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This Article is From Mar 26, 2021

चुनाव से ऐन पहले मंदिर क्यों पहुंच जाते हैं PM मोदी? क्या है बंगाल चुनाव से कनेक्शन?

Pramod Kumar Praveen
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 14, 2021 08:27 am IST
    • Published On मार्च 26, 2021 16:48 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 14, 2021 08:27 am IST

पड़ोसी देश बांग्लादेश इस साल अपनी आजादी की 50वीं सालगिरह मना रहा है. 26 मार्च 1971 को ही बांग्लादेश पाकिस्तान से अलग होकर नया देश बना था. इसके साथ ही बांग्लादेश अपने संस्थापक बंगबंधु मुजीबुर्रहमान की जन्मशताब्दी भी मना रहा है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस समारोह में शिरकत करने ढाका पहुंचे हैं. कोरोनावायरस  महामारी के बीच 15 महीनों बाद पीएम मोदी की यह पहली विदेश यात्रा है. दो दिवसीय (26 और 27 मार्च) दौरे में पीएम मोदी द्विपक्षीय संबंधों को प्रगाढ़ करने के अलावा सांस्कृतिक रिश्तों को भी प्रगाढ़ करने की कोशिश करेंगे.

इसी क्रम में PM बांग्लादेश में मतुआ समुदाय के संस्थापक हरिचंद्र ठाकुर के ठाकुरबाड़ी यानी ओरकांडी मंदिर भी जाएंगे. इसके अलावा वह शनिवार को दक्षिण-पश्चिम के ईश्वरीपुर गांव स्थित प्राचीन जेशोरेश्वरी काली मंदिर भी जाएंगे. पीएम का बरीसाल जिले के सुगंधा शक्तिपीठ जाने का भी कार्यक्रम है. सुगंधा शक्तिपीठ हिन्दुओं की आस्था से जुड़ा अहम केंद्र और 51 शक्तिपीठों में से एक है.

खास बात यह है कि जब देश के पूर्वी राज्य और बांग्लादेश से सटे पश्चिम बंगाल में शनिवार (27 मार्च) को लोग विधान सभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग कर रहे होंगे, तब प्रधानमंत्री मतुआ समुदाय के मंदिर में मत्था टेक रहे होंगे. वैसे यह पहली बार नहीं है, जब वोटिंग के वक्त प्रधानमंत्री किसी मंदिर में गए हों. 2018 में कर्नाटक विधान सभा चुनाव के दिन पीएम नेपाल के सीता मंदिर पहुंचे हुए थे. इसी तरह 2019 में लोकसभा चुनाव के वक्त वह केदारनाथ की गुफा में ध्यान लगा रहे थे. इस बार वह बांग्लादेश के मंदिरों में पूजा करेंगे.

पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय से जुड़ी करीब दो करोड़ से ज्यादा की आबादी रहती है. ये राज्य की कुल अनुसूचित जाति का पांचवां हिस्सा है. साल 2011 की जनगणना के मुताबिक राज्य में एससी आबादी 23.51 फीसदी है. उत्तरी 24 परगना, दक्षिणी 24 परगना, न्यू जलपाईगुड़ी, नादिया और आसपास के जिलों एवं बांग्लादेश के सीमावर्ती जिलों की लगभग 30-40  विधानसभा सीटों और सात लोकसभा सीटों पर मतुआ समुदाय का वोट बैंक चुनावों में हार-जीत तय करता है. 2016 के विधान सभा चुनाव में मतुआ समुदाय का वोट ममता बनर्जी की जीत तय करने में बड़ी भूमिका निभा चुका है.

इस समुदाय का संकेंद्रण बंगाल के साथ-साथ असम में भी है. मतुआ समुदाय के लोग मूलत: पूर्वी पाकिस्तान (बांग्लादेश) के निवासी माने जाते हैं. इस समुदाय की स्थापना 1860 में समाज सुधारक हरिचंद्र ठाकुर ने छुआछूत के खिलाफ एकजुट होने और लोगों का जागरूक करने के लिए की थी. देश विभाजन के बाद बड़ी संख्या में इस समुदाय के लोग बंगाल और असम में आकर बस गए थे. मतुआ समुदाय दोनों देशों के बीच साझी सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक भी रहा है.

बीजेपी ने यह वादा भी किया था कि CAA-NRC लागू होगा तो उसका लाभ मतुआ समुदाय के लोगों को होगा जो बांग्लादेश से पश्चिम बंगाल और असम में आकर बसे हैं. लोकसभा चुनाव से पहले भी पीएम मोदी ने फरवरी 2019 में मतुआ समुदाय की 'बोरो मां' बीणापाणी देवी से मुलाकात की थी. इस लिहाज से पीएम उन्हें उनके साथ होने का संदेश भी देंगे.

हालांकि, 5 मार्च, 2019 को बीणापाणि देवी का निधन हो चुका है लेकिन उससे बहुत पहले 2010 में ही उन्होंने ममता बनर्जी को मतुआ समुदाय का संरक्षक घोषित कर दिया था. इस लिहाज से तृणमूल कांग्रेस को 2011 और 2016 के विधान सभा चुनाव में इस समुदाय का साथ मिलता रहा है. 2021 में चुनाव से पहले पीएम मोदी की कोशिश ममता के इस वोटबैंक में सेंधमारी की लगती है.

प्रमोद कुमार प्रवीण NDTV.in में चीफ सब एडिटर हैं...

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