया गांधी ने कहा है कि कोई सबूत नहीं है। वे किसी से नहीं डरतीं। मोदी सरकार दो साल से क्या कर रही थी।

बुधवार को 'हिन्दू' अख़बार की सुहासिनी हैदर और जोसी जोसेफ ने बिचौलिया क्रिश्चियन मिशेल का इंटरव्यू किया है। यह एक बार गिरफ्तार हो चुका है। इसने हिन्दू अखबार को बताया है कि मैं सोनिया गांधी से कभी नहीं मिला हूं, न किसी होटल या किसी पार्टी में। भाग्य की बात है कि नहीं मिला हूं। मिला होता तो कहते कि मैंने कुछ चर्चा की है। न मैंने फोन किया है, न ईमेल किया है, न लेटर लिखा है, न मैसेज किया है। उनका किसी मेमो में नाम भी नहीं है।

यह सवाल वाजिब भी है कि क्या कांग्रेस के शीर्ष नेताओं के बिना या यूपीए सरकार के शीर्ष मंत्रियों के बिना यह डील हो सकती थी। रिश्वत दी गई है तो किसी के इशारे पर ही दी गई होगी, ली गई होगी। यह बात तभी सामने आएगी जब इसकी पुख्ता जांच होगी। वो भी समय से। मनमोहन सिंह, अहमद पटेल और ऑस्कर फर्नांडिस के अलावा यूपीए के वक्त एनएसए रहे एमके नारायणन का भी नाम है। सोनिया गांधी से लेकर अहमद पटेल ने तमाम आरोपों का खंडन किया है। बीजेपी ने कहा है कि कम से कम सोनिया गांधी को इटली की अदालत के फ़ैसले का सम्मान तो करना ही चाहिए। कांग्रेस ने भी 10 सवाल पूछे हैं। इस मामले में एक और पहलू है। 'हिन्दू' अख़बार से इसी जेम्स क्रिश्चियन मिशेल ने बोला कि मुझे तीन अलग-अलग सूत्रों ने बताया कि न्यूयार्क में भारत के प्रधानमंत्री और इटली के प्रधानमंत्री के बीच चलते-चलते एक मुलाकात हुई है। इटालियन मरीन केस मामले में भारत के प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि वे इटली की मदद कर सकते हैं अगर हेलिकाप्टर सौदे में गांधी परिवार को फंसाने का कोई सबूत मिल जाए तो।

'हिन्दू' अखबार ने पूछा कि क्या सबूत है कि मीटिंग हुई है। मिशेल ने कहा कि न सिर्फ मुलाकात हुई है, बल्कि इतनी देर चल मुलाकात चली कि दोनों को अपनी दूसरी बैठकों के समय में बदलाव करना पड़ा था। यह सब जब हो रहा था तो राजदूतों ने बताया था कि दोनों की मुलाकात चल रही है। मिशेल ने 'हिन्दू' अखबार से पूछा कि क्या उन्होंने लिखित रूप में दिया है कि मुलाकात नहीं। इस मुलाकात के बारे में 2 फरवरी 2016 कोलकाता से निकलने वाले अखबार 'दि टेलिग्राफ' में इस बारे में खबर छपी थी। मिशेल ने अंतर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल कोर्ट को लिखा था कि दोनों प्रधानमंत्रियों के बीच मुलाकात हुई है और भारत के प्रधानमंत्री ने पेशकश की है कि अगर गांधी परिवार के बारे में कुछ सबूत मिल जाए तो मरीन विवाद को सुलझा देंगे। अंतर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल कोर्ट में इटली और भारत के बीच भारत में गिरफ्तार दो नौसैनिकों का मामला चल रहा है। जिस वक्त खबर छपी थी कि ये इतनी बकवास बात है कि कमेंट करना भी बेकार है। इस बार भी जब यह बात उठी तो विदेश मंत्रालय ने अपनी यही बात दोहराई। सदन में वित्त मंत्री ने भी कहा कि ऐसी कोई मुलाकात नहीं हुई है। राजनीतिक आरोप तो लग रहे हैं। बीजेपी ने कांग्रेस को घेर तो लिया है लेकिन क्या बात राजनीति से भी आगे बढ़ेगी। इस मामले में जांच का कोई अधिकृत स्टेटस रिपोर्ट तो है नहीं और न ऐसी कोई रिपोर्ट होती है। लोग चाहते हैं कि जो भी दोषी है वो जल्दी पकड़ा जाए। कहीं ऐसा न हो कि इशरत के बाद बिल्डर, बिल्डरों की ठगी के बाद अगस्ता, अगस्ता के बाद कुछ और मामला आ जाए और यह सब एक नूरा कुश्ती बनकर रह जाए।

अब एक मामला है अगस्ता वेस्टलैंड को ब्लैक लिस्ट करने का। जैसे ही ए के एंटनी ने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान ही ब्लैक लिस्ट कर दिया गया था, रक्षा मंत्री मनोहन पर्रिकर ने चुनौती दे डाली कि कि अगर किया है तो दस्तावेज़ दिखाएं। पर्रिकर मीडिया के सामने आए और बता दिया कि ए के एंटनी के समय हेलिकाप्टर कंपनी को बैन नहीं किया गया था। पर्रिकर के स्पष्टीकरण के तुरंत बाद ही ए के एंटनी ब्लैक लिस्ट करने से नीचे उतर आए और प्रक्रिया शुरू करने की बात करने लगे। अब देखिये। प्रक्रिया शुरू करने और बैन करने में अंतर तो है। ए के एंटनी अगर तेज़ी से से जांच करते तो ये नौबत नहीं आती। तब कांग्रेस भी यह पूछने लगी कि क्यों अगस्ता वेस्टलैंड/ फ़िनमैकेनिका को आपत्तियों के बावजूद मेक इन इंडिया का हिस्सा बनाया गया? क्यों मोदी सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड और टाटा के ज्वाइंट वेंचर को हेलीकॉप्टर बनाने की मंज़ूरी दी? क्यों अगस्ता वेस्टलैंड को 100 नेवल यूटिलिटी हेलीकॉप्टर के लिए अप्रैल 2015 में बोली लगाने दी गई?

बीजेपी को इटली की अदालत के फैसले से नई ऊर्जा मिली है कि इसके ज़रिये सोनिया गांधी को भ्रष्टाचार के मामले में सीधे सीधे घेरा जा सकता है। सोनिया गांधी भले सबूत मांग रही हों लेकिन राजनीति सबूत का इंतज़ार नहीं करती। सही है कि फैसले की पूरी कॉपी अभी तक नहीं पढ़ी गई है। वहां भारत का पक्ष नहीं रखा गया लेकिन यह भी एक तथ्य है कि अगस्ता वेस्टलैंड मामले में रिश्वत दी गई है। देने की बात साबित हो चुकी है। कांग्रेस इस सवाल को छोड़ अन्य सवालों के ज़रिये बीजेपी को घेरने का प्रयास कर रही है। सवाल तो बनते हैं मगर रिश्वत वाले सवाल के जवाब के रूप में नहीं। कांग्रेस का कहना है कि छत्तीसगढ़ में भी अगस्ता से हेलिकाप्टर लिया गया है। सीएजी की रिपोर्ट ने कहा है कि 2007 में 65.70 लाख अमरीकी डॉलर की इस खरीद के लिए दस्तावेज़ इस ढंग से तैयार किये गए ताकि अगस्ता वेस्टलैंड के अलावा कोई और कंपनी खरीद प्रक्रिया में शामिल न हो पाए। यह बात कांग्रेस अभी क्यों कह रही है। लगातार क्यों नहीं उठाई।

'डीएनए' अखबार के दीवाकर आनंद ने लिखा है कि 10 फरवरी 2014 को रक्षा मंत्रालय ने अगस्ता वेस्टलैंड और फिनमैकानिका को ब्लैकलिस्ट करनी की प्रक्रिया शुरू कर दी। इनके साथ हुए सारे करार पर रोक लगा दी थी। 28 अगस्त 2014 को एक नई नीति का आदेश आता है कि इस तरह की कंपनी के साथ कैसा बर्ताव किया जाए। इस आदेश में लिखा था कि कोई कारण नहीं है कि फिनमैकानिका ग्रुप के साथ हुए करार के साथ आगे न बढ़ा जाए। उसी आदेश में कहा गया था कि फिनमैकानिका और सहयोगियों को नए टेंडर से अलग रखा जाएगा। नए टेंडर से अलग भी रखना है और पुराने करार को जारी भी रखना है। क्या पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा। क्या इस सवाल का जवाब अंतिम रूप से मिल गया है। 11 फरवरी 2014 के 'टाइम्स आफ इंडिया' में यही बात छपी थी। कई जानकार कह रहे हैं कि फिनमैकानिका को ब्लैक लिस्ट करना आसान नहीं है। 3 अप्रैल को फाइनेंशियल एक्सप्रेस में खबर छपी है कि भारत सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड को 100 लाइट यूटिलिटी हेलिकाप्टर के लिए टेंडर में भाग लेने की अनुमति दे दी है। शर्त है कि कंपनी को किसी स्थानीय वेंडर से साझीदारी करनी होगी। अगर ये बात सही है तो फिर ब्लैक लिस्ट कहां हुई। नेता अधिकारी के साथ-साथ यह बात भी सामने आ रही है कि करोड़ों रुपये मीडिया मैनेज करने के लिए भी खर्च किये गए। इसलिए सिर्फ कांग्रेस के लिए नहीं मीडिया के लिए भी जांच ज़रूरी है। कौन कौन पत्रकार मैनेज हो रहे थे। बल्कि कंपनी की तरफ से सरकार को ही मैनेज कर रहे थे।

आज भी राज्य सभा में सुब्रमण्यम स्वामी की बात को लेकर हंगामा हो गया। उनकी बात को कार्रवाई से हटा तो दिया गया लेकिन जो कहा सुनी हुई उससे लगता है कि इस मसले को लेकर बीजेपी कांग्रेस को छोड़ने वाली नहीं है। लेकिन इस कहासुनी के जवाब में जो केंद्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी कह गए वो दिलचस्प है। इस बात का क्या मतलब है कि कांग्रेस वाले जिस स्कूल में पढ़े हैं उसके नकवी जी मास्टर रहे हैं। इसकी व्याख्या कई रूपों में की जा सकती है। क्या पता वो यह कह रहे हैं कि हेड मास्टर होने के नाते हम खूब जानते हैं या जो आप करते हैं वो हम आपसे बेहतर कर सकते हैं।

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