हरीश रावत ने क्या पहले सतपाल महाराज के बीजेपी में जाने और विजय बहुगुणा के बाहर होने को हल्के से लिया? क्या सोचा कि वे उतराखंड की राजनीति को त्याग देंगे? क्या वे एक मुख्यमंत्री के तौर पर नाखुश होते विधायको के तेवरों को भांप नहीं पाए या वे नज़रअंदाज कर बेमानी साबित करना चाह रहे थे? क्या कांग्रेस आलाकमान भी बहुत देर से जागा? कन्हैया कुमार के लिए एक घंटा और विजय बहुगुणा के लिए समय नहीं? और आज यह हालत थी कि दिल्ली के दो बड़े कांग्रेसी वकील दो घंटे से ज्यादा पैरवी करते रहे नैनीताल हाई कोर्ट में। खबर यह तक है कि विजय बहुगुणा ने अनसुनी के बाद राहुल गांधी के फोन तक नहीं लिए।
सवाल उठ रहे हैं कि क्या बीजेपी ने राष्ट्रपति शासन लागू करने में जल्दबाजी कर डाली। एक दिन का और इंतजार क्या नहीं किया जा सकता था। राज्यपाल ने 28 तारीख तक का समय दिया था विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए या फिर उसे आभास हो चला था कि सत्ता के लिए विधायक डगमगा भी सकते हैं। स्टिंग पर एक दिन में जांच रिपोर्ट आ भी जाती है जबकि एफआईआर तक दाखिल नहीं होती है। न्यायालय में मामला होने पर भी देश के वित्त मंत्री भी एक लेख लिख कई कानूनी पहलुओं पर सवाल उठा देते हैं।
लेकिन क्या कांग्रेस की नैतिकता का वार हरीश रावत के स्टिंग आने से हार गया? बीजेपी पर उसका सत्ता के अहंकार और विधायकों को खरीदने का आरोप उल्टा पड़ गया। स्पीकर का वायस वोट से बजट पास कराने का कदम पक्षपाती रहा।
राष्ट्रपति शासन लगाने का सिलसिला हमारे देश में लम्बा है-
- 1959 तक जवाहरलाल नेहरु ने इसे 6 बार प्रयोग किया।
- 1960 तक यह 11 बार प्रयोग में लाया गया।
- इंदिरा गांधी ने 1967-69 के बीच इसे 7 बार इस्तेमाल किया।
- 1970-74 के बीच तो इसे 19 बार अमल में लाया गया।
- 1977 में 9 बार इसे लगाया गया। जनता पार्टी ने कांग्रेस की 9 सरकारों को बर्खास्त किया- बिहार, हरियाणा, हिमाचल, कर्नाटक, एमपी, उड़ीसा, राजस्थान और यूपी।
- 1980 में इदिरा गांधी ने 9 गैर कांग्रेसी सरकारों को हटाया- बिहार, गुजरात, महाराष्ट्र, एमपी, उड़ीसा, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु और यूपी।
- 1987 से 92 तक 4 साल 8 महिने का पंजाब में सबसे लम्बी अवधि का राष्ट्रपति शासन चला।
- 1990 से 96 तक जम्मू कश्मीर में आतंकवाद के कारण 6 साल 8 महिने तक चला राज्यपाल शासन चला।
- सबसे ज्यादा मणिपुर में 10 बार, यूपी में 9 बार और फिर पंजाब व बिहार में 8 बार राष्ट्रपति शासन लागू हुआ।
- दिल्ली में सिर्फ एक बार 2014-15 में अरविन्द केजरीवाल के जाने के बाद लागू किया गया।
तो उत्तराखंड की खण्डित राजनीति से किस राजनीतिक दल को फायदा होने जा रहा है, इसके संकेत कल मिल जाएंगे। सहकारी संघवाद क्या महज एक नीति के तौर पर शब्दों तक ही सीमित हो जाएगा?
(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)
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