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This Article is From Jan 19, 2022

अपर्णा यादव के BJP में जाने से समाजवादी पार्टी को कितना नुकसान और भाजपा को कितना फायदा? 

Pramod Kumar Praveen
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 19, 2022 16:48 pm IST
    • Published On जनवरी 19, 2022 13:37 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 19, 2022 16:48 pm IST

उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों (Uttar Pradesh Assembly Elections 2022) से पहले समाजवादी पार्टी (Samajwadi Party) के संस्थापक और संरक्षक मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) के छोटे बेटे प्रतीक यादव की पत्नी अपर्णा यादव (Aparna Yadav) आज (बुधवार, 19 जनवरी) बीजेपी (BJP) में शामिल हो गईं. उनके भगवा दामन थामने की चर्चा लंबे समय से हो रही थी. 2017 में भी विधानसभा चुनाव से पहले उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चा तब तक होती रही थी, जब तक कि वो लखनऊ कैंट सीट से समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार नहीं बन गईं. उस चुनाव में वह बीजेपी की रीता बहुगुणा जोशी से हार गई थीं.

तब रीता बहुगुणा जोशी को कुल 50.90 फीसदी यानी 95 हजार 402 वोट मिले थे, जबकि अपर्णा यादव को मात्र 32.67 फीसदी यानी कुल 61,606 वोट मिले थे. 2019 के उप चुनाव में इसी सीट से बीजेपी उम्मीदवार सुरेश चंद्र तिवारी को 56, 684 (51.03 फीसदी) वोट मिले जबकि सपा की तरफ से उम्मीदवार रहे मेजर आशीष चतुर्वेदी को 21, 256 (19.14 फीसदी) वोट मिले.

2017 के चुनावों में हार पर तब अपर्णा यादव ने कहा था कि उन्हें जानबूझकर ऐसी सीट से टिकट दिया गया, जहां पार्टी मजबूत स्थिति में नहीं रही है. यह बात भी सत्य है क्योंकि इस सीट पर सपा आजतक कभी भी जीत दर्ज नहीं कर सकी है. 1957 से 2019 तक लगातार लखनऊ कैंट सीट पर परंपरागत रूप से कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवार ही जीतते रहे हैं. सिर्फ 1967 में बद्री प्रसाद अवस्थी ने निर्दलीय, 1969 में सच्चिदानंद ने भारतीय क्रांति दल से और 1977 में कृष्ण कांत मिश्रा ने जनता पार्टी के टिकट से यहां जीत दर्ज की है. हालांकि, चुनाव हारने के बाद भी अपर्णा लखनऊ कैंट विधानसभा क्षेत्र में सक्रिय रही हैं. उनकी छवि एक सामाजिक कार्यकर्ता की रही है.

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सपा संरक्षक मुलायम सिंह यादव और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव के साथ अपर्णा यादव (सबसे बाएं) (फाइल फोटो)

2017 में समाजवादी पार्टी में पारिवारिक कलह चरम पर थी. उस वक्त भी अपर्णा खुलकर सपा से बेदखल किए गए ससुर शिवपाल यादव के समर्थन में बोलती दिखाई पड़ती थीं लेकिन अब जब शिवपाल ने अखिलेश को ही नया 'नेताजी' मान लिया है, तब अपर्णा ने बीजेपी का दामन थाम लिया. शिवपाल ने अपर्णा को भी समाजवादी पार्टी में ही रहने की सलाह दी लेकिन उन्होंने नया ठिकाना चुन लिया है. 

अपर्णा मुलायम सिंह की दूसरी पत्नी साधना गुप्ता (यादव) की पहली शादी से हुए लड़के प्रतीक यादव (जिन्हें मुलायम ने अपना सरनेम दिया है) की पत्नी हैं और पीएम मोदी और सीएम योगी की प्रशंसक रही हैं. योगी के सीएम बनने के बाद उन्होंने योगी आदित्यनाथ को अपनी गोशाला में बुलाया था. तब भी वह सुर्खियां बनी थीं. 2017 में उस वक्त भी वह तब सुर्खियों में आई थीं, जब चुनाव से तीन-तार महीने पहले उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी संग सेल्फी ली थी.

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बीजेपी ज्वाइन करने के बाद अपर्णा यादव ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, सीएम योगी की तारीफ की है. उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रधर्म उनके लिए सबसे ऊपर है. उन्होंने कहा, "मैंने हमेशा राष्ट्र को धर्म माना है. हमेशा राष्ट्र के लिए ही फैसला लिया है. यह मेरी नई पारी है. मैं पीएम मोदी, सीएम योगी से बहुत प्रभावित हूं. उनकी नीतियां मुझे नैतिक रूप से भाती हैं, इसलिए मैंने बीजेपी ज्वाइन की." हालांकि, उन्होंने परिवार और समाजवादी पार्टी पर कोई टिप्पणी नहीं की. उन्होंने कहा भी कि वह परिवार से विमुख कोई बात नहीं करना चाहतीं.

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मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य और दिनेश शर्मा की मौजूदगी में बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा अपर्णा यादव को पार्टी में शामिल कराते हुए. 

दरअसल, राज्य में  9 फीसदी से ज्यादा यादव वोट बैंक की लड़ाई है. बीजेपी अपर्णा यादव और कुछ अन्य यादव नेताओं को साथ लेकर इस वोट बैंक में सेंधमारी चाहती है, जबकि परंपरागत रूप से यादव वोट बैंक पर समाजवादी पार्टी का कब्जा रहा है. राज्य में ओबीसी समुदाय का करीब 45 से 50 फीसदी वोट बैंक है. सपा प्रमुख यादव और मुस्लिम वोटबैंक के अलावा ओबीसी की कई जातियों (राजभर- 4 फीसदी, निषाद- 4 फीसदी), लोध- 3.5 फीसदी) को अपने पाले में कर सत्ता पर फिर से कब्जा चाहते हैं जबकि बीजेपी सपा के किले में ही सेंध लगाकर सत्ता बचाए रखना चाह रही है. ऐसे में अपर्णा को बीजेपी में शामिल कराने में बीजेपी की तत्परता और उसके सियासी मायनों को इस बात से भी समझा सकता है कि उनकी ज्वाइनिंग के वक्त यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, दोनों उप मुख्यमंत्री (केशव प्रसाद मौर्य और दिनेश शर्मा), प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा भी पार्टी मुख्यालय में मौजूद थे.

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चूंकि अपर्णा यादव मास लीडर नहीं रहीं और सपा में भी उनकी अधिक पैठ नहीं रही, इसलिए इस बात की संभावना कम ही है कि उनके जाने से सपा को कोई विशेष नुकसान होगा. दूसरी तरफ बीजेपी यह साबित करने में सफल हो सकती है कि जो अखिलेश अपने परिवार को नहीं संभाल सकते, वह राज्य या बड़े गठबंधन को कैसे संभालेंगे? क्योंकि राजनीतिक हलकों में इस बात की भी चर्चा लंबे समय से है कि अखिलेश की पत्नी डिंपल यादव और अपर्णा यादव के बीच रिश्ते अच्छे नहीं हैं. ये अलग बात है कि मुलायम सिंह की दोनों बहुओं ने कभी सार्वजनिक रूप से एक-दूसरे के खिलाफ कोई बयानबाजी नहीं की है. चर्चा इस बात की भी है कि सपा लखनऊ कैंट सीट से डिंपल के किसी करीबी को टिकट देने पर विचार कर रही थी. इसलिए भी अपर्णा सपा में असहज महसूस कर रही थीं. बहरहाल, सियासी हवा बनाने के अलावा बीजेपी को अपर्णा को साथ करने से कोई फायदा होता तत्काल नहीं दिख रहा है. दूसरा कई स्वामी प्रसाद मौर्य सरीखे ओबीसी नेताओं के बीजेपी छोड़ने की एक प्रतिक्रिया के तौर पर ही इसे समझा जा सकता है, इससे ज्यादा फिलहाल कुछ नहीं..

प्रमोद कुमार प्रवीण NDTV.in में चीफ सब एडिटर हैं...


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