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This Article is From Nov 06, 2018

राजस्थान और छत्तीसगढ़ के चुनावों में फोन बांटने का खेल क्या है?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 07, 2018 12:49 pm IST
    • Published On नवंबर 06, 2018 19:09 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 07, 2018 12:49 pm IST
हमारे वक्त की राजनीति को सिर्फ नारों से नहीं समझा जा सकता है. इतना कुछ नया हो रहा है कि उसके अच्छे या बुरे के असर के बारे में ठीक-ठीक अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो रहा है. समझना मुश्किल हो रहा है कि सरकार जनता के लिए काम कर रही है या चंद उद्योगपतियों के लिए. मीडिया में इन नई बातों की समीक्षा कम है. समीक्षा करने की काबिलियत भी कम है. मीडिया सिर्फ नारों के पीछे भाग रहा है. मीडिया के भागते रहने के लिए हर हफ्ते एक नारा लांच कर दिया जाता है.

बिजनेस स्टैंडर्ड में आधे पन्ने पर पांच कॉलम का कुमार संभव श्रीवास्तव का लेख पढ़ा. यह लेख छत्तीसगढ़ और राजस्थान में सरकार द्वारा बांटे गए जियो कनेक्शन से लैस मोबाइल पर है. राजस्थान और छत्तीसगढ़ में डेढ़ करोड़ परिवारों को मोबाइल हैंडसेट बांटे जाने हैं. इस फोन में इंटरनेट कनेक्शन भी है. दोनों राज्यों की तीन-चौथाई आबादी के पास सरकारी स्मार्ट फोन पहुंच जाएगा. जनता को लाभ हो सकता है मगर सियासी लाभ का भी गुणाभाग तो होगा ही. सभी सरकारें ऐसा करती हैं. लेकिन क्या हम इस बात को लेकर सतर्क हैं कि पहली बार इतनी बड़ी आबादी के हाथ में स्मार्ट फोन पहुंचेगा तो किस तरह का डेटा इन फोन कंपनियों के ज़रिए सरकार के बाहर पहुंचेगा. उस डेटा का कौन और कैसे इस्तमाल करेगा. पूरी दुनिया में इसे लेकर सतर्कता और समझने के प्रयास किए जा रहे हैं. भारत में आधी अधूरी जानकारी पर सारा कारोबार चल रहा है.

छत्तीसगढ़ की योजना राजस्थान से अलग है और बहुत पहले की है. यहां प्रशासनिक ज़रुरतों को ध्यान में रखते हुए इस योजना पर कई महीनों से काम चल रहा था. आइडिया यह था कि राज्य के बड़े हिस्से को फोन नेटवर्क से जोड़ा जाए. जो ग़रीबी और वहां की बसावट के पैटर्न के कारण नहीं हो पा रहा था. लोग फोन नहीं खरीद रहे थे और कंपनियां अपना टावर नहीं लगा रही थीं. तो रास्ता यह निकाला गया कि कुछ समय के लिए कंपनियों को राजस्व की गारंटी दी जाए. फिर बाद में लोग फोन की आदत और नेटवर्क की सुविधा होते ही अपने स्तर पर जारी रखेंगे. यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या वे गरीबी के कारण कुछ समय बाद छोड़ देंगे या जारी रखेंगे.

छत्तीसगढ़ में तो तीन-तीन बार टेंडर निकला मगर पहली बार में कोई कंपनी नहीं आई. दूसरे दौर में एयरटेल और लावा मोबाइल कंपनी आई. राज्य में आइडिया है मगर वोडाफोन से विलय की प्रक्रिया के कारण भाग नहीं ले सकी. छत्तीसगढ़ में जियो के भी कुछ हज़ार टावर हैं. पहले से मौजूदगी है. मगर जियो ने दिलचस्पी नहीं दिखाई. लेकिन सिर्फ एयरटेल और लावा के ही टेंडर आए, आगे के लिए मुसीबत हो सकती थी. सूत्रों ने बताया कि बीएसएनल को बार-बार लिखा गया मगर अब वही बता सकती है कि उसने इस टेंडर में क्यों नहीं हिस्सा लिया. बहरहाल, तीसरे दौर में सरकार ने दो साल तक सिम-लॉक की शर्त जोड़ दी तब जाकर जियो-माइक्रोमैक्स आई. सिम-लॉक का मतलब यह हुआ कि फोन जिसे मिलेगा वह दो साल तक किसी दूसरी कंपनी का इंटरनेट कनेक्शन नहीं ले सकेगा. अंतिम दौर की नीलामी में जियो-माइक्रोमैक्स ने ठेका जीत लिया. एयरटेल-लावा ने 2,650 और 4,550 रुपये का ऑफर दिया जबकि जियो और माइक्रोमेक्स ने 2,250 और 4,142 का दिया.

क्या सिम-लॉक के कारण ही जियो ने हिस्सा लिया? कहा जा रहा है कि स्मार्ट फोन में दोहरे सिम की व्यवस्था है. उपभोक्ता स्वतंत्र है कि दूसरा सिम लेने के लिए. हमें यह देखना होगा कि एक ग़रीब जो फोन खरीद नहीं पा रहा था, वह क्या दूसरा सिम ख़रीदेगा? क्यों ख़रीदेगा? दूसरा आज कल के स्मार्ट फोन में दोहरे सिम की व्यवस्था होती ही है. एक दिलचस्प जानकारी यह है कि स्मार्ट फोन महिलाओं को दिया गया और इसके लिए गूगल ने बारह लाख महिलाओं को ट्रेनिंग दी है. जिन्हें फोन मिलेगा उन्हें छह महीने तक इंटरनेट मुफ्त मिलेगा. बदले में कंपनी को राज्य सरकार अपना टावर लगाने के लिए ज़मीन देगी जिसका दस साल तक कोई किराया नहीं लगेगा. इसके साथ एक विकल्प भी मिला है कि वह सरकार के ई-पेमेंट सेवाओं को भी चलाए. फोन माइक्रोमेक्स का है और इंटरनेट जियो का. सरकार इस पर 1400 करोड़ से अधिक की रकम ख़र्च करेगी.

राजस्थान की नीति और योजना भी अलग लगती है. यहां टेंडर जारी नहीं हुआ. कंपनियों को शिविर लगाकर फोन बेचने के लिए कहा गया और उसका पैसा सरकार खातेदारों के खाते में डालने लगी. मगर सभी कंपनी को एक साथ शिविरों में नहीं बुलाया गया. ज़िला प्रशासन को आदेश दिया गया कि भामाशाह डिजिटल परिवार योजना के तहत जियो भामाशाह कार्यक्रम शिविर कायम की गई और जियो फोन बेचे जाने लगे. इसके कई हफ्ते बाद दूसरी कंपनियों को बुलाया गया तब तक जियो ने पकड़ बना ली. सरकार इस पर 10 अरब यानी 1000 करोड़ ख़र्च कर रही है. दोनों राज्यों के अधिकारियों ने इंकार किया है कि जियो को अनुचित लाभ दिया गया है. जियो अधिकारी ने भी इंकार किया है. इन कंपनियों को एक करोड़ परिवारों को फोन और नेट कनेक्शन देने का काम मिल गया. लाभार्थी के खाते में सरकार ने इसके लिए 1000 रुपये डाल दिए. 500 फोन के और 500 इंटरनेट के. यह योजना सारी टेलिकाम कंपनियों के लिए थी मगर जियो को पहले आने का बड़ा लाभ मिला.

यह योजना छत्तीसगढ़ के 81 प्रतिशत परिवारों और राजस्थान के 77 प्रतिशत परिवारों तक पहुंचती है. छत्तीसगढ़ में 71 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फोन नहीं है. शहरों में 26 प्रतिशत परिवारों के पास. राजस्थान में 32 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के पास फोन नहीं है. शहरों में 15 प्रतिशत परिवारों के पास नहीं है. अंग्रेजी में इसके लिए हाउसहोल्ड का इस्तमाल होता है. ये सभी पहली बार फोन का इस्तमाल करेंगे. सरकारें चुनाव के समय जनता के बीच खैरात बांटती हैं जैसे यूपी में लैपटॉप बांटा गया. राजस्थान से कुछ लोगों ने बताया कि उनके फोन स्मार्ट फोन नहीं हैं. छत्तीसगढ़ मे स्मार्ट फोन बांटा जा रहा है.

फोन देने की योजना को और फोन में जो एप्लिकेशन है, उसे अलग तरीके से देखने की ज़रूरत है. उसके ज़रिए जो डेटा जा रहा है, वहां कहां जा रहा है, उसका इस्तमाल कौन करेगा, यह सब नहीं बताया जाता है. छत्तीसगढ़ के फोन में नमो-एप और रमन सिंह का एप है. क्या कोई अलग टीम है जो इन एप के ज़रिए डेटा का एक्सेस करती है? स्कीम के कागज़ात देखने के बाद कुमार संभव श्रीवास्तव ने लिखा है कि इसकी शर्तों के अनुसार छत्तीसगढ़ सरकार अपने नए नए एप्लिकेशन भी इसमें डालती रहेगी. अपडेट भी करेगी. यह भी लिखा है कि राज्य सरकार इनके ज़रिए जो डेटा जमा होगा वह अलग सर्वर पर जमा होगा. लेकिन जो प्राइवेट एप हैं उसका डेटा कहां जाएगा?

राजस्थान सरकार के दस्तावेज़ बताते हैं कि सरकार टेलिकाम कंपनी से लोगों की जानकारी ले सकती है. राजस्थान के दस्तावेज़ों को देखकर लगता है कि केंद्र सरकार भी इसमें शामिल है. डिपार्टमेंट ऑफ टेलिकम्युनिकेशन ने जियो, वोडाफोन और एयरटेल को इसके लिए विशेष नंबर जारी किए. इन्हीं नंबरों को लोगों में बांटा गया. 29 अगस्त की बैठक में राजस्थान सरकार ने टेलिकॉम कंपनियों को कहा कि उन्हें लाभार्थियों का डेटा सरकार से शेयर करना होगा. एक एक व्यक्ति का डेटा देना होगा.

दोनों राज्यों में फोन देने से पहले आधार और बैंक खाते से जोड़ना ज़रूरी है. तभी फोन चालू होगा. जबकि सुप्रीम कोर्ट का आदेश है कि आधार से लिंक नहीं करना है. कुमार संभव ने लिखा है कि यह साफ नहीं है कि कोर्ट का आदेश यहां लागू होता है या नहीं. छत्तीसगढ़ सरकार डेटा वेयरहाउस भी बनाने जा रही है जहां इस तरह की जानकारियां संरक्षित की जाएंगी. फोन में जो एप होंगे उनके डेटा को इन वेयरहाउस में रखा जाएगा. सरकार डेटा एनालिटिक सेंटर भी बनाने जा रही है. जहां अलग अलग चैनल से मिलने वाले फीडबैक के आधार पर लोग क्या सोच रहे हैं, उसका विश्लेषण किया जाएगा और भविष्यवाणी भी.

हाल ही में कैंब्रिज एनालिटिका का विवाद हुआ था. बिना यूज़र की जानकारी की उसके सोशल मीडिया डेटा को लेकर संभावित वोटर का पता लगाने का प्रयास हो रहा था, उसे अपनी तरफ मोड़ने का प्रयास हो रहा था. कांग्रेस पार्टी का नाम इसमें भी जुड़ा था. अब दोनों राज्यों में एक विशेष कंपनी के ज़रिए लोगों तक फोन पहुंचा कर नागरिक का कैसा डेटा हासिल होगा, उस डेटा का क्या होगा, यह समझना ज़रूरी है. दुनिया भर में डेटा के ज़रिए चुनावी राजनीति को प्रभावित करने के खेल रचे जा रहे हैं. इस खेल में बड़े बिजनेस के लिए संभावनाएं बनाई जा रही हैं और बदले में नेता या पार्टी के लिए संभावनाएं बन रही हैं. अब हम या आप इस बात को सामान्य रूप से नहीं समझ पाते हैं कि इसके ज़रिए लोकतंत्र और उसमें लोक की संस्था को कैसे प्रभावित किया जाएगा. कुछ कुछ अंदाज़ा कर सकते हैं मगर ठोस समझ बनाना आसान नहीं. दुनिया भर में ऐसी बातों का गहन अध्ययन होता है. भारत में अध्ययन के नाम पर राम मंदिर की बात होती है.

नोट- मैंने यह लेख बिजनेस स्टैंडर्ड के कुमार संभव श्रीवास्वत की लंबी रिपोर्ट के आधार पर लिखा है. कई पैराग्राफ सीधे-सीधे अनुवाद किए हैं. कुमार का शुक्रिया. ऐसी रिपोर्ट का. कम से कम प्रयास करने का कि डेटा और फोन के इस निर्दोष से लगने वाले बंटवारे के क्या परिणाम हो सकते हैं.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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