भारतीय जनता पार्टी शुक्रवार को चुनावी मोड में लौट आई-वो भी ऑनलाइन के बजाये आमने-सामने की बैठक में. यूपी का किला फिर से कैसे फतेह किया जाए इसको लेकर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने वाराणसी में करीब 700 लोगों को प्रशिक्षित करने के लिए एक घंटे की लंबी बैठक की. इस चुनाव को पार्टी नेता सभी चुनावों का "बाप" बता रहे हैं.
सूत्रों ने मुझे बताया, बैठक में शाह सभी तरह की भूमिका में थे और राज्य के कुछ नेताओं को कड़ी फटकार भी लगाई, जिनकी योजना उन्हें असंतोषजनक लगी. गौर करने वाली बात है कि शाह ने कुछ हफ्ते पहले दिए अपने बयान को दोहराया- कि 2024 के आम चुनाव में पार्टी को फिर से सत्ता दिलाने के लिए 2022 में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का जीतना जरूरी है. हालांकि, इस बार शाह ने दावा किया कि आदित्यनाथ की सत्ता में वापसी न सिर्फ बीजेपी के लिए बल्कि भारत के लिए भी जरूरी है. उन्होंने कई बार दोहराया, "आपको यह सुनिश्चित करना होगा कि योगी आदित्यनाथ की वापसी हो. यह सिर्फ विधायकों का चुनाव नहीं है बल्कि मोदी की सत्ता में वापसी की चाबी है. यूपी चुनाव में 300 से ज्यादा सीटें जीतें और 2024 का रास्ता साफ करें." सत्ताधारी दल के मुख्य चुनावी रणनीतिकार ने इस चुनाव में 403 में से 300 सीटें जीतने का टारगेट सेट किया है.
बैठक में योगी आदित्यनाथ मौजूद रहे. उनके दोनों डिप्टी, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान, जो यूपी चुनाव के प्रभारी हैं और सुनील बंसल (शाह के विश्वस्त सहयोगी), बीजेपी प्रदेश महामंत्री (संगठन) भी वहीं थे.
शाह को गैर-योजनाबद्ध बैठकें नापसंद हैं, इसलिए राज्य नेतृत्व ने मोदी, योगी और शाह से जुड़ी अभियान सामग्री प्रस्तुत की. चुनावी नारों और जिंगल्स को भी आजमाया गया. उनमें से एक, "सबसे बड़े लड़इया योगी", जो कि विशाल भारद्वाज की फिल्म 'ओमकारा' से प्रेरित है. इसके जरिये योगी को ऐसी शख्सियत के रूप में पेश करने की कोशिश है, जिसने यूपी को बदल दिया और अपराधियों पर नकेल कसी. योगी की भारी-भरकम छवि काफी सटीक है, जबकि इसके साथ ही बीजेपी की योजना 'भ्रष्टाचार-मुक्त' योगी के बड़े कामों को भी जनता के सामने रखने की है, एक ऐसा शख्स जिसने यूपी के लोगों के लिए अपने परिवार को त्याग दिया. कोविड प्रतिबंधों के चलते योगी अप्रैल में अपने पिता के अंतिम संस्कार में भी शामिल नहीं हुए थे. चुनाव अभियान पर खर्च के बारे में पूछे जाने पर बीजेपी नेताओं का सिर्फ इतना कहना है कि यूपी को बरकार रखने के लिए जो कुछ भी करना पड़ेगा पार्टी खर्च करेगी. चुनावी जंग में बीजेपी के खर्च की झलक बंगाल चुनाव में देखने को मिली ही थी. यूपी की जंग में बीजेपी हर पार्टी से ज्यादा खर्च करेगी इसलिए एक भारी-भरकम खर्च की उम्मीद यूपी चुनाव में की जा सकती है.
शाह ने पार्टी अध्यक्ष के रूप में दावा किया था कि मिस्ड कॉल अभियान के बाद भाजपा दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी बन गई. इस अभियान से सपोर्ट बेस में अच्छा खासा इजाफा देखा गया. अब उत्तर प्रदेश में भी इस तरह का अभियान चलाया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा मतदाताओं को अपने साथ जोड़ा जा सके. हर विधानसभा क्षेत्र के हर बूथ पर नजर रखी जाएगी और हर बूथ का एक प्रभारी होगा.
बीजेपी सबसे बड़े व्हाट्सएप मोबिलाइजर के रूप में भी खुद को मजबूत करने की योजना बना रही है. उसके पास चैट ग्रुप्स की एक लंबी लिस्ट है, जो कि वर्षों की कठिन मेहनत का नतीजा है. यह पार्टी को सीधे मतदाताओं तक पहुंचने का सरल और प्रभावी तरीक प्रदान करता है. पार्टी के पास व्हाट्सएप प्रमुख या यूपी के हर एक गांव में ब्लॉक प्रभारी है. इसे नकारात्मक प्रचार कहा जा सकता है, लेकिन इन ग्रुप्स में विरोधियों के बारे में निराधार दावे, यहां तक कि फेक न्यूज भी बिना किसी संपादकीय फ़िल्टर के प्रसारित किए जाते हैं.
बीजेपी अपने प्रतिद्वंद्वियों को "भ्रष्ट नेताओं" के रूप में प्रचारित करेगी कि इन लोगों अब तक उत्तर प्रदेश को लूटा है. फिलहाल अखिलेश यादव और उनकी समाजवादी पार्टी को प्रतिस्पर्धी के रूप में देखते हुए अखिलेश को असुरक्षित और काम नहीं करने वाला नेता ठहराने की विशेष कोशिश चल रही है. समाजवादी "इत्र" जिसे अखिलेश यादव ने हाल ही में लॉन्च किया था, भाजपा के लिए एक उपहार है क्योंकि वह इसका इस्तेमाल उनकी अल्पसंख्यक तुष्टीकरण की राजनीति के अपने आरोपों को मजबूत करने के लिए करेगी. राज्य में भाजपा के इन-हाउस सर्वे अब साप्ताहिक आधार पर हो रहे हैं. इनसे पता चला है कि तालिबान के खिलाफ हवाई हमले के योगी के दावे, राम मंदिर के काम में तेजी, कैराना से तथाकथित "पलायन" और कब्रिस्तानों की बात से भाजपा के मतदाताओं में अच्छा माहौल बना है. अब पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना ने यूपी की चुनावी समर में एंट्री कर ली है, तो इस बारे में कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि इस बार का चुनाव प्रचार किस हद तक ध्रुवीकरण करने वाला हो सकता है.
प्रियंका गांधी वाड्रा और उनकी कांग्रेस पार्टी की चुनौती फिलहाल बीजेपी के लिए एक्सीडेंटल इलेक्शन टूरिस्ट बताकर खारिज करने तक सीमित है. अब तक योगी सरकार पर चुप्पी साधे रहीं मायावती और बीएसपी को नजरअंदाज किया जाएगा. संभवत: यह भाजपा की बी टीम होने के सिद्धांत का प्रतिफल है.
इसलिए आप अपने आपको सबसे बिग बैंग अभियान के लिए तैयार कर लें क्योंकि बीजेपी ने यूपी की सत्ता को फिर से हासिल करने के लिए कमर कस ली है. अमित शाह ने कमान संभाल ली है.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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