उनकी 125वीं जयन्ती के मौके को देशभर में धूम धाम से मनाया जा रहा है। शायद पहली बार है कि उनकी जयन्ती पर लगभग हर राष्ट्रीय स्तर की पार्टी उनको नमन कर रही है। केन्द्र की सत्ताधरी बीजेपी हो या विपक्ष में बैठी कांग्रेस या फिर दिल्ली की आम आदमी पार्टी, सब अपने स्तर पर भीमराव अम्बेडकर का गुणगान कर रहे हैं। प्रधानमंत्री अम्बेडकर की जन्मभूमि मध्य प्रदेश के महू पहुंचे हुए हैं तो 11 तारीख को ही सोनिया गांधी और राहुल गांधी ने नागपुर में अम्बेडकर की जयंती मनाई। आम आदमी पार्टी ने आज अखबार में एक पूरे पन्ने के बड़े विज्ञापन में बाबासाहेब को याद किया और शाम को तालकटोरा स्टेडियम में आयोजित उनकी याद में कार्यक्रम में हर दिल्लीवासी को आमंत्रित किया है। हालांकी सुन कर अच्छा लगा कि संयुक्त राष्ट्र में भी उनको याद किया गया।
डॉ. अम्बेडकर को अपनाने की होड़ इस कदर हावी है कि बयानबाजी तेज हो चली है। अब तक अपने दलित वोटों के बूते जीत कर सरकार बनाने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी की मायावती इस होड़ से बौखला गई हैं। उनका कहना है कि नरेन्द्र मोदी और राहुल गांधी दिखावा कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि 'पीएम मोदी खुद को ओबीसी कहते हैं लेकिन उन्होंने ओबीसी के लिए कुछ नहीं किया। बीजेपी-आरएसएस दलितों को पीएम या सीएम बना भी दें तो वो संघ का बंधुआ मजदूर ही रहेगा। ये भी कहा कि राहुल गांधी ने अम्बेडकर की तुलना रोहित वेमुला से कैसे की, नेल्सन मंडेला या कांशीराम से करते, वे डॉ. अम्बेडकर के बारे में जानते ही नहीं।'
प्रधानमंत्री ने आज महु में अपनी रैली में ने कहा, 'बाबा साहेब एक व्यक्ति नहीं थे, वो एक संकल्प का नाम थे। अंबेडकर ने अन्याय के खिलाफ समाज में लड़ाई लड़ी। उन्होंने समानता और प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ी।' प्रधानमंत्री ने हर गांव के विद्युतिकरण और दलित समाज के शिक्षित, आर्थिक और सामाजिक रूप से सशक्तीकरण पर जोर दिया। वे पहले प्रधानमंत्री हैं जो डॉ. अम्बेडकर मेमोरियल लेक्चर में बोले और देश विदेश में उनकी धरोहर को सहेजने के लिए कदम उठा रहे हैं।
और कुछ इसी तरह का श्रेय कांग्रेस भी लेने में लगी हुई है। उसका कहना है कि कांग्रेस ने ही अम्बेडकर की खूबियों को पहचाना था इसलिए उनसे आग्रह किया कि संविधान बनाएं। जिस विचारधारा ने युवा अम्बेडकर पर निशाना साधा वो आज उनको अपनाने में लगे हैं, ये सब एक दिखावा है। तो सवाल ये है कि ये दिखावा क्यों हो रहा है। कई राज्यों में चुनाव करीब हैं जहां दलित आबादी मायने रखती है। देश भर में दलित 16.2% हैं। पंजाब में 28.9, दिल्ली में 16.9, यूपी में 21.1, उत्तराखण्ड में 17.9 फीसदी। इन राज्यों में हार जीत के फैसले में इन वोटरों की भूमिका अहम होने वाली है। लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर कोई भी पार्टी उनकी सोच पर खरी उतरती नजर नहीं आ रही है।
हाल में हैदराबाद विश्वविद्यालय के छात्र रोहित वेमुला ने खुदकुशी की थी जिसके बाद केन्द्र का दलितों पर दुराचार का रवैया कई दिनों तक सुर्खियों में रहा। आज रोहित की मां और भाई ने अम्बेडकर की तरह बौद्ध धर्म को अपना लिया। जहां उनके भाई ने कहा कि प्रधानमंत्री ने रोहित की मृत्यु पर आंसू तो बहाये लेकिन जो उसके लिए जिम्मेदार हैं उसे सजा नहीं मिली। असली गुनहगार केन्द्र के मंत्री हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय वीसी पर कोई कार्रवाई नहीं की।
आम आदमी पार्टी कांश राम के लिए पंजाब में उनके गांव पहुंच कर भारत रत्न की मांग करती है लेकिन यहां दिल्ली में महीनों सफाई कर्मचारियों का वेतन देने से चूकती रही।
सवाल गम्भीरता और संजीदगी से दलितों के लिए कदम उठाने का भी है। दिल्ली में देशभर से मैला ढोनेवाले 400 परिवार पंहुचे। 125 दिन से चल कर यहां पहुंचे हैं अपनी परेशानियां सामने रखने के लिए। हमारे देश में 1993 से मैला ढोना बन्द है लेकिन ये प्रथा चली आ रही है। देश के 30 राज्यों के 500 जिलों से ये लोग देश की राजधानी पहुंचते हैं अम्बेडकर जयन्ती पर अपने काम के दौरान मूलभूत सुविधाओं की मांग लिए लेकिन इनकी सुनने वाला कोई नहीं है। कौन सुनेगा मानवता की जिसको डॉ. अम्बेडकर ने देश से भी ऊपर का दर्जा दिया था। वे व्यक्ती पूजा के भी खिलाफ थे। कोई राजनीतिक दल चल सकेगा उनकी राह पर!
(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)
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This Article is From Apr 14, 2016
किस राजनीतिक दल ने समझा डॉ. भीमराव अम्बेडकर को?
Nidhi Kulpati
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 14, 2016 21:40 pm IST
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Published On अप्रैल 14, 2016 21:40 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 14, 2016 21:40 pm IST
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