न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव कोई नई बात नहीं है. लेकिन इस बार यह टकराव नए अंदाज़ में सामने आया है. यह टकराव ऐसे समय हो रहा है जब न्यायपालिका गंभीर आंतरिक संकट से जूझ रही है. चार वरिष्ठतम जजों ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ मोर्चा खोला हुआ है. कांग्रेस दीपक मिश्रा को हटाना चाहती है. उपराष्ट्रपति ने उनके खिलाफ महाभियोग का नोटिस रद्द कर दिया और अब कांग्रेस इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देना चाहती है.
इस बीच, सरकार ने एक नया मोर्चा खोल दिया है. इस साल दस जनवरी को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने दो जजों की नियुक्ति का प्रस्ताव सरकार के पास भेजा. करीब चार महीने बाद सरकार ने इनमें से एक नाम इंदु मल्होत्रा को हरी झंडी दे दी. जबकि उत्तराखंड हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस के एम जोसेफ के नाम को सरकार ने कॉलेजियम को वापस भेज दिया. सरकार की दलील है कि हाई कोर्ट के जजों की अखिल भारतीय वरिष्ठता सूची में जोसेफ 42वें नंबर पर आते हैं. उनसे पहले भी 11 जज हैं जिनके नाम पर विचार होना चाहिए था. सरकार कहती है कि केरल हाई कोर्ट छोटा है और वहां से चार जज अलग-अलग महत्वपूर्ण पदों पर हैं जबकि कई बड़े हाई कोर्ट की सुप्रीम कोर्ट में नुमाइंदगी नहीं है.
सरकार ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के ही दो फैसलों में जजों की वरिष्ठता को अहमियत दी गई है. जजों की नियुक्ति के कॉलेजियम व्यवस्था का संविधान में कहीं जिक्र नहीं है. यह सुप्रीम कोर्ट के फैसलों से बनी है. इसलिए जोसेफ का नाम वापस भेजा जा रहा है और इस फैसले को राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री ने मंजूरी दी है.
मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में कानून मंत्रालय ने कहा है कि सुप्रीम कोर्ट के दो आदेशों में ही कहा गया कि नियुक्ति में वरिष्ठता का ध्यान रखा जाए. सरकार कहती है कि इसके मद्देनजर जस्टिस जोसेफ की नियुक्ति इस समय उचित नहीं है. यह अन्य वरिष्ठ योग्य जजों के साथ न्याय नहीं होगा.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट में अजीब हालात पैदा हो गए जब सौ वकीलों ने अर्जी दायर कर इंदु मल्होत्रा की नियुक्ति को भी रोकने को कहा. चीफ जस्टिस ने न सिर्फ इसे खारिज किया बल्कि कहा कि यह अर्जी अकल्पनीय और सोच से परे है.
इस बीच, कांग्रेस सरकार पर आक्रामक हो गई. पूर्व वित्त मंत्री पी चिदंबरम ने ट्वीट कर पूछा कि क्या जोसेफ के नाम को इसलिए वापस किया गया- उनका राज्य या उनका धर्म या फिर उत्तराखंड केस में उनका फ़ैसला?
पूर्व कानून मंत्री कपिल सिब्बल तुरंत मैदान में उतर आए. उन्होंने कहा कि सरकार की मंशा साफ है कि अगर हम पसंद नहीं करेंगे तो अप्वाइंट नहीं करेंगे...हम इंतज़ार करेंगे कि न्यायपालिका के बचाव में न्यायपालिका खुद कब उतरती है.
उधर, सरकार ने इस आरोप को गलत बताया कि जोसेफ ने उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने के फैसले को पलटा था इसलिए उनके नाम को मंजूर नहीं किया गया.
सरकार ने कहा कि जस्टिस जे एस खेहर को चीफ जस्टिस बनाया गया था बावजूद इसके कि उन्होंने वे राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग और अरुणाचल प्रदेश में राष्ट्रपति शासन खारिज करने के फैसलों में शामिल थे. तो सवाल है कि अब आगे क्या होगा.
कॉलेजियम जोसेफ का नाम फिर से सरकार के पास भेज सकता है और सरकार को इसे मानना ही होगा. लेकिन इसकी समयसीमा नहीं है. सवाल यह भी है कि बुरी तरह से बंटे हुए कॉलेजियम में क्या अब आम राय बन पाएगी?
(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)
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This Article is From Apr 26, 2018
न्यायपालिका और सरकार के बीच टकराव में अब आगे क्या?
Akhilesh Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:अप्रैल 26, 2018 19:08 pm IST
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Published On अप्रैल 26, 2018 19:08 pm IST
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Last Updated On अप्रैल 26, 2018 19:08 pm IST
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