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This Article is From Nov 07, 2021

जिन्ना के 'जिन्न' पर फिर क्यों लौटे अखिलेश यादव? समझें इसके मायने और सियासी गणित

Pramod Kumar Praveen
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    नवंबर 17, 2021 14:20 pm IST
    • Published On नवंबर 07, 2021 12:44 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 17, 2021 14:20 pm IST

उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में विधान सभा चुनाव (Assembly Elections 2022) होने में अब पांच महीने ही रह गए हैं. ऐसे में सभी राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने वोट बैंक को सहेजने और उसे एकजुट रखने या लामबंद करने में जुट गई हैं. सत्तारूढ़ बीजेपी जहां हिन्दू वोटरों का ध्रुवीकरण कर सत्ता में वापसी की कोशिशों में जुटी है तो राज्य की मुख्य विपक्षी समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) अपने परंपरागत वोट बैंक  MY (मुस्लिम-यादव) समीकरण को सहेजने में जुटी है.

संभवत: यही वजह है कि अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) ने सपा का गढ़ रहे हरदोई की एक सभा में मोहम्मद अली जिन्ना का नाम लेकर जो सियासी तीर छोड़े, वह बीजेपी को जा चुभी और राज्य के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत बीजेपी के सभी बड़े नेता उनपर ताबड़तोड़ हमले करने लगे. खुद योगी ने उनके बयान को तालिबानी मानसिकता वाला और विभाजनकारी बताया तो उनके एक मंत्री ने जिन्ना को अखिलेश का आदर्श बता डाला. राज्य के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने तो उन्हें 'अखिलेश अली जिन्ना' करार दे डाला.

दरअसल, यादव ने 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभ भाई पटेल की जयंती पर हरदोई की एक जनसभा में कहा था,''सरदार वल्लभ भाई पटेल, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और (मोहम्मद अली) जिन्ना ने एक ही संस्थान से पढ़ाई की और वे बैरिस्टर बने एवं उन्होंने आजादी दिलाई. वे भारत की आजादी के लिए किसी भी संघर्ष से पीछे नहीं हटे." 

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समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इन दिनों राज्य में विजय रथ यात्रा पर हैं.

इस पर बीजेपी ने जिन्ना की तुलना सरदार पटेल से किये जाने पर एतराज जताया लेकिन बीजेपी के हमलों को नजरअंदाज करते हुए अखिलेश ने हफ्ते भर के अंदर विरोधियों को किताब पढ़ने की नसीहत दे डाली और कहा कि वो अपने बयान पर अड़े हैं. अब बात आती है कि आखिर हाय-तौबा मचने के बाद भी अखिलेश राजनीतिक रूप से इस संवेदनशील मुद्दे पर डटे और अड़े हुए क्यों हैं?

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सियासी विश्लेषण के मुताबिक, यूपी में मुस्लिम वोट करीब 19 फीसदी है और 9 फीसदी से ज्यादा यादव वोटर हैं. इनके अलावा यूपी की 403 सीटों वाली विधान सभा में 143 सीटों पर मुस्लिम अपना असर रखते हैं. इनमें से 70 सीटों पर मुस्लिम आबादी 20 से 30 फीसद के बीच है, जबकि 73 सीटें ऐसी हैं जहां मुसलमान 30 फीसदी से ज्यादा हैं. अखिलेश गैर यादव हिन्दू वोटरों के ध्रुवीकरण की काट में मुस्लिम वोटरों का ध्रुवीकरण चाहते हैं ताकि एकमुश्त 19 फीसदी वोट सपा को मिल सके.

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असदुद्दीन ओवैसी ने आगामी चुनावों में यूपी में 100 सीटों पर उम्मीदवार उतारने का एलान किया है.

हालांकि, यह जंग इतनी आसान नहीं दिख रही क्योंकि मुस्लिम वोट बैंक में सेंधमारी के लिए मायावती की बहुजन समाज पार्टी, कांग्रेस और असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी AIMIM भी ताल ठोक रही है. 2017 में ओवैसी ने 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे लेकिन 37 पर उनकी जमानत जब्त हो गई थी.  तब ओवैसी को करीब 2.5 फीदी वोट मिले थे. इस बार ओवैसी 100 सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने का एलान कर चुके हैं.

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योगी आदित्यनाथ ने भी रणनीतिक तौर पर ओवैसी को बड़ा नेता करार दिया है. बीजेपी जानती है कि मुस्लिम वोट उसे नहीं मिलने वाला. लिहाजा, वह ओवैसी को बड़ा नेता कहकर और अखिलेश की छवि मलिन कर मुस्लिम वोट में बिखराव चाहती है. ऐसे में मुस्लिम वोट के बंदरबांट की आशंका गहराती नजर आती है. माना जा रहा है कि पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने बीजेपी और ओवैसी के इसी दांव को कमतर करने के लिए जिन्ना का 'जिन्न' फिर से निकाला है ताकि मुस्लिम वोटर उनके पक्ष में लामबंद हो सकें. 

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हिन्दूवादी एजेंडे को बढ़ाते हुए अखिलेश के दांव को कुंद करने की कोशिशों में जुटे हैं.

समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव इससे आगे बढ़कर राज्य की कई छोटी-छोटी पार्टियों से भी गठजोड़ कर रहे हैं. ताकि उनके माय समीकरण के वोट बैंक में इजाफा हो सके और वो फिर से सत्ता के शीर्ष पर वापसी कर सकें. अखिलेश की नजर इस बार गैर यादव ओबीसी- राजभर (4 फीसदी), निषाद (4 फीसदी) और मौर्य/कुशवाहा (6 फीसदी) वोटों पर भी है. इसी वजह से वह इन जातियों पर पकड़ रखने वाली पार्टी से गठजोड़ कर रहे हैं. मुस्लिम और यादव वोट में बिखराव न हो, इसके लिए अखिलेश पहले ही कह चुके हैं कि वो चाचा शिवपाल के साथ हर गले-शिकवे भुलाने को तैयार हैं.
 

प्रमोद कुमार प्रवीण NDTV.in में चीफ सब एडिटर हैं...

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