राजनीतिक संकट से जूझते उत्तराखंड में नित नए संवैधानिक संकट खड़े हो रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट द्वारा 6 मई को दिए गए आदेश के अनुसार आज 10 मई को उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण हुआ, जिसकी रिपोर्ट सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख कल पेश होगी।
दो महीने बाद बहुमत परीक्षण कराना ही पड़ा : बोम्मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुरूप उत्तराखंड संकट का समाधान विधानसभा में विधायकों के बहुमत के आधार पर ही हो सकता है। इस हेतु पहले 28 मार्च, फिर 30 मार्च फिर 29 अप्रैल पर अटकते हुए अंततः 10 मई को विधानसभा में बहुमत परीक्षण कराना ही पड़ा। नौ कांग्रेसी विधायकों के विद्रोह के बाद राज्यपाल ने 28 मार्च को मुख्यमंत्री हरीश रावत को विधानसभा में अपना बहुमत साबित करने के लिए कहा था, परंतु उसके पहले ही केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया।
उत्तराखंड हाईकोर्ट में जस्टिस ध्यानी की बेंच ने 29 मार्च के आदेश से विधानसभा में 31 मार्च को विधायकों के बहुमत परीक्षण का निर्देश दिया था, जिसे केंद्र सरकार की अपील पर चीफ जस्टिस की बेंच ने 30 मार्च के आदेश से स्थगित कर दिया। चीफ जस्टिस जोसफ ने मामले की सुनवाई करते हुए 21 अप्रैल के आदेश से केंद्र सरकार के विरुद्ध सख्त टिप्पणी करते हुए राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना को निरस्त कर दिया और 29 अप्रैल को विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए निर्देश दिया। केंद्र सरकार की अपील पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के आदेश को स्थगित कर दिया पर 6 मई के आदेश से 10 मई को विधानसभा में बहुमत परीक्षण का निर्देश दिया, जो आज संपन्न हो गया है।
कौन था दो घंटे के लिए उत्तराखंड का 'माईबाप' : 'नायक' फिल्म में अनिल कपूर एक दिन का मुख्यमंत्री बनकर पूरे राज्य में बदलाव ला देते हैं, उसी तर्ज पर हाईकोर्ट के आदेश के बाद बगैर अधिसूचना के हरीश रावत ने अपने घर में ही 21 अप्रैल को मंत्रिमंडल की बैठक कर अनेक बड़े निर्णय लिए थे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा गैरकानूनी बताया गया था। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू होता है, जिसमें विधानसभा भी निलंबित रहती है। हाईकोर्ट द्वारा राष्ट्रपति शासन के दौरान शक्ति परीक्षण को केंद्र सरकार ने असंवैधानिक करार दिया था, परंतु अब सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश से 2 घंटे के लिए राष्ट्रपति शासन की अधिसूचना को निलंबित करते हुए विधानसभा में शक्ति परीक्षण कराया, जिसके लिए जगदंबिका पाल मामले को आधार माना गया। राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल ही राज्य के शासन को संभालते हैं। सामान्य तौर पर संविधान के अनुच्छेद 163 के अनुसार राज्यपाल मुख्यमंत्री और राज्य मंत्रिमंडल की अनुशंसा पर काम करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में राज्यपाल को दो घंटे के लिए प्रमुख नियुक्त किया है। सवाल यह है कि आज दो घंटे के लिए क्या कानूनी तौर पर हरीश रावत मुख्यमंत्री थे...? अगर यह सच नहीं है तो क्या आज दो घंटे के काल में राज्यपाल, राष्ट्रपति द्वारा ही संचालित थे...?
बहुमत सिद्ध होने के बावजूद सरकार बनने में है पेंच : उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल जनवरी, 2017 को समाप्त हो रहा है, जबकि सुप्रीम कोर्ट अयोग्य विधायकों की याचिका पर सुनवाई 12 जुलाई को करेगा। कांग्रेस के 9 बागी विधायकों को स्पीकर ने दल-बदल कानून के तहत 27 मार्च को अयोग्य घोषित कर दिया। लंबी कानूनी लड़ाई के बाद उत्तराखंड हाईकोर्ट ने 9 मई के आदेश से स्पीकर के निर्णय पर मोहर लगा दी। इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इंकार करते हुए मामले को 12 जुलाई को सुनवाई के लिए लगाया है। सवाल यह है कि अगर सुप्रीम कोर्ट स्पीकर के निर्णय को बदलते हुए इन विधायकों को योग्य करार देता है तो क्या विधानसभा में फिर शक्ति परीक्षण होगा...? एक अहम सवाल यह भी है कि 9 विधायकों की सदस्यता पर अंतिम निर्णय लेने से पूर्व हरीश रावत को सरकार बनाने की अनुमति मिलेगी...?
उत्तराखंड में हॉर्स-ट्रेडिंग की सुप्रीम कोर्ट द्वारा करानी चाहिए जांच : 'शक्तिमान' घोड़े की मृत्यु से विवादों में आए भाजपा के विधायक गणेश जोशी ने उत्तराखंड में हॉर्स-ट्रेडिंग की हकीकत को स्वीकार करते हुए हरीश रावत द्वारा धनबल के आधार पर बहुमत हासिल करने का आरोप लगाया है। मुकदमों के बोझ से कराहता देश राजनेताओं की कानूनी जंग से थक चुका है। कानूनी बारीकियों पर बहस की बजाए लोकतंत्र का तकाजा यह है कि उत्तराखंड के सभी विधायकों का नार्को टेस्ट और उनके लेन-देन की जांच हो, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट से ही उम्मीद की जा सकती है।
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From May 10, 2016
उत्तराखंड में दो घंटे का संवैधानिक संकट : बहुमत के बावजूद सरकार बनने में पेंच
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:मई 10, 2016 16:46 pm IST
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Published On मई 10, 2016 14:13 pm IST
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Last Updated On मई 10, 2016 16:46 pm IST
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