- एसोचैम और विदेशी निवेशकों के अनुसार जीएसटी से भारत की जीडीपी में 1.5 से 2 फीसदी की वृद्धि होने से यह 7.4 से 9 फीसदी तक पहुंच सकती है।
- सरकार का अनुमान है कि जीएसटी से कर संग्रह में 30 से 40 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है, जैसी वर्ष 2003 में राज्यों द्वारा बिक्री कर को छोड़कर वैट अपनाने से हुई थी।
- भारत में 55 फीसदी आबादी कृषि क्षेत्र पर निर्भर है, परंतु उसे जीडीपी का 15 फीसदी लाभ ही मिलता है, इसलिए खेती में और अधिक रोज़गारों की संभावना नहीं है। भारत के 10 करोड़ युवाओं को रोजगार देने के लिए 50 लाख मध्यम और छोटे उद्योगों (SMEs) का विकास करना होगा, जो जीएसटी के सुधारों से संभव हो सकेगा, ऐसा मोदी सरकार का विश्वास है।
पहला भाग : दरअसल क्या है जीएसटी, जो हो रहा है राजनीतिक असहिष्णुता का शिकार...?
दूसरा भाग : जीएसटी से बढ़ेगी महंगाई, जो अगले चुनाव में बनेगी कांग्रेस का ब्रह्मास्त्र
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जीएसटी से केंद्र-राज्य संबंध और संघवाद के लिए चुनौती
- 14वें वित्त आयोग के एक सदस्य के अनुसार यह ऐसा टैक्स कानून होगा, जिसमें 37 खिलाड़ी होंगे, और इनमें प्रमुख भूमिका केंद्र सरकार की रहेगी, परंतु 29 राज्य और सात केंद्रशासित प्रदेश राजनैतिक लाभ के लिए इस जीएसटी के अर्थतंत्र को कभी भी बिगाड़ सकते हैं।
- पश्चिम बंगाल जैसे मुख्य रूप से 'उपभोग' करने वाले राज्यों को जीएसटी राजस्व हिस्सेदारी में लाभ मिल सकता है, जबकि 'उत्पादन' करने वाले राज्यों - यथा महाराष्ट्र और गुजरात - को कर राजस्व में घाटा हो सकता है, जिससे वे भड़के हुए हैं। केंद्र ने कथित तौर पर गुजरात को दो साल तक समान जीएसटी हिस्सेदारी के अलावा कर राजस्व में एक प्रतिशत अतिरिक्त कर राजस्व देने पर रज़ामंदी जाहिर की है।
- केंद्र सरकार राज्यों को भरपाई की गारंटी देने के लिए इसके लिए संविधान में व्यवस्था करने पर भी तैयार हो गई है, जिसके अनुसार जीएसटी से राज्यों को जितना नुकसान होगा, तीन साल तक 100 फीसदी, चौथे साल 75 फीसदी और पांचवें साल 50 फीसदी नुकसान की भरपाई केंद्र सरकार करेगी। इसकी वजह से अन्य राज्यों द्वारा भी केंद्र से मांग की ही जाएगी।
- देश के वर्तमान राजनीतिक अविश्वास के माहौल में जब संसदीय प्रणाली विफल हो रही हो, जीएसटी के माध्यम से विभिन्न राज्यों में कराधान प्रणाली की एकरूपता हासिल हो पाएगी या नहीं, यह आने वाला समय ही बताएगा।
- आज़ादी के बाद संघीय व्यवस्था राजनैतिक दुराग्रहों की शिकार रही है, जिसकी बानगी जलविवादों में सुप्रीम कोर्ट के आदेशों की अवज्ञा में देखने में मिलता है। जीएसटी के भावी विवाद में पंचाट या परिषद कितनी सफल होंगी, यह अनुमान लगा पाना मुश्किल नहीं है।
- केंद्र सरकार बुनियादी टैक्स ढांचे से किनारा करते हुए सेस व सरचार्ज के जरिये राजस्व जुटा रही है, जो वित्तीय संघवाद के माफिक नहीं है।
- सभी तरह के सेस व सरचार्ज से केंद्र सरकार को करीब 1.15 लाख करोड़ रुपये का राजस्व मिलने का अनुमान है। यह सेस-राज न केवल उद्योगों, उपभोक्ताओं की मुसीबत है, बल्कि राज्यों के बीच केंद्र को भी अलोकप्रिय बनाता है। भविष्य में जीएसटी के माध्यम से केंद्र सरकार के ऐसे प्रयोग कराधान प्रणाली और वित्तीय तंत्र को ध्वस्त कर देंगे।
अंतरराष्ट्रीय और विदेशी निवेशकों की आशंकाएं
कर सुधारों को लेकर मोदी सरकार के 18 महीनों का कामकाज यह बताता है कि या तो सरकार में एक हाथ को यह पता नहीं है कि दूसरा हाथ क्या कर रहा है, अथवा फिर कहीं कोई योजना है ही नहीं और व्यवस्था ज्यों की त्यों है। पहले इन्कम टैक्स और मैट के फैसलों ने निवेशकों की उम्मीदें तोड़ी थीं, अब जीएसटी की बारी है। मूडीज़ ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अमेरिका में ब्याज़ दरों के बढ़ने का खतरा है, इस कारण ग्लोबल इकोनॉमी में बेचैनी है। ब्याज़ दरें बढ़ने का भारत की इकोनॉमी पर भी स्लोडाउन का प्रभाव पड़ सकता है। अगर सरकार जीएसटी को लागू नहीं करा पाती तो इससे विदेशी निवेशकों को गहरा धक्का लग सकता है और भारत में अपनी इन्वेस्टमेंट रणनीति को वे बदल सकते हैं।
राज्यसभा में पारित होने के बाद भी जीएसटी की बाधाएं
- 1 अप्रैल, 2016 से लागू करने के लिए जीएसटी बिल को राज्यसभा में पारित करने के बाद कानून बनने के लिए कम से कम 15 राज्यों की मंज़ूरी चाहिए होगी, जबकि एनडीए शासित राज्यों की संख्या 13 है। राज्यों द्वारा अनुमोदन में विलंब से जीएसटी का क्रियान्वयन 2017 के वित्तीय वर्ष के लिए टल सकता है।
- जीएसटी हेतु राज्यों के वित्तमंत्रियों की समिति के चेयरमैन केएम मणि द्वारा केरल में बार मालिकों द्वारा लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते 12 नवंबर को इस्तीफा देने के बाद नए चेयरमैन की नियुक्ति भी नहीं हुई है, जिसको परम्परानुसार गैर-एनडीए पार्टी से होना है।
- सरकार का दावा है कि जीएसटी लागू करने के लिए प्रौद्योगिकी ढांचा तैयार करने और उसकी देखरेख के लिए इन्फोसिस के साथ 1,380 करोड़ रुपये का करार हो चुका है। सरकार ने जीएसटी नेटवर्क संस्था बनाई है, जो जीएसटी लागू करने के केंद्र तथा राज्यों के डाटाबेस को आपस में जोड़ेगी।
वर्तमान राजनीतिक गतिरोध और संवादहीनता के दौर में राज्यों द्वारा इसे लागू करने के लिए केंद्र सरकार से बेजा मांगें मनवाने का प्रयास हो सकता है और न मानने पर असहयोग, जिससे इसके क्रियान्वयन में विलंब से संसदीय तंत्र की विफलता और भी उभरेगी, जो इसे पिछले एक दशक से लागू करा पाने में विफल हो रहा है। कर व्यवस्था में राजनीति की कीमत आम जनता को भी चुकानी पड़ेगी, क्योंकि दोहरे कराधान की पूरी गुंजाइश जीएसटी कानून में है।
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और टैक्स मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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