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This Article is From Jul 09, 2018

दुनिया के शीर्ष शिक्षा संस्थानों में हम क्यों नहीं?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 09, 2018 23:55 pm IST
    • Published On जुलाई 09, 2018 23:55 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 09, 2018 23:55 pm IST
हिन्दी प्रदेशों में विवाद तो दो ही विश्वविदयालय के चलते हैं एक जेएनयू के और दूसरा एएमयू. चैनलों ने जब चहा यहां से देशद्रोही और हिन्दू-मुस्लिम नेशनल सिलेबस का कोई न कोई चैप्टर मिल ही जाता है. गिनती के संस्थानों को छोड़ दें तो भारत के विश्वविद्यालय में क्या हाल है हम आपको यूनिवर्सिटी सीरीज़ में समय-समय पर दिखाते ही रहते हैं. नई घटना ये है कि मणिपुर यूनिवर्सिटी में छात्रों ने वाइस चांसलर आद्या प्रसाद पांडे के खिलाफ आंदोलन छेड़ दिया है. 40 दिनों से वहां पढ़ाई ठप्प है और छात्रों के समर्थन में करीब 28 विभागों के अध्यक्ष ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. अलग अलग अकादमिक स्कूलों के 5 डीन ने भी इस्ताफा दे दिया है.

इस हड़ताल के कारण वही हैं जो भारत के अनेक यूनिवर्सिटी में मौजूद हैं. 30 मई से ये छात्र जिन मांगों को लेकर हड़ताल पर हैं वो हर यूनिवर्सिटी में हैं. इन छात्रों ने पहले अपनी मांग का चार्टर भी दिया था. जब सुनवाई नहीं हुई तब धरने पर बैठ गए. छात्रों का ज़ोर इस बात पर है अकादमिक कैलेंडर बेहतर हो और शिक्षकों के ख़ाली पद भरे जाएं ताकि छात्रों को शिक्षक मिल सके. छात्रसंघ के अध्यक्ष एम दयामन ने बताया कि यूनिवर्सिटी में 115 पद ख़ाली हैं. इसमें 25 प्रोफेसर हैं, 51 एसोसिएट प्रोफेसर हैं और 39 असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. इतने पद खाली हैं तो समझिए पढ़ाई क्या खाक होती होगी. भूगोल विभाग में ही 8 शिक्षक होने चाहिए मगर तीन हीं हैं और वो भी तीनों अस्सिटेंट प्रोफेसर हैं. पांच-पांच शिक्षकों के नहीं रहने से भूगोल के छात्रों को काफी नुकसान हो रहा है. शिक्षकों की बहाली के लिए 2016 में विज्ञापन निकला मगर बहाली नहीं हुई. 2017 में फिर विज्ञापन निकला और बहाली नहीं हुई. ज़रूरत हमें टीचिंग स्टाफ की है मगर नॉन टीचिंग स्टाफ के पदों पर लोगों को ठेके पर रखा जा रहा है और इनमें से ज़्यादातर वाइस चांसलर की पसंद के हैं. परीक्षा नियंत्रक, रजिस्ट्रार और लाइब्रेरियन के पदों पर अस्थायी लोग रखे गए हैं जिसके कारण फैसले की प्रक्रिया धीमी हो गई है. क्योंकि हर चीज़ वाइस चांसलर तय करते हैं. छात्र संघ के अध्यक्ष का आरोप है कि वाइस चांसलर महीने में दस दिन ही यूनिवर्सिटी के कैंपस में रहते हैं. इसके कारण फाइलें देर तक अटकी रहती हैं. नया साल के आए हुए डेढ़ साल हो गए हैं, मणिपुर में ठीक ठाक शांति है फिर भी अकादमिक गतिविधियों में तेज़ी नहीं आ सकी है. शांति के हालात में अकादमिक कैलेंडर बेहतर हो सकता था. परीक्षाएं समय से नहीं हो रही हैं और रिज़ल्ट में देरी हो रही है. ओरिजिनल सर्टिफिकेट निकालने में 30 से 45 दिन लग जाते हैं जबकि पहले 2 से 5 दिन ही लगते थे. छात्र संघ की हड़ताल में स्टाफ एसोसिएशन भी साथ आ गया और अब तो शिक्षक संघ भी साथ आ गया है.

अब बात इस जगह पहुंच गई है कि छात्रों और शिक्षक संघ का कहना है कि जब तक वाइस चांसलर आद्या प्रसाद पांडे को हटाया नहीं जाएगा, इस हड़ताल का कोई समाधान नहीं होगा. चालीस दिनों से चल रही इस हड़ताल पर आज नज़र पड़ी क्योंकि रविवार को शिक्षकों ने सभी विभागों के अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. मणिपुर मेडिकल साइंस के डीन को छोड़ कर पांच डीन ने इस्तीफा दे दिया. वाइस चांसलर छात्रों को उग्रवादी समर्थक बता रहे हैं. उनका कहना है कि उन्हें हटाने के लिए डीन और विभागों के अध्यक्ष पर दबाव बनाया जा रहा है. जबकि शिक्षकों का कहना है कि वाइस चांसलर के खिलाफ सभी आरोपों की जांच उच्च स्तरीय कमेटी करे. शिक्षकों के संघ मूटा ने प्रधानमंत्री, चीफ रेक्टर और मानव संसाधन मंत्री और मुख्यमंत्री से दखल देने की अपील की है.

शिक्षकों ने हॉस्टल में मेस चलाने के लिए एक दिन की सैलरी भी दी है क्योंकि इस हड़ताल के कारण सारा काम ठप्प हो गया है. छात्रों ने सभी विभागों में ताला लगा दिया है. मणिपुर के मुख्यमंत्री ने शिक्षक संघ के अध्यक्ष से बुलाकर बात भी की है. रविवार को छात्रों और शिक्षकों ने आरोप लगाया है कि यूनिवर्सिटी कैंपस में बाहरी तत्वों को बुलाया गया है ताकि अव्यवस्था फैलाई जा सके. अब बातचीत का समय चला गया है, एक ही समाधान है कि वाइस चांसलर को हटा दिया जाए. आद्या प्रसाद पांडे अक्टूबर 2016 में वाइस चांसलर बने थे. आद्या प्रसाद पांडे बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी के छात्र रहे हैं. 1979 से बीएचयू में पढ़ा रहे हैं. मणिपुर यूनिवर्सिटी के वीसी बनने से पहले बीएचयू के अर्थशास्त्र विभाग के अध्यक्ष थे.

क्या आप जानते हैं कि देश की 80 प्रतिशत शिक्षा कॉलेजों में होती है और उनकी हालत बहुत ख़राब है. 90 प्रतिशत उच्च शिक्षा राज्य यूनिवर्सिटी में होती है जिनकी हालत और भी ख़राब है. इन पर क्या ध्यान दिया जा रहा है, कुछ पता नहीं है. इस बात का ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं कि 9 जुलाई यानी आज के दिन मानव संसाधन मंत्री ने इस्टीट्यूट ऑफ एमिनेंस की घोषणा की है. प्रकाश जावड़ेकर ने ट्वीट किया है कि ये लैंडमार्क इनिशिएटिव है यानी मील का पत्थर साबित होने वाला कदम है. उन्होंने ट्वीट इसलिए किया है क्योंकि सरकार के एक्सपर्ट के पैनल ने institute of Eminence का चयन कर लिया है. आज हम 6 विश्वविद्यालयों की सूची जारी कर रहे हैं. 3 सरकारी हैं और 3 प्राइवेट हैं. instituteofEminence देश के लिए काफी महत्वपूर्ण हैं. हमारे पास 800 यूनिवर्सिटी हैं लेकिन एक भी यूनिवर्सिटी दुनिया की टॉप 100 या 200 में नहीं है. आज के फैसले से हमें ये हासिल करने में मदद मिलेगी.

मणिपुर यूनिवर्सिटी में 115 टीचर नहीं हैं, उसके जैसे न जाने कितने कॉलेज और यूनिवर्सिटी में टीचर नहीं हैं मगर भारत को लगता है कि पहला काम टॉप 100 या 200 में आ जाना है. अच्छा है, ये ज़िद होनी चाहिए मगर ये धुन भी होनी चाहिए कि 95 फीसदी छात्रों के लिए यूनिवर्सिटी और कॉलेज हैं वो कम से कम पढ़ने और पढ़ाने लायक हो सकें. रैंकिंग पर बहुत अधिक भरोसा करना ठीक नहीं होता है. कहीं इसकी हालत टीआरपी जैसी न हो जाए. प्रकाश जावड़ेकर ने 20 मार्च 2017 को लोकसभा में प्रश्न काल के दौरान बयान दिया था कि एक साल के भीतर दिल्ली यूनिवर्सिटी में 9000 शिक्षक नियुक्त कर देंगे. एक साल बीत गया. यहीं दिल्ली में ये हाल है. क्लासरूम में शिक्षकों को नियुक्त करना भी लैंडमार्क डिसिज़न होना चाहिए मगर रैंकिंग की ज़िद का आकर्षण शायद बड़ी खबर है. जिन छह यूनिवर्सिटी का चयन हुआ है उनमें नाम हैं आईआईटी दिल्ली, आईआईटी बॉम्‍बे, इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ साइंस बंगलुरू भी शामिल हैं. इन तीन संस्थानों के नाम पहले भी दुनिया की रैंकिंग में आते रहे हैं. टाइम्स हायर एजुकेशन रैंकिंग में इंडियन इस्टिट्यूट ऑफ साइंस का स्थान 251 से 300 के बीच है. आईआईटी दिल्ली और बॉम्‍बे का स्थान 500 से 600 में है. इन तीनों के अलावा जो तीन प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं उनमें से एक के बारे में अभी कुछ खास पता नहीं है. जियो इंस्टिट्यूट बाई रिलायंस फाउंडेशन, बिड़ला इस्टिट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी एंड साइंस-पिलानी, मणिपाल एकेडमी ऑफ हायर एजुकेशन.

रिलायंस का जियो मोबाइल और वाईफाई ने टेलीकॉम की दुनिया में काफी उथल पुथल मचा दी है. मगर जियो इंस्टिट्यूट क्या गुल खिलाएगा, इसका क्या बजट होगा और कैसे यह दुनिया की प्राइवेट यूनिवर्सिटी के बराबर पहुंचेगा, अभी देखते हैं मगर इस सूची में जियो इंस्टिट्यूट का नाम दिलचस्प है. हमने एसोसिएशन ऑफ इंडियन यूनिवर्सिटी के महासचिव फ़ुरक़ान क़मर से बात की. फुरकान साहब की एक बात में दम है. जिन दस संस्थानों को इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस में शामिल किया जाना है उसमें उच्च शिक्षा में देश भर के छात्रों का सवा प्रतिशत छात्र ही होंगे जो कि बहुत कम हैं. 99 प्रतिशत छात्रों के लिए क्या हो रहा है. आप अपने-अपने राज्यों के कॉलेजों में जाकर हालत देख सकते हैं. 50 प्रतिशत फैकल्टी नहीं हैं यानी टीचर नहीं हैं. शायद अब यह समस्या बेलगाम हो चुकी है, इन्हें ठीक करने की रफ्तार इतनी धीमी होगी कि उससे प्रचार नहीं होगा मगर इसकी जगह दस बीस संस्थानों पर बड़ा पैसा खर्च किया जाए और वे रैंकिंग हासिल कर लें तो उसे लेकर हेडलाइन भी तगड़ी बनेगी और कवर स्टोरी भी चमकदार लगेगी.

जीडी कॉलेज में 24 हज़ार छात्र हैं और शिक्षक 28 ही हैं. कई विभाग ख़ाली हैं तो कोई कॉलेज आए ही क्यों. ये बिहार के दैनिक भास्कर की क्लिपिंग है. एक शिक्षक पर 1059 छात्र का औसत है. किसी भी लिहाज़ से यह औसत भयंकर है. कोई भी अकेला शिक्षक एक हज़ार छात्रों को पढ़ा ही नहीं सकता है. दांत चियार देगा. यह कॉलेज बिहार के बेगुसराय ज़िले में है. हमने अपनी यूनिवर्सिटी सीरीज़ में इसी ज़िले के एक और कॉलेज श्री कृष्ण महिला कॉलेज का हाल बताया था. वहां साढ़े दस हज़ार छात्राएं हैं और मात्र 9 शिक्षक हैं. एक शिक्षक पर 1200 छात्राएं. मैं कहना यह चाहता हूं कि ज़रूरत भारत के इन छात्रों को शिक्षक की है ताकि वे भी अच्छी पढ़ाई हासिल कर सकें मगर उन्हें दस यूनिवर्सिटी की रैंकिंग का सपना दिखा कर मील का पत्थर बताया जा रहा है. यह उसी तरह है कि रेलगाड़ियां 30-40 घंटे की देरी से चल रही हैं और सपना बुलेट ट्रेन का दिखाया जा रहा है. आपको तय करना है कि आप किस प्राथमिकता का चयन करेंगे.

पटना विश्वविद्यालय के 100 साल होने के मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था कि 10 प्राइवेट और 10 सरकारी यूनिवर्सिटी अपना प्लान लेकर आएं, बताएं कि कैसे अपना विकास करेंगे, सरकार उन्हें अगले पांच साल में 10,000 करोड़ देगी. हमने रिकॉर्ड चेक किया. 2016-17 के बजट में 20 भारतीय यूनिवर्सिटी को दुनिया की टॉप 200 में पहुंचाने के लिए एक खाका तैयार किया जाएगा. मगर मंत्री जी ने प्लान जारी करते हुए कहा है कि उम्मीद है कि अगले दस साल में ये संस्थान टॉप 500 में आ जाएंगे और उसके बाद टॉप 100 में. तीन तो टॉप 500 में अभी से हैं. कहां तो बजट में टॉप 200 की बात है मगर ऐलान करते हुए टॉप 500 हो गया. सरकार ने खुद ही लक्ष्य कम कर दिया क्या. यही नहीं, 2016 के बजट में इसकी बात थी मगर 2018 आधा बीत गया तब तक सरकार सिर्फ 6 यूनिवर्सिटी की ही लिस्ट जारी कर सकी है. दो ढाई साल में आधे से भी कम का ऐलान हुआ है. अब रही बजट की बात तो 2016-17 के बजट में सिर्फ बात थी, बजट नहीं था. 2017-18 के बजट में मात्र 50 करोड़ का प्रावधान हुआ. उस पैसे का क्या हुआ होगा, सरकार ही बता सकती है क्योंकि 2017-18 के बीच तो इंस्टिट्यूट ऑफ एमिनेंस की सूची ही नहीं आई. 2018-19 के बजट में विश्व स्तरीय संस्थान के नाम पर 250 करोड़ का फंड है.

अगर बजट देखें तो अभी तक सरकार ने इसके लिए 300 करोड़ का ही प्रावधान किया है जबकि वह पांच साल में 10,000 करोड़ देने की बात करती है. 2016-17 के बजट में 20 संस्थानों में से हर एक को हर साल 500 करोड़ की राशि देने की बात है, इस राशि को अगले बजट में बढ़ाकर 1000 करोड़ कर दिया जाता है. क्या हम हर साल 20 संस्थान को 1000 करोड़ देकर पांच साल में 10,000 करोड़ खर्च कर टॉप 200 की रैंकिंग हासिल कर सकते हैं, वैसे मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने कहा है कि इन संस्थानों को अगले पांच साल में एक हज़ार करोड़ तक दिया जाएगा. यानी हर साल एक संस्थान को 200 करोड़. 200 करोड़ में क्या होगा. अगर आपको यह राशि बहुत लग रही है, मील का पत्थर लग रही है तो अमेरिका की यूनिवर्सिटी का बजट देख लीजिए. इसे हम इंडावमेंट फंड बोलते हैं मतलब इतने पैसे का फंड हैं इनके पास.

- हार्वर्ड यूनिवर्सिटी का इंडावमेंट फंड है 36 बिलियन डॉलर का यानी भारतीय रुपये में 2,47,140 करोड़
- येल यूनिवर्सिटी का इंडावमेंट फंड है 27.17 बिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपये में 1,82,128 करोड़
- स्टैंफोर्ड यूनिवर्सिटी का इंडावमेंट फंड है 24.78 बिलियन डॉलर यानी भारतीय रुपये में 1,70,114 करोड़

हावर्ड का इंडावमेंट फंड करीब ढाई लाख करोड़ का है. 30 जून 2017 को समाप्त हुए वित्त वर्ष में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी ने 33,638 करोड़ खर्च किया था. हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में 22,000 छात्र पढ़ते हैं. क्या आप जानते हैं 9 करोड़ की आबादी वाले बिहार का सालाना अनुमानित व्यय यानी बजट कितना है. बिहार का इस साल का बजट है 1 लाख 76 हज़ार करोड़. 2016-17 में बिहार ने उच्च शिक्षा, खेल कूद, कला संस्कृति पर 20,394 करोड़ ख़र्च किया. इसमें से 22 प्रतिशत हिस्सा सैलरी पर ख़र्च हुआ. 2017-18 में 26,394 करोड़ के बजट में सैलरी का हिस्सा घट कर 19.5 हो गया. यानी एक साल में सैलरी पर तीन प्रतिशत की गिरावट. मतलब यह हुआ कि नए शिक्षक कम बहाल हुए.

क्या भारत की कोई भी यूनिवर्सिटी हार्वर्ड, येल या स्टैनफोर्ड की बराबरी कर सकती है? क्यों नहीं कर सकती है मगर 10,000 करोड़ या इस तरह के रवैये से तो नहीं कर सकती. 2016 में ही कहा गया था कि 20 संस्थानों का चुनाव होगा लेकिन 2018 का आधा बीत जाने पर 6 संस्थानों का ऐलान हो रहा है, उसमें से एक जियो इंस्टिट्यूट अभी कायम नहीं हुई है. निराश न हों, हार्वर्ड यूनिवर्सिटी 1636 में कायम हुई थी, येल यूनिवर्सिटी 1701 में बनी और स्टैंनफोर्ड 1891 में बनी. हार्वर्ड और येल के पहले का तो आपको क्या मिलेगा, मैं दुखी नहीं करना चाहता. स्टैनफोर्ट के पहले भारत में अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी, कोलकाता यूनिवर्सिटी और मद्रास यूनिवर्सिटी की स्थापना हो चुकी थी. ये सब जानने के लिए है. जानना और प्रचार दोनों अलग क्रियाएं हैं.

इंदौर की मेडिकल छात्रा स्मृति लहरपुरे ने फीस के दबाव से तंग आकर आत्महत्या कर ली। कई मेडिकल कालेजों के छात्रों ने स्मृति लहरपुरे के सुसाइडनोट के आधार पर कार्रवाई करने की मांग की. चार हफ्ते तक स्मृति के माता-पिता मारे-मारे फिरते रहे तब जाकर शनिवार को इंदौर पुलिस ने स्मृति के मेडिकल कॉलेज के चेयरमैन और एचओडी के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज किया है. एम्स दिल्ली के रेजिडेंट डॉक्टरों ने भी दिल्ली में कैंडल मार्च किया था और कार्रवाई की मांग की थी. पांच साल एमबीबीएस करने के बाद स्मृति लहरपुरे ने इंडेक्स मेडिकल कॉलेज में पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स के लिए ज्वाइन किया. स्मृति का चयन नीट की परीक्षा के ज़रिए हुआ था. एडमिशन के समय ट्यूशन फीस थी 8 लाख 56 हज़ार और होस्टल फीस 2 लाख मांगी गई. जब एडमिशन लेने पहुंची तो छात्रों से कहा गया कि 2 लाख और जमा करें. कुछ समय बाद फिर कहा गया कि 1 लाख 35 हज़ार और जमा करें. मेडिकल कॉलेज के छात्र जबलपुर कोर्ट चले गए. स्मृति इस आंदोलन का नेतृत्व कर रही थीं. अदालत ने छात्रों के हक में फैसला दिया मगर कॉलेज ने और फीस मांग दी. उसके बाद की स्थिति से तंग आकर स्मृति लहरपुरे ने आत्महतया कर ली.

इस तरह की लूट हर मेडिकल कॉलेज में चल रही है. छात्र प्रतियोगिता के ज़रिए चुने जाते हैं. नीट की परीक्षा पास कर. मगर वहां पहले साल की फीस कुछ और होती है और दूसरे साल की कुछ और. दोनों में कई बार पांच से दस लाख का अंतर होता है. बहुत सारे साधारण परिवारों के छात्र इस चक्की में पिस जाते हैं. ग़ुलाम की तरह कर्ज लेकर फीस चुकाते रहते हैं. एम्स के रेज़िडेंट डॉक्टरों के संगठन ने कई सारे रेज़िडेंट डॉक्टरों के संगठन को मिलाकर एक देशव्यापी संगठन बनाया है. हरजीत भट्टी कहते हैं कि प्राइवेट मेडिकल कॉलेजों में फीस की इस लूट से मेडिकल में गरीब और साधारण परिवारों के बच्चों के लिए टिक पाना मुश्किल हो रहा है.

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