क्या रविवार की हिंसा में जिस लड़की को नकाब में डंडे लेकर हमलावरों के साथ देखा गया उसकी पहचान स्थापित कर ली गई है, पुलिस ने नहीं की है, ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने की है. आपको बता दें कि 5 जनवरी को हिंसा होती है. 10 जनवरी को दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच प्रेस कांफ्रेंस करती है मगर किसी को उस लड़की के बारे में पता नहीं चलता है कि साबरमती हास्टल में डंडा लेकर जो लड़की नज़र आ रही है उसकी पहचान क्या है. नकाब पहनी इस लड़की इस पहचान के बारे में पहले दिन से कई रिपोर्ट चल रही है. इस लड़की की बातचीत भी वायरल है. मगर पुलिस इस पर कुछ नहीं कहती है. लेकिन आज ही ऑल्ट न्यूज़ की टीम ने दावा किया है कि उन्होंने इस लड़की पहचान स्थापित करने में सफलता प्राप्त कर ली है. इसके बारे में हम प्राइम टाइम में आगे बात करेंगे लेकिन पहले उस प्रेस कांफ्रेंस को क्रोनोलोजी से समझने का प्रयास करते हैं जिसके आगे थेथरोलोजी भी फेल है.
बहरहाल दिल्ली पुलिस के क्राइम ब्रांच की प्रेस कांफ्रेस में कहानी 5 जनवरी की हिंसा से ज्यादा 4 जनवरी की थ्योरी पर पहुंचती है, जिसके सहारे जेएनयू प्रशासन बार बार दावा करता है कि लेफ्ट के छात्रों ने सर्वर रूप को क्षतिग्रस्त किया और मारपीट की. जो प्रशासन की शुरू से लाइन रही है. 4 जनवरी की हिंसा का न तो स्केल वैसा था और अगर वैसा था तो उसकी एफआईआर कराने का ख्याल जेएनयू प्रशासन को 5 जनवरी की हिंसा के बाद ही क्यों आया, इसका जवाब नहीं मिला. आज पुलिस ने जिस तरह से अपनी बात रखी, उस पर सवाल उठे और तुरंत ही केंद्रीय मंत्री का बयान आया और ट्विटर पर हैश टैग शुरू हुआ, उससे यही लगता है कि अब जेएनयू की हिंसा को न तो आप क्रोनोलोजी से समझ पाएं और न ही थेथरोलोजी से. जिस वक्त जेएनयू छात्र संघ के प्रतिनिधि मानव संसाधन मंत्रालय के सचिव से बात कर रहे हैं, उस वक्त दिल्ली पुलिस प्रेस कांफ्रेंस करती है. 4 तारीख की कथित हिंसा के लिए लेफ्ट संगठनों को दोषी ठहराती है और 5 जनवरी की हिंसा पर कुछ खास नहीं बोलती है. उसे भीड़ की हिंसा कहती है. जिस वक्त जेएनयू के छात्र मानव संसाधन सचिव से मिलकर प्रेस से बता रहे होते हैं कि क्या क्या बात हुई तभी उनके सामने पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस के सवाल दागे जाने लगते हैं. वो खत्म नहीं होता है कि सूचना प्रसारण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर का बयान टीवी पर चलने लगता है जिसमें वे पुलिस की उस जानकारी पर निष्कर्ष पर पहुंच जाते हैं जिसे खुद पुलिस शुरूआती जानकारी बता रही होती है. चंद मिनटों के फासले में एक दूसरी मंत्री स्मृति ईरानी ट्विटर पर जेएनयू हिंसा में लेफ्ट की भागीदारी को लेकर हैशटैग शुरू कर देती है. इन सबसे मानव संसाधन मंत्री रमेश चंद पोखरियाल दूर रहते हैं. न पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस पर कुछ कहते हैं और न हैशटैग में शामिल होते हैं.
शुरूआती जांच पर ही एक मंत्री फैसला सुना रहे हैं. प्रकाश जावड़ेकर यह भी बता रहे हैं कि हिंसा के बाद गेट पर योगेंद्र यादव पहुंच गए. सीताराम येचुरी पहुंच गए. मगर वे दूसरे पक्ष की बात नहीं कर रहे हैं जो वहां पर थे या बाद में पहुंचे, जिन्होंने योगेंद्र को मारा. केंद्रीय मंत्री इस तथ्य को भी गायब कर देते हैं कि जेएनयू के गेट पर एबीवीपी या उनकी पार्टी के समर्थक थे या नहीं? शायद सभी को पता है कि मीडिया इस प्रेस कांफ्रेंस की बातों को लेकर बारीक पड़ताल करेगा ही नहीं. वह हेडलाइन लगा देगा कि लेफ्ट के गुंडे थे और काम हो जाएगा. दिल्ली पुलिस जेएनयू प्रशासन की तरह 4 जनवरी की कथित हिंसा को लेकर फोकस कर रही है. जबकि उसी दिन के दो वीडियो ऐसे हैं जिन्हें हम फिर से दिखा रहे हैं जिसमें एबीवीपी के सदस्य लेफ्ट के एक छात्र और एक छात्रा को पीटते नज़र आ रहे हैं. उसकी चर्चा नहीं. यानी 4 का किस्सा भी आधा है, आधा नहीं.
जैसे एक वीडियो 4 जनवरी का ही. इसमें दावा किया गया है कि एबीवीपी के सर्वेंद्र कुमा 'आइसा' के विकास पांडे को पीट रहे हैं. वहां पर एक प्रोफेसर भी हैं लेकिन एफआईआर सर्वेंद्र के खिलाफ नहीं होती है. विकास के खिलाफ हो ती है. क्या पुलिस को यह वीडियो महत्वपूर्ण नहीं लगा? इस वीडियो में पेरियार के वार्डन लाल कुर्ते और भूरे जैकेट में तपन बिहारी भी दिख रहे हैं जो कभी एबीवीपी से जुड़े रहे हैं.
यह वीडियो भी 4 जनवरी का है. इसमें लेफ्ट की अपेक्षा प्रियदर्शनी को एबीवीपी के शिवम चौरसिया मारते हुए और धकेलते हुए देखे जा सकते हैं. शिवम को लड़के पीछे की तरफ खींच लेते हैं.
इन दो वीडियो का क्या हुआ? क्या प्रकाश जावड़ेकर और स्मृति ईरानी इसे ट्वीट करना चाहेंगे? हिंसा की निंदा के लिए ही सही. साफ है कि पक्ष और फैसला तय कर लिया गया है. पुलिस की प्रेस कांफ्रेंस ने और मदद कर दी है.
आप इस वीडियो को देखिए. इसमें आइशी भागते हुए देखी जा सकती हैं. कई लोग हैं जिनके चेहरे पर कोई नकाब नहीं है. फिर भी एक दो छात्रों का चेहरा ढंका है, उस तरह का नकाब नहीं है जैसा पहनकर 5 तारीख की हिंसा में हमलावर दिखते हैं.
अब इसी वीडियो का स्टिल फोटो लेकर दिल्ली पुलिस ने आइशी घोष, चुनचुन कुमार, पंकज मिश्रा, वास्कर विजय, डोलन सामंत, सुचेता तालुकदार पर हिंसा में शामिल होने का शक जताया और नोटिस भेजने की बात कही. इन 7 छात्रों का नाम लेते हुए क्राइम ब्रांच के डीसीपी जॉय तिर्की लेफ्ट के संगठनों का नाम लेते हैं. इनमें से एक डोलन सामंता है जो सीएचएस की छात्रा है, मगर तस्वीर में डोलन मारपीट करते हुए नहीं दिखती है. 2 छात्रों के संगठन का नाम नहीं बताते हैं. एबीवीपी का नाम ही नहीं लिया. अब आप थेथरोलोजी समझें या क्रोनोलोजी समझें आप पर निर्भर करता है.
यही नहीं 4 जनवरी के जिस वीडियो के आधार पर आइशी को पेरियार में हमला करने वाला बताया गया है, उसका प्राइमरी सोर्स क्या है? किस व्यक्ति ने उसे रिकार्ड किया है यह साफ नहीं है। यह सवाल बहुत ज़रूरी है क्योंकि दूसरे जो वायरल वीडियो हैं उनके बारे में पुलिस का यही कहना है कि वायरल वीडियो तो हैं मगर किसने ली है, यह साफ नहीं है इसिलए पहचानने में दिक्कत आ रही है।
प्रेस कांफ्रेंस में डीसीपी को बताना चाहिए था कि जिस वीडियो के आधार पर आइशी को नोटिस जारी किया जा रहा है उसे किसने रिकार्ड किया है. प्रेस कांफ्रेंस में सवाल जवाब नहीं हुआ, एकतरफा प्रस्तुति हुई. यानी पुलिस अफसर अपना बता कर चले गए. इससे पहले कि हम आगे बढ़े उस तस्वीर पर बात करना चाहेंगे जिसके आधार पर आइशी और अन्य को पेरियार में हमलावर की तरह पेश किया गया है.
इस तस्वीर में आप देखेंगे कि आइशी घोष को सर्कल किया है और तीर से भी दिखाया है कि आइशी कौन है. तस्वीर के ऊपर आइशी घोष का नाम है. जेएनयूएसयू लिखा है. इस फोटो में लाल रंग के बड़े से बक्से में भी लिखा है कि जेएनयू छात्र संघ की अध्यक्षा अपनी लाल बैग के साथ इस वीडियो में देखी जा सकती हैं जो पेरियार हास्टल में हिंसा के लिए नकाब पहने कामरेड गैंग को लीड कर रही हैं. इतना सारा विवरण लिखा है. ये विवरण लेफ्ट के बाकी कथित रूप से दोषियों की तस्वीर में नहीं हैं. यानी आइशी के लिए ही लाल रंग में ऐसी बातें लिखी गई हैं.
तो सिर्फ आइशी की तस्वीर पर लाल रंग से उसे गैंग का लीडर बताया है वो भी 4 तारीख की घटना को लेकर. कामरेड गैंग कहा गया है. दिल्ली पुलिस ने आइशी को ही ब्रांड क्यों किया. क्या पुलिस ने जल्दबाजी नहीं की. जिस वीडियो में कोई मारपीट करते नहीं दिख रही है, न तस्वीर में कोई हथियार दिख रहा है. लाल बैग को ऐसे लिखा है जैसे बैग ही हथियार हो.
लेकिन जब डीसीपी जॉय योगेंद्र भारद्वाज की तस्वीर साझा करते हैं तो सिर्फ योगेंद का नाम लिखा है. पीएचडी संस्कृत लिखा है. मगर किस गैंग के हैं, किस संगठन के हैं, इसका पुलिस नाम तक नहीं लेती है. उन्हें सिर्फ पीएचडी का छात्र बताते हैं. योगेंद्र भारद्वाज का नाम यूनिटी अगेंस्ट लेफ्ट वाले व्हाट्सएप ग्रुप के संदर्भ में आया था. इस ग्रुप में बातचीत होती है कि योगेंद्र के नंबर से लिखा है कि लेफ्ट वालों को पकड़ कर मार लगनी चाहिए. बस एक ही दवा है. योगेंद्र शोर्य भारद्वाज 2017-18 में जेएनयू में एबीवीपी का ज्वाइंट सेक्रेट्री था. दिल्ली पुलिस ने एबीवीपी का नाम तक नहीं लिया. क्या ये जानकारी पांच दिनों की जांच में भी नहीं मिल सकी कि योगेंद्र भारद्वाज किस दल का सदस्य है.
आखिर दिल्ली पुलिस ने एबीवीपी का नाम क्यों नहीं लिया? क्या इसलिए कि लेफ्ट का नाम लेने से केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी जल्दी से हैशटैग शुरू कर सकें.
महिला एवं बाल कल्याण मंत्री स्मृति ईरानी ने हैश टैग शुरू कर दिया कि जेएनयू की हिंसा के पीछे लेफ्ट का हाथ है. उस एविडेंस के आधार पर जिसे बताने में दिल्ली पुलिस ने गलती की और यह भी कहा कि शुरूआती जांच है. अभी जांच शुरू हुई है. इस हैशटैग में एबीवीपी के भी सदस्य शामिल हो गए और यह ट्रेंड करने लगा. बीजेपी सांसद तेजस्वी सूरया भी इस हैशटैग में शामिल हो गए.
आखिर दिल्ली पुलिस की प्रेस कांफ्रेसं खत्म नहीं हुई कि प्रकाश जावड़ेकर का बयान आ गया जिनका मानव संसाधान मंत्रालय से संबंध नहीं हैं. स्मृति ईरानी ने हैशटैग शुरू कर दिया जिनके मंत्रालय का संबंध जेएनयू से नहीं है. लेकिन रमेश पोखरियाल निशंक इस हैशटैग में शामिल नहीं हुए हैं और न ही कोई बयान आया जिनके मंत्रालय में आज जेएनयू छात्र संघ की बैठक हुई थी. तो क्या दिल्ली पुलिस ने हैशटैग के लिए खुराक उपलब्ध कराया, एबीवीपी का नाम न लेकर. जिस एविडेंस पर हैशटैग हो रहा है उसकी क्या हालत है अभी देखिए.
पहले डीसीपी ने यह फोटो दिखाया कि यह विकास पटेल है. नीले और पीले रंग की स्वेट शर्ट में. जैसे ही चैनलों में चला कि यह विकास पटेल नहीं है शिव मंडल है. पहले इसका संबंध एबीवीपी से बताया गया लेकिन वास्तविकता क्या है, पुलिस ने नहीं बताया. जब मीडिया ने गलती पकड़ी तो दिल्ली पुलिस ने विकास पटेल की दूसरी तस्वीर जारी की.
अब दिल्ली पुलिस ने विकास पटेल की ये तस्वीर जारी की. इसमें इसे एम ए कोरियन का छात्र बताया गया. दिल्ली पुलिस ने नहीं बताया कि यह एबीवीपी का छात्र है. विकास पटेल इस समय एबीवीपी कार्यकारिणी का सदस्य है. पिछले साल एबीवीपी जेएनयू का उपाध्यक्ष था. यह जानकारी पुलिस ने प्रेस कांफ्रेंस में क्यों नहीं दी, क्या इसलिए कि स्मृति ईरानी को हैशटैग चलाने में सुविधा मिले.
लेकिन अब दिल्ली पुलिस ने उस लड़के की तस्वीर ही गायब कर दी जिसे गलती से विकास पटेल बताया था. जिसे मीडिया में शिव मंडल के रूप में पहचान की गई. शिव मंडल भी एबीवीपी का सदस्य बताया गया है और रशियन स्टडीज़ का छात्र बताया गया है. दिल्ली पुलिस ने शिव मंडल की दोबारा तस्वीर क्यों नहीं जारी की. जबकि शिव मंडल और विकास पटेल एक ही तस्वीर में दिख रहे हैं. दोनों के हाथ में लाठी है. अगर आप गणित में फेल हैं तब भी नहीं समझ सकते हैं कि एक ही फ्रेम का एक व्यक्ति दोषी बताया जाता है और एक को नहीं. एक का गलत नाम से फोटो जारी होता है और फिर सही नाम और सही फोटो जारी होता है तो नीले और पीले शर्ट वाले को गायब ही कर दिया जाता है जबकि इसके बारे में क्राइम ब्रांच के डीसीपी ने साफ साफ कहा कि यह दूसरे कई वीडियो में नकाब में देखा गया है.
नाम ही बताने में गलती हुई थी तो उस सुधार के बाद क्या शिव मंडल की तस्वीर फिर से जारी नहीं करनी चाहिए थी. दिल्ली पुलिस ने ऐसा क्यों किया. दिल्ली पुलिस जांच कर रही है या एबीवीपी और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को हैशटैग कराने के लिए सामग्री उपलब्ध करा रही है? क्या वाकई दिल्ली की जनता ने सोचना बंद कर दिया है कि जो हैशटैग होगा हम वही सही मानेंगे और जो भी पुलिस कहेगी वही सही होगा. यही दिल्ली पुलिस है जिसने पहले कहा कि जामिया में कोई गोली नहीं चली, लेकिन जब मीडिया में रिपोर्ट आई तो सामने आकर नहीं माना कि गोली चली है. वो खबर भी एक्सप्रेस में सूत्रों के हवाले से आई ही कि पुलिस ने माना है कि गोली चली. क्या दिल्ली पुलिस पेशेवर तरीके से काम कर रही है?
प्रेस कांफ्रेंस में दिल्ली पुलिस ने किसी सवाल का जवाब नहीं दिया. वर्ना एक सवाल पास्ट इम्पफेक्ट टेंस में पूछा जा सकता है कि जब साबरमती हमले के बाद हमलावर जंगल में यानी फोरेस्ट में भाग रहे थे तब दिल्ली पुलिस क्या वहां सावधान की मुद्रा में खड़ी होकर विश्राम कर रही थी? एफआईआर के मुताबिक साबरमती हास्टल के पास इंस्पेक्टर रैंक का अधिकारी पहुंचा था. उसने जंगल में पीछा क्यों नहीं किया?
पुलिस कहती है कि साबरमती हास्टल में हिंसा के बाद हमलावर जंगल में भाग गए. यहां पर मारपीट करने के बाद ये नकाबपोश उस गेट की तरफ आए होंगे जिसके शीशे के दरवाज़े को आते समय तोड़ गए थे. वहां से बाहर आने पर साबरमती का ढाबा मिलेगा. सीधे जाने पर दो ढाबे और हास्टल मिलता है. एक और रास्ता है जो वार्डन के फ्लैट से गुज़रते हुए नर्मदा हास्टल और गंगा ढाबा की ओर जाता है. वहां कुछ घने पेड़ हैं मगर जंगल तो नहीं हैं. उन पेड़ों के साथ साथ मेन सड़क चलती है. पुलिस के अनुसार उसकी टीम वहीं आस पास खड़ी होनी चाहिए. तो ये भागे या भागने दिया गया.
प्रो. सुचारिता सेन ने भी एफआईआर कराई है. उस पर क्या एक्शन हुआ या उसकी जांच क्या है आज पता नहीं चल सका. 5 जनवरी की हिंसा को लेकर 25 शिक्षकों ने पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है. उस पर क्या एकश्न हुआ, जांच में बात सामने आएगी, अभी नहीं आई है मगर केंद्र सरकार के मंत्री हैशटैग में बिजी हो गए हैं. जेएनयूएसयू की आइशी घोष ने भी हिंसा के बाद शिकायत की थी लेकिन कोई एफआईआर अभी तक नहीं हुई जैसा कि ओइशी कहती हैं. पुलिस ने एक शब्द यहां तक नहीं कहा कि आइशी घोष को किसने इतनी बुरी तरह मारा, उसे इतनी गंभीर चौट कैसे आई. पुलिस ने कहा कि सीसीवीटी फुटेज नहीं है.