सत्ता की 'पॉवर ऑफ अटॉर्नी' की बंदरबांट से उत्तर प्रदेश में संवैधानिक संकट

सत्ता की 'पॉवर ऑफ अटॉर्नी' की बंदरबांट से उत्तर प्रदेश में संवैधानिक संकट

सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव (फाइल फोटो)

मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उत्तर प्रदेश के वर्तमान संकट पर कहा कि लड़ाई परिवार में नहीं, सरकार में है, जबकि आलोचकों के अनुसार मुलायम परिवार में 'कद और पद' के वर्चस्व की लड़ाई से यह संकट उपजा है. समाजवादी पार्टी, यानी सपा में प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति मुलायम सिंह यादव का विशेषाधिकार है, लेकिन क्या उनके द्वारा मंत्रियों की बहाली की जा सकती है...? सत्ता की 'पॉवर ऑफ अटॉर्नी' के नियंत्रण हेतु मचे पारिवारिक-राजनीतिक घमासान से, क्या उत्तर प्रदेश में संवैधानिक संकट पैदा हो गया है...?

मुलायमवाद, परिवारवाद और वंशवाद में सिसकता समाजवाद : आज़ाद भारत में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने राजनीति में परिवारवाद की नींव रखी. आपातकाल में जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में मुलायम सिंह यादव, लालूप्रसाद यादव समेत बहुत-से नेताओं द्वारा इंदिरा गांधी के वंशवाद तथा संजय गांधी के सरकार में हस्तक्षेप का विरोध किया गया, लेकिन अब सभी नेता उसी मर्ज़ के शिकार हो गए हैं. मुलायम परिवार के 13 सदस्य विधायक, सांसद, मंत्री, मुख्यमंत्री तथा अन्य महत्वपूर्ण पदों पर हैं, और बाकी कतार में खड़े हैं. राममनोहर लोहिया के समाजवाद की विरासत का दावा करने वाले मुलायम सिंह यादव के नाम पर अब 'मुलायमवाद' का अजब हो-हल्ला होने लगा है. रजवाड़ों की समाप्ति के बाद उत्तर प्रदेश में पनपी नवराजशाही, क्या संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत नहीं है...?

'उत्तम प्रदेश' में भ्रष्ट सत्ता की राजनीति : मुलायम सिंह यादव के कुनबे के विभिन्न धड़ों द्वारा लगाए गए आरोप-प्रत्यारोप से स्पष्ट है कि, प्रदेश सरकार कानून की बजाय सामंती पद्धति से संचालित है. मोहम्मद आज़म खान तथा रामगोपाल यादव ने संकट के लिए अमर सिंह को जिम्मेदार ठहराया. आरोपों के अनुसार अमर सिंह ने सत्ता सूत्र की बागडोर अपने हाथ में रखने के लिए दीपक सिंघल को मुख्य सचिव पद पर नियुक्त करवाया था. अमर सिंह पर पूर्व में भी भ्रष्टाचार तथा सत्ता की सौदेबाजी के आरोप लग चुके हैं. इन सब के बावजूद समाजवादी पार्टी ने अमर सिंह को किस या किन दबावों में राज्यसभा के लिए नामित किया...? सुप्रीम कोर्ट द्वारा राजनीतिक बंदरबांट के आपराधिक तंत्र की जांच कराई जाए तो, 'उत्तम प्रदेश' में भ्रष्ट सत्ता की राजनीति का पूरा सच सामने आ जाएगा.

अवैध खनन और भ्रष्टाचार की सीबीआई जांच से केंद्र सरकार का दबाव : इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा राजनीतिक संरक्षण में अवैध खनन माफिया के विरुद्ध सीबीआई जांच के आदेश के बाद अखिलेश यादव ने दो मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया. मायावती की बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में 2005-2011 के दौरान सीएजी ने 1,400 करोड़ के खनन घोटाले का पर्दाफाश किया है. आरोपों के अनुसार सपा सरकार के दौरान सालाना 5,000 करोड़ के अवैध खनन का कारोबार है. क्या इतने बड़े खनन माफिया की जवाबदेही सिर्फ दो मंत्रियों की बर्खास्तगी से पूरी हो जाती है...? क्या इन सभी के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज नहीं होने चाहिए...? यादव सिंह द्वारा नोएडा में 954 करोड़ से अधिक घोटाले का खुलासा हुआ, जिसमें मुलायम परिवार के कई सदस्यों की भूमिका थी. शिवपाल यादव खुद भी सत्तारूढ़ दल के नेताओं पर भूमाफिया होने के आरोप लगा चुके हैं, जिनका मुलायम सिंह ने समर्थन किया. उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में सीबीआई केंद्र की भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) सरकार का मोहरा बनेगी या भ्रष्ट नेताओं को सजा दिलवा पाएगी, इससे आगामी सरकार के चरित्र का निर्धारण होगा.

सत्ता की 'पॉवर ऑफ अटॉर्नी' से उपजा संवैधानिक संकट : मध्य प्रदेश के रतलाम में एक महिला प्रधान ने प्रधानी का काम करने के लिए अपने पति के पक्ष में पॉवर ऑफ अटॉर्नी दे दी तो उस पर प्रशासनिक सवाल खड़े हो गए. उत्तर प्रदेश में संवैधानिक सत्ता तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के पास है, लेकिन 'पॉवर ऑफ अटॉर्नी' के लिए कई कद्दावर नेता संघर्षरत हैं. मुलायम सिंह यादव ने कहा है कि बर्खास्त किए गए मंत्रियों को बहाल कर दिया जाए. क्या यह मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के विरुद्ध पार्टी सुप्रीमो का अविश्वास प्रस्ताव है...? भारत के संविधान में सत्ता के अप्रत्यक्ष नियंत्रण तथा बंदरबांट के लिए कोई प्रावधान नहीं है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री हरीश रावत द्वारा विधायकों को प्रलोभन देने के आरोपों के बाद राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था. उत्तर प्रदेश में क़ानून के शासन पर आए भयावह संकट को रोकने के लिए, क्या केंद्र सरकार अपने संवैधानिक उत्तरदायित्वों का निर्वहन करेगी...?

विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...

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