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This Article is From Apr 23, 2015

विमल मोहन : 'वो किसान था ही नहीं, उसके पास कई बीघा ज़मीन थी.....'

Vimal Mohan, Rajeev Mishra
  • Blogs,
  • Updated:
    अप्रैल 28, 2015 16:06 pm IST
    • Published On अप्रैल 23, 2015 23:32 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 28, 2015 16:06 pm IST
किसानों के आत्महत्या की ख़बरें बदस्तूर आ रही हैं। कभी महाराष्ट्र से, कभी बिहार से, कभी झारखंड से तो कभी राजस्थान से। इन राज्यों के नाम और किसानों के नाम, उनकी संख्या से भी बहुत बड़ा फ़र्क पड़ गया हो ऐसा दिल्ली में रहकर महसूस नहीं होता।

गांवों से दिल्ली तक जो ख़बरें आती हैं, उससे भी फ़र्क नहीं पड़ता। हैरत की बात है कि क़रीब-क़रीब सभी राजनीतिक पार्टियां इसे लेकर खुद को सबसे ज़्यादा संजीदा बताती हैं। हालात 'राग दरबारी' के नेता जैसे हो गए हैं, जहां वो शोर मचाकर समझाने की कोशिश करता है कि भारत किसानों का देश है, लेकिन शायद किसान इसे मानने को तैयार नहीं।

दिल्ली में दौसा (राजस्थान) के 41 साल के किसान गजेन्द्र सिंह की आत्महत्या के बाद आम आदमी पार्टी की रैली के दौरान कुमार विश्वास का चिल्ला-चिल्लाकर ये कहना कि दिल्ली पुलिस क्या कर रही थी?

'ये आम आदमी पार्टी को बदनाम करने की कोशिश है' जैसे बयान सुनकर लगा कि राजनीति में कदम पड़ते ही एक कविनुमा शख़्स का भी ग़ैरसंजीदा होना कोई अनहोनी बात नहीं।

मीडिया से राजनीति तक का सफ़र तय कर चुके आशुतोष पहले भी विवादों में रह चुके हैं। लेकिन इस बार उनका कटाक्ष एक अलग कड़वाहट छोड़ गया। उनका कटाक्ष था, "ये दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की ग़लती थी कि उन्होंने खुद पेड़ पर चढ़कर किसान को नहीं बचाया।" हालांकि इस बयान के लिए उन्होंने बाद में माफ़ी मांग ली।

इस बात को लेकर भी बहस तेज़ है कि गजेन्द्र किसान था या नहीं? गजेन्द्र ने वाकई आत्महत्या की या उससे कोई चूक हो गई? उसके पास कई बीघा ज़मीन है। उसके मरने की कोई और वजह है।

दुष्यंत याद आते हैं, "कई फ़ाके बिताकर मर गया जो उसके बारे में, वो सब कहते हैं अब, ऐसा नहीं, ऐसा हुआ होगा।"

किसानों की मौत के आंकड़े डरानेवाले हैं। एनसीआरबी (नेशनल क्राइम ब्यूरो रिकॉर्ड्स) के एक आंकड़े के मुताबिक साल 2012 में 135,445 लोगों ने आत्महत्या की। इनमें 13,754 लोग यानी 11.2 फ़ीसदी लोग किसान थे। ये संख्या क्यों बड़ी है, ये समझाने की ज़रूरत नहीं। दुष्यंत कुमार को दुहराने की ज़रूरत है।

"ग़ज़ब ये है कि अपनी मौत की आहट नहीं सुनते,
वो सब के सब परेशान हैं वहां पर क्या हुआ होगा."

गजेन्द्र की मौत इशारा है इस बात का कि हर रोज़ कई किसान भारत में आत्महत्या के लिए तैयार हो रहे हैं। परेशान होने और संजीदा होने की ज़रूरत है कि हज़ारों लोगों के सामने एक किसान ने जान देकर दिल्ली के दिल में कील ठोक दी है।

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