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चली गईं आत्मबल की असीम शक्ति वाली विमला बहुगुणा

Himanshu Joshi
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 16, 2025 10:04 am IST
    • Published On फ़रवरी 16, 2025 09:59 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 16, 2025 10:04 am IST
चली गईं आत्मबल की असीम शक्ति वाली विमला बहुगुणा

पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य करने के बाद पर्यावरण संरक्षण से जुड़े कार्यकर्ताओं को राह दिखाने वाली विमला बहुगुणा की कमी ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में हमेशा खलती रहेगी.14 फरवरी को सुंदर लाल बहुगुणा की पत्नी सामाजिक कार्यकर्ता विमला बहुगुणा का निधन हो गया. उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने फेसबुक पोस्ट के जरिए इसकी जानकारी देते हुए लिखा 'भोर 2:10 बजे माँ ने अंतिम साँस ली. वह देहरादून, शास्त्री नगर स्थित आवास पर थीं.

अंत घड़ी चूंकि मैं उनके साथ अकेला था, अतः घबरा न जाऊं, यह सोच कर उखड़ती सांसों के साथ पड़ोस में रहने वाले मेरे चचेरे बड़े भाई को बुलवाने के निर्देश दिए. सतत 93 साल तक प्रज्वलित एक ज्योति शिखा का अनंत ज्योति में मिलन.

साल 2021 में सुंदर लाल बहुगुणा की पत्नी विमला बहुगुणा से उनके देहरादून स्थित आवास पर मेरा मिलना हुआ था. उनके पुत्र राजीव नयन बहुगुणा ने मुझे विमला बहुगुणा से मिलवाया, नैनीताल समाचार के साथ जुड़ाव होने की बात पता चलते ही स्वास्थय खराब होने के बावजूद विमला बहुगुणा मुझसे आत्मीयता के साथ मिली थीं. नैनीताल समाचार के सम्पादक राजीव लोचन साह, पद्मश्री शेखर पाठक की कुशलक्षेम पूछने के साथ उन्होंने मुझसे थोड़ी बहुत बातचीत की.

सरला बहन और विनोबा भावे के साथ रहीं विमला

टिहरी जिले के मालीदेवल गांव में 4 अप्रैल 1932 को वन विभाग में अधिकारी नारायण दत्त नौटियाल के घर विमला बहुगुणा का जन्म हुआ था. उनकी मां रत्ना देवी नौटियाल पहाड़ों में प्रचलित बहुपति प्रथा, कन्या व्यापार का विरोध करने के साथ शराबबंदी आंदोलन के दौरान सबसे पहले जेल गई थीं.

कक्षा आठवीं तक की शिक्षा टिहरी से प्राप्त करने के बाद विमला, सरला बहन के कौसानी स्थित 'कस्तूरबा महिला उत्थान मंडल' में पढ़ने के लिए चले गए थीं. सरला बहन ने महात्मा गांधी को वचन दिया था कि बीस साल के बाद वह अपनी संस्था में निकली लड़कियों का जीवन बदल देंगी और पहाड़ में कमरतोड़ मेहनत करने वाली लड़कियों को वह समाज में पुरुषों के बराबर के अधिकार दिलवाएंगी. पहाड़ की महिलाओं को जागरूक बनाने के लिए विमला बहुगुणा, सरला बहन के साथ पीठ पर अपना थोड़ा-सा सामान लादकर गांव-गांव घूमने जाती थीं.

विनोबा भावे ने साल 1953 में भूदान आंदोलन शुरू किया तो विमल बहुगुणा भी उनसे जुड़ी थीं. कुछ समय बाद शादी के बाद काम में रुकावट न बनने और राजनीति छोड़ने की शर्त रखते, उन्होंने सुंदर लाल बहुगुणा के साथ विवाह किया. 
इसके बाद अपने पति के साथ टिहरी के सिलयारा में 'पर्वतीय नवजीवन मंडल' की स्थापना करते उन्होंने शिक्षा पर काम शुरू किया, शराबबंदी आंदोलन में हिस्सा लेते वह जेल में भी रहीं. चिपको आंदोलन के साथ, टिहरी बांध और विस्थापन आंदोलन में उनकी सक्रिय भागीदारी थी. साल 1975 में उन्हें इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च द्वारा 'खेती अवॉर्ड' और 1995 में जमनालाल बजाज फाउंडेशन द्वारा 'जमनालाल बजाज अवॉर्ड' प्रदान किया गया था.

पर्यावरण के लिए बहुगुणा दंपत्ति द्वारा किए कार्यों को आगे बढ़ाना ही उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि

विमला बहुगुणा के बारे में बात करते उत्तराखंड में गांधीवादी विचारों पर कार्य कर रहे अनिरूद्ध जडेजा कहते हैं कि वह गांधी विचारों की नेत्री थी. साल 1997- 98 में मेरा उनसे पहली बार संपर्क हुआ, वो दिन में कभी नही भूल सकता. पर्यावरण के विद्यार्थी के तौर पर मैं जब गुजरात से उत्तराखंड सुंदर लाल बहुगुणा के घर पहुंचा तो विमला बहुगुणा ने मुझसे कहा कि अनिरुद्ध बातें बाद में होते रहेंगी पहले खाना खा लो. उनका सभी कार्यकर्ताओं से यही व्यवहार रहता था, वह टिहरी पहुंचने पर 'गंगाकुटी' में सभी को सबसे पहले खाना खिलाती थीं. इसके बाद उन्होंने मुझे सिलयारा स्थित अपने आश्रम में शिक्षा, पर्यावरण, रोज़गार से जुड़े कार्य करने के लिए भेजा. वहां भेजते उन्होंने मुझसे कहा कि मैं आपको कुछ दे तो नही सकती पर आपको मैं कच्ची घानी का तेल भेजते रहूंगी. सिलयारा में बच्चों को पढ़ाने, सब्जी, फल उगाने की वह अन्य व्यस्तताओं के बावजूद जानकारी लेती रहती थी.

अनिरुद्ध कहते हैं जब उत्तराखंड राज्य अलग बना और उसका जश्न मनाया जा रहा था, तब विमला बहुगुणा ने मुझसे कहा कि आपको कुमाऊं और गढ़वाल दोनों को जोड़ने के लिए कार्य करना होगा. इसके लिए उनके कहने पर वह साल 2002 में 'उत्तराखंड सर्वोदय मंडल' के प्रथम सचिव बनाए गए. दीक्षा बिष्ट के साथ गरुड़ में शराब भट्टी हटाने के लिए किए जा रहे आंदोलन में विमला बहुगुणा ने हमारा मार्गदर्शन करते उपवास पर बैठने के लिए कहा.

अनिरुद्ध आगे बताते हैं कि मेरी शादी पक्की होने की खबर सुनते ही उन्होंने मुझसे कहा कि मैं अपनी बहुरानी को आशीर्वाद देने गुजरात जरूर आऊंगी. इसके बाद वह मेरी शादी में शामिल होने सुंदर लाल बहुगुणा के साथ ट्रेन में जामनगर पहुंची थीं, तब यह पूरे गुजरात में एक बड़ी खबर बन गई थी.


हम जैसे कार्यकर्ताओं के लिए वह मां समान थी, सभी पर्यावरण प्रेमियों को वह रास्ता दिखाती थी. उनका वजन अगर कोई तोलता तो वह महज 30- 35 किलो का होता पर उनमें आत्मबल की असीम शक्ति थी. इस वजह से वह सुंदर लाल बहुगुणा की रीढ़ की हड्डी भी थी. पर्यावरण कार्यकर्ताओं को जोड़ने, गाँव की महिलाओं को हिम्मत देने के साथ आन्दोलनों का व्यवस्थापन वह अद्भुत तरीके से करती रहीं. उनके विचार, शिक्षा, मार्गदर्शन हम कभी नही भूल सकते. पर्यावरण के लिए जो कार्य विमला बहुगुणा और सुन्दर लाल बहुगुणा ने किए, ग्लोबल वार्मिंग के इस दौर में उन कार्यों को आगे ले जाना ही हमारी तरफ से उन्हें सच्ची श्रद्धांजलि होगी.

हिमांशु जोशी उत्तराखंड से हैं और प्रतिष्ठित उमेश डोभाल स्मृति पत्रकारिता पुरस्कार प्राप्त हैं. वह कई समाचार पत्र, पत्रिकाओं और वेब पोर्टलों के लिए लिखते रहे हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण): इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.

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