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This Article is From Sep 26, 2016

'असंवैधानिक' होने के बावजूद रद्द नहीं हो सकती सिंधु जलसंधि

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    सितंबर 26, 2016 16:23 pm IST
    • Published On सितंबर 26, 2016 16:03 pm IST
    • Last Updated On सितंबर 26, 2016 16:23 pm IST
उरी हमले के बाद पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद को माकूल जवाब देने में विफल भारत सरकार अब 56 साल पुरानी सिंधु जल-संधि को रद्द करने की बात करके पानीदार होने की कोशिश कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में दायर जनहित याचिका पर तत्काल सुनवाई करने से इंकार कर दिया है. हम तो विमर्श ही कर रहे हैं, लेकिन सुनियोजित रणनीति के तहत उरी हमले के दो महीने पहले ही पाकिस्तान के रक्षा एवं जलमंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसिफ ने भारत पर सिंधु जल-संधि के उल्लंघन का आरोप लगा दिया था. सामरिक विशेषज्ञों के अनुसार तीसरा विश्वयुद्ध पानी के लिए हो सकता है. आतंकवाद से ग्रस्त भारतीय उपमहाद्वीप में क्या नए जल-युद्ध के संकट का आगाज़ हो गया है...

'असंवैधानिक' होने के बावजूद रद्द नहीं हो सकती सिंधु जलसंधि
चीन के साथ सामरिक तनाव के दबाव में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने विश्वबैंक की मध्यस्थता से पाकिस्तानी राष्ट्रपति अयूब खान के साथ 1960 में सिंधु जल-संधि पर हस्ताक्षर किए थे. भारतीय संविधान के अनुसार पानी राज्यों का विषय है, लेकिन उसके बावजूद भारत सरकार द्वारा यह संधि करने से जम्मू-कश्मीर राज्य के हितों को भारी चोट पहुंची. नेहरू सरकार द्वारा संसद से सिंधु-संधि की औपचारिक स्वीकृति नहीं लेने पर सांसद अशोक मेहता ने संवैधानिक विरोध दर्ज कराया, जिसे लोकसभा अध्यक्ष ने 14 नवंबर, 1960 को अस्वीकार कर दिया. इसके बाद 2003 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सिंधु-संधि को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया. पाकिस्तान के साथ तीन युद्ध होने के बावजूद सिंधु जल-संधि बरकरार रही, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सिंधु-संधि को भारत सरकार अब एकतरफा रद्द नहीं कर सकती.

सिंधु-संधि पर एकतरफा कार्रवाई से पड़ोसी देशों से तनाव का संकट
सिंधु और ब्रह्मपुत्र का उद्गम चीन से होता है, जिसके साथ जल-बंटवारे के लिए भारत की कोई औपचारिक संधि नहीं है. भारत सरकार ने पाक अधिकृत कश्मीर पर दावा किया है, उसके बावजूद चीन द्वारा पाक अधिकृत कश्मीर में बड़े पैमाने पर राजमार्गों का विकास किया जा रहा है. चीन अंग्रेजों के समय किए गए सीमांकन को नहीं मानते हुए अरुणाचल प्रदेश पर सवाल उठाता रहता है. भारत द्वारा सिंधु-संधि रद्द करने पर चीन ब्रह्मपुत्र के बहाव को परिवर्तित करने के साथ सिन्धु नदी के बहाव को बाधित कर सकता है. बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने फरक्का बांध पर सवाल उठाकर जलसंकट के अंतरराष्ट्रीय आयाम को दर्शाया है, जहां बांग्लादेश और नेपाल के साथ जल विवाद भारत के लिए विनाशकारी हो सकता है.

सिंधु-संधि रद्द होने से पाकिस्तान में कट्टरपंथी ताकतें मजबूत होंगी
पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद का जवाब सिन्धु जल समझौते को रद्द करके नहीं दिया जा सकता. तमाम आतंकवादी घटनाओं के बावजूद पाकिस्तान को सर्वाधिक अनुकूल देश (एमएफएन) देश का दर्ज़ा भारत ने बरकरार रखा है. सिंधु-संधि संधि से पाकिस्तान को 5,900 टीएम क्यूबिक फीट पानी मिल गया, जबकि कर्नाटक-तमिलनाडु में सिर्फ 3.8 टीएम क्यूबिक फीट पानी ही संवैधानिक संकट का कारण है. सिंधु-संधि से पाकिस्तान का 90 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र होने के साथ आम पाकिस्तानी आवाम को लाभ हो रहा है. सिंधु-संधि को एकतरफा रद्द करने से भारतीय उपमहाद्वीप में कट्टरपंथी ताकतों को बढ़त मिलने के साथ अंतरराष्ट्रीय जगत में भारत का पक्ष कमजोर होगा.

भारतीय राज्यों में जल-समझौतों को दरकिनार करने से संवैधानिक संकट
कर्नाटक विधानसभा ने प्रस्ताव पारित करके सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद तमिलनाडु को कावेरी नदी का पानी देने से इंकार कर दिया है. पंजाब के चुनावों में वोटों की फसल काटने के लिए राजनीतिक दलों ने संवैधानिक समझौते को तिलांजलि दे दी है, जिसका खामियाज़ा हरियाणा भुगत रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में 'नदियों को जोड़ने की परियोजना' (आईएलआर) को क्रियान्वित करने का निर्देश दिया है. राज्यों द्वारा जब पुराने जल-समझौतों पर सवाल खड़े हो रहे हैं, फिर नदी जोड़ने के लिए नए समझौते कैसे हो पाएंगे...?

सिंधु-संधि रद्द करने की बजाय उपलब्ध जल के बेहतर प्रबंधन की हो जंग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान के साथ गरीबी तथा बेरोजगारी के साथ लड़ाई हेतु 'मन की बात' कही है, जिससे आतंकवाद स्वतः कमजोर हो सकता है. यदि सिंधु जल-संधि रद्द की गई तो पाकिस्तान की आम जनता भी भारत के विरोध में आ जाएगी, जिससे पाकिस्तानी सेना को लाभ होने के साथ कश्मीर में आतंकवाद बढ़ेगा. पाकिस्तान को सिंधु नदी का पानी रोकने के चक्कर में जम्मू तथा पंजाब के कई शहरों में बाढ़ का संकट पैदा हो सकता है. कश्मीर में ऊर्जा की कमी से औद्योगिक पिछड़ापन है. सिंधु-समझौते के तहत उपलब्ध जल की सिंचाई, पेयजल और ऊर्जा हेतु बेहतर प्रबंधन करके ही नरेंद्र मोदी, भारतीय उपमहाद्वीप में विकास की नई जंग छेड़ सकते हैं...!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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