प्राइम टाइम इंट्रो : उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी : 35000 छात्र, 4 परमानेंट स्टाफ़

कोई गोदाम हो, कोई खंडहर हो, बस एडमिशन काउंटर खोल दीजिए, युवा जाकर एडमिशन ले लेंगे. भारत के युवाओं को तीन से पांच साल के लिए एडमिशन लेना अच्छा लगता है. क्लास में प्रोफेसर न हो तो और भी अच्छा लगता है.

प्राइम टाइम इंट्रो : उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी : 35000 छात्र, 4 परमानेंट स्टाफ़

यूनिवर्सिटी सीरीज़ से एक राजनीतिक ज्ञान प्राप्त हुआ है. जिसे भविष्य में नेता बनना है, उसे एक आइडिया दे रहा हूं. भारत के युवाओं को सिर्फ दो चीज़ चाहिए. मैं सीरीयस हूं, व्हाट्सऐप की बात नहीं कर रहा. ये दो चीज़ है प्रॉमिस और एडमिशन, वादा और नामांकन. कोई गोदाम हो, कोई खंडहर हो, बस एडमिशन काउंटर खोल दीजिए, युवा जाकर एडमिशन ले लेंगे. भारत के युवाओं को तीन से पांच साल के लिए एडमिशन लेना अच्छा लगता है. क्लास में प्रोफेसर न हो तो और भी अच्छा लगता है. बेशक सारे युवा ऐसे नहीं हैं. जिनके माता पिता कोचिंग यूनिवर्सिटी के लिए लाखों जुटा लेते हैं वो पार हो जाते हैं या उनकी अलग समस्या है. मगर बाकी करोड़ों युवाओं की धार को भोथरा करने के लिए जो कॉलेज खुले पड़े हैं, उन्हें अब दुनिया की कोई ताकत बेहतर नहीं कर सकती है. ये छात्र न तो स्किल डेवलपमेंट के लायक रह पाते हैं न ह्यूमन डेवलपमेंट के. हमारे सहयोगी दिनेश मानसेरा आपको उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी के कैंपस ले जाना चाहते हैं, इमारत तो ऐसी है कि सेल्फी खींचाने का मन करेगा, कहानी का प्लॉट ऐसा है कि इंटरवल से पहले सिनेमा छोड़कर भाग जाने का मन करेगा.

बहुत सी आधुनिक इमारतों की नकल में बनते बनते यह इमारत शादी ब्याह वाले फार्म हाउस से थोड़ी अलग बन गई है. वैसे भी इनदिनों एक पैटर्न चला हुआ है, शीशे की इमारत का ताकि मॉल, दफ्तर, घर और एयरपोर्ट सब एक जैसे लगें. टेक्निकल यूनिवर्सिटी की यह इमारत 20 करोड़ की लागत से 2005 में बनी, कैंपस 200 एकड़ में फैला है. यहां 4000 छात्र फ्यूचर ब्राइट करने आए हुए हैं. उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी से चार टेक्निकल कॉलेज संबंधित हैं. टोटल 35000 छात्रों को यहां पर रोककर उनका फ्यूचर ब्राइट से डार्क किया जाता है. इस यूनिवर्सिटी को कम से कम एक परमानेंट कर्मचारी की ज़रूरत है, कुछ भी ऐसा जो परमानेंट हो क्योंकि यहां चार क्लर्क को छोड़ कोई भी परमानेंट स्टाफ नहीं है. अधिकारी और प्रोफेसर भी नहीं. भारत में यूनिवर्सिटी का नाम लाफ्टर चैलेंज केंद्र रख देना चाहिए. हमारे सहयोगी दिनेश मानसेरा इस पर स्टोरी इसलिए कर रहे हैं क्योंकि वाइस चांसलर प्रदीप कुमार गर्ग को राज्यपाल ने हटा दिया है. भारत में पहले जांच बिठाई जाती है फिर चलाई जाती है. तो इनके खिलाफ भी यही हुआ है. आरोप के प्रकार कई हैं. एक आरोप यह भी है कि वे राजभवन से अस्थायी कर्मचारी के ज़रिए पत्राचार कर रहे थे. नियम है कि कोई स्थायी कर्मचारी या खुद वीसी राज्यपाल को जवाब देंगे. अब जहां कोई स्थाई कर्मचारी ही नहीं है, तो जवाब तो अस्थाई ही देंगे. प्रदीप गर्ग कम से कम राजभवन से पत्रचार के लिए एक कर्मचारी तो परमानेंट कर देते. वेरी सैड. जुगाड़ ही कबाड़ को महान बनाता है.

उत्तराखंड टेक्निकल यूनिवर्सिटी 17 साल की हुई, इसके इतिहास में पहली बार वीसी को हटाया गया. मुंबई युनिवर्सिटी के इतिहास में 160 साल बाद जाकर यह मौका आया जब पहली बार वीसी बर्खास्त हुए. उससे पहले बीएचयू के वीसी त्रिपाठी जी छुट्टी पर भेज दिए गए. बीएचयू वाले वीसी तो इंटरव्यू देने के बाद हटे, मगर मुंबई वाले तो चैनलों को इंटरव्यू दिए बना हटा दिए गए. ये दो चार नाम इसलिए बता रहा हूं ताकि हटाए गए वीसी लोगों को लोनली फील न हो. 31 अक्तूबर को देश सरदार पटेल की जयंती के उपलक्ष्य में एकता दौड़ की तैयारी कर रहा था, मगर गुजरात के सरदार पटेल यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर का पावर सीज़ हो गया. हाईकोर्ट ने कहा कि 8 नवंबर तक वे कोई फैसला नहीं ले सकेंगे. पता नहीं वीसी साहब एकता दौड़ में दौड़ने गए थे या नहीं. सोचिए सरदार के नाम पर बनी यूनिवर्सिटी का पावर उनकी जयंती से पहले सीज़ हो जाए, यह बहुत ही बैड बात है. उन पर आरोप है कि वीसी बनने के योग्य नहीं थे, फिर भी बना दिए गए.

वीसी बनने के लिए किसी यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर के पद पर दस साल का अध्यापन होना चाहिए. शिरिष कुलकर्णी का प्रोफेसर के पद पर पढ़ाने का अनुभव दस साल से कम है. हाईकोर्ट के जस्टिस एस जी शाह ने 8 नवंबर तक उनके किसी फैसला लेने पर रोक लगा दी है. वैसे सितंबर महीने में मध्यप्रदेश के अंबेडकर यूनिवर्सिटी महू के कुलपति को भी हटा दिया गया था. उन पर नियुक्तियों में नियमों का पालन न करने का आरोप लगा था. यह भी कहा जाता है कि किसान आंदोलन के समय डॉ. कुरील ने कांग्रेस के कुछ नेताओं को कैंपस में बुलाकर कार्यक्रम करवा दिया था.

अब ले चलते हैं आपको सहरसा के पी महाविद्यालय, मुरलीगंज, सहरसा. के पी महाविद्यालय का गेट तो काफी रंगा-पुता है, प्रवेश द्वार की सफेदी और लाल बॉर्डर से अगर आप धोखा खाने को तैयार नहीं हैं तो इस कॉलेज के फिजिक्स लैब में ले चलता हूं. यह लैब इस बात का सबूत है कि भारत में किसी को आर्ट फिल्म बनाने की ज़रूरत नहीं है. इस लैब को देखकर निगेटिव मत सोचिए, यही सोचिए कि छात्रों ने दशकों तक यहां प्रयोग किए, नतीजा नहीं आया तो लैब को ढाह कर चले गए. इस मेज़ पर जो किताबें रखी हैं, प्लास्टिक हैं और यह ग्लास भी दिख रहा है, बता रहा है कि प्राइम टाइम में आप तीन सौ एपिसोड कर लो, भारत की शिक्षा व्यवस्था पर सब चुप रहेंगे. रात में यहां किसी को बांध कर रख दिया जाए तो जो अपराध न किया हो वो भी कबूल कर लेगा, यही सोच कर कि इससे ख़राब अब क्या होगा, जब इस लैब में फिजिक्स पढ़ने वाले साइंस ग्रेजुएट हो गए तो वब अगर बिना अपराध किए अपराध स्वीकार कर लेगा तो कौन सी नाइंसाफी हो जाएगी. अब आपको बॉटनी के लैब ले चलते हैं, अब आपको पता चलेगा कि शिक्षा मंत्री बनना इस देश में कितना मौज का काम है. केवल जयंती के दिन ट्वीट करो और ऐश करो. बॉटनी के इस लैब को देखते देखते धौंकनी बढ़ गई है. धौंकनी मतलब सांसें तेज़ चलने लगी हैं. प्रयोगशाला में प्रयोगशाला सहायक, प्रयोग प्रदर्शक नाम का पद भी होता है जिस पर पथ प्रदर्शन का कार्य करते हुए कई साल पहले ही ये प्रदर्शक रिटायर हो गए और आपके लिए ये प्रदर्शनी छोड़ दी. ये लैब इसलिए फेल हुए कि हमने तो साइंस के सारे प्रयोग पांच हज़ार साल पहले ही कर लिए थे. इनकी ज़रूरत ही नहीं थी. केमिस्ट्री लैब के बाहर बोरी में पड़े जाने कौन से अनमोल ग्रंथ होंगे जिसे नोबल कमेटी ने अभी तक खोला भी नहीं है. परीक्षा नियंत्रक के दरवाज़े पर भोले शंकर हैं, अब उन्हीं का सहारा है. ये अभय भवन है. वाकई निर्भय है और लगता भी है अभय दान मिला हुआ है. 21वीं सदी तो यह भवन निकाल ही लेगा. 2008 में कोसी की बाढ़ आई. बाढ़ ने यहां की इमारतों को जर्जर कर दिया, बाढ़ न भी आती तब भी जर्जर होने से कोई नहीं रोक सकता था. चार कमरे बचे हैं जहां इंटर से लेकर ग्रेजुएशन तक की कक्षाओं का संचालन होता है.

बाढ़ के बाद कॉलेज बन जाना चाहिए था, मगर किसे फर्क पड़ता है. कमलेश्वरी प्रसाद यादव आज़ादी से पहले और बाद तक बिहार के प्रमुख राजनेता थे. खगड़िया से संविधान सभा के सदस्य चुने गए. भारत के संविधान बनाने में भूमिका अदा की. कितने सपने देखों होंगे इस शख्स ने आज़ाद भारत के लिए. 1952 में कमलेश्वरी बाबू उदा किशनगंज से विधायक भी चुने गए. बीएचयू से हिन्दी में डबल एमए थे. इस कॉलेज को बनाने के लिए लोगों से चंदा मांगा था. घर घर घूमे.

सोचिए आज वो ज़िंदा होते तो कॉलेज के इस गलियारे से गुज़रते हुए संगीत विभाग का बोर्ड देखकर क्या कहते, इग्नू के सेंटर के इस कमरे में आकर उनकी क्या मनोदशा होती. यह इमारत जो अधूरी है, बन जाती तो इनडोर स्टेडियम कहलाती, फिलहाल आउटडोर पड़ी हुई है बिना किसी ओर-छोर के. इंटर से लेकर बीएससी बीकाम तक के छात्रों की संख्या यहां 3787 है, टीचर मात्र 10 हैं. स्पोर्ट्स रूम चल कर देख लीजिए, इसके बाद भी भारत में क्रिकेट लोकप्रिय है, मामूली बात नहीं है. कॉमन रूम वाकई कॉमन है. कई विषयों में एक भी अध्यापक नहीं हैं. इतिहास, संगीत, मनोविज्ञान, राजनीति शास्त्र, रसायन, भौतिक शास्त्र में एक भी टीचर नहीं है, फिर भी इन विषयों में छात्र ग्रेजुएट हो रहे हैं. यह केवल भारत में हो सकता है, बिना टीचर के कॉलेज में भी 3000 बच्चे एडमिशन लेते हैं. इसलिए नेता बनना है तो करना कुछ नहीं है, रोज़ दो घंटा भाषण, और यूथ को एडमिशन का काउंटर दिखा देना है. बस नौजवान ज़िंदाबाद के नारों से आसमान गूंजा देंगे.

कमलेश्वरी यादव जी के लिए आज बहुत दुख हुआ. यह कॉलेज बी एन मंडल यूनिवर्सिटी का हिस्सा है. बी एन मंडल ने ही मंडल आयोग की रिपोर्ट तैयार की थी जिस रिपोर्ट को लेकर हुए आंदोलन से कई मुख्यमंत्री बने. मगर बी एन मंडल की एक याद को ठीक से कोई संभाल नहीं सका. रामविलास पासवान, लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार सब मंडल आयोग से अपनी राजनीतिक ऊर्जा प्राप्त करते रहे हैं मगर बी एन मंडल यूनिवर्सिटी की ऊर्जा की हर संभावना समाप्त होती रही. लगता है इनमें से कोई इस यूनिवर्सटी की तरफ जाता भी नहीं होगा. अब मैं रेलवे का बुलेटिन नहीं पढ़ने जा रहा हूं. यूनिवर्सिटी का पढ़ूंगा तो ध्यान रहे कि बी पी मंडल यूनिवर्सिटी का ग्रेजुएशन कोर्स ढाई साल लेट चल रहा है. यानी तीन साल का बीए आप यहां से साढ़े पांच साल में करते हैं. पोस्ट ग्रेजुएशन का कोर्स दो साल लेट चल रहा है. दो साल का एमए यहां चार साल में करते हैं.

विश्व गुरु बनाने का सपना वो चूरन है जिस पर भारत के नौजवान फ्री में लुट गए. चूरन भी नहीं है, पुड़िया में बालू भरा है. मधेपुरा तो राजनीतिक रूप से सक्रिय इलाका माना जाता है फिर बी एन मंडल के नाम पर बनी इस यूनिवर्सिटी की ऐसी हालत क्यों है. क्या आप तीन साल का बीए साढ़े पांच साल में करना चाहेंगे? ये यूनिवर्सिटी क्यों है, क्या मकसद है इसका? नौजवानों के साथ नेताओं ने दो धोखे किए. पहले यूनिवर्सिटी बर्बाद कर दी फिर उन्हें व्हाट्सऐप यूनिवर्सिटी में झोंक दिया. बीस साल बाद उन्हें पता चलेगा. अभी पता चल ही नहीं सकता है. कई छात्रों ने बताया कि 2013 में पोस्ट ग्रेजुएशन कर लिया मगर अभी तक प्रमाण पत्र नहीं मिला है.

आंदोलन की इस तस्वीर को देखकर लगता है कि औपचारिकता न होती तो वो भी न करते. धरने पर ऐसे बैठे हैं कि बस जाने ही वाले हैं. राजद और एबीवीपी के झंडे दिख रहे हैं. किस्सा सुनेंगे तो खुशी के मारे दस पूड़ी खा लेंगे कि चलो मधेपुरा सहरसा के भी बच्चे बर्बाद हो रहे हैं, वहां भी पढ़ाई नहीं है. झारखंड, राजस्थान, मध्यप्रदेश के बच्चे ही बर्बाद नहीं हो रहे. 90,000 छात्रों का पार्ट वन की परीक्षा ढाई साल लेट है. खाइये पांच पूड़ी और. 16 अक्तूबर को परीक्षा होनी थी, 15 अक्तूबर की रात कैंसिल हो गई. फिर हुआ कि 30 अक्तूबर को परीक्षा होगी लेकिन वो भी कैंसिल. इसका नाम कैंसिल यूनिवर्सिटी रख देना चाहिए. हुआ यह था कि पूर्णिया में शिक्षा माफिया ने कई हज़ार छात्रों के एडमिशन से लेकर पास कराने का ठेका ले लिया. जब इम्तहान से पहले सबका एडमिट कार्ड नहीं पहुंचा तो छात्र हंगामा करने लगे. स्थिति यहां तक आ गई कि पूर्णिया प्रशासन को अनुरोध करना पड़ा कि इम्तहान रद्द कीजिए वर्ना हालात बिगड़ जाएंगे. पूर्णिया के राम किशन कौशल्य कॉलेज में पार्ट वन में 3600 एडमिशन हो गया है जबकि कोटा 856 एडमिशन का ही था. इसके पीछे शिक्षा माफिया का हाथ बताया जा रहा है. अभी समझौता हो चुका है. स्थानीय मीडिया की रिपोर्ट के अनुसार कॉलेज के प्रिंसिपल भागे हुए हैं. उनके बेटे राणा यादव भी फरार हैं. तय हुआ है कि 6 नवंबर को यूनिवर्सिटी की टीम पूर्णिया के कॉलेज की जांच करेगी और जो सही होंगे उन्हें एडमिट कार्ड दिया जाएगा. 7 नंवबर को परीक्षा का एलान कर दिया जाएगा. यहां पर बीएड और कंप्यूटर एप्लिकेशन का कोर्स भी दो से ढाई साल लेट चल रहा है.

वाइस चांसलर ने आंदोलन पर उतरे छात्रों से बात की, बहुत वीसी तो बात ही करने नहीं आते हैं. वाइस चांसलर अवध किशोर राय ने माना कि उनके यहां करीब दो साल सेशन लेट है. लेकिन आप चिंता मत कीजिए. राज्य के शिक्षा मंत्री को कोई कष्ट नहीं होगा. उनकी कुर्सी पर पीठ से लेकर सीट तक सफेद तौलिया रोज़ बिछती होगी. हैंड टावल रोज़ मिलता होगा. वाइस चांसलर ने हमसे प्रॉमिस किया है कि बुलेट ट्रेन आने से 4 साल पहले यानी 2018 तक सारे लेट सेशल को समय पर पहुंचा देंगे. उनका कहना है कि कोसी क्षेत्र में प्राकृतिक आपदा के कारण भी सेशन लेट हो जाता है.

बी एन मंडल यूनिवर्सिटी बिहार की सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी है और वहां यूनिवर्सिटी के पास एक भी परमानेंट कर्मचारी नहीं है. 160 की जगह 81 स्टाफ पर ये यूनिवर्सिटी चल रही है जहां एक लाख के करीब छात्र पढ़ते हैं. यूनिवर्सिटी सीरीज़ के 18वें अंक के बारे में एक संशोधन करना है. हमने गोड्डा के ललमटिया कॉलेज का हाल दिखाया था. तब कहा था कि गोड्डा के सासंद निशिकांत दूबे हैं मगर यह कॉलेज राजमहल संसदीय क्षेत्र में आता है और राजमहल के सांसद विजय हंसदा साहब हैं. इस कंफ्यूज़न के लिए हमें खेद है. हमने यह भी कहा था कि अगर निशिकांत दूबे न भी होते तो भी ऐसे कॉलेजों के हालात कहां बदलने वाले हैं. जब बी एन मंडल यूनिवर्सिटी की ये हालत है तो क्या कहा जाए. अब समझ में आया आपको टॉप रैंकिंग का खेल. घर के सामने गड्ढा है और दिखा रहे हैं हिमालय की चोटी.

राजस्थान के भीलवाड़ा के माणिक्य लाल वर्मा महाविद्लाय में लेक्चरर की कमी को लेकर छात्रों ने ताला लगा दिया. टायर जलाकर प्रदर्शन किया, मेरी राय में यह सब न करें तो बेहतर है. छात्र संघ के अध्यक्ष टीकमचंद जाट का कहना है कि कॉलेज में 125 लेक्चरर होने चाहिए मगर 59 पद अभी रिक्त हैं. हाल ही में यहां भूगोल के 8 लेक्चरर नियुक्त हुए मगर इनमें से 6 को दूसरे कॉलेज में डेपुटेशन पर भेज दिया गया. यह आंदोलन प्रशासन की पहल पर शांत हो चुका है.

सुप्रीम कोर्ट से एक बड़ी ख़बर है. कोर्ट के अनुसार सभी डीम्ड यूनिवर्सिटी अगले अकादमिक सत्र से बिना यूजीसी, एआईसीटीई, डीइसी की अनुमति के डिस्टेंट शिक्षा के कोर्स नहीं चला सकते हैं. यह भी एक बड़ा गोरखधंधा है जिसके ज़रिए करोड़ों रुपये का काला धन तैयार होता रहता है. अब डीम्ड यूनिवर्सिटी को हर कोर्स के लिए अलग-अलग अनुमति लेनी होगी. यही नहीं, एक महीने के भीतर दूरस्थ शिक्षा देने वाले संस्थानों को यूनिवर्सिटी शब्द से अलग करना होगा. वे नाम के बाद यूनिवर्सिटी नहीं लगा सकते हैं. कोर्ट ने देश की चार डीम्ड यूनिवर्सिटी में 2001-2005 सत्र के बाद से दूरस्थ शिक्षा के ज़रिए हज़ारों छात्रों को मिली इंजीनियरिंग की डिग्री रद्द कर दी है. 2001 से 2005 के छात्रों को अपनी डिग्री बचाने के लिए एआईसीटी की परीक्षा में बैठना होगा. पास होने के दो मौके मिलेंगे, वरना उनकी डिग्री रद्द होगी. इलाहाबाद एग्रीकल्चर इंस्टीट्यूट, जेआरएन राजस्थान उदयपुर, इंस्टीट्यूट आफ एडवांस स्टडीज़, राजस्थान, विनायक मिशन रिसर्च फाउंडेशन तमिलनाडु. यूनिवर्सिटी को इन छात्रों को फीस व अन्य ख़र्च वापस करने होंगे.

हमारे सहयोगी आशीष भार्गव ने बताया कि कोर्ट ने यह भी कहा है कि डीम्ड यूनिवर्सिटी को इंजीनियरिंग कोर्स चलाने की अनुमति किन अधिकारियों ने दी, इसका पता लगाए, सीबीआई से इसकी जांच कराई जाए. जो उच्च शिक्षा को मज़बूत बनाने के लिए रोडमैप तैयार करेगी. चुनाव आता है तो आप देखेंगे कि नेता किसी मठ में जाते हैं, आश्रम में जाते हैं, गुरु को प्रणाम करते हैं, मंदिर जाते हैं, मस्जिद मानते हैं, कॉलेज जाएंगे तो बड़े कॉलेज के ऑडिटोरियम में जाते हैं मगर बीपी मंडल यूनिवर्सिटी नहीं जाएंगे, भीलवाड़ा के कॉलेज में नहीं जाएंगे, केपी कॉलेज मुरलीगंज नहीं जाएंगे, जाएंगे तो एक वोट मांगने लायक नहीं रह जाएंगे. मुंबई यूनिवर्सिटी और मधेपुरा की मंडल यूनिवर्सिटी का दर्द एक है. मधेपुरा में सेशन लेट है, मुंबई में रिज़ल्ट लेट है. मगर इन युवाओं की बिल्कुल चिंता नहीं करनी है, बिरयानी और खिचड़ी पर बहस करनी है. संसद को कानून पास करना चाहिए कि बिरयानी और खिचड़ी पर हर नागरिक को कम से कम चार सौ पोस्ट लिखने होंगे, फेसबुक पर.


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