कांग्रेस में पार्टी नेतृत्व के मुद्दे पर कई बार चले अंतहीन विचार-विमर्श के बाद, अब उसके साथ नया तत्व (नाम) जुड़ सकता है, प्रशांत किशोर. 44 वर्षीय किशोर ने कुछ दिनों पहले, जब ममता बनर्जी ने बंगाल में जीत हासिल की थी, तब एनडीटीवी पर घोषणा की थी कि वह चुनावी रणनीतिकार के रूप में अपनी नौकरी छोड़ रहे हैं. अब, विश्वसनीय सूत्रों का कहना है कि प्रशांत किशोर जिन्हें "पीके" के रूप में पहचान मिली है, को गांधी परिवार द्वारा तीन दिन का समय दिया गया है, यह तय करने के लिए कि क्या वह एक सलाहकार के रूप में नहीं बल्कि एक शीर्ष पद पर आधिकारिक रूप से कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं या नहीं?
पीके ने कल (मंगलवार, 13 जुलाई, 2021) राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और उनकी मां सोनिया गांधी से चार घंटे तक मुलाकात की थी.
किसी टास्क को चुनौती के रूप में लेना पीके के लिए आनंददायी शगल बन चुका है. उनके पहले के कार्यक्रमों में जगन मोहन रेड्डी और बंगाल में ममता का चुनाव प्रबंधन शामिल है. बंगाल में उनकी मुवक्किल ममता बनर्जी और वो खुद पीएम मोदी और अमित शाह की अथक ताकत के खिलाफ खड़े थे. अगर वह अभी भी ऐसी चुनौती ढूंढ़ रहे हैं तो, इस बार वह सही जगह पर आए हैं.
कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व- सोनिया गांधी जो पार्टी अध्यक्ष हैं, लेकिन बेटे राहुल गांधी ही अघोषित इस भूमिका में हैं, बेटी प्रियंका राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश, जहांअगले साल चुनाव होने हैं, की प्रभारी और महासचिव हैं, के अलावा और कोई नहीं है जो कांग्रेस पार्टी को हैंडल करता हो.
कांग्रेस ज्वॉइन कर सकते हैं चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर, पार्टी सूत्रों ने दिए संकेत
23 कांग्रेस नेताओं (जी -23) के एक दल ने औपचारिक रूप से पार्टी को और अधिक प्रभावी और दृश्यमान नेतृत्व के लिए आवाज उठाई थी, लेकिन ऐसा अभी तक नहीं हो सका है. इसका खामियाजा अब तक पंजाब संकट से प्रदर्शित हो रहा है, जहां अमरिंदर सिंह मुख्यमंत्री के रूप में घर के भीतर ही प्रतिद्वंद्वी नवजोत सिंह सिद्धू के रोजाना हमले झेल रहे हैं. इस बावत गांधी परिवार और पार्टी की तीन सदस्यीय समिति द्वारा मध्यस्थता के बाद भी वहां अभी तक कोई बदलाव नहीं किया जा सका है. यह सब उस राज्य में हो रहा है, जहां कांग्रेस की सत्ता है और कुछ महीनों बाद ही वहां चुनाव होने हैं.
अमरिंदर सिंह ने 2017 में पंजाब में चुनाव जीतने में मदद करने के लिए पीके की सेवा ली थी. उन्हें वहां कैबिनेट मंत्री का दर्जा प्राप्त था. पहले के साक्षात्कारों में, उन्होंने स्वीकार किया है कि कांग्रेस आलाकमान के अनिर्णय के साथ-साथ उसके कामकाज के सभी पहलुओं में बिखराव वाले दृष्टिकोण के साथ काम करना कठिन रहा है. हालांकि, उन्होंने यह बात उत्तर प्रदेश के संदर्भ में कही थी, जहां उन्होंने 2017 के विधान सभा चुनाव में अखिलेश यादव और राहुल गांधी के साथ काम किया था. इन दोनों नेताओं ने वहां भाजपा को रोकने के लिए गठबंधन किया था.
लेकिन आधिकारिक सूत्र मुझे बताते हैं कि पीके कांग्रेस को पुनर्जीवित करने की कोशिश की संभावना से उत्साहित हैं - बंगाल चुनाव के बाद एक साक्षात्कार में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था कि अगले आम चुनाव में भाजपा को एक गंभीर विपक्ष के रूप में चुनौती लेने की विपक्षी कोशिश तब तक साकार नहीं हो सकती, जब तक कि उसमें कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी की भी सहभागिता न हो.
ऐसा नहीं है कि पीके सलाहकार की भूमिका से सक्रिय राजनेता की भूमिका तक पहले नहीं गए हैं. बिहार में, उन्हें मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा कैबिनेट मंत्री का दर्जा दिया गया था, लेकिन यह संबद्धता उस समय आग की लपटों में घिर गई जब बीजेपी से बढ़ती नीतीश की नजदीकियों और मुख्यमंत्री के साथ उनके मतभेद सामने आने लगे. सहयोगी के रूप में बीजेपी पर बढ़ती नीतीश की निर्भरता सहित कई मतभेदों पर नीतीश कुमार की पार्टी से पीके निष्कासित कर दिए गए.
सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस को फिर से जीवंत करने के लिए इस रणनीतिकार ने "पीके प्लान" गांधी परिवार को पहले ही सौंप दिया है. वह भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन और उद्योगपति राजीव बजाज सहित नौ सदस्यों का एक बौद्धिक समूह स्थापित करना चाहते हैं. सोशल मीडिया पर आयोजित राहुल गांधी का सवाल-जवाब वाला सत्र पीके की योजना का ही ट्रायल था.
उनका एजेंडा कांग्रेस में भी ब्लॉक स्तर से ऊपर की ओर आंतरिक चुनावों को प्राथमिकता देता है. केंद्र द्वारा जांच एजेंसियों को आदेश देने के खिलाफ राजनीतिक घोषणाओं की एक श्रृंखला भी अपेक्षित है. पीके यह भी चाहते हैं कि कांग्रेस इस बात की औपचारिक घोषणा करे कि वह केवल चेक के जरिए ही राजनीतिक चंदा लेगी.
उन्होंने कथित तौर पर अपने संभावित बॉस को यह स्पष्ट कर दिया है कि जब वह उनके साउंडिंग बोर्ड के रूप में उपलब्ध होंगे, तो वह यह सुनिश्चित करेंगे कि पार्टी प्रमुख मुद्दों पर उनकी रणनीति से अवगत है और उनके साथ तालमेल रखती है. लेकिन पार्टी के सदस्य के रूप में, पीके को पदानुक्रम का पालन करना होगा - खासकर सार्वजनिक मंचों पर- यह सुनिश्चित करने के लिए कि जी -23 सहित कांग्रेस के विभिन्न नेता उनकी शक्तिशाली भूमिका से आहत महसूस न करें. हालांकि, पीके ने अब तक विभिन्न राज्यों में इस मोर्चे पर कम ही प्रदर्शन किया है, जहां पार्टी के नेताओं के बीच उनकी सीधी रेखा के कारण गंभीर दरारें देखने को मिलीं और कई विद्रोही भी हुए हैं.
पीके ने भी यह स्पष्ट कर दिया है कि उनका मानना है कि अगर विपक्ष एकजुट हो जाए और पहले की तुलना में कहीं अधिक टीम भावना के साथ काम करे तो बीजेपी को हराया जा सकता है. वह जिस जुमले पर विचार कर रहे हैं, उसके लिए उन्हें क्षेत्रीय नेताओं के समूह के साथ काम करना होगा, जिनमें से कई को उन्होंने पहले के कार्यों के माध्यम से संभाला है. पहले के जॉब असाइनमेंट के कारण पीके के पास अपने मिशन का प्रवेश द्वार भी है. अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस और उसका पहला परिवार इसमें पीके की मदद कर सकेगा या उसके पंख कुतर जाएगा.
(स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...)
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