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This Article is From Apr 19, 2016

संता-बंता के खिलाफ पर्याप्त कानून - फिर अदालतों का चक्कर क्यों...?

Virag Gupta
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 19, 2016 17:49 pm IST
    • Published On अप्रैल 19, 2016 17:49 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 19, 2016 17:49 pm IST
बॉम्बे हाईकोर्ट ने फिल्म 'संता-बंता प्राइवेट लिमिटेड' की 22 अप्रैल को होने वाली रिलीज़ रोकने से इंकार करते हुए फिल्म के निर्माता, सेंसर बोर्ड (सीबीएफसी) व राज्य सरकार को दो हफ्ते में हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अदालत का यह आदेश बहुत विरोधाभासी है। याचिकाकर्ता के अनुसार फिल्म में फूहड़, अश्लील व अपमानजनक चित्रण से सिख समाज की मानवीय गरिमा तार-तार की गई है, लेकिन इस आपत्ति के बावजूद फिल्म यदि रिलीज़ हो गई तो फिर आगे की सुनवाई का क्या औचित्य...? मामले ने इतना तूल पकड़ लिया है कि गुरप्रीत और प्रभप्रीत सिंह ने 18 साल तक 'संता-बंता' का किरदार निभाने के बाद नाम बदलकर 'जुगली-शुगली' रख लिया। इस बारे में वर्तमान कानूनों का पालन करने की बजाए क्या नए कानून की सचमुच जरूरत है...?

सिखों के अपमानजनक चित्रण के विरुद्ध हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में मामले - इस फिल्म को सेंसर बोर्ड ने अक्टूबर, 2015 में ही अनुमति दे दी थी। इसके विरुद्ध मार्च, 2016 में दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर हुई, जिसने अपने आदेश में सेंसर बोर्ड को निर्देश दिया कि वह फिल्म को दिए गए यू/ए सर्टिफिकेट पर पुनर्विचार करते हुए 8 अप्रैल से पहले फैसला बताए। इसके बावजूद बॉम्बे हाईकोर्ट में नई याचिका कैसे दाखिल कर दी गई...?

महिला वकील हरविंदर चौधरी द्वारा भी सिखों के विरुद्ध आपत्तिजनक चुटकुलों को आईपीसी की धारा 153-ए और 153-बी का उल्लंघन बताते हुए पिछले वर्ष सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट के जजों ने खुशवंत सिंह का उदाहरण देते हुए कहा कि सिख समुदाय अपने जबरदस्त हास्यबोध के लिए जाना जाता है, परन्तु याचिकाकर्ता के विशेष आग्रह पर अदालत सुनवाई के लिए राजी हो गई, जहां नई गाइडलाइन्स के बिंदुओं पर दो महीने बाद बहस होगी। रैगिंग की तरह बुलीइंग के विरुद्ध पर्याप्त कानून हैं, जिन पर जागरूकता पैदा करने के लिए शिक्षा मंत्रालय द्वारा आवश्यक दिशानिर्देश जारी किए जाने चाहिए, जिससे सिख समुदाय के बच्चों को स्कूलों में प्रताड़ित होने से बचाया जा सके।

अवमाननापूर्ण चुटकुलों के खिलाफ हो चुकी हैं एफआईआर और गिरफ्तारियां - ऐसे आपत्तिजनक मामलों से निपटने के लिए देश में पर्याप्त कानून हैं। वर्ष 2005 में प्रीतीश नंदी की फिल्म 'शब्द' में ज़ाएद खान और ऐश्वर्या राय के संवादों पर सिख समुदाय की शिकायत पर कारवाई हुई थी और लेख लिखने के लिए वरिष्ठ पत्रकार वीर संघवी के विरुद्ध भी शिकायत दर्ज हुई थी। मार्च, 2007 में संता-बंता के चुटकुलों की किताब बेचे जाने पर आईपीसी की धारा 295 के तहत मुंबई के पुस्तक विक्रेता के विरुद्ध और फिर दिसंबर, 2007 में लखनऊ में अनिल अंबानी की रिलायंस कम्युनिकेशन के विरुद्ध धार्मिक भावनाओं को भड़काने के आरोप में एफआईआर दर्ज हो चुकी हैं। वर्ष 2013 में जालंधर में सिखों के विरुद्ध आपत्तिजनक मैसेज भेजने पर एक व्यक्ति को आईपीसी तथा आईटी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था।

कैसे लागू हो कानून - सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस की बेंच द्वारा जब यह सवाल किया गया कि अगर अदालत कोई आदेश पारित कर भी दे तो समाज और मीडिया में उसे कैसे लागू किया जाएगा, तो जवाब में याचिकाकर्ता द्वारा कहा गया कि कानून बनने से लोगों में भय पैदा होगा, जिसके लिए सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता को मॉडल गाइडलाइन्स प्रस्तावित करने का निर्देश दिया। याचिकाकर्ता के अनुसार 5,000 से अधिक वेबसाइटों द्वारा संता-बंता के आपत्तिजनक चुटकुलों से 500 करोड़ रुपये का कारोबार है, जिसे दूरसंचार मंत्रालय आईटी एक्ट के तहत वेब फिल्टर लगाकर ब्लॉक कर सकता है।

सोशल मीडिया पर कैसे लगे लगाम और सेंसर बोर्ड की निरर्थकता - पोर्नोग्राफिक वेबसाइटों को भारत में ब्लॉक करने की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान सरकार ने यह माना कि ये गैरकानूनी तथा बच्चों के लिए हानिकारक हैं, फिर भी उन्हें ब्लॉक नहीं किया जा रहा। व्हॉट्सऐप, फेसबुक एवं अन्य सोशल मीडिया के सर्वर विदेशों में स्थित हैं, जिनसे आवाजाही पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। इसे संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार भी मिला है, जिस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66 ए को रद्द कर दिया था। सेंसर बोर्ड प्रमाणन के बगैर, फिल्मों का ट्रेलर तथा रिलीज़ यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के माध्यम से हो जाता है तो फिर सेंसर बोर्ड के सर्टिफिकेट का क्या औचित्य है...? उम्मीद है श्याम बेनेगल की समिति इस बिंदु पर भी विचार करेगी।

मजाक तथा दुष्प्रचार से अन्य समुदायों में भी है असंतोष - सिखों ने देश के लिए बड़े बलिदान दिए हैं और देश के विकास में 1.25 करोड़ सिखों की महत्वपूर्ण भूमिका है, लेकिन उनके अलावा सिंधी, मारवाड़ी, जाट, पठान, यहूदी, पारसी, पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों तथा महिला समुदाय के विरुद्ध भी सोशल मीडिया पर अपमानजनक चुटकुले प्रसारित होते हैं। यदि सिख समाज के लिए सुप्रीम कोर्ट विशेष आदेश पारित करता है तो आगे चलकर अन्य समुदायों द्वारा भी ऐसे विशेष कानूनों की मांग उठ सकती है। सुप्रीम कोर्ट के सम्मुख जब वकील ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान की गई टिप्पणी कि 'बिहारी लोग बुद्धिमान होते हैं' का जिक्र करते हुए कहा कि इससे ऐसा लगता है कि दूसरे समुदाय के लोग बुद्धिमान नहीं है। इस पर सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने टिप्पणी करते हुए कहा कि चिंता मत कीजिए, जब प्रधानमंत्री पंजाब जाएंगे तो कहेंगे कि 'सिख भी बहुत बुद्धिमान हैं!

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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